हास्यकणिकाः Subjective Questions

चतुर्थः पाठः

हास्यकणिकाः (हँसाने वाले कथन)

  1. मानव-जीवन में हास्य की क्या आवश्यकता है?

उत्तर- मानवीय जीवन में हास्य अत्यावश्यक है। हँसने से दुःख और चिन्ता दूर होता है। मन प्रफुल्लित रहता है। हँसना स्वास्थ्यप्रद् है। हँसने से मन विकाररहित होता है।

  1. ‘हास्य’ की क्या परिभाषा है?

उत्तर- ‘हास्य’ कलात्मक वार्तालाप है। जिस वार्तालाप से लोग प्रसन्न होते हैं एवं हँसते हैं, उसे हास्य कहा जाता है। यह संवाद की ऐसी विधा है जो हर किसी के चित्त को प्रसन्न करता है।

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