कक्षा 12 भूगोल पाठ 7 तृतीय और चतुर्थ क्रियाकलाप / Tritiya aur chaturth kriyakalap Class 12th Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 7 ‘तृतीय और चतुर्थ क्रियाकलाप(Tritiya aur chaturth kriyakalap Class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Tritiya aur chaturth kriyakalap Class 12th Notes

इकाई 3
अध्याय 7

तृतीय और चतुर्थ क्रियाकलाप

व्यापार और वाणिज्य

व्यापार वस्तुतः अन्यत्र उत्पादित मदो का क्रय और विक्रय हैा फुटकर और थोक व्यापार अथवा वाणीज्‍य की सभी सेवाओं का विशिष्ट उद्देश्य लाभ कमाना हैा यह सारा काम कस्बों और नगरों में होता है जिन्हें व्यापारिक केंद्र कहा जाता हैा

ग्रामीण विपणन केंद्र निकटवर्ती वस्तुओं का पोषण करते हैं। ये अर्ध-नगरीय केंद्र होते हैं। यह अत्यंत अल्प वर्धित प्रकार के व्यापारिक केंद्रों के रूप में सेवा करते हैं। यहाँ व्यक्तिगत और व्यावसायिक सेवाएँ सुविकसित नहीं होती हैा स्थानीय संग्रहण और वितरण केंद्र होते हैं इनमें से अधिकांश केंद्रों में मंडियाँ (थोक बाजार) और फुटकर व्यापार क्षेत्र भी होते हैं ये स्‍वयं में नगरीय केंद्र नहीं है किंतु ग्रामीण लोगों की अधिक माँग वाली वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध कराने वाले बहुत पुण्य केंद्र हैं।

ये सप्ताहिक पाक्षिक बाजार होते हैं जहाँ परिग्रामी क्षेत्र से लोग आकर समय-समय पर अपनी आवश्यक जरूरतों को पूरा करते हैं ये बाजार निश्चित तिथि दिन पर लगते हैं। और एक स्थान से दूसरे स्थान पर लगते रहते हैं।

नगरीय बाजार केंद्रों में और अधिक विशिष्टकृत नगरीय सेवाएं मिलती है इनमें न केवल साधारण वस्तुएँ और सेवाएँ बल्कि लोगों द्वारा वांछित अनेक विशिष्ट वस्तुओं व सेवाएँ भी उपलब्ध होती हैा नगरीय केंद्र इसलिए निर्मित पदार्थों के साथ-साथ विशष्‍टकृत बाजार भी प्रस्तुत करते हैं जैसे श्रम बाजार आवासन और निर्मित एवं निर्मित उत्पादों का बाजार।

फुटकर व्यापार

ये वह व्यापार क्रियाकलाप हैा जो उपभोक्ताओं को वस्तुओं के प्रत्यक्ष से संबंधित हैा अधिकार फुटकर व्यापार केवल विक्रय से नियत प्रतिष्ठानों और भंडारों में संपन्न होता हैा

भंडारो पर और सामग्री

फुटकर व्यापार में वृहद स्तर पर सबसे पहले नवाचार लाने वाले उपभोक्ता सहकारी समुदाय थेा

विभागीय भंडार वस्तुओं की खरीद और भंडारों के विभिन्न भागों में विकृत के सर्वेक्षण के लिए विभागीय प्रमुखों को उत्तरदाई तौर पर अधिकारी सौंप देते हैं।

श्रृंखला भंडार अत्यधिक मितव्ययिता से व्यापारिक माल खरीद पाते हैं यहाँ एक के अपने विनिर्देश पर सीधे वस्तुओं का निर्माण करा लेते हैं अनेक कार्यकारी कार्यों में अत्यधिक कुशल विशेषज्ञ नियुक्त कर लेते हैं इनके पास एक भंडार के अनुभव के परिणामों को अनेक भंडारों में लागू करने की योग्यता होती हैा

थोक व्यापार

थोक व्यापार का गठन अनेक बिचौलिए सौदागर  और पूर्तिघरों घरों द्वारा होता हैा ना कि फुटकर भंडारों द्वारा सिर्फ श्रृंखला भंडारों सहित कुछ बड़े भंडार विनिर्माताओं से सीधी खरीद करते हैं फिर भी बहुसंख्यक फुटकर भंडार बिचौलिए स्रोत से पूर्ति लेते हैं।

परिवहन

परिवहन एक ऐसी सेवा अथवा सुविधा है जिससे व्यक्तियों विनिर्मित माल तथा संपत्ति को भौतिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता हैा यह मनुष्य की गतिशीलता की मूलभूत आवश्यकता को पूरा करने हेतु निर्मित एक संगठित उद्योग हैा

परिवहन दूरी को किलोमीटर दूरी अथवा मार्ग लंबाई की वास्तविक दूरी समय दूरी अथवा एक मार्ग पर यात्रा करने में लगने वाले समय और लागत पूरी अथवा मार्ग पर यात्रा के खर्च के रूप में मापा जा सकता हैा

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जाल तंत्र और पहुँच

जैसा ही परिवहन व्यवस्थाएँ विकसित होती है विभिन्न स्थान आपस में जुड़ कर जल तंत्र किस रचना करते हैं। जल तंत्र तथा योजक से मिलकर बनते हैं दो अथवा अधिक मार्गों का संधि स्थल एक उद्गम बिंदु गंतव्य बिंदु अथवा मार्ग के सहारे कोई बड़ा नोड होता हैा प्रत्येक सड़क जो दो नोडो को जोड़ती है योजक कहलाती हैा एक विकसित जल तंत्र में अनेक योजक होते हैं जिसका अर्थ है कि स्थान  सुसंबद्ध है।

परिवहन को प्रभावित करने वाले कारक

परिवहन की मांग जनसंख्या के आकार से प्रभावित होती है जनसंख्या का आकार जितना बड़ा होगा परिवहन की मांग उतनी ही अधिक होगी।

संचार

संचार सेवाओं में शब्दों और संदेशों तथ्यों और विचारों प्रेषण सम्मिलित है लेखन के अविष्कार ने संदेशों को सुरक्षित किया और संचार को परिवहन के साधनों पर निर्भर करने में सहायता की यह वास्तव में हाथ, पशुओं, नाव, सड़क, रेल तथा वायु द्वारा प्रवाहित होते थे। यही कारण है कि परिवहन के सभी रूपों का संचार पथ कहा जाता है।

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दूरसंचार

दूरसंचार का प्रयोग विद्युतीय प्रौद्योगिकी के विकास से जुड़ा हैा संदेशों के भेजे जाने की गति के कारण इस संसार में क्रांति ला दी है।

रेडियो और दूरदर्शन भी समाचारों चित्र व दूरभाष कालो  का पूरे विश्व में विस्तृत श्रोताओं को प्रसारण करते हैं और इसलिए इन्हें जनसंचार माध्यम कहा जाता हैा इंटरनेट ने वैश्विक संचार तंत्र में वास्तव में क्रांति ला दी हैा

सेवाएँ

सेवाएं विभिन्न स्तरों पर पाई जाती है कुछ सेवाएँ उद्योगों चलाती है कुछ लोगों को और कुछ उद्योगों और लोगों दोनों को उदाहरण, परिवहन तंत्र राज्य और संघ  विधान ने परिवहन दूरसंचार ऊर्जा और जल पूर्ति जैसी सेवाओं के विपणन के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए निगमों की स्थापना की हैा स्वास्थ देखभाल अभियांत्रिकी प्रबंधन व्यवसायिक सेवाएँ हैं।

पर्यटन

पर्यटन एक यात्रा हैा जो व्यापार की बजाय प्रमोद के उद्देश्यों के लिए की जाती है कुल पंजीकृत रोजगार तथा कुल राजस्व (सकल घरेलू उत्पाद का 40% ) की दृष्टि से विश्व का अकेला  सबसे बड़ा (25 करोड़)

पर्यटक प्रदेश

भूमध्यसागरीय टॉर्च के चारों ओर को संस्थान तथा भारत का पश्चिमी तट विश्व के लोकप्रिय पर्यटक गंतव्य स्थानों में से हैा अन्य मैं शीतकालीन खेल परदेस जो मुख्यत: पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

मांग: विगत शताब्दी से अवकाश के लिए माँग तीव्रता से बॉडी है जीवन स्तर में सुधार तथा बड़े हुए फुर्सत के समय के कारण अधिक लोग विश्राम के लिए अवकाश पर जाते हैं।

परिवहन: परिवहन सुविधाओं में सुधार के लिए पर्यटन क्षेत्रों का प्रारंभ हुआ है बेहतर सड़क प्रणाली द्वारा यात्रा सुगम होती हैा हाल के वर्षों में आयु परिवहन का विस्तार अधिक महत्वपूर्ण रहा उदाहरण: वायु यात्रा द्वारा कुछ ही घंटों में अपने घरों से विश्व में कहीं भी जाया जा सकता है पैकेज अवकाश के पैरों में लागत घटा दी हैा

भू-दृश्य: कोई लोग आकर्षित करने वाले पर्यावरण में अवकाश बिताना पसंद करते हैं जिसका पर आया और तू होता है पर्वत, झीलें, समुद्री तट और मनुष्य द्वारा पूर्ण रूप से अपरिवर्तित भू दृश्य।

इतिहास एवं कला: किसी क्षेत्र के इतिहास और कला में संभावित आकर्षण होता है लोग प्राचीन और सुंदर नगरों में पुरातत्व के स्थानों पर जाते हैं और किलों महलों और गिरजा घरों को देखकर आनंद उठाते हैं।

संस्कृति और अर्थव्यवस्था: मानवजाति और स्थानीय रितीयो को पसंद करने वालों को पर्यटन लुभाता हैा यदि कोई परदेस पर्यटकों की जरूरतों को सस्ते दाम में पूरा करता है तो वह अत्यंत लोकप्रिय हो जाता हैा घरों में रुकना एक लाभदायक व्यापार बन कर उभरा है जैसे कि गोवा में हेरिटेज होम्स तथा कर्नाटक में मेडिकेरे और कुर्ग।

भारत में समुद्र पार रोगियों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं

2005 ईं. में संयुक्त राज्य अमेरिका से उपचार के लिए 55000 रोगी भारत आए।

बाहयस्त्रोतन

बाहयस्रोतन अथवा ठेका देना दक्षता को सुधारने और लगातों को घटाने के लिए किसी बाहरी अभिकरण को काम सपना है जब वह शुरू तन में समुद्र पार के स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया जाता है तो इसको अपत्तरन कहा जाता हैा

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 6 द्वितीयक क्रियाऍं /Dwitiyak kriyaye Class 12th Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 6 ‘द्वितीयक क्रियाऍं(Dwitiyak kriyaye Class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Astronaut exploring new planet and takes a selfie

 

 

 

इकाई 3
अध्याय 6

द्वितीयक क्रियाऍं

विनिर्माण

विनिर्माण से आशय किसी भी वस्तु का उत्पादन हैा

उद्योगों का निर्माण एवं विनिर्माण उद्योग

विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ है हाथ से बनाना फिर भी इसमें यंत्रों द्वारा बनाया गया सामान भी सम्मिलित किया जाता हैा यह एक परमावश्यक प्रक्रिया हैा जिसमें कच्चे माल को स्थानीय  दुरस्थ बाजार में बेचने के लिए ऊँचे मूल्य के तैयार माल में परिवर्तित कर दिया जाता हैा औद्योगिक निर्माण इकाई होती है जिस की भौगोलिक स्थिति अलग होती है एवं प्रबंध तंत्र के अंतर्गत लेखा बही नहीं एवं रिकॉर्ड का रखरखाव रखा जाता हैा उद्योग एक व्यापक नाम है और इससे विनिर्माण के पर्यायवाची के रूप में भी देखा जाता हैा

यंत्रीकरण

यंत्रीकरण से तात्पर्य है किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए मशीनों का प्रयोग करना स्वचालित (निर्माण प्रक्रिया के दौरान मानव की सोच को सम्मिलित किए बिना कार्य) यंत्रीकरण की विकसित अवस्था हैा

प्रौद्योगिकीय नवाचार

प्रौद्योगिकीय नवाचार, शोध एवं विकासमान युक्तियों के द्वारा विनिर्माण की गुणवत्ता को नियंत्रण करने, अपसिष्‍टो के निस्तारण एवं अध्यक्षता को समाप्त करने तथा प्रदूषण के विरुद्ध संघर्ष करने का महत्वपूर्ण पहलू हैा

संगठनात्मक ढांचा एवं वशीकरण

आधुनिक निर्माण की विशेषताएँ हैं

(1) एक जटिल प्रौद्योगिकी यंत्र

(2) अत्याधिक विशेष टीकाकरण एवं श्रम विभाजन के द्वारा कौन प्रयास एवं अल्प लागत से अधिक माल का उत्पादन करना

(3) अधिक पूंजी

(4) बड़े संगठन एवं

(5) प्रकाशीय अधिकारी-वर्ग

बाजार एक अभीगम्यता

कुछ उद्योगों का व्यापक बाजार होता है जैसे वायुयान निर्माण एवं शास्त्र निर्माण उद्योग।

स्वच्छंद उद्योग

सोचो उद्योग व्यापक विविधता वाले स्थानों में स्थित होते हैं। यह किसी विशिष्ट कच्‍चे माल जिनके भार में कमी हो रही है अथवा नहीं, पर निर्भर नहीं रहते हैं यह उद्योग संगठक पुर्जो पर निर्भर होते हैं। जो कहीं से भी प्राप्त किए जा सकते हैं इसमें उत्पादन कम मात्रा में होता है एवं श्रमिकों की भी आवश्यकता होती है समानता यह उद्योग प्रदूषण नहीं फैलाता इन की स्थापना में महत्वपूर्ण कारक सड़कों को जल द्वारा अभिगम्यता होती हैा

विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण

विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण उनके आकार, कच्चा माल उत्पाद एवं स्वामित्व के आधार पर किया जाता है

आकार पर आधारित उद्योग

किसी उद्योग का आकार उसमें निवेशित पूँजी कार्यरत श्रमिकों की संख्या उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है इसके अनुसार उद्योगों को घरेलू अथवा कुटीर, छोटे व बड़े पैमाने के उद्योगों में वर्गीकृत किया जाता हैा

कुटीर उद्योग

यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई हैा इसमें शिल्पकार स्थानीय कच्चे माल का उपयोग करते हैं एवं साधारण हजारों द्वारा परिवार के सभी सदस्य मिलकर अपने दैनिक जीवन के उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। तैयार माल का या तो वे स्वयं उपभोग करते हैं या इसे स्थानीय गाँव के बाजार में विक्रय कर देते हैं।

छोटे पैमाने के उद्योग

इसमें स्थानीय कच्चे माल का उपयोग होता है एवं और कुशल श्रमिक व शक्ति के साधनों से चलने वाले यंत्रो का प्रयोग किया जाता हैा रोजगार के अवसर इस उद्योग में अधिक होते हैं जिसमें स्थानीय निवासियों की क्रय शक्ति बढ़ती है भारत, चीन, इंडोनेशिया एवं ब्राज़ील जैसे देशों ने अपनी जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए इस प्रकार के श्रम सघन छोटे पैमाने के उद्योग प्रारंभ किए हैं।

बड़े पैमाने के उद्योग

बड़े पैमाने के उद्योग के लिए विशाल बाजार विभिन्न प्रकार के कच्चा माल, शक्ति के साधन, कुशल श्रमिक, विकसित प्रौद्योगिकी, अधिक उत्पादन अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है पिछले 200 वर्षों में इसका विकास हुआ है या पहले उद्योग ग्रेट ब्रिटेन संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी भाग में लगाए गए थे परंतु वर्तमान में इसका विस्तार विश्व के सभी भागों में हो गया हैा

विश्व के प्रमुख औद्योगिक की प्रदेशों को उनके वृहत् पैमाने पर किए गए निर्माण के आधार पर दो बड़े समूहों में बाँटा जा सकता हैा

(1) परंपरागत वृहत  औद्योगिक प्रदेश जिनके समूह कुछ अधिक विकसित देशों में हैा

(2) उच्च प्रौद्योगिकी वाले वृहद औद्योगिक प्रदेश जिनका विस्तार कॉम विकसित देशों में हुआ है

कच्चे माल पर आधारित उद्योग

कच्चे माल पर आधारित उद्योगों का वर्गीकरण पाँच शिरषको केअंतर्गत किया जाता है ( क) कृषि आधारित (ख) खनिज आधारित (ग) रसायन आधारित (घ) वन आधारित (ड.) पशु आधारित

(क) कृषि आधारित

कृषि आधारित उद्योग में भोजन तैयार करने वाले उद्योग शक्कर, आचार, फलों, के रस, पदार्थ पेय पदार्थ (चाय, कॉफी, कोकोआ) मसाले, तेल एवं वस्त्र (सुती, रश्मि, जूट) तथा रबड़ उद्योग आते हैं।

कृषि व्यापार एक प्रकार की व्यापारिक कृषि है जो औद्योगिक पैमाने पर की जाती हैा इसका वित्त पोषण पर प्रया: वह व्यापार करता है जिसकी मुख्य रूचि कृषि के बाहर हो। कृषि व्यापार फार्म से आकार में बड़े यंत्रीकृत, रसायनों पर निर्भर एवं अच्छी संरचना वाले होते हैं इनको कृषि कारखाने भी कहा जाता हैा

(ख) खनिज आधारित उद्योग

इन उद्योगों में खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है कुछ उद्योग लौह अंश वाले धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं जैसे कि लौह इस्पात उद्योग जबकि कुछ उद्योग अलौह धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं। जैसे एलमुनियम, तांबा एवं जवाहरात उद्योग। सीमेंट, मिट्टी के बर्तन आदी उद्योगों में और अधात्विक खनिजों का प्रयोग होता हैा

(ग) रसायन आधारित उद्योग

इस प्रकार के उद्योगों में प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले रासायनिक खनिजों का उपयोग होता है जैसे पेट्रोल रसायन उद्योग में खनिज तेल (पेट्रोलियम )का उपयोग होता हैा

(घ) वनों पर आधारित उद्योग

वनों से प्राप्त कई मुख्य एवं गौण उपज कच्चे माल के रूप में उद्योगों में प्रयुक्त होती हैा फर्नीचर उद्योग के लिए इमारती लकड़ी, कागज उद्योग के लिए लकड़ी, बांस एवं घास तथा लाख उद्योग के लिए लाख वनों से ही प्राप्त होती हैा

(ड.) पशु आधारित उद्योग

चमड़ा एवं ऊन पशुओं से प्राप्त प्रमुख कच्चा माल हैा चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा एवं ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए ऊन पशुओं से ही प्राप्त की जाती हैा हाथीदाँत उद्योग के लिए दाँत भी हाथी से मिलता हैा

उत्‍पादन/उत्‍पाद आधारित उद्योग  

वे उद्योग जिनके उत्पाद को अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग में लाया जाता हैा उन्हें आधारभूत उद्योग कहते हैं।

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स्वामित्व के आधार पर उद्योग

(क) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग सरकार के अधीन होते हैं। भारत में बहुत से उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन हैा समाजवादी देशों में भी अनेक उद्योग सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्रकार के उधम पाए जाते हैं।

(ख) निजी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व व्यक्तिगत निवेशकों के पास होता हैा यह निजी संगठनों द्वारा संचालित होते हैं। पूँजीवादी देशों में अधिकतर उद्योग निजी क्षेत्र में हैं।

(ग) संयुक्त क्षेत्र के उद्योग का संचालन संयुक्त कंपनी के द्वारा या किसी निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के संयुक्त प्रयासों द्वारा किया जाता हैं। क्या आप इस प्रकार के उद्योगों की सूची बना सकते हैं।

परंपरागत बड़े पैमाने वाले औद्योगिक प्रदेश

यह भारी उद्योग क्षेत्र होते हैं जिनमें कोयला खदानों के समीप स्थित धातु पिघलाने वाले उद्योग भारी इंजीनियरिंग रसायन निर्माण वस्त्र उत्पादन इत्यादि का कार्य किया जाता हैा इन्हें धोने की चिमनी वाला उद्योग भी कहते हैं।

निर्माण उद्योग में रोजगार का अनुपात ऊँचा होता हैा उच्‍चा गृह घनत्व जिसमें घर घटिया प्रकार के होते हैं एवं सेवाएँ अपर्याप्त होती हैा

वातावरण अनाकर्षक होता है जिनमें गंदगी के ढेर व प्रदूषण होता हैा

बेरोजगारी की समस्या, उत्पन्न वास विश्वव्यापी माँग कम होने से कारखाने बंद होने के कारण प्रत्यक्ष भूमि का क्षेत्र ।

जर्मनी के इस्पात उत्पादन का 80 प्रतिशत रूहर से प्राप्त होता हैा

लौह इस्पात उद्योग

लौह इस्पात उद्योग सभी उद्योगों का आधार है इसलिए इसे आधारभूत उद्योग भी कहा जाता हैा यह आधारभूत इसलिए है क्योंकि यह अन्य उद्योगों जैसे की मशीन और औजार जो आगे उत्पादों के लिए प्रयोग किए जाते हैं को कच्चा माल प्रदान करता है इसे भारी उद्योग भी कहते हैं क्योंकि इसमें बड़ी मात्रा में भारी-भरकम कच्चा माल उपयोग मे लाया जाता है इसके उत्पाद भी भारी होते हैं।

उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग की संकल्पना

निर्माण क्रियाओं में उच्च प्रौद्योगिकी न्यूनतम पीढ़ी हैा जिनमें उन्नत वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग उत्पादकों का निर्माण शोध एवं विकास के प्रयोग द्वारा किया जाता हैा संपूर्ण शक्ति का अधिकतर भाग व्यवसायिक सफेद कलर श्रमिकों का होता हैा ये उच्‍च, दक्ष, एवं विशिष्ट व्यवसायिक एक श्रमिक वास्तविक उत्पादन (नीला कलर) श्रमिकों से संख्या में अधिक होते हैं। उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग में यंत्रमानव, कंप्यूटर आधारित डिजाइन तथा निर्माण धातु पिघलाने एवं शोध के इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण एवं रासायनिक व औषधि उत्पाद प्रमुख स्थान रखते हैं।

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 5 प्राथमीक क्रियाऍंं /Prathmik kriyaye Class 12th Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 5 ‘प्राथमीक क्रियाऍंं(Prathmik kriyaye Class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Prathmik kriyaye Class 12th Notes
Prathmik kriyaye Class 12th Notes

इकाई 3
अध्याय 5

प्राथमिक क्रियाएं

मानव के वो कार्यकलाप जिसे आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रिया कहा जाता हैा आर्थिक क्रियाओं को मुख्यतः चार वर्गों में विभाजित किया जाता है – प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थ क्रियाएँ प्राथमिक क्रियाएं अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर है, क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों जैसे- भूमि, जल, भवन निर्माण सामग्री एवं खनिजों के उपयोग के विषय में बतलाती हैा इस प्रकार इसके अंतर्गत आखेट, भोजन, संग्रहण, पशुचार, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना कृषि एवं खनन कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।

क्या आप जानते हैं

प्राथमिक कार्याकलाप करने वाले लोग उनका कार्य क्षेत्र घर से बाहर होने के कारण लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं।

आखेट एवं भोजन संग्रह

मानव सभ्यता के आरंभिक युग में आदिमकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने समीप के वातावरण पर निर्भर रहता था। उसका जीवन-निर्वाह दो कार्य द्वारा होता था (क) पशुओं का आखेट कर, और (ख) अपने समीप के जंगलों से खाने योग्य जंगली पौधे एवं कंद-मूल आदी को एकत्रित कर। भोजन संग्राम विश्व विश्व के दो भागों में किया जाता है (1) उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उतरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं (2) निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश आता है

आधुनिक समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में व्यापारिक और भी हो गया हैा ये लोग कीमती पौधों की पत्तियाँ, छाल एवं औषधीय पौधों को समान रूप से संशोधित कर बाजार में बेचने का कार्य भी करते हैं। पौधे के विभिन्न भागों का यह उपयोग करते हैं उदाहरण के तौर पर छाल का उपयोग कुनैन, चमड़ा तैयार करना एवं कार्क के लिए: पत्तियों का उपयोग, पेय पदार्थ, दवाइयाँ एवं कांति वर्द्धक वस्तुएँ बनाने के लिए: रेशों को कपड़ा बनाने दृढफल को भोजन एवं तेल के लिए एवं पेड़ों के तने का उपयोग रबड़ बलाटा गोंद व राल बनाने के लिए करते हैं।

क्या आप जानते हैं

चुविंगगम को चूसने के बाद शेष बचे भाग को क्या कहते हैं? क्या तुम जानते हो कि चिकल कहते हैं? ये जेपोटा वृक्ष के दूध से बनता है

पशु चारण

मानव के पशुपालन व्यवसाय के विषय में सोचा। विभिन्न जलवायुविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पशुओं का चयन करके पालतू बनाया।

चल वासी पशु चारण

चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय रहा है जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर ही निर्भर रहता था।

उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में गाय-बैल प्रमुख पशु है, जबकि सहारा एवं एशिया के मरुस्थल में भेड़ बकरी एवं ऊंट पाला जाता हैा तिब्बत एवं इंडीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा एवं आर्कटिक और उप उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में रेनडियर पाला जाता हैा

चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं। इसका प्रमुख क्षेत्र उत्तरी अफ्रीका के अटलांटिक तट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्‍य चीन तक फैला हैा दूसरा क्षेत्र यूरोप तथा एशिया के टुंड्रा प्रदेश में है जबकि तीसरा क्षेत्र दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका का एवं मेडागास्कर द्वीप पर हैा

चलवासी पशुचालकों की संख्या घट रही है एवं इनके द्वारा उपयोग में लाए गए क्षेत्र में भी कमी हो रही हैा इसके दो कारण हैं ( क) राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण( ख) कोई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना ।

वाणिज्य पशुधन पालन

चलवासी पशुचारण की अपेक्षा वाणिज्य पशुधन पालन अधिक व्यवस्थित एवं पूंजी प्रधान है वाणिज्य पशुधन पालन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है एवं फार्म भी स्थाई होते हैं। यह फार्म विशाल क्षेत्र पर फैले होते हैं एवं संपूर्ण क्षेत्र को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता हैा चराई को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बाड़ लगाकर एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है। जिसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी, गाय, बैल एवं घोड़े हैं। इसे प्राप्त मास, खाले एवं उन को वैज्ञानिक ढंग से संसाधित एवं डिब्बा बंद कर विश्व के बाजारों में निर्यात कर दिया जाता हैा विश्व में न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया,अर्जेटाइना, युरूग्‍वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है

कृषि

कृषि विभिन्न प्रकार के फसलों का बोया जाना तथा पशुपालन विभिन्न कृषि विधियों पर आधारित होता हैा

निर्वाह कृषि

कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय उत्पादों का संपूर्ण अथवा लगभग का उपयोग करते हैं।

आदिकालीन निर्वाह कृषि

आदिकालीन निर्वाह कृषि अथवा स्थानतरणशील कृषि कार्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ आदिम जाति के लोग या कृषि करते हैं। इसका क्षेत्र अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग एवं दक्षिण पूर्वी एशिया है

गोहर निर्वाह कृषि

इस प्रकार कृषि मानसून एशिया के गाने बसे देशों में की जाती है।

(1) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि: जिसमें चावल प्रमुख फसल होती हैा अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता हैा एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता हैा

(2) चावल रोहित गुहा निर्वाह कृषि: मानसून एशिया के अनेक भागों में ऊच्‍चावच, जलवायु, मृदा, तथा अन्य भौगोलिक कार्य को की विभिनता के कारण धान की फसल उगाना प्राय:संभव नहीं है उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूँ, सोयाबीन एवं जौ एवं सोरपम बोया जाता हैा भारत में सिंधु-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी व पश्चिमी शुष्क

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रोपण कृषि

इस कृषि की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता हैा इसमें अधिक पूँजी निवेश प्रबंध एवं तकनीकी आधार एवं वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता हैा कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही सकेंद्रण किया जाता है श्रमिक सस्ते मिल जाते हैं एवं यातायात विकसित होता है जिसके द्वारा बागान एवं बाजार सुचारू रूप से जुड़े रहते हैं। ब्राजील में अभी भी कुछ कॉफी के बागान जिन्हें फेजेंडा कहा जाता है यूरोपवासियों के नियंत्रण में हैा

विस्तृत वाणिज्‍य अनाज कृषि

मध्य अक्षांशे के आंतरिक अर्ध शुष्‍क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती हैा इसकी मुख्य फसल गेहूँ है यद्यपि अन्य फसलें जैसे मक्का, जो, राई एवं जो एक भी बोई जाती हैा इस कृषि में खेतों का आकार बड़ा होता है एवं खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य अंतरों द्वारा संपन्न किए जाते हैं

मिश्रित कृषि

इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता हैा इस में बोई जाने वाली फसलें गेहूँ, जौ, राई, जई, मक्का चारे की फसल एवं कंद मूल प्रमुख हैा चारे की फसलें मिश्रित कृषि के मुख्य घटक हैा फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को इसमें समांतर महत्व दिया जाता हैा फसलों के साथ पशुओं जैसे मवेशी, भेड़, सूअर एवं कुकुर आय के मुख्य स्रोत हैा शस्‍यावर्तन एवं अत: फसली कृषि मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

डेयरी कृषि

डेरी व्यवसाय दुधारू पशुओं के पालन पोषण को सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष प्रकार हैं। इसमें पुँजी की भी अधिक आवश्यकता होती हैा पशुओं के लिए छप्पर, घास, संचित करने के भंडार एवं दूग्‍ध उत्पादन में अधिक यंत्रों के प्रयोग के लिए पूँजी भी अधिक चाहिए पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर भी अधिक ध्यान दिया जाता हैा

डेयरी कृषि का कार्य नगरी एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है, क्योंकि यह क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं।

भूमध्यसागरीय कृषि

भूमध्यसागरीय कृषि अति विशिष्ट प्रकार की कृषि हैा इसका विस्तार भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्रों जो दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया से अटलांटिक तट तक फैला है दक्षिणी कैलिफोर्निया, मध्यवर्ती चिली, दक्षिण अफ्रीका का दक्षिणी पश्चिमी भाग एवं ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण व दक्षिण पश्चिमी भाग में है खट्टे फलों की आपूर्ति करने में यह क्षेत्र महत्वपूर्ण हैा

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बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि

इस प्रकार की कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें जैसे सब्जियाँ, फल एवं पुष्प लगाए जाते हैं। जिनकी माँग नगरीय क्षेत्रों में होती है इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है एवं क्षेत्र अच्छे यातायात साधनों के द्वारा नगरीय केंद्रों जहाँ ऊँची आय वाले उपभोक्ता रहते हैं। इसमें गहन श्रम एवं अधिक पूँजी की आवश्यकता होती हैा इसके अतिरिक्त सिंचाई उर्वरक अच्छी किस्म के बीज कीटनाशक हरित गृह एवं क्षेत्रों में कृत्रिम ताप का भी इस कृषि में उपयोग होता हैा ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी जो एक ट्रक रात भर तय करता है, उसी आधार पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया है

सहकारी कृषि

जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्‍वेच्‍छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करें उस सहकारी कृषि कहते हैं उसमें व्यक्तिगत फार्म अक्षुण्‍ण रहते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती हैा सहकारी आंदोलन एक शताब्दी पूर्व प्रारंभ म हुआ था एवं पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में यह सफलतापूर्वक चला सब से अधिक सफलता इसे डेनमार्क में मिली जहाँ प्रत्येक कृषिक इसका सदस्य हैं।

सामूहिक कृषि

इस प्रकार की कृषि का आधारभूत सिद्धांत या होता है कि इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व संपूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता हैा कृषि कार्य प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारंभ हुआ था जहां कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्त के लिए सामूहिक कृषि प्रारंभ की गई। इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कोलखहोज का नाम दिया गया

खनन कार्य की प्रभावित करने वाले कारक

खनन कार्य की लाभप्रदता दो बातों पर निर्भर करती है

(1) भौतिक कारक जिसमें खनिज निरपेक्ष ओके आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित करते हैं।

(2) आर्थिक कारण जिसमें खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के

खनन की विधियाँ

 जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कुपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता हैा इस विधि में लंबवत् कूपक गहराई तक स्थित है, जहाँ से भूमिगत गैलरीयाँ खानीजो तक पहुँचने के लिए फैली है मार्गो से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता हैा

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 4 मानव विकास / Manav vikas Class 12th Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 4 ‘मानव विकास(Manav vikas Class Class 12th Notes )’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Manav vikas Class 12th Notes
Manav vikas Class 12th Notes

 

इकाई 2
अध्याय 4

मानव विकास

इस अध्याय में राष्ट्रीय और समुदाय के संदर्भ में मानव विकास की अवधारणा की विवेचना की जाएगी।

वृद्धि और विकास

वृद्धि और विकास दोनों समय के संदर्भ में परिवर्तन को इंगित करते हैं इसका चिन्ह घनत्व का अथवा ऋणात्मक हो सकता है इसका अर्थ है कि परिवर्तन धनात्मक (वृद्धि दर्शाते हुए) अथवा ऋणात्मक (हराश इंगित करते हुए) हो सकता हैा जिस देश की अर्थव्यवस्था जितनी ज्‍यादा बड़ी होती थी उससे उतना ही अधिक विकसित माना जाता था, मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन डॉ.

डॉक्टर महबूब उल हक और प्रो. अमर्त्‍य सेन घनिष्ठ मित्र थे और डॉक्टर हक के नेतृत्व मैं दोनों ने आरंभिक मानव विकास प्रतिवेदन निकालने के लिए कार्य किया था। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने विकास का मुख्य ध्येय स्वतंत्रता में वृद्धि (अथवा परतंत्रता में कमी) के रूप में देखा

संसाधनों तक पहुँचे, स्वास्थ्य एवं शिक्षा मानव विकास के केंद्र बिंदु हैा

मानव विकास के चार स्तंभ

जिस प्रकार किसी इमारत को स्तंभों का सहारा होता है उसी प्रकार मानव विकास का विचार भी क्षमता, सतत पोषणीयता, उत्पादकता और सशक्तिकरण के संकल्पनाओं आश्रित हैा समता का अशय प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना हैा लोगों को उपलब्ध और सर लिंक प्रजाति आए और भारत के संदर्भ में जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान होने चाहिए।

मानव विकास के उपागम

मानव विकास की समस्या को देखने के अनेक ढंग है कुछ महत्वपूर्ण उपागम है: (क) आय उपागम (ख) कल्याण उपागम (ग) न्यूनतम आवश्यकता उपागम (घ) छमता उपागम

मानव विकास का मापन

मानव विकास सूचकांक(HDI) स्वास्थ्य शिक्षा और संसाधनों तक पहुंच जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निष्पादन के आधार पर देशों का क्रम तैयार करता हैा यह क्रम 0 से 1 के बीच स्कोर पर आधारित होता है एक देश मानव विकास के महत्वपूर्ण सूचको में अपने रिकॉर्ड से प्राप्त करता है स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए चुना गया सूचक जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा हैं। उच्‍चतर जीवन प्रत्याशा का अर्थ है कि लोगों के पास अधिक दीर्घ और अधिक स्वास्थ्य जीवन जीने के ज्यादा अवसर हैा संसाधनों तक पहुंच को क्रय शक्ति (अमेरिकी डॉलरों में) के संदर्भ में मापा जाता हैा

स्कोर, 1 के जितना निकट होता है मानव विकास का स्तर उतना ही अधिक होता हैा इस प्रकार 0.983 का स्‍कोर अति  उच्‍च स्‍तर का जबकि 0.268 मानव विकास का अत्‍यंत निम्न स्तर का माना जाएगा। मानव गरीबी सूचकांक मानव विकास सूचकांक से 1990 ईस्वी से प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ( UNDP)  मानव विकास प्रतिवेदन प्रकाशित कर रहा है मानव विकास सूचकांक और गरीबी सूचकांक यू. एन. डी. द्वारा प्रयुक्त मानव विकास मापन के दो महत्वपूर्ण सूचकांक हैा संबंधित है कि सूचकांक मानव विकास में कमी मापता है या एक बिना आय वाला माप है किसी पर देश के मानव विकास में कमी दर्शाने के लिए 40 वर्ष की आयु तक जीवित न रह पाने की संभावता प्रौढ़ निरक्षरता दौर स्‍वच्‍छ जल तक पहुँच न रखने वाले लोगों की संख्या और अल्पभार वाले छोटे बच्चों की संख्या सभी इन में गिने जाते हैं। मानव विकास के इन दोनों मापों का संयुक्त अवलोग कौन किसी देश में मानव विकास की स्थिति का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता हैा राजनीति स्वतंत्रता सूचकांक और सर्वाधिक भ्रष्ट देशों के सूचीकरण पर चर्चा हो रही हैा उच्च मानव विकास समूह में 53 देशों में सम्मिलित हैा आप पाएँगे कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का उपलब्ध कराना सरकार कि महत्वपूर्ण प्राथमिकता हैा माध्यम मानव विकास वर्ग में कुल 39 देश हैा इनमें से अधि कांश देशों का विकास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अवधि में हुआ हैा मानव विकास के निम्न स्तरों वाले देशों की संख्या और 38 हैा इनमें से अधिकांश छोटे देश हैं जो राजनीतिक उपद्रव गृहयुद्ध के रूप में सामाजिक अस्थिरता अकाल अथवा बीमारियों की अधिक घटनाओं के दौर से गुजर रहे हैं।

एक प्रदेश में मानव विकास के निम्‍न अथवा उच्च स्तर क्यों दर्शाया जाते हैं यह समझने के लिए सामाजिक सेक्टर पर सरकारी व्यय के प्रतिरूप को देखना या जन्म महत्वपूर्ण हैा

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 3 जनसंख्‍या संघटन / Jansankhya sangathan class 12th Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 3 ‘जनसंख्‍या संघटन(Jansankhya sangathan class class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Jansankhya sangathan class 12th Notes
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अध्याय 3
जनसंख्या संघटन

किसी भी देश में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। लोगों को आयु लिंग तथा उसके निवास स्थान के आधार पर पृथक् किया जा सकता है जनसंख्या को पृथक करने वाली कुछ अन्‍य विशेषताएँ हैं। व्यवसाय, शिक्षा और जीवन प्रत्याशा।

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लिंग संघटन

जनसंख्या में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या के बीच के अनुपात को लिंग अनुपात कहा जाता हैा कुछ देशों में यह निम्न सूत्रों द्वारा परिकलित किया जाता हैा

पुरुष जनसंख्या\स्त्री जनसंख्या×1000

अथवा प्रति हजार स्त्रियों पर पुरुषों की संख्या।

भारत में इस सूत्र का प्रयोग कर लिंग अनुपात ज्ञात किया जाता हैा

स्त्रियों की जनसंख्या/पुरुषों की जनसंख्या ×1000

अथवा प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या।

विश्व की जनसंख्या का औसत लिंग अनुपात प्रति 100 स्‍त्रीयो पर 102 पुरुष हैा विश्‍व के उच्‍चतम लिंग अनुपात लाटविया में दर्ज किया गया है जहाँ प्रति  स्त्रियों पर 85 पुरुष हैं इसके विपरीत न्यूनतम लिंग अनुपात संयुक्त अरब अमीरात में दर्ज किया गया है जहां प्रति 100 स्त्रियों पर 311 पुरुष हैा

सामान्यत: एशिया में लिंग अनुपात निम्न है चीन, भारत, सऊदी अरब, पाकिस्तान व अफगानिस्तान जैसे देशों में लिंग अनुपात और भी निम्न है दूसरी और रूस सहित यूरोप के बड़े भाग में पुरुष अल्प संख्या में हैा

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आयु संरचना

आयु संरचना विभिन्न आयु वर्गो में लोगों की संख्या को प्रदर्शित करती है जनसंख्या संगठन का यह एक महत्वपूर्ण सूचक है क्योंकि 15 से 59 आयु वर्ग के बीच जनसंख्या का बड़ा आकार एक विशाल कार्यशील जनसंख्या को इंगित करता हैा

ग्रामीण-नगरीय संगठन

जनसंख्या का ग्रामीण और नगरीय में विभाजन निवास के आधार पर होता हैा ग्रामीण और नगरीय जनसंख्या में अंतर करने के लिए मापदंड एक देश से दूसरे देश में निम्न होती है सामान्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र में होते हैं। जिनमें लोग प्राथमिक क्रियाओं में संग लगन होते हैं और नगरीय क्षेत्र में होते हैं जिनमें अधिकांश कार्यशील जनसंख्या गैर-प्राथमिक क्रियाओं में संगलगन होती हैा कनाडा और फिनलैंड में जैसे पश्चिमी यूरोपीय देश में ग्रामीण और नगरीय लिंग अनुपात में अंतर अफ्रीकी और एशियाई देशों में क्रमश: जिंबाब्वे तथा नेपाल के ग्रामीण और नगरीय लीग अनुपात के विपरीत है पश्चिमी देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक है जबकि नगरीय क्षेत्रों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक हैा नेपाल पाकिस्तान और भारत जैसे देशों में स्थित इससे विपरीत है नगरीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की अधिक संभावना हो के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से महिलाओं के आगमन के परिणाम स्वरूप यूरोप कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के नगरीय क्षेत्रों में महिलाओं की अधिकता हैा

साक्षरता

भारत में साक्षरता दर 7 वर्ष से अधिक आयु वाले जनसंख्या के उस प्रतिशत को सूचित करता है जो पढ़ लिख सकता है और जिसमें समाज के साथ अंकगणितीय परिकलन करने की योग्यता हैा

व्यवसायिक संरचना

कार्यशील जनसंख्या (अर्थात 15-59 आयु वर्ग में स्त्री और पुरुष) कृषि वानिकी मत्स्य विनिर्माण निर्माण व्यवसायिक परिवहन सेवाओं संचार तथा अन्‍य अवर्गीकृत सेवाओं जैसे व्यवसाय में भाग लेते हैं। कृषि वानिकी मत्स्य तथा खनन को प्राथमिक क्रियाओं विनिर्माण को द्वितीयक क्रिया व्यापार परिवहन संचार और उन सेवाओं को तृतीय क्रियाओं तथा अनुसंसाधन सूचना प्रौद्योगिकी और वैचारिक विकास से जुड़े कार्यों को चतुर्थ क्रियाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाता है इन चार खंडों में कार्यशील जनसंख्या का अनुपात किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास के अवसरों का अच्छा सूचक हैा

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 2 विश्‍व जनसंख्‍या वितरण,घनत्‍व और वृद्धि class 12th Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 2 ‘विश्‍व जनसंख्‍या वितरण,घनत्‍व और वृद्धि (Vishwa jansankhya vitran ghanatv aur vriddhi class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

 

ishwa jansankhya vitran ghanatv aur vriddhi class 12th Notes

इकाई 2
विश्व जनसंख्या

 

वितरण घनत्व और वृद्धि

किसी देश के निवासी ही उसके वास्तविक धान होते हैा यही लोग वास्तविक संसाधन है जो देश के अन्य संसाधनों का उपयोग करते हैं और उसकी नीतियाँ निर्धारित करते हैा अंततः एक देश की पहचान उसके लोगों से ही होती है। 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्‍व कि जनसंख्या 600 करोड़ से अधिक दर्ज की गई।

विश्व में जनसंख्या वितरण के प्रारूप

मोटे तौर पर विश्व की जनसंख्या का 90 प्रतिशत, इसके 10 प्रतिशत, स्‍थलभाग में निवास करता है। विश्व के दस सर्वाधिक बाद देशों में विश्व की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है इन दस देशों में से छह एशिया में अवस्थित हैा

जनसंख्या का घनत्व

भूमि की प्रत्येक इकाई में उस पर रह रहे लोगों के पोषण की सीमित क्षमता होती हैा अतः लोगों की संख्या और भूमि के आकार के बीच अनुपात को समझना आवश्यक हैा यही अनुपात जनसंख्या का घनत्व हैा यह समानता प्रति वर्ग किलोमीटर रहने वाले व्यक्तियों के रूप में मापा जाता हैा

जनसंख्या का घनत्व = जनसंख्या\क्षेत्रफल

एशिया में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व हैा

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

1 जल की उपलब्धता – जल जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक हैा अतः लोग उन क्षेत्रों में बसने को प्राथमिकता देते हैं जहां जल आसानी से उपलब्ध होता हैा जल का उपयोग पीने, नहाने और भोजन बनाने के साथ-साथ पशुओं फसलो उद्योगों तथा नौसंचालन में किया जाता हैा यही कारण है कि नदी घाटियाँ विश्व के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्र हैं।

2. भू-आकृति- लोग समतल मैदानों और मंद ढालो पर बसने को वरीयता देते हैं इसका कारण यह है कि ऐसे क्षेत्र फसलों के उत्पादन सडक, निर्माण और उद्योगो के लिए अनुकूल होते हैं। गंगा का मैदान विश्व के सर्वाधिक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक हैा

3. जलवायु- अति उसने अथवा ठंडे मरुस्थलों की विषम जलवायु मानव बस आपके लिए और सुविधाजनक होती हैा सुविधाजनक जलवायु वाले क्षेत्र जिनमें अधिक मौसमी जनसंख्या पाई जाती हैा

4. मृदाएँ:- उपजाऊ मिरदान कृषि तथा इनसे संबंधित क्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण है इसलिए उपजाऊ दोमट मिट्टी वाले प्रदेशों में अधिक लोग निवास करते हैं। क्योंकि ये मृदाएँ गहन कृषि का आधार बन सकती है।

2 आर्थिक कारक

(1) खनिज: खनन और औद्योगिक की गतिविधियाँ रोजगार उत्पन्न करते हैं। अतः कुशल एवं अर्ध-कुशल कर्मी इन क्षेत्रों में पहुँचते हैं और जनसंख्या को सघन बना देते हैं। अफ्रीका काकी कटंगा जंबिया तांबा पेटी इसका एक अच्छा उदाहरण हैा

2 नगरीकरण: नागौर रोजगार के बेहतर अवसर, शैक्षणीक व चिकित्सा संबंधी सुविधाएं तथा परिवहन और संचार के बेहतर साधन प्रस्तुत करते हैं। अच्‍छी नागरिक सुविधाएं तथा नगरीय जीवन के आकर्षण लोगों को नगरों की ओर खींचते हैं।

3 औद्योगिकरण: औद्योगिक पेटियाँ रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती है और बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करती है इनमें केवल कारखानों के श्रमिक ही नहीं होते बल्कि परिवहन परिचालक दुकानदार बैंककर्मी डॉक्टर अध्यापक तथा अन्य सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले भी होते हैं। जापान का कोबे-ओसाका प्रदेश अनेक उद्योगों की उपस्थित के कारण सघन बसा हुआ है

3 समाजिक एवं सांस्‍कृतिक कारक

कुछ स्थान धार्मिक अथवा सांस्कृतिक महत्व के कारण अधिक लोगों को आकर्षित करते हैं। कई बार सरकार लोगों को विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बसने अथवा भीड़-भाड़ वाले स्थानों से चले जाने के लिए प्रोत्साहन देती हैा

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जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि अथवा जनसंख्या परिवर्तन का अभिप्राय किसी क्षेत्र में समय की किसी निश्चित अवधि के दौरान बसे हुए लोगों की संख्या में परिवर्तन से हैं। जनसंख्या परिवर्तन किसी क्षेत्र की आर्थिक प्रगति, सामाजिक उत्थान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का महत्वपूर्ण सूचक होती हैा

जनसंख्या भूगोल की कुछ आधारभूत कल्पनाएँ

जनसंख्या की वृद्धि: समय के दूध अंतराल के बीच एक क्षेत्र विशेष में होने वाली जनसंख्या में परिवर्तन को जनसंख्या की वृद्धि कहा जाता हैा उदाहरण के लिए भारत की 2001 की जनसंख्या (102.70 करोड़) को 2011 की जनसंख्या (121.02 करोड़) में से घटाएं तब हमें जनसंख्या की  वृद्धि (18.15 करोड़) की वास्तविक संख्या का पता चलेगा।

जनसंख्या की वृद्धि दर: यह जनसंख्या में परिवर्तन है जो प्रतिशत में व्यक्त किया जाता हैा

जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि: किसी क्षेत्र विशेष में दो समय अंतराल में जन्म और मृत्यु के अंतर से बढ़ने वाली जनसंख्या को उस क्षेत्र की प्राकृतिक वृद्धि कहते हैं।

प्राकृतिक वृद्धि = जन्म – मृत्यु

जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि: यह वृद्धि तब होती है जब वास्तविक वृद्धि = जन्म –मृत्यु + आप्रवास – उत्प्रवास

जनसंख्या की धनात्मक वृद्धि: यह वृद्धि तब होती है जब दो समय अंतराल के बीच जन्म दर मृत्यु दर से अधिक हो या जब अन्य देशों से लोग स्थाई रूप से उस देश में प्रवास कर जाएँ।

जनसंख्या की ऋण आत्मक वृद्धि: यदि दो समय अंतराल के बीच जनसंख्या कम हो जाए तो उसे जनसंख्या के ऋणआत्मक विधि कहते हैं। यह तब होती है जब जन्म दर मृत्यु दर से कम हो जाए अथवा लोग अन्य देशों में प्रवास कर जाएँ

जनसंख्या परिवर्तन के घटक

जनसंख्या परिवर्तन के तीन घटक हैं – जन्म, मृत्यु और प्रवास अशोधित जन्म दर (CBR) को प्रति हजार स्त्रियों द्वारा जन्‍म दिए जीवित बच्चों के रूप में व्यक्त किया जाता हैा

अशोधित जन्म दर= किसी वर्ष विशेष में जीवित जन्म\किसी क्षेत्र विशेष में वर्ष के मध्य जनसंख्या × 1000

मृत्‍यु दर जनसंख्या परिवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाती है अशोधित मृत्यु दर को किसी क्षेत्र विशेष में किसी वर्ष के दौरान प्रति हजार जनसंख्या के पीछे मृतकों की संख्या के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है

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प्रवास

जब लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो वह स्थान जहाँ से लोग गमन करते हैं उद्गम स्थान कहलाता है और जिस स्थान में आगमन करते हैं गंतव्य स्थान कहलाता हैा

आप्रवास- प्रवासी जो नए स्थान पर जाते हैं अप्रवासी कहलाते हैं।

उत्प्रवास- प्रवासी जो एक स्थान से बाहर चले जाते हैं उत्तर वासी कहलाते हैं।

जनसंख्या वृद्धि की प्रवृतियाँ

पृथ्वी पर जनसंख्या 700 करोड़ से भी अधिक हैा लगभग 8000 से 12000 वर्ष पूर्व कृषि के उद्भव व आरंभ के पश्चात जनसंख्या का आकार बहुत छोटा था – मोटे तौर पर 8 लाख ईशा की पहली शताब्दी में जनसंख्या 30 करोड़ से कौन थी। 1750 ई. के आसपास औद्योगिक क्रांति का उदय हुआ विश्व की जनसंख्या 55 करोड़ थी।

क्या आप जानते हैं

विगत 500 वर्ष में मानव जनसंख्या 10 गुना से अधिक बढ़ी हैा

अकेले 20वीं शताब्दी में जनसंख्या 4 गुना बढ़ी हैा

प्रतिवर्ष लगभग 8 करोड लोग पहले की जनसंख्या में जुड़ जाते हैं

विश्व जनसंख्या के दोगुना होने की अवधि

मानव जनसंख्या को प्रारंभिक एक करोड़ होने में 10 लाख से भी अधिक वर्ष लग गए किंतु इसे 5 अरब से 6 अरब होने मात्र 12 वर्ष लगे। विश्व जनसंख्या के दोगुना होने की अवधि तेजी से घट रही हैा

जनसंख्या परिवर्तन के अस्थानिक प्रारूप प्रारूप

विकसित देशों में विकासशील देशों की तुलना में जनसंख्या वृद्धि कौन हैा

जनसंख्या परिवर्तन का प्रभाव

एक निश्चित रोहतक के बाद जनसंख्या वृद्धि समस्याओं को उत्पन्न करती है जनसंख्या का ह्रास भी चिंता का विषय हैा यह इंगित करता है कि वह संसाधन जो पहले जनसंख्या का पोषण करते थे उस जनसंख्या के पोषण में सक्षम नहीं रहे एड्स एच.आई.वी. (रिक्वायर्ड इम्यून डिफिशिएंसी सिंड्रोम) जैसी घातक वह मारियो ने अफ्रीका, स्वतंत्र राष्ट्र के राष्ट्रमंडल (सी.आई.एस.) के कुछ भागों और एशिया में मृत्यु दर बढ़ा दी है और औसत जीवन प्रत्याशा घटा दी हैा इससे जनसंख्या वृद्धि धीमी हुई हैा

जनसंख्या वृद्धि दर

भारत की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 1.64 प्रतिशत हैा

जनांकिकीय संक्रमण

यह सिद्धांत हमें बताता है कि जैसे ही समाज ग्रामीण खेतिहर और अशिक्षित व्यवस्था से उन्नति कर केंद्रीय औद्योगिक और सक्षम बनाता है तो उस प्रदेश की जनसंख्या उच्‍च जन्‍म और उच्च मृत्यु से निम्न जन्म व निम्न मृत्यु में परिवर्तित होती है यह परिवर्तन अवस्थाओं में होते हैं जिन्हें सामूहिक रूप से जनांकिकिय चक्र के रूप में जाना जाता हैा

जनसंख्या नियंत्रण के उपाय

परिवार नियोजन सुविधाएं जनसंख्या वृद्धि को सीमित करने और महिलाओं के स्वास्थ्य को बेहतर करने में मुख्य भूमिका निभाती है प्रचार गर्भ-निरोधक की सुगम उपलब्धता बड़े परिवारों के लिए कर-निरूतसाहक उपाय कुछ ऐसे प्रावधान है जो जनसंख्या नियंत्रण में सहायक हो सकते हैं। जनसंख्या में वृद्धि का परिणाम अकाल बीमारी तथा युद्ध द्वारा इस में अचानक गिरावट के रूप में सामने आएगा।

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 1 मानव भुगोल प्रकृति एवं क्षेत्र / Manav bhugol prakriti avn vishay kshetra class 12 Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 1 ‘मानव भुगोल प्रकृति एवं क्षेत्र (Manav bhugol prakriti avn vishay kshetra class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Manav bhugol prakriti avn vishay kshetra class 12 Notes
Hraunfossar waterfall

इकाई 1
मानव भूगोल

प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

भूगोल की पहुँच विस्तृत है और किसी भी घटना अथवा  प‍रिघटना का जो दिक् एवं काल के संदर्भ में परिवर्तित होता है उसका भौगोलिक ढंग से अध्ययन किया जा सकता है पृथ्वी के दो प्रमुख घटक है प्राकृतिक (भौतिक पर्यावरण) और जीवन के रूप जिसमें मनुष्य भी सम्मिलित हैं भौतिक भूगोल भौतिक की पर्यावरण का अध्ययन करता है और मानव भूगोल ‘भौतिक/प्राकृतिक एवं मानवीय पर्यावरण एवं मानवीय जगत के बीच संबंध मानवीय परिघटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उसके घटित होने के कारण एवं विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक और आर्थिक विभिन्नताओ का अध्ययन करता है भूगोल का मुख्य सरोकार पृथ्वी को मानव के घर के रूप में समझना और उन सभी तत्वों का अध्ययन करना है जिन्होंने मानव को पोषित किया है

Manav bhugol prakriti avn vishay kshetra class 12 Notes

मानव भूगोल की परिभाषाएं

“मानव भूगोल मानव समाज और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन हैा”

”मानव  भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन हैा

मानव भूगोल की प्रकृति

मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानव जनित सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण के अंतर्संबंधों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्‍यक्रिया के द्वारा करता हैा भौतिक पर्यावरण के तत्व तत्वों के भू आकृति, मृदाएँ, जलवायु, जल, प्राकृतिक वनस्पति और विविध प्राणीजात और वनस्पति जात है गृह, गांव, नगर, सड़कों, व रेलों का जाल उद्योग खेत पत्तन दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ तथा भौतिक संस्कृत के अन्य सभी तत्व भौतिक पर्यावरण द्वारा प्रदत् संसाधनों का उपयोग करते हुए मानव द्वारा निर्मित किए गए हैा,

मानव का प्रकृति करण और प्रकृति का मानवीकरण

प्रौद्योगिकी किसी समाज के संस्कृतिक विकास के स्तर की सूचक होती हैा मानव प्रकृति के नियमों को बेहतर ढंग से समझने के बाद ही प्रौद्योगिकी का विकास कर पाया। उदाहरणार्थ घर्षण और ऊष्मा की संकल्पनाओ ने अग्नि की खोज में हमारी सहायता की। इसी प्रकार डी.एन.ए. और अनुवांशिकी के रहस्य की समझने हमें अनेक बीमारियों का पर विजय पाने के योग्य बनाया। प्राकृतिक अवसर प्रदान करती है और मानव उनका उपयोग करता है तथा धीरे-धीरे प्रकृति का मानवीकरण हो जाता है तथा प्राकृतिक और मानव प्रयासों की छाप पड़ने लगती हैा

समय के गलियारों से मानव भूगोल

पर्यावरण से अनुकूलन व समायोजन की प्रक्रिया तथा इसका रूपांतरण पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न पारिस्थितिकिय की रूप से पारिस्थितिकिय की निकेत में मानव के उदय के साथ आरंभ हुआ हैा पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले मानवीय तत्वो को समझने व उनकी व्याख्या करने के लिए मानव भूगोल सामाजिक विज्ञानों के सहयोगी विषयों के साथ घनिष्ठ अंतरापृष्ठ विकसित करती हैा मानव भूगोल के विस्तृत होते परिमंडल को परिलक्षित करती हैा

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ | Bhaugolilk paripekshya ke chayanit kuchh mudde evam samasyaye class 12 Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ बारह ‘भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ (Bhaugolilk paripekshya ke chayanit kuchh mudde evam samasyaye class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Bhaugolik paripekshya me chayanik kuchh mudde evam samasyaye

अध्याय 12
भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

पर्यावरण प्रदूषण

प्रदूषकों के परिवहित एवं विसरित होने के माध्यम के आधार पर प्रदूषण को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है- (1) जल प्रदूषण, (2) वायु प्रदूषण, (3) भू-प्रदूषण, (4) ध्वनि प्रदूषण।

जल प्रदूषण

नदियों, नहरों, झीलों तथा तालाबों आदि में उपलब्ध जल शुद्ध नहीं रह गया है। इसमें अल्प मात्रा में निलंबित कण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ समाहित होते हैं। जब जल में इन पदार्थों की सांद्रता बढ़ जाती है तो जल प्रदूषित हो जाता है

जल प्रदूषण प्राकृतिक स्रोतों (अपरदन, भू-स्खलन और पेड़-पौधों तथा मृत पशु के सड़ने-गलने आदि) से प्राप्त प्रदूषकों से भी होता है, तथापि मानव क्रियाकलापों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषक चिंता के वास्तविक कारण हैं। मानव, जल को उद्योगों, कृषि एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से प्रदूषित करता है।

सर्वाधिक जल प्रदूषक उद्योग-चमड़ा, लुगदी व कागज, वस्त्र तथा रसायन हैं। आधुनिक कृषि में विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग होता है जैसे कि अकार्बनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार नाशक आदि भी प्रदूषण उत्पादन करने वाले घटक हैं। भारत में तीर्थ यात्राओं, धार्मिक मेले व पर्यटन आदि जैसी सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी जल प्रदूषण का कारण हैं।

संदूषित जल के उपयोग के कारण प्रायः दस्त (डायरिया), आँतों के कृमि, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत में लगभग एक-चौथाई संचारी रोग जल-जनित होते हैं।

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण को धूल, धुआँ, गैसें, कुहासा, दुर्गंध और वाष्प जैसे संदूषकों की वायु में अभिवृद्धि व उस अवधि के रूप में लिया जाता है जो मनुष्यों, जंतुओं और संपि के लिए हानिकारक होते हैं।

जीवाश्म ईंधन का दहन, खनन और उद्योग वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। ये प्रक्रियाएँ वायु में सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, सीसा तथा एस्बेस्टास को निर्मुक्त करते हैं।

वायु प्रदूषण के कारण श्वसन तंत्रीय, तंत्रिका तंत्रीय तथा रक्त संचारतंत्र संबंधी विभिन्न बीमारियाँ होती हैं। नगरों के ऊपर कुहरा जिसे शहरी धूम्र कुहरा कहा जाता है, वस्तुतः वायुमंडलीय प्रदूषण के कारण होता है। वायु प्रदूषण के कारण अम्ल वर्षा भी हो सकती है।

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ध्वनि प्रदूषण

विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न ध्वनि का मानव की सहनीय सीमा से अधिक तथा असहज होना ही ध्वनि प्रदूषण है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत विविध उद्योग, मशीनीकृत निर्माण तथा तोड़-फोड़ कार्य, तीव्रचालित मोटर-वाहन और वायुयान इत्यादि हैं। इनमें सायरन, लाउडस्पीकर, फेरी वाले तथा सामुदायिक गतिविधियों से जुड़े विभिन्न उत्सव संबंधी कार्यों से होने वाली आवधिक किंतु प्रदूषण करने वाले शोर को भी जोड़ा जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण के सभी स्रोतों में से यातायात द्वारा पैदा किया गया शोर सबसे बड़ा क्लेश है।

नगरीय अपशिष्ट निपटान

नगरीय क्षेत्रों, को प्रायः अति संकुल, भीड़-भाड़ तथा तीव्र बढ़ती जनसंख्या के लिए अपर्याप्त सुविधाएँ और उसके परिणामस्वरूप साफ-सफाई की खराब स्थिति एवं प्रदूषित वायु के रूप में पहचाना जाता हैं

ठोस कचरे की अंतर्गत विभिन्न प्रकार के पुराने एवं प्रयुक्त सामग्रियाँ शामिल की जाती हैं जैसे कि जंग लगी पिनें, टूटे काँच के समान, प्लास्टिक के डिब्बे, पोलीथिन की थैलियाँ, रद्दी कागज, राख, फ्लॉपियाँ, सी डी आदि का भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगाया जाता है। ठोस अपशिष्ट से अप्रिय

बदबू, मक्खियों एवं कृतकों (जैसे चूहे) से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम पैदा हो जाते हैं जैसे टाइफाइड (मियादी बुखार),

गलघोटूँ (डिप्थीरिया), दस्त तथा हैजा (कॉलरा) आदि।

भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान एक गंभीर समस्या है मुंबई, कोलकाता, चेन्नई व बेंगलूरू आदि महानगरों में ठोस अपशिष्ट के 90 प्रतिशत को एकत्रित करके उसका निपटान किया जाता है लेकिन देश के अन्य अधिकांश शहरों में, अपशिष्ट का 30 प्रतिशत से 50 प्रतिशत कचरा बिना एकत्र किए छोड़ दिया जाता। जो गलियों में, घरों के पीछे खुली जगहों पर तथा परती जमीनों पर इकट्ठा हो जाता है जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम पैदा हो जाते हैं।

क्या आप जानते हैं?

वर्तमान समय में, विश्व की 6 अरब जनसंख्या में से 47 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रहती है और निकट भविष्य में इसमें और अधिक जुड़ जाएँगे। इस अनुपात का 2008 तक 50 प्रतिशत तक पहुँचने का अनुमान है। 2050 तक, विश्व की अनुमानित दो-तिहाई जनसंख्या नगरों में रह रही होगी

ग्रामीण-शहरी प्रवास

ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर जनसंख्या प्रवाह अनेक कारकों से प्रभावित होता है जैसे कि नगरीय क्षेत्रों में मजदूरों की अधिक माँग, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के निम्न अवसर तथा नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विकास का असंतुलित प्रारूप आदि हैं। 

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार | Antarrashtriya vyapar class 12 Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ ग्‍यारह ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (Antarrashtriya vyapar class 12 Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Antarrashtriya Vyapar class 12

अध्याय 11
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

वर्ष 1950-51 में, भारत का वैदेशिक व्यापार का मूल्य 1,214 करोड़ रूपए था, जो कि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 44,29,762 करोड़ रूपए हो गया। भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वस्तुओं के संघटकों में समय के साथ बदलाव आए हैं। इसमें कृषि तथा समवर्गी उत्पादों का हिस्सा घटा है, जबकि पेट्रोलियम तथा अपरिष्कृत उत्पादों एवं अन्य वस्तुओं में वृद्धि हुई है।

परंपरागत वस्तुओं के व्यापार में गिरावट का कारण मुख्यतः कड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा है। कृषि उत्पादों के अंतर्गत कॉफी, काजू, दालों आदि जैसी परंपरागत वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है।

भारत के आयात-संघटन के बदलाते प्रारूप

भारत ने 1950 एवं 1960 के दशक में खाद्यानों की गंभीर कमी का अनुभव किया है। उस समय आयाती की प्रमुख वस्तुएँ खाद्यान्न, पूँजीगत माल, मशीनरी एवं उपस्कर आदि थे।

1970 के दशक के बाद हरित क्रांति में सफलता मिलने पर खाद्यान्नों का आयात रोक दिया गया। लेकिन 1973 में आए ऊर्जा संकट से पेट्रोलियम (पदार्थों) के मूल्य में उछाल आया फलतः आयात बजट भी बढ़ गया। खाद्यान्नों के आयात की जगह उर्वरकों एवं पेट्रोलियम ने ले ली।

पेट्रोलियम तथा इसके उत्पादों के आयात में तीव्र वृद्धि हुई है। इसे न केवल ईधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है बल्कि इसका प्रयोग उद्योगों में एक कच्चे माल के रूप में भी होता है।

व्यापार की दिशा

भारत के व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकांश देशों एवं प्रमुख व्यापारी गुटों के साथ हैं। भारत का उद्देश्य आगामी पाँच वर्षो के दौरान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को दुगुना करने का है।

भारत का अधिकतर विदेशी व्यापार समुद्री एवं वायु मार्गों द्वारा संचालित होता है। हालाँकि, विदेशी व्यापर का छोटा सा भाग सड़क मार्ग द्वारा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी राज्यों में सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है।

क्या आप इन दोनों तटों पर पत्तनों की अवस्थिति की भिन्नता के कारणों का पता लगा सकते हैं।

वर्तमान में, भारत में 12 प्रमुख और 200 छोटे या मझोले पत्तन हैं। आंतरिक प्रदेशों में रेलवे के विस्तार ने स्थानीय बाजारों को क्षेत्रीय बाजारों और क्षेत्रीय बाजारों को राष्ट्रीय बाजारों तथा राष्ट्रीय बाजारों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने की सुगमता प्रदान की। यह प्रवृत्ति 1947 तक बनी रही।

देश के विभाजन से भारत के दो अति महत्वपूर्ण पत्तन अलग हो गए। कराची पत्तन पाकिस्तान में चला गया और चिटगाँव पत्तन तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश में चला गया।

Antarrashtriya vyapar class 12 Notes

आज भारतीय पत्तन विशाल मात्रा में घरेलू के साथ-साथ विदेशी व्यापार का निपटान कर रहे हैं। अधिकतर पत्तन आधुनिक अवसंरचना से लैस हैं।

कच्छ की खाड़ी के मुँहाने पर अवस्थित कांडला पत्तन को देश के पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग की जरूरतों को पूरा करने और मुंबई पत्तन पर दबाव को घटाने के लिए एक प्रमुख पत्तन के रूप में विकसित किया गया है। इस पत्तन को विशेष रूप से भारी मात्रा में पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों एवं उर्वरकों को ग्रहण करने के लिए बनाया गया है।

मुंबई एक प्राकृतिक पत्तन और देश का सबसे बड़ा पत्तन है। यह पत्तन मध्यपूर्व, भूमध्य सागरीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप के देशों के सामान्य मार्ग के निकट स्थित है यह पत्तन 20 कि.मी. लंबा तथा 6-10 कि.मी. चौड़ा है। जिसमें 54 गोदियाँ और देश का विशालतम टर्मिनल हैं।

जवाहरलाल नेहरू पत्त को न्हावा-शेवा में मुंबई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए एक अनुषंगी पत्तन के रूप में विकसित किया गया था। यह भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है।

जुआरी नदमुख के मुँहाने पर अवस्थिति मार्मागाओ पत्तन गोवा का एक प्राकृतिक बंदरगाह है।

न्यू मंगलौर पत्तन कर्नाटक में स्थित है और लौह-अयस्क और लौह-सांद्र के निर्यात की जरूरतों को पूरा करता है।

बेंवानद कायाल, जिसे ‘अरब सागर की रानी‘ (क्वीन ऑफ अरेबियन सी) के लोकप्रिय नाम से जाना जाता है, के मुँहाने पर स्थित कोच्चि पत्तन भी एक प्राकृतिक पत्तन है।

यह केरल, दक्षिणी कर्नाटक तथा दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु की आवश्यकताओं को पूरा करता है।

कोलकाता पत्तन हुगली नदी पर अवस्थित है जो बंगाल की खाड़ी से 128 कि.मी. स्थल में अंदर स्थित है।

कोलकाता पत्तन हुगली नदी द्वारा लाई गई गाद की समस्या से भी जुझता रहा है जो कि उसे समुद्र से जुड़ने का मार्ग प्रदान करती है।

हल्दिया पत्त कोलकाता से 105 कि.मी. अंदर अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) पर स्थित है। इसका निर्माण कोलकाता पत्तन की संकुलता को घटाने के लिए किया गया है।

पारादीप पत्त कटक से 100 कि.मी. दूर महानदी डेल्टा पर स्थित है। इसका पोताश्रय सबसे गहरा है जो भारी पोतों के निपटान के लिए सर्वाधिक अनुकूल है।

विशाखापट्नम आंध्र प्रदेश में एक भू-आबद्ध पत्तन है जिसे ठोस चट्टान एवं बालू को काटकर एक नहर के द्वारा समुद्र से जोड़ा गया है।

चेन्नई पत्तन-पूर्वी तट पर स्थित यह सबसे पुराने पत्तनों में से एक है। यह एक कृत्रिम पत्तन है जिसे 1859 में बनाया गया था। तट के निकट उथले जल के कारण यह पत्तन विशाल पोतों के लिए अनुकूल नहीं है।

तमिलनाडु में नई विकसित एन्नोर पत्तन चेन्नई के उत्तर में 25 कि.मी. दूर चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए बनाई गई है।

तूतीकोरिन पत्त का विकास भी चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया था।

हवाई अड्डे

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वायु परिवहन एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है। इन्हें लंबी दूरी वाले उच्च मूल्य वाले या नाशवान सामानों को कम समय में ले जाने व निपटाने के लिए लाभ प्राप्त होते हैं। देश में 25 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं।

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कक्षा 12 भूगोल पाठ 10 परिवहन तथा संचार | Parivahan tatha sanchar class 12 Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ दस ‘परिवहन तथा संचार (Parivahan tatha sanchar class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Parivahan tatha sanchar

अध्याय 10
परिवहन तथा संचार

परिवहन तथा संचार का उपयोग एक वस्तु की उपलब्धता वाले स्थान से उसके उपयोग वाले स्थान पर लाने-ले जाने की हमारी आवश्यकता पर निर्भर करता है।

स्थल परिवहन

आर्थिक तथा प्रौद्योगिक विकास के साथ भारी मात्रा में सामानों तथा लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए पक्की सड़कों तथा रेलमार्गो का विकास किया गया है।

सड़क परिवहन

भारत का सड़क जाल विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क-जाल है। इसकी कुल लंबाई 54.8 लाख कि.मी. (आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17) है।

क्या आप जानते हैं?

शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य को सिंधु घाटी (पाकिस्तान) से लेकर बंगाल की सोनार घाटी तक सुदृढ़ एवं संघटित (समेकित) रखने के लिए शाही राजमार्ग का निर्माण कराया था। कोलकाता से पेशावर तक जोड़ने वाले इसी मार्ग को ब्रिटिश शासन के दौरान ग्रांड ट्रंक (जी.टी.) रोड के नाम से पुनः नामित किया गया था। वर्तमान में यह अमृतसर से कोलकात्ता के बीच विस्तृत है और इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है (क) राष्ट्रीय महामार्ग NH-1 दिल्ली से अमृतसर तक और (ख) राष्ट्रीय महामार्ग NH-2 दिल्ली उसे कोलकात्ता तक। निर्माण एवं रख-रखाव के उद्देश्य से सड़कों को राष्ट्रीय महामार्गो (NH), राज्य महामार्गों (SH), प्रमुख जिला सड़कों तथा ग्रामीण सड़कों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

राष्ट्रीय महामार्ग

वे प्रमुख सड़कें, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्मित एवं अनुरक्षित किया जाता है, राष्ट्रीय महामार्ग के नाम से जानी जाती है। ये महामार्ग राज्यों की राजधानियों, प्रमुख नगरों, महत्वपूर्ण पत्तनों तथा रेलवे जंक्शनों को भी जोड़तें हैं।

राष्ट्रीय महामार्गों की लंबाई पूरे देश की कुल सड़कों की लंबाई की मात्र 2 प्रतिशत हैः किंतु ये सड़क यातायात के 40 प्रतिशत भाग का वहन करते हैं

भारतीय राष्ट्रीय महामार्गो प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) का प्रचालन 1995 में हुआ था। यह भूतल परिवहन मंत्रालय के अधीन एव स्वायत्तशासी निकाय है। इसे राष्ट्रीय महामार्गों के विकास, रख-रखाव तथा प्रचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

राष्ट्रीय महामार्ग विकास परियोजनाएँ

स्वर्णिम चतुर्भुज

परियोजनाः इसके अंतर्गत 5,846 कि.मी. लंबी 4/6 लेन वाले उच्च सघनता के यातायात गलियारे शामिल हैं जो देश के चार विशाल महानगरों-दिल्ली-मुंबई-चेन्नई-कोलकात्ता को जोड़ते हैं।

त्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियाराः उत्तर-दक्षिण गलियारे का उद्देश्य जम्मू व कश्मीर के श्रीनगर से तमिलनाडु के कन्याकुमारी (कोच्चि-सेलम पर्वत स्कंध सहित) को 4,016 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है। पूर्व एवं पश्चिम गलियारे का उद्देश्य असम में सिलचर से गुजरात में पोरबंदर को 3,640 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है।

राज्य महामार्ग

इन मार्गों का निर्माण एवं अनुरक्षण राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। ये राज्य की राजधानी से जिला मुख्यालयों तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों  को जोड़ते हैं। ये मार्ग राष्ट्रीय महामार्गों से जुड़े होते हैं। इनके अंतर्गत देश की कुल सड़को की लंबाई का 4 प्रतिशत भाग आता है।

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जिला सड़के

ये सड़के जिला मुख्यालयों तथा जिले के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों के बीच संपर्क मार्ग का कार्य करती हैं। इनके अंतर्गत देश-भर की कुल सड़कों की लंबाई का 14 प्रतिशत भाग आता है।

ग्रामीण सड़कें

ये सड़कें ग्रामीण क्षेत्रों को आपस में जोड़ने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। भारत की कुल सड़को की लंबाई का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण सड़कों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

अन्य सड़कें

अन्य सड़कों के अंतर्गत सीमांत सड़कें एवं अंतर्राष्ट्रीय महामार्ग आते हैं। मई 1960 में सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ.) को देश की उत्तरी एवं उत्तर-पूर्वी सीमा से सटी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सड़कों के तीव्र और समन्वित सुधार के माध्यम से आर्थिक विकास को गति देने एवं रक्षा तैयारियों को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। यह एक अग्रणी बहुमुखी निर्माण अभिकरण है। इसने अति ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में चंडीगढ़ को मनाली (हिमाचल प्रदेश) तथा लेह (लद्दाख) से जोड़ने वाली सड़क बनाई है।

अंतर्राष्ट्रीय महामार्गों का उद्देश्य पड़ोसी देशों के बीच भारत के साथ प्रभावी संपर्कों को उपलब्ध कराते हुए सद्भावपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना है

रेल पविहन

भारतीय रेल जाल विश्व के सर्वाधिक लंबे रेल जालों में से एक है। भारतीय रेल की स्थापना 1853 में हुई तथा मुंबई (बंबई) से थाणे के बीच 34 कि.मी. लंबी रेल लाइन निर्मित की गई। देश में भारतीय रेल सरकार का विशालतम उद्यम है। भारतीय रेल जाल की कुल लंबाई 66030 कि.मी. है भारतीय रेल को 16 मंडलों में विभाजित किया गया है।

बड़ी लाइन- ब्रॉड गेज में रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर होती है।

मीटर लाइन- इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती हैं।

छोटी लाइन- इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी 0.762 मीटर या 0.610 मीटर होती है।

जल परिवहन

भारत में जलमार्ग यात्री तथा माल वहन, दोनों के लिए परिवहन की एक महत्वपूर्ण विधा है। यह परिवहन का सबसे सस्ता साधन है

जल परिवहन दो प्रकार का होता है- (क) अन्तः स्थलीय जलमार्ग और (ख) महासागरी जलमार्ग।

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अंतः स्थलीय जलमार्ग

रेलमार्गों के आगमन से पहले यह परिवहन की प्रमुख विधा थी। भारत में 14,500 कि.मी. लंबा जलमार्ग नौकायन हेतु उपलब्ध है जो देश के परिवहन में लगभग 1प्रतिशत का योगदान देता है। देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, अनुरक्षण तथा नियमन हेतु 1986 में अंतः स्थलीय जलमार्ग प्राधिकरण स्थापित किया गया था।

जलमार्ग विस्‍तार विशिष्‍टता
रा.ज.मा.1          रा.ज.मा.2            इलाहाबाद-हल्दिया विस्तार (1,620 कि.मी.)

सदिया-धुबरी विस्तार (891 कि.मी

यह भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है जो यंत्रीकृत नौकाओं द्वारा पटना तक साधारण नौकाओं द्वारा हरिद्वार तक नौकायन योग्य है।

ब्रह्रापुत्र नदी स्टीमर द्वारा डिब्रूगढ़ (1384 कि.मी.) तक नौकायान योग्य है

 

 

महासागरीय मार्ग

भारत के पास द्वीपों सहित लगभग 7,517 कि.मी. लंबा व्यापक समुद्री तट है। 12 प्रमुख तथा 185 गौण पत्तन इन मार्गों को संरचनात्मक आधार प्रदान करते हैं।

भारत में भार के अनुसार लगभग 95 प्रतिशत तथा मूल्य के अनुसार 70 प्रतिशत विदेशी व्यापार महासागरीय मार्गों द्वारा होता है।

वायु परिवहन

वायु परिवहन एक स्थान से दूसरे स्थान तक गमनागमन का तीव्रतम साधन है। इसने यात्रा समय को घटाकर दूरियों को कम कर दिया है।

भारत में वायु परिवहन की शुरूआत 1911 में हुई, जब इलाहाबाद से नैनी तक की 10 कि.मी. की दूरी हेतु वायु डाक प्रचालन संपन्न किया गया था।

भारतीय वायु प्राधिकरण (एयर अथॉरिटी ऑफ इंडिया) भारतीय वायुक्षेत्र में सुरक्षित, सक्षम वायु यातायात एवं वैमानिकी संचार सेवाएँ प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है। भारत में वायु परिवहन का प्रबंधन-एयर इंडिया द्वारा किया जाता है। अब अनेक निजी कंपनियों ने भी यात्री सेवाएँ देनी प्रारंभ कर दी हैं।

पवन हंस एक हेलीकॉप्टर सेवा है जो पर्वतीय क्षेत्रों में सेवारत है और उत्तर-पूर्व सेक्टर में व्यापक रूप से पर्यटकों द्वारा उपयोग में लाया जाता है।

तेल एंव गैस पाइप लाइन

पाइप लाइनें गैसों एवं तरल पदार्थों के लंबी दूरी तक परिवहन हेतु अत्यधिक सुविधाजनक एवं सक्षम परिवहन प्रणाली है।

एशिया की पहली 1157 कि.मी. लंबी देशपारीय पाइपलाइन (असम के नहरकटिया तेल क्षेत्र से बरौनी के तेल शोधन कारखाने तक) का निर्माण आई.ओ.एल. ने किया था।

पश्चिम भारत में एक दूसरे विस्तीर्ण पाइप लाइन का महत्वपूर्ण नेटवर्क-अंकलेश्वर-कोयली, मुंबई-हाई-कोयली तथा हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर का निर्माण किया गया।

संचार जाल

आरंभिक समय में ढ़ोल या पेड़ के खोखले तने को बजाकर, आग या धुएँ के संकेतों द्वारा अथवा तीव्र धावकों की सहायता से संदेश पहुँचाए जाते थे। उस समय घोड़े, ऊँट, कुत्ते, पक्षी तथा अन्य पशुओं को भी संदेश पहुँचाने के लिए प्रयोग किया जाता था।

डाकघर, तार, प्रिंटिंग प्रेस, दूरभाष तथा उपग्रहों की खोज ने संचार को बहुत त्वरित एवं आसान बना दिया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास ने संचार के क्षेत्र में क्रांति लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

संचार के साधन            

वैयक्तिक           सार्वजनिक

पत्रादि, दूरभाष (टेलीफोन), तार (टेलीग्राम), फैक्स, ई-मेल इंटरनेट आछि            रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, उपग्रह (सेटेलाइट), समाचार पत्र, पत्रिकाएँ व पुस्तकें, जन सभाएँ/ गोष्ठियाँ एवं सम्मेलन आदि

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वैयक्तिक संचार तंत्र

वैयक्तिक संचार तंत्रों में इंटरनेट सर्वाधिक प्रभावी एवं अधुनातन है। यह उपयोगकर्ता को ई-मेल के माध्यम से ज्ञान एवं सूचना की दुनिया में सीधे पहुँच बनाने में सहायक होता है।

जनसंचार तंत्र

रेडियो

भारत में रेडियो का प्रसारण सन् 1923 में रेडियोक्लब ऑफबाम्बे द्वारा प्रारंभ किया गया था।

अल्पकाल में ही इसने देश-भर में प्रत्येक घर में जगह बना ली है। सरकार ने इस सुअवसर का लाभ उठाया और 1930 में इंडियन ब्रॉडकासि्ंटग सिस्टम के अंतर्गत इस लोकप्रिय संचार माध्यम को अपने नियंत्रण में ले लिया। 1936 में इसे ऑल इंडिया रेडियो और 1957 में आकाशवाणी में बदला दिया गया ऑल इंडिया रेडियो सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन से जुड़े विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को प्रसारित करता है।

टेलीविजन (टी.वी.)

सूचना के प्रसार और आम लोगों को शिक्षित करने में टेलीविजन प्रसारण एक अत्यधिक प्रभावी दृश्य-श्रव्य माध्यम के रूप में उभरा है। टी.वी. सेवाएँ 1959 में प्रारंभ किया गया था। सन् 1976 में टी.वी. को ऑल इंडिया रेडियो (ए.आई.आर.) से विगलित कर दिया गया और इसे दूरदर्शन (डी.डी.) के रूप में एक अलग पहचान दी गई।

उपग्रह संचार

उपग्रह, संचार की स्वयं में एक विधा हैं और ये संचार के अन्य साधनों का भी नियमन करते हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्रों का मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, सीमा क्षेत्रों की चौकसी आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।

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