इटली का एकीकरण पर नोट्स

इटली का एकीकरण

इटली के एक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने में भौगोलिक समस्या के अलावे कई अन्य समस्याएँ थीं। जैसे- इटली में ऑस्ट्रीया और फ्रांस जैसे विदेशी राष्ट्रों का हस्तक्षेप था।

इसलिए एकीकरण में इनका विरोध अवश्यम्भावी था।

पोप की इच्छा थी कि इटली का एकीकरण स्वयं उसके नेतृत्व में धार्मिक दृष्टिकोण से हो ना कि शासकों के नेनृत्व में।

इसके अलावा आर्थिक और प्रशासनिक विसंगतियाँ भी मौजूद थीं।

नेपोलियन ने इसे तीन गणराज्यों में गठित किया जैसे- सीसपाइन, गणराज्य, लीगुलीयन तथा ट्रांसपेडेन।

नेपोलियन ने यातायात व्यवस्था को भी चुस्त-दुरूस्त किया तथा सम्पूर्ण क्षेत्र को एक शासन के अधीन लाया।

इटली के एक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने में भौगोलिक समस्या के अलावे कई अन्य समस्याएँ थीं। जैसे- इटली में ऑस्ट्रीया और फ्रांस जैसे विदेशी राष्ट्रों का हस्तक्षेप था।

इसलिए एकीकरण में इनका विरोध अवश्यम्भावी था।

पोप की इच्छा थी कि इटली का एकीकरण स्वयं उसके नेतृत्व में धार्मिक दृष्टिकोण से हो ना कि शासकों के नेनृत्व में।

इसके अलावा आर्थिक और प्रशासनिक विसंगतियाँ भी मौजूद थीं।

नेपोलियन ने इसे तीन गणराज्यों में गठित किया जैसे- सीसपाइन, गणराज्य, लीगुलीयन तथा ट्रांसपेडेन।

नेपोलियन ने यातायात व्यवस्था को भी चुस्त-दुरूस्त किया तथा सम्पूर्ण क्षेत्र को एक शासन के अधीन लाया।

नेपोलियन के पतन ( 1814 ) के पश्चात वियना काँग्रेस ( 1815 ) द्वारा इटली को पुराने रूप में लाने के उद्देश्य से इटलीके दो राज्यों पिडमाउण्ट और सार्डिनिया का एकीकरण कर दिया।

इस प्रकार इटली के एकीकरण की दिशा तय होने लगी।

इटली में 1820 ई० से ही कुछ राज्यों में संवैधानिक सुधारों के लिए नागरिक आंदोलन होने लगे।

एक गुप्त दल ‘कार्ब्रोनारी‘ का गठन राष्ट्रवादियों द्वारा किया गया, जिसका उद्देश्य छापामार युद्ध के द्वारा राजतंत्र को नष्ट कर गणराज्य की स्िापना करना था।

प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता जोसेफ मेजिनी का संबंध भी इसी दल से था।

1830 की क्रांति के प्रभाव से इटली भी अछूता नहीं रह सका और यहाँ भी नागरिक आन्दोलन शुरू हो गए।

मेजिनी ने भी नागरिक आन्दोलनों का उपयोग करते हुए उŸारी और मध्य इटली में एकीकृत गणराज्य स्थापित करने का प्रयास किया।

लेकिन ऑस्ट्रीया के चांसलर मेटरनिख द्वारा इन राष्ट्रवादी नागरिक आन्दोलनों को दबा दिया गया और मेजिनी को इटली से पलायन करना पड़ा।

इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान

मेजिनी :

मेजिनी साहित्यकार, गणतांत्रिक विचारों के समर्थक और योग्य सेनापति था।

मेजिनी में आदर्शवादी गुण अधिक और व्यावहारिक गुण कम थे।

1831 में उसने ‘यंग इटली‘ की स्थापना की, जिसने नवीन इटली के निमार्ण में महत्वपूर्ण भाग लिया।

इसका उद्देश्य इटली प्रायद्वीप से विदेशी हस्तक्षेप समाप्त करना तथा संयुक्त गणराज्य स्थापित करना था।

1834 में ‘यंग यूरोप‘ नामक संस्था का गठन कर मेजिनी ने यूरोप में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को भी प्रोत्साहित किया।

1848 में जब फ्रांस सहित पूरे यूरोप में क्रांति का दौर आया तो मेटरनिख को ऑस्ट्रीया छोड़कर जाना पड़ा।

इसके बाद इटली की राजनीति में पुनः मेजिनी का आगमन हुआ।

मेजिनी सम्पूर्ण इटली का एकीकरण कर उसे एक गणराज्य बनाना चाहता था जबकि सार्डिनिया-पिडमाउंट का शासक चार्ल्स एलबर्ट अपने नेतृत्व में सभी प्रांतो का विलय चाहता था।

पोप भी इटली को धर्मराज्य बनाने का पक्षधर था।

इस तरह विचारों के टकराव के कारण इटली के एकीकरण का मार्ग अवरुद्ध हो गया था।

कालांतर में ऑस्ट्रीया द्वारा इटली के कुछ भागों पर आक्रमण किये जाने लगे जिसमें सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एलबर्ट की पराजय हो गई।

ऑस्ट्रीया के हस्तक्षेप से इटली में जनवादी आंदोलन को कुचल दिया गया।

इस प्रकार मेजिनी की पुनः हार हुई और वह पलायन कर गया।

इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण

विक्टर इमैनुएल :

1848 तक इटली में एकीकरण के लिए किए गए प्रयास असफल ही रहे।

इटली में सार्डिनिया-पिडमाउण्ट का नया शासक ‘विक्टर इमैनुएल‘ राष्ट्रवादी विचारधारा का था और उसके प्रयास से इटली के एकीकरण का कार्य जारी रहा।

अपनी नीतियां के कार्यान्वयन के लिए विक्टर ने ‘काउंट कावूर‘ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

काउंट कावूर :

कावूर एक सफल कुटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी था। वह इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा ऑस्ट्रीया को मानता था।

इसलिए उसने ऑस्ट्रीया को पराजित करने के लिए फ्रांस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

1853-54 के क्रिमिया के युद्ध में कावूर ने फ्रांस की ओर से युद्ध में सम्मिलित होने के घोषणा कर दी जबकि फ्रांस इसके लिए किसी प्रकार का आग्रह भी नहीं किया था।

इसका प्रत्यक्ष लाभ कावूर को प्राप्त हुआ।

युद्ध समाप्ती के बाद पेरिस के शांति सम्मेलन में कावूर ने इटली में ऑस्ट्रीया के हस्तक्षेप को गैरकानूनी घोषित कर दिया।

कावूर ने नेपोलियन प्प्प् से भी एक संधि की जिसके तहत फ्रांस ने ऑस्ट्रीया के खिलाफ पिडमाउन्ट को सैन्य समर्थन देने का वादा किया।

बदले में नीस और सेवाय नामक दो रियासतें कावूर ने फ्रांस को देना स्वीकार कर लिया।

कावूर की दृष्टि में इटली का एकीकरण संभव नहीं था।

इसी बीच 1859-60 में ऑस्ट्रीया और पिडमाउण्ट में सीमा संबंधी विवाद के कारण युद्ध आरंभ हो गया।

युद्ध में इटली के समर्थन में फ्रांस ने अपनी सेना उतार दी जिसके कारण ऑस्ट्रीयाई सेना बुरी तरह पराजित होने लगी।

ऑस्ट्रीया के एक बड़े राज्य लोम्बार्डी पर पिडमाउण्ट का कब्जा हो गया।

काउंट कावूर :

एक तरफ तो लड़ाई लम्बी होती जा रही थी और दूसरी तरफ नेपोलियन इटली के राष्ट्रवाद से घबराने लगा था क्योंकि उŸार और मध्य इटली की जनता कावूर के समर्थन में बड़े जन सैलाब के रूप में आंदोलनरत थी।

नेपोलियन इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था।

अतः वेनेशिया पर विजय प्राप्त होने के तुरंत बाद नेपोलियन ने अपनी सेना वापस बुला ली।

युद्ध से हटने के बाद नेपोलियन प्प्प् ने ऑस्ट्रीया तथा पिडमाउण्ट के बीच मध्यस्थता करने की बात स्वीकारी।

इस तरह संधि के अनुसार लोम्बार्डी पर पिडमाउण्ट का अधिकार और वेनेशिया पर ऑस्ट्रिया का अधिकार माना गया। अंततः एक बड़े राज्य के रूप में इटली सामने आया। परन्तु कावूर का ध्यान मध्य तथा उत्तरी इटली के एकीकरण पर था ।

अतः उसने नेपोलियन को सेवाय प्रदेश देने का लोभ देकर ऑस्ट्रिया पिडमाउण्ट युद्ध में फ्रांस के निष्क्रिय रहने तथा इटली के राज्यों का पिडमाउण्ट में विलय का विरोध नहीं करने का आश्वासन ले लिया।

बदले में नेपोलियन ने यह शर्त रख दी कि जिन राज्यों का विलय होगा वहाँ जनमत संग्रह कराये जायेंगे।

चूंकि उन रियासतों की जनता पिडमाउण्ट के साथ थी इसलिए कावूर ने कूटनीति का परिचय देते हुए इसे स्वीकार कर लिया।

1860-61 में कावूर ने सिर्फ रोम को छोड़कर उत्तर तथा मध्य इटली की सभी रियासतों (परमा, मोडेना, टस्कनी आदि) को मिला लिया तथा जनमत संग्रह कर इसे पुष्ट भी कर लिया।

ऑस्ट्रिया भी फ्रांस तथा इंग्लैंड द्वारा पिडमाउण्ट को समर्थन के भय से कोई कदम नहीं उठा सका। दूसरी तरफ ऑस्ट्रिया जर्मन एकीकरण की समस्या से भी जूझ रहा था।

इस प्रकार 1862 ई० तक दक्षिण इटली रोम तथा वेनेशिया को छोड़कर बाकी रियासतों का विलय रोम में हो गया और सभी ने विक्टर इमैनुएल को शासक माना।

गैरीबाल्डी :

इसी बीच महान क्रांतिकारी ’गैरीबाल्डी’ सशस्त्र क्रांति के द्वारा दक्षिणी इटली के रियासतों के एकीकरण तथा गणतंत्र की स्थापना करने का प्रयास कर रहा था।

गैरीबाल्डी पेशे से एक नाविक था और मेजिनी के विचारों का समर्थक था परन्तु बाद में कावूर के प्रभाव में आकर संवैधानिक राजतंत्र का पक्षधर बन गया।

गैरीबाल्डी ने अपने कर्मचारियों तथा स्वयं सेवकों की सशस्त्र सेना बनायी।

उसने अपने सैनिकों को लेकर इटली के प्रांत सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण किये। इन रियासतों की अधिकांश जनता बूर्वों राजवंश के निरंकुश शासन से तंग होकर गैरीबाल्डी की समर्थक बन गयी।

गैरीबाल्डी ने यहाँ गणतंत्र की स्थापना की तथा विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ को सत्ता सम्भाली।

1862 ई० में गैरीबाल्डी ने रोम पर आक्रमण की योजना बनाई तब कावूर ने गैरीबाल्डी के इस अभियान का विरोध किया और रोम की रक्षा के लिए पिडमाउण्ट की सेना भेज दी।

इसी बीच गैरीबाल्डी को भेंट कावूर से हुई और उसने रोम के अभियान की योजना त्याग दी। दक्षिणी इटली के जीते गए क्षेत्र को बिना किसी संधि के गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया।

गैरीबाल्डी को दक्षिणी क्षेत्र में शासक बनने का प्रस्ताव विक्टर इमैनुएल द्वारा दिया भी गया परन्तु उसने इसे अस्वीकार कर दिया।

वह अपनी सारी सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित कर साधारण किसान की भाँति जीवन जीने की ओर अग्रसित हआ। त्याग और बलिदान की इस भावना के कारण गैरीबाल्डी के चरित्र को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान खूब प्रचारित किया गया तथा लाला लाजपत राय ने उसकी जीवनी लिखी।

1862 ई० में दुर्भाग्यवश कावूर की मृत्यु हो गई और इस तरह वह भी पूरे इटली का एकीकरण नहीं देख पाया। रोम तथा वेनेशिया के रूप में शेष इटली का एकीकरण विक्टर इमैनुएल ने स्वयं किया।

1870-71 में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध छिड़ गया जिस कारण फ्रांस के लिए पोप को संरक्षण प्रदान करना संभव नहीं था । विक्टर इमैनुएल ने इस परिस्थिति का लाभ उठाया। पोप ने अपने आप को बेटिकन सिटी के किले में बंद कर लिया। इमैनुएल ने पोप के राजमहल को छोड़कर बाकी रोम को इटली में मिला लिया और उसे अपनी राजधानी बनायी।

इस नई स्थिति को पोप ने तत्काल स्वीकार नहीं किया। इस समस्या का अंततः मुसोलिनी द्वारा निदान हुआ जब उसने पोप के साथ समझौता कर वेटिकन की स्थिति को स्वीकार कर लिया।

इस प्रकार 1871 ई० तक इटली का एकीकरण मेजिनी, कावूर, गैरीबाल्डी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं एवं विक्टर इमैनुएल जैसे शासक के योगदानों के कारण पूर्ण हुआ।

इटली में राष्ट्रवाद का प्रभाव

इटली में राष्ट्रवाद ने सम्पूर्ण यूरोप के साथ-साथ हंगरी, बोहेमिया, पोलैंड तथा यूनान में स्वतंत्रता आन्दोलन शुरू हो गये।

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