8. Amritam Balbhashitam class 9th sanskrit | कक्षा 9 अमृतं बालभाषितम्

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 संस्‍कृत भाग दो के पाठ आठ ‘अमृतं बालभाषितम् (Amritam Balbhashitam class 9th sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Amritam Balbhashitam class 9th sanskrit

18. अमृतं बालभाषितम्

प्रस्तुत पाठ- ‘अमृतं बालभाषितम्’ में लोगों की दूषित मानसिकता पर प्रकाश डाला गया है। आज भारतीय अपनी आदर्श-संस्कृति की उपेक्षा करके पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति को अपनाना गौरव की बात समझने लगे हैं, जबकि लेखक ने एक अबोध बालिका के माध्यम से सिद्ध करने का प्रयास किया है कि भारतीय संस्कृति अपने आप में महान है। इसकी किसी अन्य संस्कृति से तुलना करना ‘सूरज को दीपक’ दिखाने के समान है।

पापा ! कोऽर्थः पापाशब्दस्य ?” काचित्पञ्चवर्षीया कन्या स्वपितरमपृच्छत् – “यो हि पापं करोति स पापा इत्येव मया गृहीतम्।” “मा मैवं वद गुड्डि !” तस्याः पितोवाच – “पापा तु आंग्लभाषायाः पितृसम्बोधनशब्द एवं ज्ञातव्यस्त्वया ।“परन्तु भारतीया वयं, तदत्र तत्सम्बोधनपदस्य न कश्चिदभावो वर्तते ।” “गुड्डि ! सभ्यानां लोकानामेवं सम्बोधनं समीचीनम् ।” “नाहं गुड्डीति तात ! न मे मातापि मम्मीति । ममी तु संग्रहालये मयाऽवलोकिता । ममाम्बा कथं ममीति कथ्यते ?”

अर्थ- पिताजी! पापा शब्द का क्या अर्थ है ? कोई पाँच वर्ष की (अबोध) बालिका ने अपने पिता से पूछा- “जो पाप करता है, वह पापा कहलाता है, ऐसा मेरे द्वरा जाना गया है। ऐसा मत बोलो-गुड्डी। उसके पिता ने कहा-पापा तो आंग्ल भाषा का शब्द है (जो) पिता के अर्थ में संबोधन किया जाता है, ऐसा तुम्हें समझना चाहिए। लेकिन हम तो भारतीय हैं, इसलिए यहाँ उस शब्द का कोई भाव नहीं है। अरी गुडि! सभ्य लोगों का ऐसा कहना उचित है। हे पिताजी! न तो मैं गुड्डी हूँ और न मेरी माताजी ममी हैं। ममी तो संग्रहालय में मेरे द्वारा देखा गया। मेरी माँ को ममी कैसे कहा जाता है ? Amritam Balbhashitam class 9th sanskrit 

“का वार्ताऽत्र चलिताऽस्ति ? अहमपि श्रोतुमभिलषामि ।” माता पृच्छति ।
“डार्लिंग! एषा आवयोः दुहिता ‘पापा पापं करोति, मम्मी च संग्रहालयस्य ममीति कथयति । न जाने केन कारणेन भ्रमितोऽस्याश्चित्तक्रमः । प्रतीयते यदस्य चत्वरस्य बालकानां कुप्रभावेण ग्रस्तेयम् ।”
“महोदय ! किन्न विचारयसि यत्क्वचिद् क्वचिदल्पवयस्केनापि कस्यचित् सत्यस्योद्घाटनं क्रियते । अमृतं बालभाषितमिति प्रसिद्धोक्तिरपि ज्ञातव्या । अतोऽद्यप्रभृति अहमम्बा, त्वञ्च पिता, इत्येवं सम्बोधनं भविष्यति । भारतीयां संस्कृति प्रति संकेतोऽस्याः सर्वभावेन ग्राह्यः ।

अर्थ- माता पूछती है.—“कैसी बातें हो रही हैं ? मैं भी सुनना चाहती हूँ।” प्रिये ! हमारी यह बेटी कहती है.—पापा पाप करता है और ममी संग्रहालय में होती है। पता नहीं, इसका विचार ऐसा कैसे हो गया है ? लगता है कि चारों लड़कों के कुप्रभाव से । यह ग्रस्त हो गई है।

श्रीमान् ! क्या आप नहीं जानते हैं कि कभी-कभी अबोध बच्चों द्वारा किसी सत्य का _ उद्घाटन किया गया है। बच्चों की वाणी को अमृत (अकाट्य) कहा गया है। इसलिए आज के बाद मैं माता और आप पिता के नाम से पुकारे जाएँगे। भारतीय संस्कृति के , प्रति इसका संकेत हर प्रकार से ग्रणीय है। Amritam Balbhashitam class 9th sanskrit 

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