Bihar Board Class 7 Social Science Ch 7 विज्ञापन की समझ | Vigyapan ki Samajh Class 7th Solutions

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान के पाठ 7 विज्ञापन की समझ (Vigyapan ki Samajh Class 7th Solutions) के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे।

Vigyapan ki Samajh Class 7th Solutions

7. विज्ञापन की समझ

पाठ के अंदर आए प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. विज्ञापन कौन देता है ? संचार माध्यम इसपर क्यों निर्भर है ?
उत्तर – विज्ञापन वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादक देते हैं ताकि उनकी वस्तुएँ बिक सकें और लोग सेवाएँ खरीद सकें ।
संचार माध्यम विज्ञापन पर इसलिये निर्भर हैं क्योंकि पट्टी इनकी आय का मुख्य स्रोत है। यदि संचार माध्यमों को विज्ञापन नहीं मिले तो इनका संचालन ही कठिन हो जाय ।

प्रश्न 2. आपके पसंदीदा विज्ञापन कौन-कौन से हैं ? वे आपको किस तरह आकर्षित करते हैं ? शिक्षक के साथ चर्चा करें । ( पृष्ठ 63)
उत्तर- मेरा पसंदीदा विज्ञापन स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा विभाग द्वारा विज्ञापित विज्ञापन है। इनसे हमें अनेक लाभ होते हैं। वास्तव में सरकारी विज्ञापन जनहित में ही होते हैं । निजी कम्पनी के विज्ञापनों में मुझे डाबर च्यवनप्राश या श्री वैद्यनाथ च्यवनप्राश पसंदीदा विज्ञापन है । कारण कि ये दोनों काफी पुराने देशी संस्थान हैं। ये दोनों देशी दवाएँ हैं जो स्वास्थ्य के लिये काफी लाभदायक हैं ।

प्रश्न 1. गोरेपन या सांवलेपन से सुन्दरता को आँकना क्या आपको सही लगता है ? ( पृष्ठ 65 ) 
उत्तर— नहीं, केवल गोरेपन या सांवलेपन से सुन्दरता को आँकना सही नहीं है । सुन्दरता के अनेक तत्व हैं। ओठ, नाक, आँख, दाँत और रंग सब मिलकर सुन्दरता को मूर्त रूप देते हैं । सांवलापन लिया व्यक्ति भी सुन्दर हो सकता है और गोरा व्यक्ति भी बदसूरत हो सकता है। जहाँ तक शादी-विवाह की बात है तो लड़की और लड़का में समानता हो तो बहुत अच्छा, थोड़ा कम बेस चल सकता है।

प्रश्न 1. पृष्ठ 67 पर के विज्ञापनों और पूर्व के दोनों विज्ञापनों में क्या अंतर है ?
उत्तर- पृष्ठ 67 पर के विज्ञापन जनहित में प्रकाशित कराये गये हैं । इन विज्ञापनों में जनहित की बात छिपी है। बच्चों को पोलियो मुक्त रखने तथा रक्त की कमी वाले रोगियों और दुर्घटना के शिकार रोगियों को रक्त पहुँचाने के लिए रक्तदान आवश्यक है। विज्ञापन में लोगों को इस ओर अग्रसर होने की अपील की गई है। इसे भी जनहित का विज्ञापन ही कहा जायेगा। इन विज्ञापनों के पूर्व के विज्ञापनों में उपभोक्ता वस्तुओं का प्रचार किया गया है। इन विज्ञापित वस्तुओं – सत्तू और क्रीम से जनता को लाभ हो या न हो, लेकिन उनकी जेब जरूर हल्की होगी और उत्पादकों अर्थात् विज्ञापनकर्ताओं की आय अवश्य बढ़ेगी।

अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. विज्ञापन से हम किस प्रकार प्रभावित होते हैं ?
उत्तर— बार-बार एक ही बात आँखों के सामने तथा कानों में आने के कारण व्यक्ति कुछ-न-कुछ प्रभवित हो ही जात है। ऐसे में किसी दुकान पर किसी अन्य वस्तु खरीदने के लिये जाने पर यदि विज्ञापित वस्तु सामने पड़ जाय तो आवश्यकता न होने पर भी उसे हम खरीद लेते हैं। यह सिद्धांत इटली का फासीवादी मुसोलिनी तथा जर्मनी का नाजीवादी हिटलर ने दिया था किसी एक झूठ को सौ बार विभिन्न आदमियों द्वारा किसी के कान में पड़े तो वह व्यक्ति उस झूठ को सच मान लेता है । किसी विज्ञापन से भी हम इसी प्रकार प्रभावित होते हैं ।

प्रश्न 2. पैकेट वाली वस्तु और खुली वस्तु में से आप किसे खरीदना पसन्द करते हैं ? क्यों ?
उत्तर- आज के फैशनेबुल युग में तो चावल और आटा-दाल तक पैकेट में मिलने लगे हैं। शहरों में बहुमंजिली इमारतों में रहने वाले लोग तो हल्दी मिरचाई तक का पाउडर पैकेट में खरीदने लगे हैं। पैकेट में नमक तो मिलता ही है. सभी मसाले भी पैकेट में मिलते हैं। डेढ़ या अढ़ाई कमरे में रहनेवालों, जिनके पास न सिल बट्टा है और न सूप, उनके लिए तो पैकेट वाला सामान खरीदना मजबूरी है । हम तो ग्रामीण लोग हैं । सब वस्तु खुला ही खरीदते हैं, जो पैकेट वाले सामान से सस्ता भी होता है और साफ भी । इस प्रकार समाज में पैकेट वाली वस्तु खरीदनेवाले भी मौजूद हैं और खुली वस्तु भी। खुली वस्तु खरीदने पर उसकी पैकिंग चार्ज तो बच ही जाता है ।

प्रश्न 3. विज्ञापन को बार-बार प्रसारित क्यों किया जाता है ?
उत्तर – विज्ञापन को बार-बार प्रसारित इसलिये किया जाता है कि इटली के मुसोलिनी तथा जर्मनी के हिटलर द्वारा आजमाये इस सिद्धांत का उपयोग किया जाय कि यदि एक झूठ को सौ बार सौ व्यक्तियों से बोलवाया जाय तो उसे आम जन सच मानने लगता है। तात्पर्य कि झूठ को सच बनाने के लिए विज्ञापन को बार- बार प्रसारित किया जाता है। बार-बार आँख और कान में आने पर वास्तव में व्यक्ति प्रभावित हो जाता है ।

प्रश्न 4. आप विज्ञापन से प्रेरित होकर कौन-सी वस्तुएँ खरीदते हैं ? किन्हीं पाँच वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर— हमने विज्ञापन से प्रेरित होकर निम्नलिखित वस्तुएँ खरीदी हैं :
(i) लक्स अण्डरवियर, (ii) टाटा नमक, (iii) ब्रुक बांड ग्रीन लेवल चाय पत्ती, (iv) लिरिल सर्फ पाउडर, (v) हेयर केयर तेल ।
ये कभी-कभी ही विज्ञापित किये जाते हैं, लेकिन खूब बिकते हैं, क्योंकि ये वास्तव में गुणवान भी हैं ।

प्रश्न 5. विज्ञापित वस्तु की कीमत गैर- विज्ञापित वस्तु की तुलना में अधिक क्यों होती है ?
उत्तर – विज्ञापन देना मामूली बात नहीं है। यह काफी महँगा होता है । एक छोटे विज्ञापन के लिये भी अखबार वाले या टी. वी. वाले हजारों-हजार रुपये वसूलते हैं। एक रुपये के एक दाढ़ी बनाने के ब्लेड का विज्ञापन का वार्षिक व्यय लाखों- लाख रुपया होता है। विज्ञापन के इस व्यय को उत्पादक उसकी लागत में जोड़ देते हैं । इसी कारण विज्ञापित वस्तु की कीमत गैर- विज्ञापित वस्तु की तुलना में अधिक होती है। अब खरीदार पर निर्भर करता है कि वह विज्ञापित अधिक मूल्य की वस्तु खरीदते हैं या कि गैर- विज्ञापित कम मूल्य की अच्छी वस्तु खरीदते हैं ।

प्रश्न 6. इनमें से कौन से विज्ञापन सार्वजनिक हैं और कौन-से अनुभव के आधार व्यावसायिक ? नीचे दी गयी तालिका में भरें। फिर अपने पर कुछ और उदाहरण जोड़ें ।
उत्तर – कोल्ड ड्रिंक्स का विज्ञापन, पल्स पोलियो का विज्ञापन, मोबाइल फोन का विज्ञापन तथा असुरक्षित रेलवे क्रॉसिंग को पार करने का विज्ञापन |

कुछ अन्य प्रमुख प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. उत्पादक विज्ञापन क्यों देते है ? विज्ञापन लोकतंत्र में समानताको किस प्रकार कुप्रभावित करता है ?
उत्तर—उत्पादों को बेचने का एक आसान तरीका विज्ञापन हो गया है। विज्ञापन द्वारा घटिया वस्तु को भी उच्च किस्म का बता कर बेच देने में संचार माध्यम बहुत सहायक बन रहे हैं। मूल्य चाहे जो हो ब्राण्ड का नाम और पैकिंग आकर्षक होना चाहिए। यदि ग्राहक के दिमाग में ब्रांड का नाम घुस गया तो वह मूल्य की परवाह नहीं करता। जब दाल और चावल तक को ब्रांडेड कर दिया गया तो और क्या कहा जाय । ब्राण्डेड करनेवाली कम्पनियों का मन बढ़ा रहे हैं नवधनाढ्य और घुसखोर अफसर लोग । देश के अधिकांश लोग गरीब हैं, अतः उन्हें इन ब्रांडों और प्रचार से कोई मतलब नहीं रहता। लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ये ब्रांड और प्रचार माध्यम हमारे सामाजिक मूल्यों को भी तहस-नहस कर रहे हैं । जिन लोगों में ब्रांडेड माल खरीदने की क्षमता नहीं होगी उनमें हीनता की भावना पैदा होने लगती है। विज्ञापन अमीरों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। बात वहाँ से शुरू होती है, जहाँ विज्ञापन बनाए जाते हैं। विज्ञापन बनाने में ही लाखों-लाख रुपये व्यय हो जाते हैं | विज्ञापन लोकतंत्र की मूल भावना ‘समानता’ को बुरी तरह कुप्रभावित करते हैं । अमीर और गरीब में वे भेद पैदा करते हैं ।

प्रश्न 2. ब्रांडशब्द से आप क्या समझते हैं ? विज्ञापन के लिए ब्रांड निर्मित करने के दो मुख्य कारण बताइए ।
उत्तर— ‘ब्रांड’ शब्द का अर्थ है एक ऐसा नाम, जिसे दूसरी कम्पनी उस नाम का उपयोग नहीं कर सकती ।
विज्ञापन के लिए ब्रांड निर्मित करने के दो कारण हैं कि :
(i) ग्राहक के मन-मस्तिष्क में वह नाम घर कर ले ।
(ii) दुकानदार से वह उसी ब्रांड का नाम लेकर सामान माँगे ।

प्रश्न 3. यदि आपके पास विज्ञापित उत्पादों को खरीदने के लिए पैसा हो तो आपको इन्हें देखकर क्या महसूस होगा? यदि आपके पास पैसा न हो तो कैसा अनुभव होगा ?
उत्तर – यदि मेरे पास विज्ञापित उत्पादों को खरीदने के लिए पैसा होगा तो इन्हें देख मुझे खरीदने का मन होगा और खरीद कर मुझमें आत्मसंतुष्टि महसूस होगी । यदि मेरे पास पैसा नहीं होगा तो न खरीद पाने का पछतावा होगा तथा मुझे आत्मग्लानि महसूस होगी ।

प्रश्न 4. क्या आप ऐसे दो तरीके बता सकते हैं, जिनके द्वारा आप सोचते हैं कि विज्ञापन का प्रभाव लोकतंत्र में समानता के मुद्दे पर पड़ता है ?
उत्तर—विज्ञापन का प्रभाव लोकतंत्र के मूलमंत्र समानता के मुद्दे पर निश्चित रूप से पड़ता है। कारण कि (i) विज्ञापित ब्रांडों को केवल धनी व्यक्ति ही खरीद सकते हैं, जिससे उनका आत्मसम्मान बढ़ता है। (ii) गरीब चूँकि विज्ञापितं ब्रांडों को खरीदने में असमर्थ रहते हैं, अतः उनमें आत्मग्लानि होती है तथा कुंठा के भावद पैदा होते हैं ।

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