सप्तमः पाठः
भीम-प्रतिज्ञा (भीष्म की प्रतिज्ञा)
- भीष्म-प्रतिज्ञा’ के आधार पर ‘थीवर’ के चरित्र का वर्णन करें। (2011A)
उत्तर- भीष्म प्रतिज्ञा पाठ का धीवर मल्लाहों का राजा और सत्यवती का पिता है। इसमें एक उत्तरदायी पिता के सारे गुण विद्यमान हैं। कोई भी उत्तरदायी पिता अपनी संतान के भविष्य को सुरक्षित और उसके जीवन को सुखी बनाना अपना कर्त्तव्य समझता है। इसका निर्वाह धीवर ने कुशलतापूर्वक किया है। वह राजा शान्तनु के सत्यवती से विवाह करने के आग्रह को तब तक नहीं स्वीकारता है जब तक कि उनके ज्येष्ठ पुत्र देवव्रत पिता का उत्तराधिकारी नहीं बनने और आजीवन ब्रह्मचर्य रहने की भीष्म प्रतिज्ञा नहीं करते हैं। धीवर चतुर, धैर्यवान, निर्भीक और महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है।
- ‘भीष्मप्रतिज्ञा’ पाठ से क्या शिक्षा मिलती है? (2011C)
उत्तर- ‘भीष्मप्रतिज्ञा’ पाठ में भीष्म (देवव्रत) की पितृभक्ति दर्शायी गयी है। उनके त्याग की चर्चा की गयी है। पिता के मन को सुखी रखने के लिए आजीवन राज-सिंहासन का त्याग एवं आजीवन ब्रह्मचर्य-धर्म-निर्वहन का व्रत लेना बहुत कठिन कार्य है। लेकिन पिता सुखी रहें इसके लिए देवव्रत को यह कार्य सरल लगा। अतः प्रेरणा मिलती है कि माता-पिता सर्वोपरि हैं, साथ ही त्याग के लिए संकल्प-शक्ति आवश्यक है।
- कुमार ! भवतः परिचयम् आगमनकारणं च जातुमिच्छामि। (2015A)
(i) यह कथन किस पाठ से उद्धत है?
(ii) यह कथन किसका है?
(ii) यह किसके लिए कहा गया है?
उत्तर (i) वह पाठ भीष्म-प्रतिज्ञा पाठ से उद्धृत है।
(ii) यह कथन मल्लाह (धीवर) है।
(iii) यह देवव्रत के लिए कहा गया है।
- ‘भीष्य-प्रतिज्ञा’ के आधार पर भीष्म की प्रतिज्ञा का वर्णन करें।
अथवा, देवव्रत की प्रतिज्ञा क्या थी? (2011A,2012A, 2014A)
उत्तर- ‘भीष्म-प्रतिज्ञा’ में देवव्रत की पितृभक्ति, त्याग एवं दृढ़ संकल्प शक्ति परिलक्षित है। उनकी पितृक्ति अनुपम है। पिता के सुख के लिए वे राजसुख एवं दाम्पत्य जीवन का त्याग-परित्याग करने में तनिक भी नहीं हिचकते हैं। पितृ-सुख हेतु उनकी कठोरतम प्रतिज्ञा से भूलोक के साथ-साथ देवलोक में भी उनकी जय जयकार होती है। शान्तनु सत्यवती से विवाह हो इसके लिए उन्होंने आजीवन अखण्ड ब्रह्मचर्य क पालन करने एवं जीवनभर राजसत्ता से दूर रहकर हस्तिनापुर का सेवा-संरक्षण करने को कठोर प्रतिज्ञा करके अपने त्याग और पित-भक्ति का परिचय दिया।