वियना कांगेस क्या है ?
यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था जो सितम्बर 18 से 14 जून 1815 को आस्ट्रिया की राजधानी वियना में आयोजित किया गया था।
नेपोलियन कौन था ?
नेपोलियन एक महान सम्राट था जिसने अपने व्यक्तित्व एवं कार्यों से पूरे यूरोप के इतिहास को प्रभावित किया।
अपनी योग्यता के बल पर 24 वर्ष की आयु में ही सेनापति बन गया।
उसने कई युद्धों में फ्रांसीसी सेना को जीत दिलाई और अपार लोकप्रियता हासिल कर ली फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और फ्रांस का शासक बन गया।
उदारवादी से क्या समझते हैं ?
उदारवादी लातिनी भाषा के मूल्य पर आधारित है जिसका अर्थ है ‘आजाद‘
उदारवाद तेज बदलाव और विकास को प्राथमिकता देता है।
रूढ़ीवादी से क्या समझते हैं ?
ऐसा राजनितिक दर्शन परंपरा, स्थापित संस्थाओं और रिवाजों पर जोर देता है और धीरे-धीरे विकास को प्राथमिकता देता है।
रूढ़ीवादी विचारधारा के लोग प्राचीन परम्परा को मानते हैं।
विचारधारा- एक खास प्रकार की सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण इंगित करने वाले विचारों का समुह विचारधारा कहलाता है।
वियना सम्मेलन- नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप की विजयी शक्तियाँ ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 1815 ई॰ में एकत्र हुई, जिसे वियना सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य फिर से पुरातन व्यवस्था को स्थापित करना था। इस सम्मेलन का मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने किया।
मेटरनिख युग- वियना सम्मेलन के माध्यम से एक तरफ नेपोलियन युग का अंत तथा दूसरी तरफ मेटननिख युग की शुरुआत हुई। इसने इटली पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए उसे कई राज्यों में विभाजित कर दिया। जर्मनी में 39 रियासतों का संघ कायम रहा। फ्रांस में भी पुरातन व्यवस्था की पुन: स्थापना की।
यूरोप में राष्ट्रवादी चेतना की शुरुआत फ्रांस से होती है।
नेपोलियन का शासनकाल
जब नेपोलियन फ्रांस पर अपना शासन चलाना शुरू किया तो उन्होंने प्रजातंत्र को हटाकर राजतंत्र स्थापित कर दिया।
नगरिक संहिता या नेपोलियन की संहिता 1804
- कानून के समक्ष सबको बराबर रखा गया।
- संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित रखा गया।
- भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्क से मुक्ति दिलाई।
जागीरदारी- इसके तहत किसानों, जमींदारों और उद्योगपतियों द्वारा तैयार समान का कुछ हिस्सा कर के रूप में सरकार को देना पड़ता था।
राष्ट्रवाद को निर्माण-
यूरोपीय समाज दो वर्गों में बँटा हुआ था-
- उच्च वर्ग – कुलीन वर्ग और 2. निम्न वर्ग – कृषक वर्ग
बीच में एक और वर्ग जुड़ गया। जिसे मध्यम वर्ग कहा गया।
16वीं शताब्दी से पहले यूरोपीय समाज दो वर्गों में विभाजित था।
वियना सम्मेलन
नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप की विजयी शक्तियाँ ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 1815 ई॰ में एकत्र हुई, जिसे वियना सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य फिर से पुरातन व्यवस्था को स्थापित करना था।
इस सम्मेलन का मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने किया।
मेटरनिख ने इटली, जर्मनी के अलावा फ्रांस में भी पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना की।
लेकिन यह व्यवस्था स्थायी साबित नहीं हुई और जल्द ही यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ जिससे सभी देश प्रभावित हुए।
फ्रांस में वियना व्यवस्था के तहत क्रांति के पूर्व की व्यवस्था स्थापित करने के लिए बूर्वों राजवंश को पुनर्स्थापित किया गया तथा लुई 18 वाँ फ्रांस का राजा बना।
इसका मुख्य उद्देश्य फिर से पुरातन व्यवस्था को स्थापित करना था।
इस सम्मेलन का मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने किया।
मेटरनिख ने इटली, जर्मनी के अलावा फ्रांस में भी पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना की।
लेकिन यह व्यवस्था स्थायी साबित नहीं हुई और जल्द ही यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ जिससे सभी देश प्रभावित हुए।
लुई 18 वाँ ने फ्रांस की बदली हुई परिस्थितियों को समझा और फ्रांसीसी जनता पर पुरातनपंथी व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास नहीं किया।
उसने प्रतिक्रियावादी और सुधारवादी शक्तियां के बीच सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से 2 जून 1814 को संवैधानिक घोषणापत्र जारी किए जो 1848 ई० तक फ्रांस में चलते रहे।
चार्ल्स-X के शासनकाल में कुछ परिवर्तन किए गए परन्तु इसका परिणाम 1830 की क्रांति के रूप में सामने आया।
जुलाई 1830 की क्रांतिः चार्ल्स-ग् एक निरंकुश और प्रतिक्रियावादी शासक था। उसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता की भावना को दबाने का कार्य किया। उसके द्वारा पोलिग्नेक को प्रधानमंत्री बनाया गया। पोलिग्नेक ने समान नागरिक संहिता के स्थान के पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना तथा उसे विशेषाधिकारों से विभूषित करने का प्रयास किया। प्रतिनिधि सदन और दूसरे उदारवादियों ने पोलिग्नेक के विरूद्ध गहरा असंतोष प्रकट किया। चार्ल्स-X ने इस विरोध के प्रतिक्रिया स्वरूप 25 जुलाई 1830 ई॰ को चार अध्यादेशों के द्वारा उदार तत्वों का गला घोंटने का प्रयास किया। इन अध्यादेशों के विरोध में पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई और फ्रांस में 28 जून 1830 ई॰ को गृहयुद्ध आरम्भ हो गया। इसे ही जुलाई 1830 की क्रांति कहते हैं।
परिणाम- चार्ल्स-X राजगद्दी छोड़कर इंग्लैंड पलायन कर गया और इस प्रकार फ्रांस में बूर्वो वंश के शासन का अंत हो गया।
1830 की क्रांति का प्रभाव
इस क्रांति ने फ्रांस के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया तथा वियना काँग्रेस के उद्देश्यों को निर्मूल सिद्ध किया।
इसका प्रभाव सम्पूर्ण यूरोप पर पड़ा और राष्ट्रीयता तथा देशभक्ति की भावना का प्रस्फुटन जिस प्रकार हुआ उसने सभी यूरोपीय राष्ट्रों के राजनैतिक एकीकरण, संवैधानिक सूधारों तथा राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
इस क्रांति से इटली, जर्मनी, यूनान, पोलैंड एवं हंगरी में तत्कालीन व्यवस्था के प्रति राष्ट्रीयता के प्रभाव के कारण आन्दोलन उठ खड़े हुए।
आगे चलकर फ्रांस में लुई फिलिप के खिलाफ आवाज उठने लगी जिससे फ्रांस में 1848 की क्रांति हुई।
1848 की क्रांति
लुई फिलिप एक उदारवादी शासक था, उसने गीजो को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जो कट्टर प्रतिक्रियावादी था।
प्रधानमंत्री गीजो किसी भी तरह के वैधानिक, सामाजिक और आर्थिक सुधारों के विरुद्ध था।
लुई फिलिप ने पुँजीपति वर्ग के लोगों को साथ रखना पसंद किया, जो अल्पमत में थे।
उसके पास किसी भी तरह के सुधारात्मक कार्यक्रम नहीं था और नहीं उसे विदेश निति में कोई सफलता मिल रही थी।
उसके शासन काल में देश में भुखमरी एवं बेरोजगारी व्याप्त होने लगी, जिससे गीजो की आलोचना होने लगी।
सुधारवादियों ने 22 फरवरी 1848 ई० को पेरिस में थियर्स के नेतृत्व में एक विशाल भोज का आयोजन किया।
जगह-जगह अवरोध लगाए गए और लुई फिलिप को गद्दी छोड़ने पर मजबुर किया गया।
24 फरवरी को लुई फिलिप ने गद्दी त्याग किया और इंगलैंड चला गया।
उसके बाद नेशनल एसेम्बली ने गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष से ऊपर के सभी व्यस्कों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी।
1848 की क्रांति का प्रभाव
इस क्रांति ने न सिर्फ पुरातन व्यवस्था का अंत किया बल्कि इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हालैंड, स्वीट्जरलैंड, डेनमार्क, स्पेन, पोलैंड, आयरलैंड तथा इंगलैंड प्रभावित हुए।
इस प्रकार, फ्रांस की क्रांति सम्पन्न हुई।