वृक्षै: समं भवतु मे जीवनम् Subjective Questions

अष्टमः पाठः

वृक्षै: समं भवतु मे जीवनम् (मेरा जीवन वृक्ष के समान हो।

  1. वृक्ष किस प्रकार परोपकार करता है?

उत्तर- वृक्ष भूख से व्याकुल व्यक्ति को अपना फल देकर तृप्ति प्रदान करता है, शरण में आए हुए को आश्रय प्रदान करता है, धूप से व्याकल व्यक्ति को अपनी शीतलता से शांति प्रदान करता है। इस तरह वृक्ष परोपकारी है।

  1. वृक्ष किस प्रकार जीवित एवं मृत दोनों अवस्था में उपकारी है?

उत्तर- वृक्ष जन्म से मरणोपरान्त दूसरों के उपकार के लिए समर्पित होता है। जीवित रहते हुए फल, वायु, छाया, पुष्‍प एवं सुगंध प्रदान करता है। मरणोपरांत जलावन, गृहोपयोगी विभिन्न सामग्रियाँ इत्यादि के रूप में हीतकारी है, अर्थात वृक्ष का सम्पूर्ण जीवन लोगों के लिए उपकारी है।

  1. ‘वृक्ष’ प्रत्येक ऋतु में किस प्रकार कर्मरत रहता है?

उत्तर- वृक्ष वसंतकाल में सुगंध बिखेरता है, फल प्रदान करता है, ठंड एवं गर्मी को धैर्यपूर्वक सहन करता है। वर्षा के समय प्रेममय हो जाता है, शिशिर के समय निडरता से ठंढ का सामना करता है तो हेमन्त के समय तपस्वी की भाँति ध्यानस्थ रहता है।

नवामः पाठः

अहो, सौन्दर्यस्य अस्थिरता (अहो, सौन्दर्य कितमा अस्थिर है।)

  1. मंत्री की उदासी का क्या कारण था?

उत्तर- मंत्री प्रजाहित के प्रति उत्तरदायी था। प्रजापालन उनके लिए परम कर्तव्य धा। लेकिन राजकुमार को अपने सौन्दर्य में लिप्त एवं प्रजापालन से विमख देखकर वे उदास हो गए। राजकुमार की प्रजापालन में अरुचि ने मंत्री को दु:ख पहुँचाया।

  1. राजकुमार का प्रजापालन में अरुचि का मुख्य कारण क्या था?

उत्तर- राजकुमार अद्वितीय सुन्दर था। उसे अपनी सुन्दरता पर गर्व था। वह प्रजा के प्रति सेवा एवं आदर भाव नहीं रखता था। वह हमेशा अपने सौन्दर्य के विषय में सोचता था। उसका सौन्दर्य-मोह ही प्रजापालन में बाधक था।

  1. ‘राजकुमार’ का सौन्दर्य-मोह कैसे दूर हुआ?

उत्तर- राजकुमार जब अपने सौन्दर्य सजावट में मग्न था तब मंत्री ने उसकी वर्तमान सुन्दरता को बीते हुए कल से कम बताया। रावकमार ने इसे प्रमाणित करने को कहा। मंत्री ने जल से भरे हुए पात्र से थोड़ा जल निकालकर सिपाही से प्रश्न करके सिद्ध किया कि जिस प्रकार जल से भरे हुए पात्र से थोड़ा जल निकलने पर जल की कमी का शीघ्र पता नहीं चलता है उसी प्रकार दिन-प्रतिदिन घटते हुए सौन्दर्य का अनुभव शीघ्र नहीं होता। लेकिन यह अस्थायी है। स्थायी तो कीर्ति और यश है जो कर्तव्यपालन, सुकर्म और उद्यम से स्थापित होता है। इस प्रकार मंत्री के व्यावहारिक ज्ञानोपदेश से राजकुमार का सौन्दर्य-मोह भंग हुआ।

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