वर्ग और घन की परिभाषा
वर्ग- जब किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा किया जाता है, तो प्राप्त संख्या उस संख्या का वर्ग कहलाता है। जैसे- 4 का वर्ग 16
घन- जब किसी संखा को उसके वर्ग से गुणा किया जाता है, प्राप्त राशि उसका घन कहलाती है। जैसे- 5 का घन 125
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वर्ग और घन की परिभाषा
वर्ग- जब किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा किया जाता है, तो प्राप्त संख्या उस संख्या का वर्ग कहलाता है। जैसे- 4 का वर्ग 16
घन- जब किसी संखा को उसके वर्ग से गुणा किया जाता है, प्राप्त राशि उसका घन कहलाती है। जैसे- 5 का घन 125
प्रायिकता और प्रयोग की परिभाषा
प्रायिकता- गणित की वह शाखा, जिसमें घटना के घटित होने की संभावनों का संख्यात्मक अध्ययन किया जाता है, प्रायिकता कहलाता है।
प्रयोग- किसी प्रक्रिया के किए जाने पर उत्पन्न हो सकने वाले सुनिश्चित परिणामों को प्रयोग कहते हैं।
परिधि और वृताकार क्षेत्र की परिभाषा
परिधि- वृत को घेरने वाली वक्र रेखा की लम्बाई परिधि कहलाती है।
वृताकार क्षेत्र- वृत एवं वृत के अंदर समस्त क्षेत्र को वृताकार क्षेत्र कहते हैं।
बिन्दू और समतल की परिभाषा
बिन्दु- वह काल्पनिक ज्यामितिय आकृति जिसमें लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई कुछ भी न हो, उसे बिन्दु कहते हैं।
समतल- वह काल्पनिक आकृति, जिसकी लम्बाई और चौड़ाई असीमित हो, उसे समतल कहते हैं। जैसे- श्यामपट़ट, कैरमबोर्ड आदि समतल के हिस्से हैं।
त्रिकोणमिति की परिभाषा और परिचय
त्रिकोणमिति (Trigonometry)- त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है, जिसमें दूरियों अथवा ऊँचाईयों के बारे में अध्ययन करते हैं।
अग्रेजी शब्द ‘Trigonometry’ की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्दों ‘tri’ जिसका अर्थ ‘तीन‘ है, ‘gon’ जिसका अर्थ ‘भूजा‘ है और ‘metron’ जिसका अर्थ ‘माप‘ है, से हुई है। त्रिकोणमिति में हम त्रिभुज की भुजाओं और कोणों के बीच के संबंधों का अध्ययन करते हैं।
परिमेय, अपरिमेय और वास्तविक संख्या की परिभाषा
परिमेय संख्या (Real Number)– वैसी वास्तविक संख्या जो p/q के रूप में हो, जहाँ p और q पूर्णांक हो तथा सह-अभाज्य हो और q ǂ 0 हो, उसे परिमेय संख्या कहते हैं। जैसे- 3/5, 7/10, 1/8, 13/25 इत्यादि ।
अपरिमेय संख्या (Irrational Number)- वैसी वास्तविक संख्या जो p/q के रूप में नहीं हो, जहाँ p और q पूर्णांक हो तथा सह-अभाज्य हो और qǂ0 हो, उसे अपरिमेय संख्या कहते हैं। जैस- √2, √5, √7+√11, √13 इत्यादि।
वास्तविक संख्या (Real Number)- परिमेय और अपरिमेय संख्याओं के संग्रह को वास्तविक संख्या कहते है। जैसे- 2/33, 7/22, √2, √5, √7, √11, √13 इत्यादि।
भिन्न (Fraction)- यदि दो पूर्णांक p और q हों तथा qǂ0 हो, तो p/q को भिन्न कहते हैं, जिसमें p को अंश तथा q को हर कहते हैं। जैसे- 5/11, 7/25, 8/16, 21/36
9/18 एक भिन्न है, लेकिन परिमेय नहीं है।
अभाज्य संख्या, भाज्य संख्या, सम संख्या, विषम संख्याएँ,संपूर्ण संख्याएँ की परिभाषा
अभाज्य संख्या (Prime Number)- वह संख्या जिसका केवल दो अपवŸार्क हो, अभाज्य संख्या कहलाता है।
जैसे- 2, 3, 5, …
भाज्य संख्या (Composite Number)- वह संख्या जिसका दो से अधिक अपवर्त्तक हो, भाज्य संख्या कहलाता है।
जैसे- 4, 6, 8, 9, …
सम संख्या (Even Number)- वे संख्याएँ जो दो से पूर्णंतः विभाजित हो, सम संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे- 2, 4, 6, … ।
विषम संख्याएँ (Odd Number)- वे संख्याएँ जो दो से पूर्णतः विभाजित नहीं हो, विषम संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे- 1, 3, 5, … ।
संपूर्ण संख्याएँ (Perfect Numbers)- वैसी संख्याएँ जिनकी समस्त गुणनखण्डों का योग उस संख्या का दुगुना हो, संपुर्ण संख्याएँ कहलाती हैं। जैसे-
6 – 1+2+3+6 = 12 = 2×6
28 – 1+2+4+7+14+28 = 56 = 2×28
प्राकृत संख्या, पूर्ण संख्या, पूर्णांक, शून्य ,सह-अभाज्य संख्याएँ, विशिष्ट पूर्णांक की परिभाषा
प्राकृत संख्या (Natural Number)- गीनती की संख्या को प्राकृत संख्या कहते हैं। इसे धन पूर्णांक भी कहते हैं। जैसे- 1, 2, 3, 4, 5,
पूर्ण संख्या (Whole Number)– शून्य सहित प्राकृत संख्या को पूर्ण संख्या कहते हैं। जैसे- 0, 1, 2, 3, 4, ण्ण्ण्
पूर्णांक (Integers)– पूर्ण संख्या के संग्रह में ऋणात्मक प्राकृत संख्या को शामिल कर लें तो प्राप्त संख्याओं के संग्रह को पूर्णांक कहते हैं। जैसे- …, -4, -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3, 4, …
इसे Z से सूचित किया जाता है।
शून्य (Zero)– 0 को शून्य पूर्णांक कहते हैं। इसका एक अन्य नाम Nought है। इसलिए a₀ को a Nought पढ़ा जाता है।
f₀ को f Nought पढ़ा जाता है।
b₀ को b Nought पढ़ा जाता है।
सह-अभाज्य संख्याएँ (Co-prime Number)- वैसी दो या दो से अधिक संख्याएँ जिनका उभयनिष्ठ अपवत्तर्क (अर्थात म.स.) केवल एक हो, यानी महत्तम समापवत्तर्क केवल 1 हो , सह-अभाज्य संख्याएँ कहलाती हैं। जैसे- (5,7), (12,25), (8,49) सह-अभाज्य संख्याएँ हैं।
विशिष्ट पूर्णांक (Specific Number) – वह धन पूर्णांक जिसका केवल एक अपवत्तर्क/गुणनखंड हो, विशिष्ट पूर्णांक कहलाता है।
जैसे- ‘1‘.
संख्या (Number) का संकेत No क्यों ? – संख्या (Number) लैटिन शब्द Numero से लिया गया है। जिसका अर्थ ‘संख्या (Number)‘ होता है।
चूँकि किसी का संकेत उस शब्द के प्रथम अक्षर अथवा प्रथम और अंतिम अक्षर से किया जाता है।
Numero का पहला अक्षर N और अंतिम अक्षर O है, इसलिए इसका संकेत No होता है।
सभी पूर्णांकों के संग्रह को Z से क्यों सुचित किया जाता है ? – Z जर्मन शब्द ”zahlen” (जेहलीन) से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘गिनना‘ और ”zahl” (जहल) जिसका अर्थ संख्या होता है।
इसलिए पूर्णांक को Z से सुचित किया जाता है।
पंचविंशति: पाठ: ध्रुवोपाख्यानम् (घुव की कहानी)
1, “धोपाख्यानम्’ पाठ में क्या शिक्षा निहित है। (2015A)
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के माध्यम से हमें बताया गया है कि धैर्यवान बनकर सन्मार्ग पर चलना चाहिए। निरस्कृत होकर भी दु:खी नहीं होना चाहिए। बल्कि दृढ़ निश्चयपूर्वक अभीष्ट की प्राप्ति हेतु प्रयासरत होना चाहिए। भगवान पर आस्था रखते हुए जो अडिग होकर लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास करते हुए कोई भी बाधा, बिघ्न, प्रलोभन जिन्हें कर्मपथ से विचलित नहीं करता वे अवश्य सफल होते हैं।
उत्तर- ध्रुव की कठिन तपस्या को इन्द्र एवं अनेक देवताओं ने भंग करने का प्रयास किया। क्योंकि उस बालक की कठोर तपस्या को देखकर इन्द्रादि देवता को लगा कि मेर पद, प्रतिष्ठा, स्वर्ग, धन इत्यादि यह तपस्वी बालक भगवान विष्णु को प्रसन्न करके प्राप्त कर लेगा। इसी भय के कारण उन लोगों ने उसकी तपस्या को बाधित करने का प्रयास किया।
उत्तर- ध्रुव अटल तपस्या में लीन था वह दृढ़ निश्चयपूर्वक तप साधना कर रहा था। साथ ही, उसकी सोच अच्छी थी। वह अपनी तपस्या सफल करके दुसरे का पद, धन एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करना नहीं चाहता बल्कि उसका लक्ष्य अपने पिता का प्रेम पाना था। अर्थात उसकी दृढ़ संकल्पशक्ति, पितृभक्ति, भगवद्भक्ति एवं अच्छे लक्ष्य के समक्ष देवता भी नहीं ठहर सके। उन्हें भी उसके मार्ग से हटना पड़ा।
उत्तर- एक समय की बात है, राजा उत्तानपाद की दो रानियाँ थी- एक सुनीति तथा दूसरी सुरुचि। सुनीति का पुत्र ध्रुव था या जो अपनी विमाता के द्वारा प्रताड़ित किया जाना था। सुरुचि का पुत्र अपने पिता का काफी प्यारा था। वह राजा अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि की बात ज्यादा मानता था।
एक दिन की बात हैं जब ध्रुव अपने पिता उत्तानाद की गोद में बैठने जा रहा था तभी उसकी विमाता सुरुचि ने उसे देख लिया और पिता की गोद से हटाकर उसे डांटते हुए वहाँ से भगा दिया। ऐसा दुर्व्यवहार देखकर ध्रुव रोने लगा और रोते हुए अपनी माता को सारी व्यथा सुनाई। माँ ने धैर्यपूर्वक पुत्र को समझाते हुए कहा कि पुत्र तुम ईश्वर का स्मरण करो। यदि उनकी इच्छा होगी तो तुम उससे बड़े गोद को प्राप्त होओगे। ध्रुव अपनी माता की बात मानकर भगवान विष्णु की आराधना में जुट गया और अपनी कठोर तपस्या से उनका दर्शन प्राप्त कर कैसे उच्च स्थान को प्राप्त किया जिसे आज तक किसी अन्य ने प्राप्त नहीं किया है।
उत्तर- ध्रुव महाराज उत्तानपाद की पत्नी सुनीति का पुत्र है। वह स्वाभिमानी बालक है। विमाता द्वारा एक दिन अपमानित होने पर माता की आज्ञा से तपस्या द्वारा पिता की गोद प्राप्त करने के लिए मात्र पाँच वर्ष की अवस्था में तपस्या करने वन चला जाता है। मधु नामक जंगल में जाकर विष्णु का ध्यान लगाना आरंभ कर देता है। तपस्या में अनेक विघ्न डालने की कोशिश की गई। लेकिन वह अचल रहा। अन्त में भगवान् विष्णु से वरदान प्राप्त कर अपने पिता का स्नेहभाजन बना। इस तरह हम देखते हैं कि ध्रुव एक दृढनिश्चयी बालक है।
चतुर्विंशति: पाठ: नरस्य (मनुष्य का)
उत्तर- प्रस्तुत पाठ हमें जीवन के यथार्थ से जोड़ता है। इसमें कहा गया है कि धर्म ही मित्र है, सद्वाणी आभूषण हैं, दुर्गुण हमारे शत्रु हैं, अर्थात् हमारे अन्दर पुरुषार्थ की शक्ति निहित है। दोषों को त्यागकर एवं भौतिकता से दूर रहकर जीवन का वास्तविक अनन्द प्राप्त किया जा सकता है।
उत्तर— पाठ में मुख्यतः कर्मण्य बनने को बात कही गयी है। जीवन की सच्चाई से हमें अवगत कराया गया है। इसमें बताया गया है कि मनुष्य का सच्चा मित्र धर्म है, सबसे बड़ा शत्रु दुर्गुण है, सत्य वचन अभूषण है, सचा गुरु माता-पिता हैं, वास्तविक ज्ञान सत्य की जानकारी है, अपना कार्यक्षेत्र समसे बढ़कर पूजा है, मनुष्य का रक्षक उसका कर्म है, मनुष्य कुकर्म से नष्ट होता है, दूसरे की भलाई असली उपलब्धि है। इस तरह से इसमें यथार्थ जीवन का दर्शन है।