सोन नदी-घाटी परियोजना

सोन नदी-घाटी परियोजना : सोन नदी-घाटी परियोजना बिहार की सबसे प्राचीन परियोजना के साथ-साथ यहाँ की पहली परियोजना है। ब्रिटिश सरकार ने सिंचित भूमि में वृद्धि कर अधिकाधिक फसल उत्पादन की दृष्टि से इस परियोजना का विकास 1874 ई० में किया था ।

सुविकसित रूप से यह नहर तीन लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती हैं। 1968 ई० में इस योजना के डेहरी से 10 किमी० की दूरी पर स्थित इंद्रपुरी नामक स्थान पर बांध लगाकर बहुउद्देशीय परियोजना का रूप देने का प्रयास किया गया। इससे पुराने नहरों, जल का बैराज से पुनर्पूर्ति, नहरी विस्तारीकरण एवं सुदृढ़ीकरण हुआ है। यही वजह है कि सोन का यह सूखाग्रस्त प्रदेश आज बिहार का ‘चावल का कटोरा’ (त्पबम ठवूस वि ठपींत) के नाम से विभूषित हो रहा है।

इस परियोजना के अंर्तगत जल-विद्युत उत्पादन के लिए शक्ति-गृह भी स्थापित हुए हैं। पश्चिमी नहर पर डेहरी के समीप शक्ति-गृह की स्थापना की गई है। जिससे 6.6 मेगावाट ऊर्जा प्राप्त होती है। इस ऊर्जा का उपयोग डालमियानगर का एक बड़े औद्योगिक-प्रतिष्ठान के रूप में उभर रहा है।

बिहार विभाजन के पूर्व ‘इंद्रपुरी जलाशय योजना’, ‘कदवन जलाशय योजना’ के नाम से जानी जाती थी।

इसके अतिरिक्त भी बिहार के अंर्तगत कई नदी घाटी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं; जिसके विकास की आवश्यकता है। जिनमें दुर्गावती जलाशय परियोजना, ऊपरी किऊल जलाशय परियोजना, बागमती परियोजना तथा बरनार जलाशय परियोजना इत्यादि शामिल है ।

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