पंचविंशति: पाठ: ध्रुवोपाख्यानम् (घुव की कहानी)
1, “धोपाख्यानम्’ पाठ में क्या शिक्षा निहित है। (2015A)
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के माध्यम से हमें बताया गया है कि धैर्यवान बनकर सन्मार्ग पर चलना चाहिए। निरस्कृत होकर भी दु:खी नहीं होना चाहिए। बल्कि दृढ़ निश्चयपूर्वक अभीष्ट की प्राप्ति हेतु प्रयासरत होना चाहिए। भगवान पर आस्था रखते हुए जो अडिग होकर लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास करते हुए कोई भी बाधा, बिघ्न, प्रलोभन जिन्हें कर्मपथ से विचलित नहीं करता वे अवश्य सफल होते हैं।
- ध्रुव की तपस्या भंग करने का प्रयास किसने और क्यों किया?
उत्तर- ध्रुव की कठिन तपस्या को इन्द्र एवं अनेक देवताओं ने भंग करने का प्रयास किया। क्योंकि उस बालक की कठोर तपस्या को देखकर इन्द्रादि देवता को लगा कि मेर पद, प्रतिष्ठा, स्वर्ग, धन इत्यादि यह तपस्वी बालक भगवान विष्णु को प्रसन्न करके प्राप्त कर लेगा। इसी भय के कारण उन लोगों ने उसकी तपस्या को बाधित करने का प्रयास किया।
- ‘ध्रुव’ की तपस्या भंग करने में देवराज एवं देवतागण विफल क्यों हो गए?
उत्तर- ध्रुव अटल तपस्या में लीन था वह दृढ़ निश्चयपूर्वक तप साधना कर रहा था। साथ ही, उसकी सोच अच्छी थी। वह अपनी तपस्या सफल करके दुसरे का पद, धन एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करना नहीं चाहता बल्कि उसका लक्ष्य अपने पिता का प्रेम पाना था। अर्थात उसकी दृढ़ संकल्पशक्ति, पितृभक्ति, भगवद्भक्ति एवं अच्छे लक्ष्य के समक्ष देवता भी नहीं ठहर सके। उन्हें भी उसके मार्ग से हटना पड़ा।
- ‘ध्रुवोपाख्यानम्’ कथा को संक्षेप में लिखें। (2013C)
उत्तर- एक समय की बात है, राजा उत्तानपाद की दो रानियाँ थी- एक सुनीति तथा दूसरी सुरुचि। सुनीति का पुत्र ध्रुव था या जो अपनी विमाता के द्वारा प्रताड़ित किया जाना था। सुरुचि का पुत्र अपने पिता का काफी प्यारा था। वह राजा अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि की बात ज्यादा मानता था।
एक दिन की बात हैं जब ध्रुव अपने पिता उत्तानाद की गोद में बैठने जा रहा था तभी उसकी विमाता सुरुचि ने उसे देख लिया और पिता की गोद से हटाकर उसे डांटते हुए वहाँ से भगा दिया। ऐसा दुर्व्यवहार देखकर ध्रुव रोने लगा और रोते हुए अपनी माता को सारी व्यथा सुनाई। माँ ने धैर्यपूर्वक पुत्र को समझाते हुए कहा कि पुत्र तुम ईश्वर का स्मरण करो। यदि उनकी इच्छा होगी तो तुम उससे बड़े गोद को प्राप्त होओगे। ध्रुव अपनी माता की बात मानकर भगवान विष्णु की आराधना में जुट गया और अपनी कठोर तपस्या से उनका दर्शन प्राप्त कर कैसे उच्च स्थान को प्राप्त किया जिसे आज तक किसी अन्य ने प्राप्त नहीं किया है।
- बालक ध्रुव के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर- ध्रुव महाराज उत्तानपाद की पत्नी सुनीति का पुत्र है। वह स्वाभिमानी बालक है। विमाता द्वारा एक दिन अपमानित होने पर माता की आज्ञा से तपस्या द्वारा पिता की गोद प्राप्त करने के लिए मात्र पाँच वर्ष की अवस्था में तपस्या करने वन चला जाता है। मधु नामक जंगल में जाकर विष्णु का ध्यान लगाना आरंभ कर देता है। तपस्या में अनेक विघ्न डालने की कोशिश की गई। लेकिन वह अचल रहा। अन्त में भगवान् विष्णु से वरदान प्राप्त कर अपने पिता का स्नेहभाजन बना। इस तरह हम देखते हैं कि ध्रुव एक दृढनिश्चयी बालक है।