कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 2 कर्मशशककथा (लङ्लकार) का अर्थ | Karmashshakkatha class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 2 ‘कर्मशशककथा (लङ्लकार) (Karmashshakkatha class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Karmashshakkatha class 7 sanskrit

द्वितीयः पाठः
कर्मशशक कथा
(लङ्लकार)

पाठ परिचय – प्रस्तुत पाठ ‘कूर्मशशककथा’ विष्णु शर्मा लिखित ‘पंचतंत्र’ नामक कथा ग्रंथ से संकलित हैं। इसमें नियमित रूप से परिश्रम करने की सलाह दी गई है कथाकार का कहना है कि जो नियमित रूप से परिश्रम करता है, वही जीवन संग्राम में सफल होता है, चाहे वह मंद बुद्धि क्यों न हो ? इसी नियमित परिश्रम के फलस्वरूप मंदगति वाला कछुआ आगे निकल गया तथा द्रुतगति से चलनेवाले खरहा को लज्जित होना पड़ा। अत: छात्रों को याद रखना चाहिए कि नियमित परिश्रम से ही अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं ।

चम्पारण्ये सरोवरे एकः कूर्मः निवसति स्म । तस्य मित्रता शशकेन अभवत् । तौ सर्वदा एकत्र स्थित्वा नाना कथाः कथयतः । परस्परम् आलापेन तयोः मित्रता दृढा जाता । एकदा तौ विचारं कृतवन्तौ यत् वनस्य उपान्ते गन्तव्यम् । आवयोः मध्ये कः तत्र प्रथमं गच्छेत् ? कूर्मः अकथयत् – अहमेव तत्र प्रथमं गमिष्यामि । शशकः अहसत् – त्वं तु शनैः-शनैः चलसि । कथं तत्र प्रथमं गमिष्यसि ? अहमेव तत्र प्रथमं प्राप्स्यामि ।  

अर्थ – चम्पा नामक वन के तालाब में एक कछुआ रहता था । उसकी दोस्ती एक खरहे से हो गई । वे दोनों सदा एकसाथ रहकर अनेक कहानियाँ कहते रहते थे । आपसी बातचीत से दोनों में गहरी दोस्ती हो गई । एकबार दोनों में विचार हुआ कि वन के अन्तिम छोर पर पहुँचा जाए। हमदोनों में से पहले कौन वहाँ पहुँचता है ? कछुए ने कहा— पहले मैं ही वहाँ पहुँचूँगा । ( इसपर ) खरहा हँसने लगा तुम तो धीरे-धीरे चलते हो । कैसे पहले वहाँ पहुँचोगे ? मैं ही पहले वहाँ पहुँचूँगा ।

कूर्मः नियमस्य पालकः सदा परिश्रमी च आसीत् । सः शनैः-शनैः किन्तु निरन्तरं चलितः । शशकः दीर्घकालं मार्गे विरम्य पुनः तीव्रया गत्या अचलत् । यदा स वनस्य उपान्तं

प्राप्तवान् तदा अपश्यत् यत् कूर्मः पूर्वमेव तत्र अवस्थितः अस्ति । शशकः लज्जितः जातः । सत्यमुक्तम् – निरन्तरं श्रमेण असम्भवम् अपि कार्यं सम्भवति । क्व कूर्मस्य मन्थरगतिः, क्व शशकस्य तीव्रगतिः । किन्तु कूर्मः निरन्तरं कार्येण विजयी अभवत् ।

अर्थ — कछुआ नियम का पालन करनेवाला और हमेशा परिश्रम करने वाला था । वह धीरे-धीरे, लेकिन लगातार चलता रहा । खरहा देर तक राह में रुककर (विश्राम करके) फिर तेज गति से चला । जब वह जंगल के अन्तिम छोर पर पहुँचा तो देखा कि कछुआ उससे पहले ही पहुँच चुका है। (यह देखकर) खरहा लज्जित हो गया । सच ही कहा गया लगातार परिश्रम करते रहने से कठिन काम भी आसान हो जाता है । (क्योंकि) कहाँ धीरे-धीरे चलनेवाला कछुआ और कहाँ तेज दौड़नेवाला खरहा। लेकिन लगातार काम करते रहने अर्थात चलते रहने के कारण कछुआ विजयी हो गया ( और खरहा हार गया)।

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