वणिजः कृपणता Subjective Questions

चतुर्दशः पाठः

वणिजः कृपणता (व्यापारी की कंजूसी)

  1. ‘वणिजः कृपणता’ पाठ में निहित संदेश को स्पष्ट करें।

उत्तर- पाठ के माध्यम से बताया गया है कि ईमानदारी सर्वोतम नीति है। लोभ पाप का मूल है। व्यक्ति को संतोष सुखी बनाता है। अत्यधिक लोभ करने से एवं झूठ बोलने से व्यक्ति सबकुछ खो देता है। सत्यमार्ग पर चलकर ही धन एवं मान सम्मान प्राप्त होता है। अत्यधिक कंजूसी एवं झूठ हानिकारक होता है।

  1. धन वापस मिलने पर व्यापारी ने पुरस्कार की राशि चार सौ रुपये बचाने के लिए क्या किया?

उत्तर– जब मुखिया के प्रयास से व्यापारी का खोया हुआ धन वापस मिल गया तब उसे घोषित पुरस्कार की राशि चार सौ रुपये देना बोझस्वरूप लगा। इसके लिए वह झूठ का सहारा लेते हुए सबके समक्ष गणना करते हुए चार हजार रुपये को चार हजार चार सौ रुपये बताकर वृद्धा पर चार सौ रुपये लेने का अरोप मढ़ दिया। उसने कहा कि वृद्धा अपने पुराकार की राशि स्वयं ले चुकी है। इसे धन देने की आवश्यकता नहीं है। इस तरह उसने धन बचाने का झूठा प्रयास किया।

Leave a Comment