सूफीवाद | Sufism in India History

सूफीवाद

ऽ     सूफीवाद एक ऐसा प्रयास है जिसके तहत व्यक्ति ( संत ) अपने अंदर अल्लाह की उपस्थिति को महसूस करता है और बिना किसी भेद-भाव के ईश्वर की समस्त रचना से प्रेम करता है।

ऽ     सूफी रहस्यवादी संत थे, जिन्होंने बाहरी आडम्बर को अस्वीकार करके ईश्वर के प्रति प्रेम एवं भक्ति तथा मनुष्यों के प्रति दया भाव दिखाने पर बल दिया।

ऽ     इन्होंने इस्लाम में मूर्तिपूजा को अस्वीकार करके एकेश्वरवाद यानि सिर्फ अल्लाह के प्रति समर्पण का दृढ़ता से प्रचार किया।

ऽ     इस्लाम ने शरियत ( धार्मिक कानून ) एवं नमाज को प्रधानता दी, जबकि सूफी ईश्वर के साथ किसी की परवाह किए बगैर उसी तरह जुड़े रहना चाहते थे जैसे प्रेमी अपनी प्रेमिका से।

ऽ     अल्लाह की अराधना में मस्त सूफी संत गीतों की रचना करके गाया करते थे। ये पीर या औलिया ( गुरु ) की देखरेख में गाना, ज़िक्र ( नाम का जाप )  एवं चिन्तन किया करते थे।

ऽ     सूफीवाद के विकास की शुरुआत मध्य एशिया से मानी जाती है।

ऽ     भारत में सबसे पहले सुफी खानकाह की स्थापना का श्रेय सुहरवर्दी उपवास के संत बहाउद्दीन जकरिया को है।

ऽ     खानकाह- सूफी संतों द्वारा जहाँ इस्लाम एवं रहस्यवादी चितंन की शिक्षा प्राप्त की जाती थी। उसे खानकाह कहा जाता था। इसमें सभी वर्ग के लोग शिक्षा ग्रहण करते थे।

ऽ     गुरु को पीर एवं शिष्य को मुरीद कहा जाता था।

ऽ     भारत का सबसे लोकप्रिय सिलसिला चिश्ती था जिसकी स्थापना अजमेरशरीफ के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के द्वारा की गई थी।

ऽ     आगे चलकर भारत में कई सिलसिलों की स्थापना हुई, जिसमें कादरी, नक्शबंदी, शुŸारी एवं बिहार में फिरदौसी सिलसिले का विशेष महत्व है।

ऽ     बिहार में फिरदौसी सिलसिले के संतों में हजरत मखदूम शराफुद्दीन यहिया मनेरी का विशेष महत्व है।

ऽ     बिहारशरीफ में मनेरी साहब का मजार है।

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