BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 12 रहीम के दोहे

Class 6th Hindi Text Book Solutions

12. रहीम के दोहे (रहीम)

भावार्थ-रहीम कवि कहते हैं कि जो अच्छे आचरण (स्वभाव) का व्यक्ति है, उस पर बुरी संगति का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे-चन्दन के वृक्ष में साँप लिपटा रहता है किंतु चन्दन के वृक्ष पर साँप के विष कोई प्रभाव (असर) नहीं होता है।

कवि रहीम की सलाह है कि अपने मन की व्यथा या पीड़ा को अपने मन में ही दबाकर रखना चाहिए। दूसरे लोग उस पीड़ा को जानकर खुश ही होंगे, अर्थात् मजाक उड़ाएँगे, कोई उसमें सहयोग का हाथ नहीं बढ़ाएगा।

रहीम कवि का कहना है कि प्रेमरूपी बंधन को हँसी-खेल में नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि यह बंधन टूटने पर जुड़ना कठिन हो जाता है, लेकिन यदि तोड़ भी दिया जाय तो गांठ तो पड़ ही जाती है।

रहीम कवि कहते हैं कि वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाता है, नदी अथवा तालाब अपना जल स्वयं नहीं पीते हैं। इसी प्रकार सज्जन (उपकारी) लोग भी अपनी संपत्ति दूसरे के उपकार (कल्याण) के लिए एकत्र (जमा) करते हैं।

रहीम कवि की सलाल है कि बड़ी वस्तु पाने के फेर में छोटी वस्तु कोे त्यागना नहीं चाहिए। जैसे किसी सुई का काम तलवार से नहीं किया जा सकता।

रहीम कवि कहते हैं कि जो किसी से कुछ माँगने जाता है, वह मर जाता है अर्थात् उसका सम्मान घट जाता है, लेकिन उनसे पहले वे लोग मर हुए माने जाते हैं जिनके मुँह से नकारात्मक शब्द निकलते हैं।

कवि रहीम का कहना है कि उपकारी व्यक्ति के साथ रहने से वही सुख मिलता है जो सुख मेंहदी बाँटने वालीे को मिलता है। जैसे मेंहदी बाँटने वालों का हाथ स्वतः रंग जाता हैै, उसी उपकारी के साथ रहने पर स्वतः अच्छे गुण प्राप्त हो जाते हैं।

रहीम कवि कहते हैं कि कोई काम धीरे-धीरे ही होता है, इसके लिये धैर्य खोना या व्याकुल होना व्यर्थ है। जैसे-पेड़ में फल-फूल समय आने पर ही लगते हैं, चाहे कितनी बार पानी डालो परन्तु समय से पहले फल या फूल नहीं लगता है।

 आशय/व्याख्याएँ

1. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहि, लपटे रहत भुजंग।।

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत दोहा कवि रहीम द्वारा लिखित ‘रहीम के दोहे‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि उत्तम आचरण (स्वभाव) वालो के विशेषता कि बारे में अपना विचार प्रकट किया है।

कवि का मानना है कि अच्छे विचार (आचरण) वालों पर बुरी संगति का प्रभाव उसी प्रकार नहीं पड़ता है। तात्पर्य कि जो विचारनिष्ठ अथवा दृढ़ आचरण के होते हैं। उनपर किसी भी संगति का असर नहीं होता। क्योंकि वे तो स्वयं अपने रंग में रंगे होते हैं। इसलिए दूसरे के रंग बेअसर साबित होते हैं।

2. रहीमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।

आशय- कवि रहीम ने इस दोहे के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि प्रेम रूपी बंधंन कायम रखने का प्रयत्न करना चाहिए। इस बंधंन को तोड़ने पर पुनः जोड़ना कठिन होता है, क्यों कि मन मैला होने पर एक-दुसरे पर से विश्वास खत्म हो जाता है। किंतु प्रेम का निर्वाह करनेे पर एक-दुसरे का विश्वास दृढ़ होता है। फलतः दोनों की मित्रता प्रगाढ़ हो जाती है। इसलिए मित्रता का निर्वाह करने में भलाई है।

3. रहीम देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।

व्याख्या- प्रस्तुत दोहा कवि रहीम द्वारा लिखित तथा ‘रहीम के दोहे‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है।इसमें कवि ने वस्तु के महत्व पर प्रकाश डाला है।

कवि कहना है कि हर वस्तु तथा व्यक्ति का अपना खास महत्व होता है। इसलिए बड़ी वस्तु अथवा बड़े व्यक्ति को देखकर छोटी वस्तु अथवा छोटे व्यक्ति का निरादर नहीं करनी चाहिए। इसीलिए कवि ने सुई एवं तलवार के अन्तर को बताया है। जैसे-सूई का काम तलवार नहीं करती, उसी प्रकार छोटे व्यक्ति का काम बड़ा आदमी नहीं कर सकता। तात्पर्य कि प्रत्येक वस्तु का महत्व समझ कर उसका उपयोग करना चाहिए। बड़ी वस्तु के फेर में छोटी वस्तु का त्याग करना बुद्धिमानी नहीं है।

4. कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।

समय पाई तरूबर फलै, केतक सींचो नीर।।

आशय- प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि रहीम ने समय के महत्व के बारे में लोगों को बताया है। कवि का कहना कि सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ने के बाद ही सफलता मिलती है। किसी को महान् पद प्राप्त करने के लिए समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। पद या प्रतिष्ठा एकाएक प्राप्त नहीं होती। माली के लाख प्रयास के बावजूद वृक्षों पर फल-फूल तभी लगता है जब फल-फूल लगने का समय आता है। इसलिए व्यक्ति को प्रयास जारी रखना चाहिए, समय आने पर फल की प्राप्ति हो ही जाएगी।

पाठ से:

प्रश्न 1. अपने मन की पीड़ा मन में ही क्यों छिपाकर रखनी चाहिए ?

उत्तर- अपने मन की पीड़ा मन में ही छिपाकर रखनी चाहिए क्योंकि उसे प्रकट देने पर लोग सहयोग करने के बदले मजाक उड़ना शुरू कर दंगे।

प्रश्न 2. प्रेम को धागे के समान क्यों कहा गया है?

उत्तर-प्रेम को धागे के समान इसलिए कहा गया है, क्योंकि धागा जबतक एक रहता है तबतक एकता का प्रतीक बना रहा है। टूटने पर यदि जोड़ भी दिया जाय तो गाँठ तो बना ही रहता है।अर्थात् एक दूसर के प्रति विश्वास की कमी बनी ही रहती है।

प्रश्न 3. किसी से कुछ माँगने का कर्म को कैसा बताया गया है और क्यों

उत्तर- किसी से कुछ माँगने के कर्म को अति निकृष्ट बताया गया है। क्योंकि किसी से कुछ माँगने पर व्यक्ति का सम्मान घटता है जिस कारण अपमान महसूस होता है।

प्रश्न 4. सज्जनों की संपत्ति किस कार्य के लिए होती है ?

उत्तर- सज्जनों की संपत्ति दूसरों के कल्याण के लिए होती है। जिस प्रकार वृक्ष दूसरों के लिए फलते हैं उसी प्रकार सज्जन दुःखी जनों के सहयोग के लिए धन का संचय करते हैं। उनकी अपनी कोई आवश्यकता नहीं होती, दूसरों की आवश्यकता को ही अपनी आवश्यकता मानते हैं।

प्रश्न 5. रहीम की कुछ सूक्तियाँ नीचे दी गई हैं। पाठ के आधार पर उन उदाहरणों को लिखिए जो उन सूक्तियों के प्रमाण-स्वरूप दिए गए हैं:

(क) अच्छे लोगों पर बुरे लोगों की संगति का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

उत्तर- जो रहीम उत्तम प्रकति, का करि सकत कुसंग।

चन्दन विष व्यापत नहि, लिपटे रहत भुजंग।

(ख) भले लोग (सज्जन लोग) परोपकार के कार्य पर खर्च करते हैं।

उत्तर- तरूवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पानि।

कही रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचहिं सुजान।।

(ग) हमें बड़े-छोटे सभी का सम्मान करना चाहिए।

उत्तर- रहीम दखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि ।

(घ) दूसरों का भला करनेवालों का अपने आप भला हो जाता है।

उत्तर- यो रहीम सुख होत हैं, उपकारी के संग।

बाँटनवारे को लगे, ज्यों मेंहदी का रंग।।

(ङ) महें किसी कार्य के लिए अत्यधिक नहीं होना चाहिए।

उत्तर- करज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर।

समय पाई तरूवर फले, केतक सींचो नीर।।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. ऐसे किन्हीं दो अवसरों की चर्चा कीजिए जब आप दूसरों के लिए काम कर रहे थे और आपको उसका लाभ मिला हो।

संकेत: किन्हीं दो अवसरों की चर्चा छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2. परोपकार से आप क्या समझते हैं ? ऐसे कार्यों की सूची बनाइए जिन्हें आप परोपकार का कार्य समझते हैं ?

उत्तर-निः स्वार्थ भाव से दूसरों के लिए किया गया परोपकार कहलाता है। अर्थात् जब कोई किसी बिना बदले की अपेक्षा से सहयोग करता है, तो वह परोपकार है। जैसे-पेड़, पौधे, नदी, हवा, आदि दूसरों के कल्याण के लिए फलते तथा बहते हैं। जैसे-रोगी का सेवा, पढ़ाई में मदद, अनाथों की देख-रेख, भूखे को भोजन, प्यासे को पानी पिलाना, असहायों की मदद करना आदि।

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