BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 19 बसन्ती हवा

Class 6th Hindi Text Book Solutions

19. बसन्ती हवा (केदारनाथ अग्रपरल)

भावार्थ- बसन्त ऋतु की हवा बड़ी निराली और मस्तानी होती है। वह निश्चिन्त होकर बड़ी मस्ती बहती है। वह किसी उद्देश्य, इच्छा या आशा से नहीं बहती। उसे किसी से न दोस्ती है और न ही किसी से दुश्मनी। वसन्ती हवा जब चलती है तो राह में पड़ने वाले शहर, गाँव, टोला, नदी, हरे-भरे खेत आदि सभी मस्ती मंे झुमने लगते हैं।

वसन्त की मतवाली हवा कभी महुए के पेड़ को हिलाती है, तो कभी आम के पेड़ को झकझोरती है। वसन्त ऋतु में कोयल की मधुर कूक भी सुनाई पड़ती है। वसन्ती हवा खेतों में लगे गेहूँ, तीसी, अरहर आदि के पौधों को हिलाती-डुलाती है। अरहर की पकी छीमियों के दाने झरने लगते हैं। वसन्ती हवा अपने स्पर्श से सभी वस्तुओं को झूमती-हिलती देख खुशी से खिलखिला पड़ती है। उसे हँसते देखकर सभी दिशाएँ, लहलहाते खेत, चमचमाती धूप, यहाँ तक कि सम्पूर्ण सृष्टि (संसार) हँसने लगती है। ऐसी होती है बसन्त की हवा।

                                आशय 

1.जहाँ से चली मैं, जहाँ को गई मैं

शहर, गाँव, बस्‍ती, नदी, रेत, निर्जन,

हरे खेत, पोखरा,

झुलती चली मैं, झमती चली मैं

हवा हूँ, हवा मैं, वसंती हवा हूँ।

आशय- केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘बसन्ती हवा‘ शीर्षक कविता में बतलाया गया है कि बसन्त ऋतु की हवा में बड़ी मादकता और मस्ती होती है। जब यह चलती है तो इसके स्पर्श से इसकी राह में पड़ने वाले शहर, गाँव, मुहल्ले-टाले, नदी, बालू भरे मैदान, निर्जन स्थान, हरे-भरे खेत, तलाब सभी मस्ती में झुमने लगते हैं। सब में एक विशेष मादकता छा जाती है।

2. हँसी जोर से मैं, हँसी सब दिशाएँ,

हँसे लहलहाते, हरे खेत सारे,

हँसी चमचमाती भरी धूप प्‍यारी,

वसंती हवा में, हँसी सृष्‍टि सारी

हवा हूँ, हवा मैं, वसंती हवा हूँ

आशय – प्रस्तुत अवतरण केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘बसन्ती हवा‘ शीर्षक कविता से अवतरित है। इन पंक्तियों में कवि ने बताया है कि बसन्त आनन्द और मस्ती का प्रतीक होता है। वसन्त ऋतु के आगमन से दसों दिशाएँ प्रसन्न हो जाती हैं। पेड़-पौधे, नदी-नाले , खेत-खलिहान, पशु-पक्षी यहाँ तक कि सारी दुनिया आनन्द से पुलक उठती है। बसन्त की हवा के स्पर्श से संसार की सारी वस्तुओं को आनन्द प्राप्त होता है।

                            अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. बसंन्ती हवा ने अपने आपको दुसरे मुसाफिरों से अलग क्यों बताया ?

उत्तर- बसन्ती हवा ने अपने-आपको दुसरे मुसाफिरों से अलग इसलिए बताया क्योंकि वसंती हवा का अपना कोई मंजिल या लक्ष्य नहीं है। वह जिधर चाहती है, उधर घूम जाती है। न कोई इसका घर है और न ही कोई उद्देश्य, जबकि किसी मुसाफिर का निश्चित लक्ष्य होता है। वह किसी निश्चित उद्देश्य से कहीं जाता है। उसका मार्ग भी निश्चित होता है। किन्तु वसंती हवा का कोई मार्ग नहीं है, कोई अन्तिम पड़ाव नहीं हैं। यह मस्तमौला के समान चलती रहती है।

प्रश्न 2. इस पाठ में कवि ने खेत-खलिहानों के हँसने की बात कही है। ऐसा उसने क्यों कहा?

उत्तर- इस पाठ में कवि ने खेत-खलिहानों के हँसने की बात इसलिए कही है, क्योंकि इस समय लहलहाते पौधे से खेत हरे-भरे रहते हैं। सरसों में पीले-पीले फूल निकल आते हैं, अलसी के नीले फूल खिल जाते हैं वसंती हवा के चलने पर लहलहाते खेत और चमचमाती धूप हँसने लगती है। लगता है, वसंती हवा का स्पर्श पाकर सभी दिशाएँ हँस रही हों। अर्थात् पौधो के हिलने-डुलने से एक अद्भुत दृश्य उपस्थित हो जाता है। इसीलिए कवि ने ऐसी बात कही है।

प्रश्न 3. ‘बसंती हवाका कौन-सा अंश आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करता है?

उत्तर-‘‘जहाँ से चली मैं ……….. बसंती हवा हूँ।‘‘ मुझे अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि इसमें बसंती हवा की मादकता एवं मस्ती का वर्णन है। यह चलती है तो इसके स्पर्श से राह में पड़ने वाले शहर, गाँव, मुहल्ले, टोले, नदी, रेतीले, मैदान, निर्जन, स्थान, हरे-भरे खेत, तालाब सभी मस्ती में झुमने लगते हैं। सारा वातावरण मधुमय हो जाता है। लगता है, वसंती हवा के स्पर्श से सारी सृष्टि में नवचेतना का संचार हो गया हो। सबमें एक अजीब मादकता आ गई हो।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. वसंत का आगमन कब होता है? इस ऋतु में आप कैसा अनुभव करते हैं?

उत्तर- बसंत का आगमन शरद ऋतु के अंत में अर्थात् जनवरी के मध्य में होता है। हिन्दी महीना की गणना के अनुसार इस ऋतु का आगमन बसंत पंचमी के दिन से माना जाता है। इस ऋतु के आते ही प्रकृति में एक नया सौंदर्य छा जाता है। पेड़-पौधे फूल-पत्ते से लद जाते हैं। वातावरण मह-मह हो जाता है। इस समय न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही जड़ा होता है। समशीतोष्ण वातावरण के कारण यह अच्छा लगता है।

(वास्व में बसंत का आरम्भ चैत्र से होता है जो बैशाख की पूर्णिमा तक रहता है।)

प्रश्न 2. इस पाठ को पढ़ने के बाद हवा के प्रति आपके मन में किस प्रकार के भाव उठते हैं ? लिखिए।

उत्तर- इस पाठ को पढ़ने के बाद हवा के प्रति मेरे मन में यही भाव बनता है कि वसंती हवा अनोखी, मस्तमौली, बेफ्रिक, निडर तथा अजीब है। यह अपनी इच्छानुकूल अपना रूप बदल लेती है।

प्रश्न 3. सरस्वती पूजा को वसंत पंचमी के नाम से भी जानते हैं। सरस्वती पूजा पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर- बसंत पंचमी के दिन सांस्कृतिक पर्व के रूप में सरस्वती का पूजन किया जाता है। प्रातःकाल से ही विद्यालय को सजाया जाता है। सरस्वती विद्या एवं बुद्धि की देवी कहलाती है इसलिए हर शिक्षित एवं सुसंस्कृत लोग विद्या की देवी की आराधना श्रद्धा एवं विश्वास से करते हैं। क्योंकि इसी देवी की कृपा से बाल्मीकि, व्यास, कालिदास, सूरदास, तुलसीदास आदि वरेण्य हुए हैं। दूसरी बात परमेश्वर की महती शक्तियाँ हैं-काली, लक्ष्मी तथा सरस्वती। शक्ति के लिए काली की, धन के लिए लक्ष्मी की तथा ज्ञान (विधा) के लिए सरस्वती की पूजा की परम्परा हैं। इसे लोग माघ महीने के शुक्ल पक्ष पंचमी को पूर्ण उल्लास से मनाते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि ज्ञान-शक्ति सारी शक्तियों से श्रेष्ठ होती है। जिन पर इनकी कृपा हो जाती है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। उसे युग-युग तक लोग याद करते हैं। विद्या को न कोई बाँट सकता है, न छीन सकता है। अपंग भी सरस्वती की आराधना की डॉ॰ चन्द्रा के समान महान् पद पर आसीन हो सकता है। लेकिन इसे पाने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। विद्या अमूल्य धन होती है। यह पैसे से नहीं, कठिन परिश्रम से प्राप्त होती है।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 18 शेरशाह का मकबरा

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18. शेरशाह का मकबरा (पा॰ पु॰ वि॰ स॰ )

पाठ का सारांस- प्रस्तुत पाठ ‘शेरशाह का मकबरा‘ एक यात्रा-वृत्तांत है। इसमें एक स्कूल के छात्रों एवं शिक्षकों की सैर का वर्णन है। यह मकबरा बिहार के सासाराम शहर के समीप स्थित है। लाल पत्थर से निर्मित यह मकबरा अपनी स्थापत्य कला एवं सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। इस मकबरा को देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। शेरशाह अपने अल्प शासनकाल में जितने कल्याणकारी कार्य किए इसके लिए जनता युगपर्यंत उनको याद करती रहेगी। शेरशाह की गणना महान विजेताओं मंे की जाती हैं। क्योंकि हुमायूँ जैसे मुगलशासक को पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर कब्जा जमाया था। कहानी का आरंभ बस आते ही शुरू हो जाते हैं।

प्रधानाध्यापक सारे छात्रों तथा शिक्षक-शिक्षकाओं से सासाराम की यात्रा पर निकल पड़ने का आदेश देते हैं। बच्चे पंक्ति में खड़ा होकर बस पर सवार होते हैं। उनके साथ प्रधानाध्यापक के अतिरिक्त आशा मैडम, महिमा, मैडल तथा इतिहास शिक्षक पूर्णनाथ सर बस पर सवार होते हैं।

अक्टूबर का कहीना था। दिन के दस बजे थे। मौसम अति खुशनुमा था। बस मुख्य मार्ग पर आकर तेजी से आगे बढ़ने लगी। उत्सुकतावश बच्चे उस स्थान के विषय में जानकारी लेने के लिए इतिहास शिक्षक से तरह-तरह के प्रश्न पूछना प्रारंभ करते हैं तथा शिक्षक उसका समीचीन उत्तर देकर जिज्ञासा की पूर्ति करते हैं। सर्वप्रथम सूरज ने इतिहास शिक्षक पूर्णनाथ सर से शेरशाह के बारे में पूछा। शिक्षक ने कहा-‘‘शेरशाह भारत के महान् शासकांे में से एक हैं। इसका जन्म 1472 ई॰ में हुआ था। इसके पिता हसन खाँ एक बड़े जागीरदार थे। शेरशाह के बचपन का नाम फरीद खाँ था। बचपन में इसने एक शेर को मार दिया था, उस दिन से लोग इसे शेर खाँ कहने लगे। शेरशाह विद्वान, कुशल प्रशासक, बहादुर तथा लोकप्रिय व्यक्ति था। इसने हुमायूँ को पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा तथा सूरी वश की स्थापना की। इसने 1540 ई॰ के आसपास 68 वर्ष की उम्र में कन्नौज में हुमायूँ को पराजित किया था। इसकी सेना में अधिकांश बिहारी सिपाही थे।‘‘

शेरशाह पाँच वर्ष ही शासन कर सका, फिर भी जानता के कल्याण का कार्य जितना इसने किया, वह अपने-आप में एक मिसाल है। इसने सड़कें बनाई, पीने के पानी के लिए कुएँ खुदवाए, सड़कों के किनारे वृक्ष लगवाए, संचार-व्यवस्था को सुदृ़ढ़ किया, राजस्व एवं लगान की व्यवस्था में सुधार लाकर उसे किसानों के लिए उपयोगी एवं लाभकारी बनाया तथा कोलकात्तर से पेशवार तक जी॰ टी॰ रोड की मरम्मत करवाई, जिसे ग्रैण्ड टंªक के नाम से जाना जाता है। इसी बातचीत के क्रम में बस सासाराम पहुँच गई। शहर से गुजरती हुई बस एक तालाब के किनारे आकर रूक गई। इतिहास शिक्षक ने कहा-‘‘लो आ गया शेरशाह का मकबरा।‘‘

बच्चे मकबरे की सुन्दरता देख चकित हो गए। जमाली नाम के लड़के ने कहा-‘बाप रे बाप‘ ‘इतना बड़ा और इतना सुन्दर।‘ सभी बच्चे बस से उतरकर एक जगह जमा हो गए। इतिहास शिक्षक ने कहा-‘यह मकबरा तक जाने का मुख्य मार्ग है।‘ इसके दोनों ओर मस्जिद है। पानी के बीच भवन देखकर बच्चे आश्चर्यचकित हो रहे थे। एक विद्यार्थी ने पूछा-मकबरे का निर्माण किसने करवाया। शिक्षक ने कहा कि शेरशाह की मृत्यु के बाद उसका बेटा इस्लामशाह सुरी उसका उत्तराधिकारी बनने के बाद इस भवन का निर्माण करवाया। मकबरे की सुन्दरता बढा़ने के लिए उसे एक तलाब के बीच बने एक ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बनाया गया है। इस मकबरे को अद्वितीय स्थापत्य कला का नमूना के रूप में प्रस्तुत करने के लिए इस तालाब को खुदवाया गया था जो आज भी मौजूद है। तब शिक्षक ने बच्चों से पूछा-‘‘मकबरा किस चीज से बना है ? बच्चों ने कहा-‘पत्थर से‘। इसकी कितनी मंजिलें हैं ? बच्चो ने उत्तर दिया-‘तीन‘। शिक्षक ने बताया। यह मकबरा 45 मीटर ऊँचा है। इसका गुंबद बहुत बड़ा है। यह गुंबद ताजमहल के गुंबद से तेरह फीट बड़ा है तथा अफगान शैली का बेहतरीन नमूना है। इसमें शेरशाह सूरी के अतिरिक्त उनके चौबीस साथी दफन है। इस ऐतिहासिक इमारत पर लिखे गए नमों एवं वाक्यों पर शिक्षक ने कहा कि जो ऐतिहासिक धरोहर के महत्त्व को नहीं समझते हैं, वे लोग ही ऐसी गंदी हरकतें करते हैं। यह मकबरा अब देश की संरक्षित ऐतिहासिक धरोहरो की सूची में आ गया है। राज्य सरकार भी इसके रख-रखाव पर लाखों रूपये खर्च करती है। फिर शिक्षक ने बच्चों से पूछा-इसे साफ रखने का दायित्व किस पर है ? बच्चों ने एक स्वर में उत्तर दिया-‘‘हम सभी नागरिकों पर।‘‘ घुमते-घुमते दिन के ढाई बज गए। सबको भूख लगी थी। सबने एक साथ खाना खाया और वापसी के लिए बस पर सवार हो गए।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. शेरशाह ने जनहित के लिए कौन-कौन से कार्य किए ?

उत्तर- शेरशाह ने अपने अल्प-शासन काल में अनेक जनहित के कार्य किए। इसने अपने शासनकाल में सड़के बनवाई, सड़कों के किनारे यात्रियों के ठहरने के लिए सराय (धर्मशाला) बनवाई, जगह-जगह कुएँ खुदवए। सड़कों के किनारे वृक्ष लगवाए, डाक और संचार की व्यवस्था में सुधार किए। राजस्व एवं लगान में सुधार करने से किसानों को लाभ हुआ। किसानों को आसानी से ऋण दिया जाता था। कोलकत्ता से पेशावर (पकिस्तान) तक का रोड की मरम्मत करवाई। इसे ग्रैण्ड टंªक के नाम से जाना जाता है। शेरशाह अति न्यायप्रिय शासक था।

प्रश्न 2. शेरशाह के मकबरे की क्या विशेषता है ?

उत्तर- शेरशाह के मकबरे की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सुन्दरता है। इसका गुंबद 45 फीट ऊँचा है। ताजमहल का गुंबद इसके इसके गुंबद से 13 फीट छोटा है। तालाब के बीच एक चौकोर चबूतरे पर स्थित होने के कारण दूर से ही इसका सौंर्दय आकृष्ट करता है। अफगान स्थापत्य कला का यह बेहतरीन नमूना है।

प्रश्न 3. शेरशाह का बिहार से क्या संबंध है?

उत्तर- शेरशाह के पिता हसन खाँ बिहार के जगीरदार थे। शेरशाह का बचपन सासाराम में बीता था। सासाराम बिहार के अन्तर्गत है। हुमायूँ को पराजित करने वाले शेरशाह के सिपाही बिहार के ही वीर बाँकुड़े थे। बिहार ने ही इसे दिल्ली की गद्दी पर बैठाया था। इसीलिए इसके मरणोपरान्त बिहार में ही इसका मकबरा बनवाया गया।

प्रश्न 4. स्तम्भ तथा स्तम्भ से मिलान कीजिए। 

       स्तम्भ- क                                          स्तम्भ-ख

शेरशाह का जन्म                                     इसलाम शाह सूरी

शेरशाह के पिता                                         1545

कन्नौज में हूमायूँ से युद्ध                               1472

शेरशाह की मृत्यु                                      हसन खाँ सूरी

शेरशाह का पुत्र                                       1540

  उत्तर:  स्तम्भ- क                                       स्तम्भ-ख   

शेरशा का जन्म                                     1472

शेरशाह के पिता                                  हसन खाँ सूरी

कन्नौज में हूमायूँ से युद्ध                        1540

शेरशाह की मृत्यु                                  1545

शेरशाह का पुत्र                                   इसलाम शाह सूरी

प्रश्न 5. रिक्त स्थान को भरें।

(क) ग्रैंड टंªक रोड ……….. से………… तक जाती है।

(ख) हुमायुँ से युद्ध के समय शेरशाह की उम्र …………. थी।

(ग) शेरशाह का मकबरा …………… में है।

(घ) शेरशाह के बचपन का नाम ……………… था।

(ङ) यह मकबरा ………….. शैली का बेहतरीन नमूना है।

उत्तर- कोलकाता, पेशावर, (ख) 68 वर्ष, (ग) सासाराम, (घ) फरीद खाँ, (ङ) अफगान।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. अगर आपकों कहीं का राजा बना दिया जाए तो आप आम जानता के लिए क्या करना चाहेंगे?

उत्तर- यदि मुझे कहीं का राजा बना दिया जाए तो मैं आप जानता के स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली, सराय, पीने के पानी तथा सुरक्षा की व्यवस्था पहले करने का प्रयास करूँगा।

प्रश्न 2. केवल पाँच वर्षो के शासन काल में शेरशाह ने बहुत सारे कार्य किए। कैसे ? सोचकर करना चाहेंगे ?

उत्तर- केवल पाँच साल के शासन काल में शेरशाह ने बहुत सारे कार्य किए। इसका मुख्य कारण यह था कि उन्हें जनता की चिन्ता थी। वे चाहते थे कि हमारे देश की जनता खुशहाल एवं शक्ति सम्पन्न बने। इसीलिए उन्होंने सड़कें बनवाई, सड़क के किनारे वृक्ष लगवाए, यात्रियों के ठहरने के लिए सराय बनवाई। डाक तथा संचार व्यवस्था सुधार किए। राजस्व तथा लगान की व्यवस्था में सुधार किए। किसानों के विकास के लिए ऋण की व्यवस्था की।

प्रश्न 3. अधिक उम्र होने के बावजूद शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित किया। सोचिए वह ऐसा कैसे कर पाया?

उत्तर- अधिक उम्र होने के बावजूद शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित किया था। इसका मुख्य कारण था कि उनमें जीतने की हिम्मत और साहस था। साथ ही, उनकी सेना में ज्यादार सिपाही बिहारी थे, जिन्होंने पूर्ण निष्ठा एवं बहादुरी से युद्ध किया था। शेरशाह अनुभावी व्यक्ति के साथ-साथ विद्वान, बहादुर तथा बुद्धिमान व्यक्ति थे।

प्रश्न 4. ऐतिहासिक धरोंहरों को सुरक्षित रखने के लिए आप क्या सुझाव दना चाहेंगे ?

उत्तर- ऐतिहासिक धरोंहरों को सुरक्षित रखने के संबंध में मेरा सुझाव होगा कि ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित की जाय तथा सरकार उसकी देखभाल की समुचित व्यवस्था करें।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 17. फसलों के त्योहार

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17. फसलों के त्योहार (संकलित)

पाठ का सारांश – प्रस्तुत निबंध ‘फसलों के त्योहार‘ में कृषि से संबंधित त्योहारों का वर्णन किया गया है। भारत अनेकता में एकता का देश है। इस अनेकता में ही इसकी विशेषता है। यहाँ विभिन्न जाति एवं सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। ये अपने-अपने क्षेत्रानुसार पर्व-त्योहार मनाते हैं तथा वेष-भूषा धारण करते हैं, लेकिन राष्ट्रीयता की भावना सबसे एकसमान है।

ऐसे तो हमारे देश में हर महीने कोई-न-कोई त्योहार आता ही रहता है, किंतु जनवरी में जो त्योहार मनाया जाता है, उसे मकर संक्रांति या तिला संक्रांति कहते हैं। इस अवसर पर ओग तिल स्नान एवं तिलदान तथा तिल से बनी मिठाई खाते हैं। इस दिन खिचड़ी खाने की भी प्रथा है। ऐसे ही पर्व से संबंधित विषयों के बारे में लेखक ने बताया है कि सम्पूर्ण देश में यह पर्व भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। जनवरी जाड़े का महीना कहलाता है। इसी कारण लेखक ने इस समय के मौसम का वर्णन करते हुए कहा है कि सारा दिन बोरसी के आगे बैठकर आग तापते गुजर जाता है। पूरे दस दिन हो गए सूरज भगवान दिखाई नहीं दिए। सुबह रजाई से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बाहर देखने से तो समय का पता ही नहीं चल रहा था, लेकिल घर में चहल-पहल एवं चापाकल चलने की आवाज तथा किसी की हाँफने की आवाज सुनाई पड़ रही थी-‘‘जा भाग के देख, केरा के पत्ता आइल की ना ?‘‘

नहा- धोकर सभी एक कमरे में इकट्ठा हुए। दादा और चाचा चकाचक सफेद धोती एवं कुर्ता पहने हुए थे। ‘खिचड़ी में अइसन जाड़ हम पहिले कब्बो ना देखनी, देह कनकाना देता।‘‘ पापा को कुछ ज्यादे ठंड लग रही थी। दादी सफेद साड़ी पहने मचिया पर बैठी हुई थी। दादी के सामने केले के पत्ते पर तिल, गुड़, चावल आदि के छोटे-छोटे ढेर रखे थे। परिवार के सारे लोग बारी-बारी से पत्ते पर रखी चीजों को हाथ से छूने के बाद प्रणाम करते थे। इसके बाद इन सारी चीजों को इकट्ठा करके दान दे दिया गया।

इस दिन लोग चूड़ा-दही खाते हैं, लेकिन अप्पी दीदी को चूड़ा-दही पसंद नहीं है, फिर भी आज तो यही खाना है। घर में खिचड़ी बनने की बात सुनकर मुझे स्कूल के दिनों की याद आ गई। जब हम नाव पर बैठकर गंगा की सैर करने जाते थे और रेत में उस पार पतंग उड़ाने का आनंद लेते थे, जब गूरूजी एवं अन्य छात्र दोस्त वहाँ खिचड़ी बनाते थे। कोई मटर और प्याज छीलने का काम करता था तो कोई ईंट का चूल्हा बनाता था और फिर खिचड़ी बनती थी। वैसी खिचड़ी फिर दुबारा खाने को नहीं मिली।

जनवरी माह के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रांतों में यह पर्व भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में मकर संक्रांति या तिल संक्रांति कहते हैं तो असम में बीहू, केरल में ओण्म, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड में सरहुल, गुजरात में पतंग का पर्व के नाम से प्रसिद्ध है। झारखंड में यह पर्व ‘सरहुल‘ के नाम से चार दिनों तक मनाया जाता है। अलग-अलग जनजातियों के लोग इसे अलग-अलग समय में मनाते हैं। जैसे-संथाल लोग फरवरी मार्च में तो ओरांव इसे मार्च-अप्रैल में मनाते हैं। आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं। सरहुल के दिन विशेष रूप से ‘साल‘ के पेड़ की पूजा की जाती है। इस अवसर पर गाँव-घर की सफाई तथा घर की लिपाई-पुताई की जाती है। स्त्री-पुरूष नृत्य करते हैं। गीतों की ध्वनि से सारी घाटी गूँज उठती है। यह सिलसिला रात भर चलता है और अगले दिन लोग घर-घर जाकर चाँदा माँगते हैं। फिर सहभोज का दौरा चलता है। तीसरे दिन पूजा के बाद ‘सरई‘ के फूल कानों पर लगाकर आशीर्वाद लेते तथा देते हैं, धान की पूजा की जाती है तथा इसी धान को अगले वर्ष बोया जाता है।

तमिलनाडु में यह पर्व ‘पोंगल‘ रूप में मनाया जाता है। इस दिन खरीफ की फसलें चावल, मसूर आदि कटकर घरों में आती हैं। लोग नए धान को कूटकर चावल निकालते हैं तथा मिट्टी के नये मटके में चावल, दूध, गुड़ आदि डालकर उसे धूप में पकाते हैं और साबुत हल्दी को मटके के मुँह के चारों ओर बाँध देते हैं, क्योंकि हल्दी शुभ माना जाता है। जैसे ही धूप की गर्मी से दूध-चावल मटके में उबलने लगता है और मटके से बाहर गिरने लगता है तो लोग खुशी से पोंगल-पोंगल बोल उठते हैं। नैसर्गिक ताप से पकी इस मीठी खीर को लोग शुभ फल देने वाला मालते हैं।

इसी प्रकार गुजरात में मकर संक्रांति का पतंगबाजी का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक गुजराती विभिन्न रंग तथा आकार के पतंग उड़ाते हैं। सारा आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से ढंक जाता है। लगता है उस उत्सव के द्वारा ये बदलती प्रकृति का स्वागत कर रहे हो। उड़ती पतंगें इनके हृदय की उमंग तथा प्रसन्नता को व्यक्त करती हैं।

कुमाऊँ में मकर संक्रांति को घुघुतिया कहते हैं। इस दिन आटे तथा गुड़ को गूंध कर डमरू, तलवार, दाड़िम (अनार) के फूल आदि के आकार के पकवान बनाए जाते हैं। पकवान को तलने के बाद माला बनाई जाती है, जिसमें संतरे के फांके तथा गन्ने की गंडेरी पिरोई जाती है। यह काम बच्चे रूचि तथा उत्साह के साथ करते हैं। सवेरे यह माला बच्चों को दे दी जाती है। बच्चे इसे लेकर पहाड़ों पर चले जाते हैं और माला के पकवान तोड़-तोड़कर पक्षियों को खिलाते हैं और ‘‘कौआ आओ, घुघूत आओ। ले कौआ बड़ौ, म कै दे जा सोने का घड़ौ‘‘ आदि गाकर अपनी कामना प्रकट करते हैं।

इस प्रकार पूरे देश की मकर संक्रांति की झाँकी इस पाठ में चित्रित है। कड़ाके की ठंड केे बावजूद इस पर्व के अवसर पर लोग नदी, तालाब आदि में डुबकी लगाते हैं। तिल दान करते हैं, आग में तिल डालते हैं तथा तिल के विशेष पकवान का स्वाद लेते हैं यह क्रिया सभी स्थानों में किसी-न-किसी रूप में अवश्य सम्पन्न होती है।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. ‘‘अप्पी दिदिया बुरी फँसी।‘‘ कैसे ?

उत्तर- अप्पी दिदिया इसलिए बुरी फँसी क्योंकि उन्हें न तो चूड़ा-दही पसंद था और न ही खिचड़ी। आज फरमाइशी नाश्ता नहीं चलेगा। क्योंकि आज खिचड़ी का पर्व है। इसलिए उन्हें दोनांे ही चीजें चूड़ा-दही तथा खिचड़ी खानी ही होगी।

प्रश्न 2. संथाल लोग सरहुल कब और कैसे मनाते हैं?

उत्तर- संथाल लोग सरहुल फरवरी-मार्च में मनाते हैं। इस दिन विशेष रूप से ‘साल‘ के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि इसी समय साल के पेड़ों में फुल आने लगते हैं जिससे मौसम अति खुशनुमा हो जाता है। पुरूष एवं महिलाएँ दोनों ही ढोल-मँजीरे लेकर रात भर नाचते-गाते हैं दुसरे दिन घर-घर जाकर फूल के पौधे लगाते हैं तथा घर-घर से चंदा में मुर्गा, चावल, मिश्री आदि मांगते हैं और मिलकर खाना खाते हैं और खेलते हैं। तीसरे दिन पूजा होती है। पूजा के बाद लोग कानों में सरई का फूल पहनते हैं।

प्रश्न 3. आपके यहाँ फसलों के त्योहार को किस नाम से जाना जाता है और कैसे मनाया जाता है ?

उत्तर- बिहार में इस त्योहार को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग स्वेरे स्नान करते हैं। इसके बाद घर के बुजुर्ग तिल-गुड़ आदि बाँटते हैं। तिल दान होता है। चूड़ा-दही, तिलकुट आदि इस दिन का मुख्य भोजन है। कहीं-कहीं खिचड़ी की भी प्रथा है। लोग इस त्योहार द्वारा फसल तैयार हाने की खुशी प्रकट करते हैं। मिथिला में ब्राह्यणों को भोजन कराया जाता है तथा खिचड़ी, वस्त्र आदि दान दिया जाता है।

प्रश्न 4. मकर संक्रांति के दिन तिल को किस रूप में प्रयोग करते हैं ?

उत्तर- मकर संक्रंति के दिन स्नान करते हैं तथा तिल दान और तिल से बने मिठाईयाँ खाते हैं अर्थात् मकर संक्रंति के दिन हम स्नान, दान तथा खाने के रूप में करते हैं।

प्रश्न 5. स्तंभ में त्योहारों के नाम दिये गए हैं, जिन्हें स्तंभ में दिए गए राज्यों के नाम से मिलान कीजिए:

‘              ‘‘                    उत्तर: ‘                   ‘

बीहू              पंजाब                         बीहू                   असम

पोंगल             झारखण्ड                 पोंगल                 तामिलनाडु

ओणम             असम                      ओणम                 केरल

मकर-संक्रांति       केरल                मकर-संक्रंति            बिहार

लोहड़ी             गुजरात                    लोहड़ी                  पंजाब

सरहुल              बिहार                      सरहुल                  झारखण्ड

पतंग पर्व            तमिलनाडु               पतंग पर्व                गुजरात

प्रश्न 6. इन वक्यों के आगे सही (/ ) का चिन्ह या गलत ( x ) का चिन्ह लगाएँ।

(क) तिलकुट गया से आया था।

(ख) भारत में फसलों का त्योहार अप्रैल के मध्य मनाया जाता है।

(ग) सरहूल का जश्न चार दिनों तक चलता है।

(घ) पोंगल पर्व में ‘साल‘ के पेड़ की पूजा की जाती है।

उत्तर- (क), (ख), (ग) सहीं हैं। केवल (घ) गलत है। इस का सही रूप है सरहुल पर्व में ‘साल‘ के पेड़ की पूजा होती है।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. हिन्दी महिनों के नाम लिखिए तथा उस महीने में मनाये जाने वाले पर्वा का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: चैत्र               –     रामनवमी

वैशाख              –     वैशाखी, सतुआनी

ज्येष्ठ                 –      वटसावित्री पर्व

आषाढ़              –      गुरूपूर्णिमा

श्रावण               –     नागपंचमी, रक्षाबंधन

भाद्रपद            –     तीज, गणेश चतुर्थी

आश्विन            –      दुर्गापूजा

कार्तिक          –      दीपावली, छठ

मार्गशीर्ष (अगहन)    –    विवाह पंचमी

पूस              –       मकर संक्रांति

माघ             –     सरस्वती पूजा

फाल्गुन        –     होली।

प्रश्न 2. निम्न पंक्तियाँ भोजपुरी भाषा में लिखी गई हैं। इन पंक्तियों को आप अपनी मातृभाषा में लिखिए।

(क) ‘‘आज ई लोग के उठे के नइखे का ? बोल जल्दी तैयार होखस।‘‘

उत्तर-आज इनलोगों को जल्दी उठना नहीं है क्या ? बोलो कि जल्दी तैयार हो जायँ।

(ख) ‘‘जा भाग के देख , केरा के पत्ता आईल कि ना?‘‘

उत्तर- दौड़ कर जाकर देखो कि केला का पत्ता आया है या नहीं ?

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 16 स्वार्थी दानव

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16. स्वार्थी दानव (ऑस्कर वाइल्ड)

पाठ का सारांश-ऑस्कर वाइल्ड द्वारा लिखित कहानी ‘स्वार्थी दानव‘ में एक दानव के हृदय-परिवर्तन की कहानी वर्णित है।

स्कूल से वापस आने पर बच्चे एक बाग में खेला करते थे। वह बाग अति विशाल एवं विभिन्न प्रकार के फूलों तथा फलों के वृक्षों से भरा था। वसंत के समय फूलों तथा पक्षियों के मधूर संगीत के कारण बगीचा अति रमणीय हो जाता था। लेकिन यह बाग एक दानव का था। जब दानव कई वर्षों के बाद लौटा और बच्चों को खेलते देखा तो उसने बाग के चारों तरफ ऊँची दीवार खड़ी कर दी और एक सूचना पट्टा लटका दिया-‘अनधिकार प्रवेश दण्डनीय है।‘

अब बच्चों को खेलने का जगह नहीं थी। सड़क धूल एवं कंकड़ों से भरी थी। बच्चे दीवार के चारों ओर घूमते और सुन्दर बाग की चर्चा करते। बसंत आया सब ओर फूल खिल गए। चिड़ीयों के गीत सुनाई पड़ने लगे, किंतु दानव के बाग में बर्फ के सफेद चादर बिछी थी। दानव चिन्तित था कि मेरे बाग में वसंत क्यों नहीं आया ? इसी बिच लड़के दीवार के छेद से बाग में घुस गया। पेड़ो के डालियांे पर बैठ गये। बच्चों के आते ही बाग में फूल खिल गए। चिड़िया चहचहाने लगीं। चिड़ियों के गीत सुनकर दानव अपने बिछावन से उठा और बाग की ओर दौड़ पड़ा।

पेड़ बच्चों को पाकर अति प्रसन्न थे, क्योंकि हर पेड़ पर बच्चे बैठते थे। लेकिन बाग के एक कोने में अभी भी पड़ा था। वहाँ एक छोटा बच्चा खड़ा रो रहा था, क्योंकि वह इतना छोटा था कि पेड़ की टहनियों को छू नहीं पा रहा था। बच्चे को रोता देखकर दानव का दिल पसीज गया। उसे यह बात समझ में आ गई कि किस कारण वसंत उसके बाग में नहीं आया ?

दानव नीचा उतरा और दरवाजा खोलकर बाग के अन्दर गया। दानव को आते देखकर सभी बच्चे भाग खड़े हुए। लेकिन छोटा बच्चा वही खड़ा रहा। बच्चा अपनी दोनों बाँहें फैलाकर दानव के गले से लिपट गया और उसे चूम लिया। उसने उस बच्चे को पेड़ पर बैठा दिया। जब दूसरे बच्चों ने देखा तो वे भी वापस आ गए। दानव ने दीवल तोड़ दी। अब बच्चे दिन भर उसमें खेलने लगे। शाम को जाते समय दानव को गुडबाई कहते। लेकिन उस छोटे बच्चे को, जिसे उसने पेड़ पर बैठाया था न देखकर उदास हो गया।

दानव सभी बच्चे को प्यार करता था। उनके साथ खेलता था, लेकिन उस छोटे बच्चे के लिए बेचैन रहता था। जब दानव बूढ़ा तथा कमजोर हो गया तो वह आराम कुर्सी पर बैठकर खेलते बच्चों को देखा करता और अपने बाग की प्रशंसा करता एक दिन जाड़े के शाम को बाग के सबसे अन्तिम कोने में एक पेड़ सुन्दर कलियों से लदा दिखाई पड़ा। उसके नीचे वही छोटा बच्चा खड़ा था जिसे वह बहुत प्यार करता था। आनन्द से विव्हल दौड़ता हुआ उस बालक के पास गया। लेकिन बालक ही हथेलियों तथा पैरों पर दो-दो काँटी के निशान देखकर चिल्लाकर पुछा-‘बतहओं मुझें, ताकि मैं अपनी तलवार  से उसे दो टूक कर दूँ।‘‘ बालक ने कहा-ये प्रेम के घाव हैं। दानव को एक विचित्र भय ने घेर लिया वह उस छोटे बालक के सामने घूटने के बल झुक गया। तब बालक ने उससे कहा-तुमने अपने बाग में खेलने दिया, इसलिए तुम भी मेरे स्वर्ग के बाग में खेलोगे।‘‘ दूसरे दिन जब बच्चे आए तो देखा की दानव पेड़ के नीचे कलियों से ढँका मरा पड़ा है।

                अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(क) दानव के बाग में सतालू के कितने पेड़ थे ?  (उत्तर-12 पेड़)

(ख) दानव अपने मित्र के पास कितने वर्षो तक रूका था ? (उत्तर-7 )

(ग) इस कहानी के लेखक कौन हैं ?    (उत्तर-ऑस्कर वाइल्ड)

प्रश्न 2. स्वार्थी दानव ने बाग के चारों ओर ऊँची दीवार क्यों खड़ी कर दी ?

उत्तर- स्वार्थी दानव ने बाग के चारों ओर ऊँची दीवार इसलिए खड़ी कर दी ताकि कोई उसके बाग में न घूसे। दानव स्वार्थी था। उसके बाग में बच्चे खेला करते थे। उन बच्चों का खेलना उसे अच्छा नहीं लगा इसलिए ऊँची दीवर खड़ी कर दी।

प्रश्न 3. बाग के चारों ओर ऊँची दीवार खड़ी करने का क्या परिणाम हुआ ?

उत्तर- बाग के चारों ओर ऊँची दीवार खड़ी करने का परिणाम यह हुआ कि उस बाग में बसंत नहीं आया। सर्वत्र वसंत के आगमन से पेड़ों में फूल-फल लद गए। चिड़ियों के मधुर संगीत सुनाई पड़ने लगे किन्तु दानव के बाग में अभी भी जाड़ा था। बर्फ की उजली चादर बिछी हुई थी। न फूल खिले और न ही चिड़ियों के गीत सुनाई दिये।

प्रश्न 4. स्वार्थी दानव ने बाग में कौन-सा अद्भुत दृश्य देखा?

उत्तर- एक दिन स्वार्थी दानव ने देखा कि बाग के सबसे अन्तिम कोने में एक पेड़ सुन्दर उजली ककियों से लदा था। उसकी डालियाँ सुनहली थीं और उनमें चाँदी की तरह उजले फल लटक रहे थे। उसके नीचे वही छोटा बच्चा खाड़ा था जिसे वह बहुत प्यार करता था।

प्रश्न 5. छोटा लड़का घायल कैसे हो गया था ?

उत्तर- छोटा लड़का प्रेम रूपी अस्त्र से घायल हो गया था। दानव ने जब उसकी हथेलियों तथा पैरों पर दो-दो काँटी के निशान देखे तो उसने बालक से पूछा-किसने तुम्हें घायल किया है ? बालक ने उत्तर दिया-‘ये प्रेम के घाव हैं।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. (क) लेकिन बच्चे सबसे सुन्दर फूल हैं। स्वार्थी दानव ने ऐसा क्यों सोचा?

स्वार्थी दानव ने ऐसा इसलिए सोचा, क्योंकि बच्चों को पाकर ही पेड़ में फूल-फल लगे और चिड़ियाँ मधुर संगीत से मन मोहने लगीं।

अर्थात् बच्चों के खेलने-कूदते देखकर वृक्ष खूश होते थे तथा फूल-फल धारण करते थे। बाग में बसंत का आगमन बच्चों के प्रवेश के कारण ही हुआ। इसलिए दानव ने बच्चे को सबसे सुन्दर फूल कहा।

(ख) ‘ये प्रेम के घाव हैं।‘ छोटे लड़के के कहने के क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- छोटे लड़के के कहने का अभिप्राय है कि प्रेम के गहरे निशान होते हैं। तुमने मुझे अपने बाग में खेलने दिया था तथा अपने हाथ से उठाकर पेड़ की डाली पर बैठाया था। उसी प्रेम के निशान मेरी हथेलियों तथा पैरों पर हैं।

प्रश्न 2. स्वार्थी दानव को कब महसुस हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती की है ?

उत्तर- दानव को अपनी गलती तब महसुस हुई जब छोटा बच्चा पेड़ पर चढ़ने के लिए रो रहा था। पेड़ बर्फ एवं तुषार से ढाँका था। उसके बाग में बसंत न आने का कारण बाग में बच्चों को न खेलना था। बच्चों के प्रवेश करते ही बाग में वसंत आ गया। बच्चों के कारण बाग में हुए परिवर्तन ने दानव के मन में परिवर्तन ला दिया और उसे अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी।

प्रश्न 3. ‘अनाधिकार प्रवेश करने वालों को सजा मिलेगी।ऐसा वाक्य और कहाँ-कहाँ लिखा जाता है ?

उत्तर- सरकारी दफ्तर के परिसर के गेट पर, सेना की छावनी के प्रवेश द्वार पर।

प्रश्न 4. भारतवर्ष में कौन-कौन सी ऋतुएँ हैं। आपको सबसे अच्छी ऋतु कौन-सी लगती है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर- भारतवर्ष में वसंत, ग्रष्म, वर्षा, शरद्, शिशिर, हेमन्त छः ऋतुएँ क्रम से आती हैं। इन ऋतुओं में वसंत का अपना महत्व है। इसे ऋतुओं का राजा कहा जाता है, क्योंकि इस समय न अधिक जाड़ा रहता है और न ही गर्मी। पेड़-पौधे फल-फूलों से लद जाते हैं। आम की मंजरियों पर भौंरे गुजारा करते हैं तो कोयल की कूक वातावरण में मिश्री घोल देती है। इसलिए यह ऋतु मुझे सबसे अच्छी लगती है।

प्रश्न 5. शीत ऋतु एवं वसं में प्रकृति के दृश्यों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर- शीत ऋतु में कंकंपाती ठंड रहती है। तुषारापात के कारण प्रकृति के पेड़-पौधें पर बर्फ की परत जमीं रहती है। प्रकृति बूढ़ी-सी प्रतित होती है। पेड़ के पत्ते पीले हो जाते हैं। ठंड के कारण प्रकृति में उदासी छाई रहती है जबकि बसंत में प्रकृति अनुपम सौन्दर्य से सज-धज जाती है। समशीतोष्ण समय रहता है। सरोवरों में कमल के फूल खिल जाते हैं। पेड़-पौधों में नये-नये पत्ते उग आते हैं। वसंत ऋतु के आते ही प्रकृति में नवजीवन का संचार है।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 15 भूल गया है क्यों इंसान

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15. भूल गया है क्यों इंसान (हरिवंश राय बच्चन)

कविता का भावार्थ- हालावादी कवि हरिवंशराय बच्चन ने ‘भूल गया है क्यों इंसान‘ शीर्षक कविता में लोगों को अपने कर्त्तव्य का स्मरण कराया है। कवि का कहना है कि मनुष्य यह क्यों भूल जाता है कि सारे मानव एक ही तत्त्व से बने हैं। उसका शरीर नाशवान है। इस संसार में ईश्वर ही सत्य है, शेष सारे जीवन मरणशील हैं। ईश्वर सभी को इस धरती पर पैदा करता है और सबको समान रूप से धुप, आकाश की छाया प्रकाश तथा वर्षा का जल प्रदान करता है। कोई भी मनुष्य किसी खास विशेषता के साथ पैदा नहीं हुआ है ईश्वर ने मानव की सृष्टि की है तथा मानव ईश्वर द्वारा निर्मित इस धरती को बाँट कर अनेक देश को बसाया है। लेकिन इन देशों में वही मानव निवास करते हैं जिन्हें ईश्वर ने बनाया है। तात्पर्य कि सारे मानव एक ही तत्व से निर्मित हैं। चाहे वह कही भी निवास करते हो या उनकी वेश-भूषा एक-दूसरे से कितना भी भिन्न हों। लेकिन उनके मन-प्राण समान हैं। सबका हृदय एक ही ईश्वर के प्रकाश से आलोकित होता है तब फिर एक-दूसरे से ईष्या या द्वेष क्यों ? मानव इस सच्चाई को क्यों भूल जाता है। कवि को मनुष्य के इस आचरण से आश्चर्य होता है।

सप्रसंग व्याख्याएँ

1. भूल गया है क्यो इंसान

सबकी है मिट्टी की काय,

सब पर नभ की निर्मल छाया,

यहॉ नही है काई आय, ले विशेष वरदान

भूल गया है क्‍यो इंसाना

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर हरिवंशराय बच्चन द्वारा लिखित कविता ‘भूल गया है क्यों इंसान‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं। इसमें कवि ने मनुष्य की मनोवृत्ति पर प्रकाश डाला है।

कवि का कहना है कि सारे मानव ईश्वर द्वारा एक समान तत्त्व से बनाए गए हैं। सबको समान रूप से धूप, पानी, हवा मिलते हैं। कोई भी मनुष्य अमर नहीं है। धरती पर जन्म लेने वाले सभी मरणशील और नाशवान् हैं। फिर भी मनुष्य अपन को एक-दूसरे से भिन्न मानता है जबकि कवि का मानना है कि जब सारे मानव एक हैं तो उन्हें सबको अपनापन भाव से व्यवहार करना चाहिए। लेकिन ऐसा न करके मानव स्वार्थ-सिद्धि के लिए विभेद की दीवाल खड़ी कर देता है।

प्रश्न 2 धरती ने मानव उपजाए,

मानव ने ही देश बनाए,

बहूत देशो में बसी हुई है, एक धारा – संतान, भूल गया है क्‍यो इंसाना

व्याख्या- प्रस्तुत पद्यांश कविवर हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित कविता ‘भूल गया है क्यों इंसान‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें कवि ने मानव की स्वार्थी प्रवृत्ति की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।

कवि का कहना है कि धरती के सारे मानवों का निर्माण एक ही ईश्वर ने किया है। अर्थात् संसार के सभी मानव एक समान हैं। उनका शरीर समान तत्त्व से बना है, लेकिन मानव ने स्वार्थ-पूर्ति के लिए इस धरती को बाँट रखा है। कवि कहता है कि इन मानवों के खान-पान, वेश-भूषण आदि में भिन्नता होसती है, लेकिन उनके प्रणा समान है, उनकी नश्वरता तथा काया समान है। इसलिए उन्हें दूसरों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। लेकिन अंहकारवश वे भूल जाते हैं कि इस धरती पर कोई अमर नहीं है, सबको मरना है।

                    अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. कविता का सारांश अपनी भाषा में लिखिए।

उत्तर- कविता का भावार्थ देखें।

प्रश्न 2. इस कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ?

उत्तर- प्रस्तुत कविता ‘भूल गया है क्यों इंसान‘ से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि ईश्वर ने सारे मानव को समान बनाया है। प्रकृति सबको समान रूप से धूप, हवा, जल आदि प्रदान करती है तो हम मानव एक-दूसरे से घृणा और द्वेष क्यों करतें हैं ? इसलिए कवि लोगों को सबको समान दृष्टि से देखने तथा सबके साथ समान व्यवहार करने की सलाह देता है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:

(क) देश अलग हैं, देश अलग हों,

वेश अलग है, देश अलग हों,

मानव का मानव से लेकिन, अलग न अंतर-प्राण।

भाव-सौंदर्य-देश अलग हैं तो रहें। वेश अलग हैं तो रहें। इनके बावजूद मानव के हृदय तो समान रूप से धड़कता है। अतः मानव को मानव से अलग नहीं रहना चाहिए।

(ख) सबकी है मिट्ठी की काया,

सब पर नभ की निर्मल छाया

यहाँ नहीं है कोई आया है ले विशेष वरदान।

भाव-सौंदर्य-सभी मनुष्य एक तत्त्व के बने हैं। सबके शरीर एक ही तत्त्व से बना है। सबपर समान रूप से प्रकृति के उपहार मिलते हैं। कोई व्यक्ति किसी खास वरदान से युक्त होकर नहीं आया है तो फिर अंतर कैसा ?

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. मनुष्य किस प्रकार दूसरों को अपने से भिन्न समझता है?

उत्तर- जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र तथा ऐश्वर्य के कारण मनुष्य अपने को एक-दूसरे से भिन्न समझता है। अपने को दूसरे से श्रेष्ठ समझने के कारण मन में अहंकार जन्म लेता है जो मनुष्य को मनुष्य से अलग समझने के लिए प्रेरित करता है। इसी अंहकार के कारण मनुष्यता का लोप हो जाता है और एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ शत्रुता का व्यवहार करने लगता है। जबकि कवि का इच्छा है कि हर मनुष्य दूसरों के साथ मनुष्यता का व्यवहार करे।

प्रश्न 2. अलग-अलग देश, अलग-वेश के बावजूद हर मनुष्य एक जैसे हैं कैसे ?

उत्तर- ईश्वर ने सारे मानव को एक समान बनाया है चाहे वह किसी देश का निवासी क्यों न हो तथा वेश-भूषा तथा खान-पान में भी अंतर क्यों न हो, लेकिन प्रकृति उन्हें समान रूप से धूप, पानी, हवा प्रदान करती है। सबके हृदय में वही ईश्वर समान रूप में निवास करता है। एक मानव से दूसरे को भिन्न रूप में देखना मानव की स्वार्थ की देन है, जबकि सारे मानव एक ही ईश्वर की संतान हैं।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 14 डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर

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14. डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर (जीवनी)

पाठ का सारांश- भारतीय संविधान के पुरोधा डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर का जन्म एक दलित परिवार में 14 अप्रैल, 1891 ई॰ में मध्यप्रदेश के एक महार परिवार में हुआ था। इनके पिता रामजी एक सुबेदा मेजर थे। अम्बेडकर अपने पिता की चौदहवीं संतान थे। पाँच वर्ष की उम्र में इनकी माता स्वर्ग सिधार गईं। माता भीमाबाई की मृत्यु के बाद इनका लालन-पालन चाची ने किया। चाची का नाम मीराबाई था, जो इन्हें प्यार से ‘भीमा‘ कहकर बुलाती थी। बड़ा होकर वही बालक ‘भीमराव रामजी अम्बेडकर‘ कहलाया। इन्हें प्रथम बार रत्नागिरि नगर के एक मराठी स्कूल में नामांकन कराया गया। चार वर्ष के बाद वे पिता के साथ सतारा आ गए और एक सरकारी स्कूल में इनका दाखिला ले ली। भीमराव अम्बेडकर का विवाह सन् 1905 में रमाबाई नाम की कन्या के साथ हुआ। उस समय रमाबाई नौ वर्ष की थी। विवाह के बाद अपने पिता के साथ ये मुंबई आ गए, वहाँ उन्होंने अपना नामांकन एलफिंस्टन स्कूल में कराया, जहाँ छुआछूत जैसी कुप्रथा नहीं थी। सन् 1907 में मैट्रिक की परीक्षापास की। महार जाति के लिए यह गौरव की बात थी। इसके बाद एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ने लगे और 1913 में बी॰ ए॰ की परीक्षा पास की। बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड ने प्रसन्न होकर अपने दरबार में नौकरी दे दी। लेकिन दुर्भाग्यवश इसी वर्ष उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। महाराज के दरबार के कट्टरपंथियों के दुव्यर्ववहार के कारण भीमराव को नौकरी भी छोड़नी पड़ी।

बड़ौदा के महाराज की अनुकम्पा और कृपा अत्यधिक थी। उनका सहयोग प्राप्त वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। वहाँ उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ली। वहाँ उन्हें सबका प्यार तथा समानता का व्यवहार मिला। भीमराव डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त के बाद लंदन गए। वहाँ एक वर्ष रहकर लौट आए। भारत लौटने पर महाराज गायकवाड़ उनको सेना में सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया। विदेश प्रवास के दौरान उन्होंने दो पुस्तकें लिखीं। उनकी विद्वता की धाक् सर्वत्र जम गई। मुंबई के एक कॉलेज में उन्हें प्रोफेसर के पद पर नियुक्त कर लिया गया, किंतु यहाँ भी अछूत के भूत ने उनकी जान नहीं छोड़ी। निराश होकर डॉ॰ भीमराव ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और छुआछूत की समस्या से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने एक साप्ताहिक पत्रिका ‘मूकनायक‘ का प्रकाशन आरंभ किया। लेकिन साधनों के अभाव के कारण पत्रिका का प्रकाशन बंद करना पड़ा। इसके बाद भीमराव पढ़ने के लिए लंदन चले गए और वहाँ तीन वर्ष रहकर उन्होंने अर्थशास्त्र में डी॰एस॰सी॰ की उपाधि प्राप्त की। सन् 1923 में मुंबई लौट आए और वकालत करने लगे। सन् 1927 में कुछ मित्रों के सहयोग से ‘बहिष्कृत भारत‘ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया। इसी वर्ष वे मुंबई विधान सभा के सदस्य बन गए।

1947 ई॰ में जब भारत स्वतंत्र हुआ और सरकार का गठन किया गया तो इस सरकार में उन्हें कानून मंत्री बनाया गया। भारतीय संविधान का प्रारूप इन्हीं के तैयार हुआ जिसमें इन्होंने राष्ट्रीय एकता, दलितों के उद्धार की समस्या के समाधान पर बल दिया गया। नेहरू से मतभेद होने पर उन्होंने अलग होकर दलितों की सेवा की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया। फलतः दलित परिवार उन्हें देवता की तरह पूजने लगे। 1955 ई॰ में इनका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर हुआ। एक वर्ष के बाद वे नागपुर में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। तथा दलितों को बौद्धधर्म स्वीकार करने की सलाह दी। दुर्भाग्यवश दलितों के मसीहा डॉ॰ भीमराव अधिक दिनों तक दलितों की सेवा नहीं कर सके। 6 दिसम्बर, 1956 ई॰ को निधन हो गया। इनकी सेवा एवं त्याग के कारण आज भी सम्मान के साथ लोग इन्हें ‘बाबा साहब‘ कहकर याद करते हैं। दलितों के देवता बाबा साहब अध्ययनशील व्यक्ति थे। इनमें गजब का आत्मबल एवं वक्तृत्व कला थी। इन्होंने समाज के एक बड़े समुदाय को घृणा एवं उपेक्षा के दलदल से बाहर निकला। आनेवाली पीढ़ियाँ भीमराव को महान् कार्य के स्मरण कर गौरव का अनुभाव करती रहेगी।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. डॉ॰ अम्बेडकर के योगदानों की चर्चा कीजिए।

उत्तर- डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर ने भारत के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया। भारतीय संविधान का प्रारूप इन्हीं की अध्यक्षता में तैयार हुआ हजारों वर्ष से अछूत कहलानेवालों को इन्होंने समानता का अधिकार दिलाया। राष्ट्र की एकता के लिए इन्होंने कई आवश्यक बातें संविधान में सम्मिलित करायी।

प्रश्न 2. डॉ॰ अम्बेडकर ने बौद्धधर्म क्यों स्वीकार कर लिया।

उत्तर- डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर किसी धर्म के विरोधी नहीं थे। उनाका मानना था कि धर्म मनुष्य के लिए आवश्यक है। वे धर्म में आई बुरायों के विरोधी थे। इन्होंने बौद्धधर्म इसलिए स्वीकार किया, क्योंकि बौद्धधर्म समानता पर आधारित है। इसमें ऊँच-नीच, छुआछूत के भेद्भाव का विरोध किया गया है। समानता पर आधारित धर्म होने के कारण अम्बेडकर ने बौद्धधर्म स्वीकार किया तथा अन्य लोगों को भी इसे ग्रहण करने की सलाह दी।

प्रश्न 3. डॉ॰ अम्बेडकर ने बड़ौदा महाराज की नौकरी क्यों छोड़ दी ?

उत्तर-डॉ॰ अम्बेडकर ने बड़ौदा महाराज की नौकरी इसलिए छोड़ दी, क्योंकि दरबार में कट्टरपंथि दरबारी उनको घृणा की दृष्टी से देखते थे। चपरासी तक उनको फाइलें फेंककर देते थे। इस अपमान के कारण डॉ॰ अम्बेडकर ने बड़ौदा महाराज की नौकरी छोड़ दी।

प्रश्न 4. डॉ॰ अम्बेडकर के विचारों से आप कहाँ तक सहमत है और क्यों?

उत्तर- डॉ॰ अम्बेडकर ने देश तथा समाज के हित में अपना विचार प्रकट किया है। उनका विचार पूर्णतः प्रासंगिक है। क्योंकि कोई भी देश या समाज तभी विकसित माना जाता है, जब वहाँ एकता, समानत तथा बंधुत्व की भावना होती है। भेद्भाव से तो घृणा जन्म लेती है, जबकि प्रेम से स्वच्छ समाज की स्थापना होती है। अतः मैं डॉ॰ अम्बेडकर के विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ।

प्रश्न 5. नीचे के स्तम्भ में डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर के जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाओं का विवरण है तथा स्तम्भ में उन घटनाओं के वर्ष दिए गए हैं। इन्हें सही मिलान करें।

स्तम्भ ‘                                                                स्तम्भ

अम्बेडकर का जन्म                                                            1913

अम्बेडकर ने हाई स्कूल की परीक्षा पास की                         1905

अम्बेडकर ने बी॰ ए॰ की परीक्षा पास की                             1891

अम्बेडकर की शादी                                                           1907

‘मुकनायक‘ नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन           1956

डॉ॰ अम्बेडकर की मृत्यु                                            1920

उत्तर:स्तम्भ ‘                                                        स्तम्भ

डॉ॰ अम्बेडका का जन्म                                                        1891

अम्बेडकर ने हाई स्कूल की परीक्षा पास की                           1907

अम्बेडकर ने बी॰ ए॰ की परीक्षा पास की                               1913

डॉ॰ अम्बेडकर का शादी                                                      1905

‘मूकनायक‘ नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन              1920

डॉ॰ अम्बेडकर की मृत्यु                                                       1956

पाठ से आगे:  

प्रश्न 1. डॉ॰ अम्बेडकर को बाबा साहबऔर भारतीय संविधान का जनकक्यों कहा जाता है?

उत्तर- डॉ॰ अम्बेडकर को ‘बाबा साहब‘ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने प्रयास से अछूतों एवं दलितों को समानता का अधिकार दिलाया। इस प्राप्ति से उत्साहित अछूत समाज इन्हें देवता के समान पूजने लगे तथा ‘बाबा साहब‘ कहकर पूकारने लगा। इसी प्रकार भारतीय संविधान के निर्माण में इनका अमूल्य योगदान था। इन्हीं की अध्यक्षता में संविधान के प्रारूप तैयार किया गया था। इसीलिए इन्हें ‘भारतीय संविधान का जनक‘ भी कहा जाता है।

प्रश्न 2. डॉ॰ अम्बेडकर को बाबा साहबके उपनाम से जानते हैं। कुछ और भी महापुरूषों को उपनाम से जाना जाता है। उनके नाम उपनाम लिखिए।

उत्तर: महात्मा गाँधी               -राष्ट्रपिता

जवाहरलाल                     -चाचा

चित्तरंजन दास                 -देशबन्धु

तिलक                             -लोकमान्य

श्री कृष्ण सिंह                  -बिहार केसरी

अनुग्रह नारायण सिंह       -बिहार विभूति

वल्लभ भाई पटेल            -लौहपुरूष

प्रश्न 3. बाबा साहबकिस प्रकार के भारत को देखना चाहते थे ?

उत्तर- बाबा साहब वैसा भारत को देखना चाहते थे, जहाँ किसी प्रकार का भेद्भाव न हो। हम सभी भारतीय हैं। सब एक-दूसरे को प्यार करें। समानता एवं भाईचारे की भावना हो।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ

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13. दादा-दादी के साथ (नीलिमा सिन्हा)

पाठ का सारांस-‘दादा-दादी के साथ‘ शीर्षक प्रस्तुत कहानी नीलिमा सिन्हा द्वारा लिखित है। इसमें लेखिका ने एक ऐसे परिवार की झाँकी प्रस्तुत की है जो अपने-आप अदभुत है, खासकर भारत के लिए।

पिंकी और उसका छोटा भाई विकी अपने चाचा विपिन प्रताप के पुत्र राहुल तथा पुत्री पद्मिनी के इंग्लैण्ड से आन की खुशी में फूले न समा रहे थे। परिवार के सारे लोग तथा नौकर-चाकर उनके स्वागत में लगे थे। राहुल एवं पद्मिनी को अपने नए संबंधियों से मिलकर अति खुशी हो रही थी क्योंकि भाई-बहन, चाचा-चाची, दादा-दादी, बुआ-फूआ आदि से प्रथम भेंट थी। दोनों हिंदी में बातचीत करते हैं। दानों के नाम भी भारतीय है, जबकि चाचा का पुत्र एवं पुत्री विकी तथा पिंकी भारत में रहते हुए अंग्रेजी बोलना पसंद करते हैं। बिकी तथा पिंकी के इस व्यवहार से राहुल एवं पद्मिनी अचम्भित रह जाते हैं।

विदेश से आए बच्चे रिश्तेदारों तथा पास-पड़ोस के लोगों के आकर्षण के केन्द्र बन जाते हैं। क्योंकि वे विदेश से स्वदेश आए हैं। बच्चे भी आनन्दित थे, क्योंकि इतनी प्रशंसा और प्रेम देनेवाले इंग्लैण्ड में नहीं थे। लोग उन्हें हिन्दी बोलते सुनकर अति प्रसन्न होते हैं। उन्हें लगता है कि विदेश में रहते हुए भी हिन्दी के प्रति इतना स्नेह है-यह कितनी अच्छी बात है।

परिचय का सिलसिला शाम तक चलता है। पिंकी को इस बात की चिंता हो जाती है कि आज भी यहाँ अन्य दिनों की भाँति बिजली गायब है, इसलिए पिंकी अपने चचेरे भाई-बहन को ‘‘ओ हो! आई एम सो सॉरी!‘‘ कहकर खेद प्रकट करती है। तुम सोचोगे कैसा कंट्री है इण्डिया ?‘‘ पद्मिनी केवल मुस्कुराकर रह जाती है तथा सोचने लगती है कि कैसे अजीब बच्चे हैं। अपनी भाषा होते हुए भी वे न जाने सदा अंग्रेजी ही बोलते हैं। इन्होंने यहाँ आते समय सोचा था कि भारत में हिन्दी का अच्छा अभ्यास हो जाएगा। लेकिन यहाँ की स्थिति तो बिल्कुल विपरीत है।

शाम के समय रमुआ को लालटेन जलाते देख राहुल उसके समीप चला गया। लालटेन जलाने के बाद सभी दादी के पास आँगन में बैठ गए। रस्सी से बुनी चारपाई उन्हें रोमांचकारी लग रही थी। दादी का प्यार एवं दुलार पद्मिनी को बड़ा अच्छा लग रहा था। दादी उसे अपने पास बैठाकर उसके रेशमी बालों को प्यार से सहलाने लगी। बाहर काली रात के साए में मेढ़कों का टर्राना सुनाई दे रहा था। आकाश में तारे छिटक रहे थे। पद्मिनी को लगा कि वह किसी बीते हुए अतीत में आ गई हो। प्राचीन हजवन व सभ्यता से अब भी वह कितना जुड़ी हुई है।

दादी ने पूछा बेटा! महाभारत-रामायण की कहानियाँ तुमने सुनी है।राहुल ने कहा-‘‘सुनाइए न दादी। डैड ने कुछ सुनाया है परन्तु ……।‘‘पिंकी ने खीझ भरे शब्दों में कहा-ओह नो, नॉट अगेन ? फिर वही पुरानी कथाएँ ? ‘‘दादी ने कहा-बेटा ! पौराणिक कथाओं में कितना ज्ञान भरा है। इससे हमारे जीवन के सिद्धांतों, मान्यताओं तथा मूल्यों के विषय में सही जानकारी का पता चलता है। लेकिन पिंकी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा-‘‘आज कल के साइंस के जमाने में तुम्हारी कहानियाँ बिल्कुल फिट नहीं बैठतीं। क्या मिलेगा हमें उनसे ?‘‘ बहस सुन दादा जी भी हाजिर हो गए और कहा-‘‘जो ढूँढे उसे मिले।‘‘ इन कहानियों से मनोरंजन के साथ अच्छे-बुरे का ज्ञान मिलता है। फिर दादी कहानी सुनाने लगी। राहुल तथा पद्मिनी कहानी सुननेे में इतना मग्न हो गए कि भोजन के समय का भी पता न चला। रात का भोजन आँगन में ही किया गया। इन बच्चों के लिए विशेष रूप से स्वदेशी जायके वाली लिट्टी की व्यवस्था की गई थी। दादी ने इसे उपले पर सेंका था। इसे गर्म घी के साथ पूर्ण चाव से बच्चों ने खाया, जबकि पिंकी व विकी ने इसकी जगह सूप, ब्रेड और अंडे अपने लिए बनवाए थे। खाते-खाते अगले दिन का प्रोग्राम बनने लगा। पिंकी बोली-‘‘हमीपुर छोटी जगह है।‘‘ तुम लोगों को मुंबई, दिल्ली, कलकत्तर जैसे शहर अच्छे लगते हैं। लेकिन राहुल को गाँव देेखने की इच्छा थी। पिंकी ने समझाया-इसका मतलब रियल विलेज से है जहाँ केवल झोपड़ी-ही-झोपड़ी हैं। चलो कल दिखा देंगे। विकी सोचने लगा, ‘‘हाँ, वे जो खंडहर हैं, उनके पास बसा एक छोटा-सा रियल विलेज है। वहीं चला जाए।‘‘

पद्मिनी की नीली आँखें रोशनी में चमक उठीं। ‘‘खंहडर ? यानी टूटे-फूटे ध्वस्त भवन। कब के हैं? क्या वे बहुत प्राचीन हैं। पिंकी हँसने लगी। उसने कहा-टूटी-फूटी दीवारों को देखने में मेरी रूचि नहीं है।‘‘ पद्मिनी बोली-‘‘मैंने बताया न मुझे इतिहास में विशेष रूचि है।‘‘ रहुल ने कहा-‘‘मुझे भी।‘‘ शायद उधर कुछ दुर्लभ पक्षियों के भी संकेत मिल जायँ। उल्लू और चमागादड़ के सिवा क्या मिलेगा ? विकी ने हँसते हुए कहा। ‘‘वे भी ठीक रहेंगे ।‘‘ राहुल खुशी-खुशी बोला। चमगादड़ ही एक ऐसा पक्षी है जो हर जगह नहीं मिलता। फिर भारतीय चमगादड़ कैसे होते हैं, इसका भी तो पता चलेगा। पद्मिनी को लगा कि पिंकी एवं विकी इस प्रोग्राम पर खुश नहीं हैं लेकिन राहुल तथा पद्मिनी अपने हरादे पर दृढ़ थे। वे बिना किसी मार्गदर्शक के भी जाने को तैयार थे, क्योंकि वे हिन्दी जानते थे। वे अपना रास्ता स्वयं ढूँढ़ लेंगे और स्वयं वहाँ घूम आएँगे।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. सभी लोग घर की सफाई क्यों कर रहे थे?

उत्तर- सभी लोग घर सफाई इसलिए कर रहे थे, क्योंकि उनके खास चाचा-चाची और उनके बच्चे इंग्लैण्ड से आ रहे थे। उन्हें इस बात का भय था कि कहीं उन्हें हमारे घर की गंदगी अच्छी न लगे और उनके सामने हमारी हँसाई न हो जाय। इसी कारण सभी लोग घर की सफाई पूरी तत्परता से कर रहे थे।

प्रश्न 2. पद्मिनी और राहुल को पिंकी-विकी की कौन-सी बात खटकती थी?

उत्तर-पिंकी तथा विकी अपनी भाषा हिन्दी न बोलकर हर क्षण अंग्रेजी बोलते थे। इनका यह आचरण राहुल एवं पद्मिनी को बेतुका लगता था। राहुल तथा पद्मिनी अंग्रेजी जानते हुए भी सदा हिन्दी हिन्दी बात करते थे जबकि भारत में रहते हुए भी पिंकी व विकी हिन्दी बोलना अपना अपमान मानते थे। यही बात उन्हें खटकती थी।

प्रश्न 3. पद्मिनी की उत्सुकता का क्या कारण था ?

उत्तर-पद्मिनी की उत्सुकता का मुख्य कारण यह था कि वह इतिहास की सही जानकारी लेना चाहती थी। वह कई बार पाठशाला से पुराने खंडहर में खोज एवं अन्वेषण करने गई थी। उसे अब पता चला कि यहाँ अति प्राचीन खंडहर है तो उसे देखने के लिए उसमें उत्सुकता जग पड़ी।

प्रश्न 4. किसने कहा किससे कहा और क्यों कहा?

(क) अच्छा किया जो इन्हें हिन्दी सिखाई।

उत्तर- राहुल तथा पद्मिनी के इंग्लैण्ड से आने पर उनके रिश्ते के ढेर सारे भाई-बहन, चाचा-चाची, दादा-दादी, बुआ आदि आए थे। इन्हीं लोगों ने उन दोनों को हिन्दी में बात करते देखकर कहा था कि विदेश में रहते हुए भी हिन्दी बोलना प्रशंसा का विषय है। अतः उन्होंने कहा की अच्छा किया जो इन्हें हिन्दी सिखाई।

(ख) ‘‘ओ हो! आई एम सो सॉरी!‘‘

उत्तर- यह बात पिंकी ने तब कहा जब शाम के समय बिजली गायब थी। उसने राहुल एवं पद्मिनी से खेद प्रकट करते हुए कहा था कि ‘‘तुम सोचोगे कि कैसा कंट्री है इण्डिया ?‘‘

(ग) अपनी भाषा होते हुए भी न जाने क्यों वे सदा अंग्रेजी ही बोलते हैं।

उत्तर-यह बात पद्मिनी ने कही थी, वह इसलिए कि पिंकी तथा विकी को अक्सर अंग्रेजी बोलते देखकर वह सोचती है कि अपनी भाषा जानते हुए भी वे न जाने क्यों सदा अंग्रेजी में ही बोलते हैं। जबकि उन्हें मालुम है कि राहुल और पद्मिनी अंग्रेजी हिन्दी दोनों भाषा भली-भाँति जानते हैं।

(घ) अच्छा? यही है तुम्हारी बेटी?

उत्तर-यह बात पद्मिनी से पहली भेंट में बुआ तथा फूफा ने कहा। इसलिए कहा, क्योंकि वह माँ जैसी सुन्दर थी।

(ङ) लगता है बेटी माँ जैसी है। वही नीली आँखें और काले बाल, बड़ी

सुन्दर निकली।

उत्तर-घर में आए रिश्तेदारों में से किसी एक ने कहा। उसने इसलिए तब कहा जब उसे हिन्दी बोलते सुना। यह बात उसने उनकी प्रशंसा में कही।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. इस कहानी में किसकी भूमिका आपको अच्छी लगी और क्यां?

उत्तर- इस कहानी में सबसे अच्छी भूमिका दादी की लगी, क्योंकि दादी ने विदेश से आए पोते-पोति को भारती संस्कृति की विशेषताओं से अवगत कराया। राहुल एवं पद्मिनी का भारत आने का उद्देश्य ही यहाँ की संस्कृति के महत्त्व को समझना था।

प्रश्न 2. क्या आपको लगता है कि यह कहानी अधुरी है ? क्यों ?

उत्तर- हाँ, यह कहानी अधूरी इसलिए लगती है क्योंकि राहुल एवं पद्मिनी जिस उद्देश्य से भारत आए थे, वह अधूरा ही रह गया। पिंकी-विकी अपने को एडवान्स साबित करने के लिए हर क्षण अंग्रेजी का प्रयोग करते थे तथा भारतीय संस्कृति की आलोचना करते रहते थे, जबकि राहुल एवं पद्मिनी भारतीय सभ्यता से रू-ब-रू होना चाहते थे।

प्रश्न 3. सोचिए, इस कहानी के अन्त में अगले दिन क्या हुआ होगा ?

उत्तर- इस कहानी के अन्त में अगले दिन राहुल एवं पद्मिनी दोनों खंडहर देखने गए होंगे। पिंकी -विकी उनका साथ नहीं दिये होंगे।

प्रश्न 4. अगर ऐसा हो कि आपके यहाँ कोई संबंधी आए तो आप क्या-क्या करेंगे ?

उत्तर- अगर मेरे यहाँ कोई संबंधी आते हैं तो उनकी जिज्ञाओं की पूर्ति में सहयोग करूँगा। उनकी हर इच्छा की पूर्ति का प्रयास करूँगा, ताकि मेरे प्रति उनकी अच्छी धारणा बन सके। मेरे प्रति उनकी सद्भावना बन सके।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 12 रहीम के दोहे

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12. रहीम के दोहे (रहीम)

भावार्थ-रहीम कवि कहते हैं कि जो अच्छे आचरण (स्वभाव) का व्यक्ति है, उस पर बुरी संगति का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे-चन्दन के वृक्ष में साँप लिपटा रहता है किंतु चन्दन के वृक्ष पर साँप के विष कोई प्रभाव (असर) नहीं होता है।

कवि रहीम की सलाह है कि अपने मन की व्यथा या पीड़ा को अपने मन में ही दबाकर रखना चाहिए। दूसरे लोग उस पीड़ा को जानकर खुश ही होंगे, अर्थात् मजाक उड़ाएँगे, कोई उसमें सहयोग का हाथ नहीं बढ़ाएगा।

रहीम कवि का कहना है कि प्रेमरूपी बंधन को हँसी-खेल में नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि यह बंधन टूटने पर जुड़ना कठिन हो जाता है, लेकिन यदि तोड़ भी दिया जाय तो गांठ तो पड़ ही जाती है।

रहीम कवि कहते हैं कि वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाता है, नदी अथवा तालाब अपना जल स्वयं नहीं पीते हैं। इसी प्रकार सज्जन (उपकारी) लोग भी अपनी संपत्ति दूसरे के उपकार (कल्याण) के लिए एकत्र (जमा) करते हैं।

रहीम कवि की सलाल है कि बड़ी वस्तु पाने के फेर में छोटी वस्तु कोे त्यागना नहीं चाहिए। जैसे किसी सुई का काम तलवार से नहीं किया जा सकता।

रहीम कवि कहते हैं कि जो किसी से कुछ माँगने जाता है, वह मर जाता है अर्थात् उसका सम्मान घट जाता है, लेकिन उनसे पहले वे लोग मर हुए माने जाते हैं जिनके मुँह से नकारात्मक शब्द निकलते हैं।

कवि रहीम का कहना है कि उपकारी व्यक्ति के साथ रहने से वही सुख मिलता है जो सुख मेंहदी बाँटने वालीे को मिलता है। जैसे मेंहदी बाँटने वालों का हाथ स्वतः रंग जाता हैै, उसी उपकारी के साथ रहने पर स्वतः अच्छे गुण प्राप्त हो जाते हैं।

रहीम कवि कहते हैं कि कोई काम धीरे-धीरे ही होता है, इसके लिये धैर्य खोना या व्याकुल होना व्यर्थ है। जैसे-पेड़ में फल-फूल समय आने पर ही लगते हैं, चाहे कितनी बार पानी डालो परन्तु समय से पहले फल या फूल नहीं लगता है।

 आशय/व्याख्याएँ

1. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहि, लपटे रहत भुजंग।।

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत दोहा कवि रहीम द्वारा लिखित ‘रहीम के दोहे‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि उत्तम आचरण (स्वभाव) वालो के विशेषता कि बारे में अपना विचार प्रकट किया है।

कवि का मानना है कि अच्छे विचार (आचरण) वालों पर बुरी संगति का प्रभाव उसी प्रकार नहीं पड़ता है। तात्पर्य कि जो विचारनिष्ठ अथवा दृढ़ आचरण के होते हैं। उनपर किसी भी संगति का असर नहीं होता। क्योंकि वे तो स्वयं अपने रंग में रंगे होते हैं। इसलिए दूसरे के रंग बेअसर साबित होते हैं।

2. रहीमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।

आशय- कवि रहीम ने इस दोहे के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि प्रेम रूपी बंधंन कायम रखने का प्रयत्न करना चाहिए। इस बंधंन को तोड़ने पर पुनः जोड़ना कठिन होता है, क्यों कि मन मैला होने पर एक-दुसरे पर से विश्वास खत्म हो जाता है। किंतु प्रेम का निर्वाह करनेे पर एक-दुसरे का विश्वास दृढ़ होता है। फलतः दोनों की मित्रता प्रगाढ़ हो जाती है। इसलिए मित्रता का निर्वाह करने में भलाई है।

3. रहीम देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।

व्याख्या- प्रस्तुत दोहा कवि रहीम द्वारा लिखित तथा ‘रहीम के दोहे‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है।इसमें कवि ने वस्तु के महत्व पर प्रकाश डाला है।

कवि कहना है कि हर वस्तु तथा व्यक्ति का अपना खास महत्व होता है। इसलिए बड़ी वस्तु अथवा बड़े व्यक्ति को देखकर छोटी वस्तु अथवा छोटे व्यक्ति का निरादर नहीं करनी चाहिए। इसीलिए कवि ने सुई एवं तलवार के अन्तर को बताया है। जैसे-सूई का काम तलवार नहीं करती, उसी प्रकार छोटे व्यक्ति का काम बड़ा आदमी नहीं कर सकता। तात्पर्य कि प्रत्येक वस्तु का महत्व समझ कर उसका उपयोग करना चाहिए। बड़ी वस्तु के फेर में छोटी वस्तु का त्याग करना बुद्धिमानी नहीं है।

4. कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।

समय पाई तरूबर फलै, केतक सींचो नीर।।

आशय- प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि रहीम ने समय के महत्व के बारे में लोगों को बताया है। कवि का कहना कि सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ने के बाद ही सफलता मिलती है। किसी को महान् पद प्राप्त करने के लिए समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। पद या प्रतिष्ठा एकाएक प्राप्त नहीं होती। माली के लाख प्रयास के बावजूद वृक्षों पर फल-फूल तभी लगता है जब फल-फूल लगने का समय आता है। इसलिए व्यक्ति को प्रयास जारी रखना चाहिए, समय आने पर फल की प्राप्ति हो ही जाएगी।

पाठ से:

प्रश्न 1. अपने मन की पीड़ा मन में ही क्यों छिपाकर रखनी चाहिए ?

उत्तर- अपने मन की पीड़ा मन में ही छिपाकर रखनी चाहिए क्योंकि उसे प्रकट देने पर लोग सहयोग करने के बदले मजाक उड़ना शुरू कर दंगे।

प्रश्न 2. प्रेम को धागे के समान क्यों कहा गया है?

उत्तर-प्रेम को धागे के समान इसलिए कहा गया है, क्योंकि धागा जबतक एक रहता है तबतक एकता का प्रतीक बना रहा है। टूटने पर यदि जोड़ भी दिया जाय तो गाँठ तो बना ही रहता है।अर्थात् एक दूसर के प्रति विश्वास की कमी बनी ही रहती है।

प्रश्न 3. किसी से कुछ माँगने का कर्म को कैसा बताया गया है और क्यों

उत्तर- किसी से कुछ माँगने के कर्म को अति निकृष्ट बताया गया है। क्योंकि किसी से कुछ माँगने पर व्यक्ति का सम्मान घटता है जिस कारण अपमान महसूस होता है।

प्रश्न 4. सज्जनों की संपत्ति किस कार्य के लिए होती है ?

उत्तर- सज्जनों की संपत्ति दूसरों के कल्याण के लिए होती है। जिस प्रकार वृक्ष दूसरों के लिए फलते हैं उसी प्रकार सज्जन दुःखी जनों के सहयोग के लिए धन का संचय करते हैं। उनकी अपनी कोई आवश्यकता नहीं होती, दूसरों की आवश्यकता को ही अपनी आवश्यकता मानते हैं।

प्रश्न 5. रहीम की कुछ सूक्तियाँ नीचे दी गई हैं। पाठ के आधार पर उन उदाहरणों को लिखिए जो उन सूक्तियों के प्रमाण-स्वरूप दिए गए हैं:

(क) अच्छे लोगों पर बुरे लोगों की संगति का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

उत्तर- जो रहीम उत्तम प्रकति, का करि सकत कुसंग।

चन्दन विष व्यापत नहि, लिपटे रहत भुजंग।

(ख) भले लोग (सज्जन लोग) परोपकार के कार्य पर खर्च करते हैं।

उत्तर- तरूवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पानि।

कही रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचहिं सुजान।।

(ग) हमें बड़े-छोटे सभी का सम्मान करना चाहिए।

उत्तर- रहीम दखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि ।

(घ) दूसरों का भला करनेवालों का अपने आप भला हो जाता है।

उत्तर- यो रहीम सुख होत हैं, उपकारी के संग।

बाँटनवारे को लगे, ज्यों मेंहदी का रंग।।

(ङ) महें किसी कार्य के लिए अत्यधिक नहीं होना चाहिए।

उत्तर- करज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर।

समय पाई तरूवर फले, केतक सींचो नीर।।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. ऐसे किन्हीं दो अवसरों की चर्चा कीजिए जब आप दूसरों के लिए काम कर रहे थे और आपको उसका लाभ मिला हो।

संकेत: किन्हीं दो अवसरों की चर्चा छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2. परोपकार से आप क्या समझते हैं ? ऐसे कार्यों की सूची बनाइए जिन्हें आप परोपकार का कार्य समझते हैं ?

उत्तर-निः स्वार्थ भाव से दूसरों के लिए किया गया परोपकार कहलाता है। अर्थात् जब कोई किसी बिना बदले की अपेक्षा से सहयोग करता है, तो वह परोपकार है। जैसे-पेड़, पौधे, नदी, हवा, आदि दूसरों के कल्याण के लिए फलते तथा बहते हैं। जैसे-रोगी का सेवा, पढ़ाई में मदद, अनाथों की देख-रेख, भूखे को भोजन, प्यासे को पानी पिलाना, असहायों की मदद करना आदि।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 11 सरजू भैया

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11. सरजू भैया (रामवृक्ष बेनीपुरी)

पाठ का सारांस – प्रस्तुत पाठ ‘सरजू भैया‘ में लेखक ने सरजू भैया का शारीरिक, आर्थिक एवं चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किया है। लेखक के घर के पास ही सरजू भैया का घर है। वह अपनी माँ की अकेली संतान थे। लेखक उन्हें अपना बड़ा भाई तथा स्वयं को छोटा भाई मान एक साथ समय गुजारने लगे सरजू भैया की शारीरिक विशेषता यह थी कि गाँव के सबसे लम्बे और दुबले आदमियों में उनकी गिनती होती थी। रंग साँवला, बड़ी-बड़ी टाँगे तथा बाँहें थीं। धोती पहने, कंधे पर गमछा डाले जब खड़ा होते तो उनका शरीर अस्थिपंजर जैसा प्रतीत होता था। लेकिन वह जिन्दादिल, मिलनसार, मजाकिया और हँसोड़ प्रकृति के थे। जब वह हँसते तो उनके दाँत चमक पड़ते, शरीर के अंग ऐसे हिलने-डुलने लगते जैसे सभी अंग हँस रहे हों। आर्थिक स्थित ऐसी थी कि वह अपने परिवार के साथ-साथ अतिथि-सेवा भी मजे से कर सकते थे, फिर उनकी शारीरिक दशा इतनी कमजोर क्यों थीं?

इस संबंध में लेखक का कहना है कि सरजू भैया अति उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इनके साथ ‘काजी जी दुबले क्यों? शहर के अंदेशे से‘ कहावत चरितार्थ होती है। इन्हें अपनी चिन्ता कम, दूसरों की चिन्ता अधिक रहती थी। पराए की चिन्ता के कारण इनकी खुशहाल घर-गृहस्थी नष्ट हो गई तो भूकम्प ने मकान ध्वस्त कर दिया। वह अपने लेन-देन के कारोबार से अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सकते थे, लेकिन सरजू भैया लेन-देन को बुरा मानते थे। उनका मानना था कि सूदखोरी में मानव की मानवता नष्ट हो जाती है, क्योंकि महाजन चीलर की भाँति इस प्रकार शोषण करता है कि ऋण लेने वालों को पता नहीे चलता किन्तु सूद की मार से बेहाल हो जात हैं। सरजू भैया परोपकारी स्वभाव के थे। उनके सामने जो कोई आता है, उस पर देवता की तरह पसीज जाते। वह परिश्रमी, चतुर एवं कर्मठ व्यक्ति थे, लेकिन दूसरों के सहयोग में इस प्रकार व्यस्त रहते कि उन्हें अपना काम देखने का मौका नहीं मिलता। गाँव में कोई बीमार होता अथवा कहीं जाने की बात होती या बजार से कोई सामान लाने की बात होती, सरजू भैया बुला लिए जाते। तात्पर्य कि वह गाँव भर के लोगों का बोझ अपने सिर पर उठाए हुए थे, जिस करण इनकी माली हालत खराब हो गई।

लेखक का कहना है कि सरजू भैया का व्यक्तित्व अनुकरणीय, वंदनीय एवं पूजनीय था। उनके इस व्यक्तित्व के समझ लेखक का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। लेकिन ऐसे सीधे-साधे किस प्रकार ठगी का शिकार होते हैं, वह कहानी इस प्रकार है:

एकबार लेखक ने सरजू भैया से पैसा तो लिए, लेकिन लौटाए नहीं। जब भैया को स्वयं रूपये का जरूरत हुई तो लेखक से रूपये न माँगकर एक सुदखोर महाजन के पास गए, जो पहले उन्हीं से कर्ज खाता था, लेकिन अब वह धन्न सेठ बन गया। उसने झट उन्हें रूपये दे दिए। जब चलने लगे तो उसने कहा-सबूत के लिए कागज पर निशान बना दीजिए। उन्होंने बमभोला की तरह निशान बना दिया। निशान बनाने के बाद उसने कहा-‘‘जल्दी रूपये दे दो नहीं तो नालिश कर दूगाँ।‘‘ सरजू भैया जब यह बात लेखक को बताई तो वह उनका मुँह आश्चर्य से देख रहे थे।

सरजू भैया को पुत्र नहीं थे, पाँच बेटियाँ ही थीं। उनकी पत्नी बौनी थी। पत्नी की मृत्यु के बाद लेखक की पत्नी दुसरी शादी करने के लिए दबाव डाल रही थी तो उन्होंने कहा-मैं शादी इसलिए करूँ कि शर्माजी को भौजाई से मजाक करने का आनन्द मिले। ऐसा कहकर वह ठठाकर हँसने लगे और लेखक मुस्कुराता रह गया।

पाठ से:

प्रश्न 1. सरजू भैया को जिन्दादिल क्यों कहा गया है ?

उत्तर- सरजू भैया को जिन्दादिल इसलिए कहा गया है क्योंकि वह लोगों की मदद दिल खोलकर करते थे। गाँव की समस्या को अपनी समस्या समझते थे।

प्रश्न 2. लेन-देन के व्यवसाय में सरजू भैया क्यों सफल नहीं हो सकते थे ?

उत्तर- लेन-देन के व्यवसाय में सरजू भैया इसलिए सफल नहीं हो सकते थे, क्योंकि वह जिसे कुछ देते थे, उससे माँगते नहीं थे। इस कारण उनकी पूँजी धीरे-धीरे खत्म हो गई, जबकि लेन-देन में ऋण वसूलना अथवा वापसी के लिए दबाव डालना आवश्यक होता है।

प्रश्न 3. चतुर, फुर्तीले और काम-काजू आदमी होते हुए भी सरजू भैया सुखी-सम्पन्न क्यों नहीं रह सके?

उत्तर- चतुर, फुर्तीले और काम-काजू आदमी होते हुए भी सुखी-सम्पन्न इसलिए नहीं रह सके, क्योंकि उन्हें दुसरे क काम से ही फुर्सत नहीं मिलती थी। फलतः वह न तो खेती कर पाते थे और न ही लेन-देन पर ध्यान देते थे। इसी कारण वह सुखी-सम्पन्न नहीं रह सके।

प्रश्न 4. सरजू भैया ने सादे कागज पर अँगूठे का निशान क्यों बनाया?

उत्तर- सरजू भैया जब उधार लेकर बाँध लिए, तब सूदखोर महाजन ने उनसे कहा कि सबूत के लिए कागज पर निशान बना दीजिए। सरजू भैया पेशोपेश में पड़ गए, क्योंकि वह न तो पैसे लौटा सकते थे और न ही उसकी माँग को नामंजूर कर सकते थे। प्रतिष्ठा का ख्याल रखते हुए उन्होंने सादे कागज पर अंगूठे का निशान बना दिया।

प्रश्न 5. अपनी शादी की बात सुनकर सरजू भैया ठठाकर क्यों हँस पड़े?

उत्तर- वह हँसकर बात टालना चाहते थे।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. काजी जी दुबले क्यों ? शहर के अन्देशे सेयह कहावत सरजू भैया पर कहाँ तक चरितार्थ होती है ?

उत्तर- काजी जी दुबले क्यों ? शहर के अन्देशे से‘ यह कहावत सरजू भैया पर पूर्णतः चरितार्थ होती है। क्योंकि उनके पिता जी अच्छे किसान थे, गल्ले का लेन-देन था। लेकिन उनके मरते ही सरजू भैया ने गाँव का बोझ अपने सिर पर उठा लिया। अपना सारा समय लोकोपकार में लगा दिया। फलतः लेन-देन सारी चौपट हो गया। खेती-बारी नष्ट हो गई। पराए उपकार के चलते उन्होंने अपना शरीर सूखा लिया।

प्रश्न 2. आप जोंक, खटमल और चीलर में सबसे खतरनाक किसे मानते हैं, और क्यों ?

उत्तर- मैं जोंक, खटमल और चीलर में चीलर को खतरनाक मानता हुँ, क्योंकि मैं जोंक तथा खटमल का खून चूसना महसूस करता हुँ। मैं उनमें अपना खून प्रत्यक्ष पाता और देखता हुँ। लेकिन चीलर गंदे कपड़े में चुपचाप पड़ा रहता है और व्यक्ति के खून को ऐसे चूसता रहता है कि पता भी नहीं चलता। चीलर चूसे खून को अपने रंग में बदल लेता है। इससे पता भी नहीं चलता।

प्रश्न 3. सरजू भैया के दिनचर्या से आप कहाँ तक सहमत हैं ?

उत्तर- सरजू भैया के दिलचर्या से मैं बिल्लकुल सहमत नहीं हूँ, क्योंकि उनकी कोई दिलचर्या थी ही नहीं। लोगों का बुलावा आते ही वह चल पड़ते थे। दिलचर्या में काम का नियम समय होता है लेकिन उनके लिए कोई नियम समय नहीं था। दुसरों के काम के कारण उन्हें समय पर खाने का समय नहीं रहती थी। फलतः कमर झुक गई। शरीर कंकाल का पर्याय बन गया।

प्रश्न 4. ‘‘सरजू भैया के सेवा-सदन का दरवाजा हमेशा खुला रहता है।‘‘ इस आशय का क्या तात्पर्य हैं ?

उत्तर- इस आशय तात्पर्य है कि दिन हो या रात, चिलचिलाती दोपहर हो या अँधेरी अधरतिया , सरजू भैया हर क्षण लोगों के सहयोग के लिए चल पड़ते थे। वह गाँव भर के बोझ आपने सिर पर लेकर चलते थे। अर्थात लोकोपकार उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था। इसलिए वह हमेशा अपनी सेवा देने को तत्पर रहते थे।

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BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter10 भीष्म की प्रतिज्ञा

Class 6th Hindi Text Book Solutions

10. भीष्म की प्रतिज्ञा (वंशीधर श्रीवास्तव)

पाठ का सारांस- प्रस्तुत एकांकी ‘भीष्म की प्रतिज्ञा‘ में एकांकीकार वंशीधर श्रीवास्तव ने देवव्रत (भीष्म) के त्याग का वर्णन विभिन्न पात्रों के माध्यम से किया है।

नाटक के पात्र

शान्तुन        :   हस्तिनापुर के सम्राट

भीष्म          :   हस्तिनापुर के युवराज

दाशराज     :  दाशराज की पुत्री

सैनिक, द्वारपाल , देवगण और सत्यवती की सखियाँ।

                     पहला दृश्य

(स्थान-यमुना क निकटवर्ती प्रांत में निषादों के राजा दाशराज का निवास-स्थान) हस्तिनापुर सम्राट महाराजा शान्तनु दाशराज के घर पहुँचते हैं जहाँ उनका गर्मजोशी से स्वागत होता है। दाशराज उनके आगमन से फूले न समा रहे हैं। शान्तनु अपने आगम का कारण बताते हुए कहते हैं कि आपकी परम सुन्दरी कन्या सत्यवती को हस्तिनापुर के राजरानी बनना चाहता हुँ। सम्राट की बात सुनकर दाशराज कहता है-यह मेरा परम सौवभग्य होगा, परन्तु निषादकन्या राजरानी का बोझ कैसे उठा सकेगी ? इसका उत्तर देते हुए शान्तनु कहते हैं कि सत्यवती महान नारी है। यह संसार के बड़े सम्राट की रानी होने के योग्य है। अपनी सुन्दरता से उर्वशी एवं मेनका को लजाती हुई इन्द्रपुरी की शोभा बढ़ा सकती है। साथ ही, इस विवाह से दो जातियों का हृदय जुड़ेगा तथा हस्तिनापुर की शक्ति बढ़ेगी। सम्राट के इस प्रस्ताव पर असहमित जताते हुए दाशराज ने कहा-सत्यवती का विवाह हस्तिनापुर नरेश के साथ उसी स्थिति में होगा यदि उसका पुत्र राजगद्दी पर बैठे न कि सामंत बनकर रहे। दाशराज के इस प्रस्ताव पर शान्तनु ने कहा-‘दाशराज वीरों में श्रेंष्ठ, प्रजाप्रिय, योग्य एवं सुशील देवव्रत का ही राजगद्दी पर अधिकार है, उन्हें इस अधिकर से वंचित नहीं कर सकता।‘ महाराज सेवा हेतु दसों की संख्या बढ़ाने हेतु सत्यवती का विवाह आपके साथ करने से असमर्थ हुँ। निषादराज का इस उत्तर से शान्तनु उदास मन वापस हो जाते हैं।

                       दुसरा दृश्य

महाराज की उदासी का कारण जानते ही देवव्रत निषाद राज के घर की ओर चल पड़ते हैं। वहाँ पहुँचने पर उनका भव्य स्वागत होता है। देवव्रत की वीरता की प्रशंसा करतें हुए निषाद राज ने कहा-‘जिनसे मित्रता करने के लिए देव, गंधर्व तथा यक्ष लालायित रहते हैं ऐसे महान वीर के पदर्पण से निषादराज धन्य हो गया। बताइए क्या बात है ?‘

देवव्रत ने निषादराज से कहा-मैं अपने पिता शान्तनु की प्रसन्नता के लिए सत्यवती को हस्तिनापुर ले जाने की अभिलाषा से आया हूँ।‘‘ देवव्रत के आने का उद्देश्य जानने के बाद दाशराज ने कहा‘ मेरी शर्त है कि सत्यवती का विवाह तभी होगा, जब उसका पुत्र हस्तिनापुर की राजगद्दी का स्वामी बने।‘ दाशराज के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए देवव्रत ने कहा-ऐसा ही होगा। तब दाशराज ने कहा-आप पर तो पूर्ण भरोसा है कि आप अपनी प्रतिज्ञा का पालन करेंगे, लेकिन आपकी संतान इस शर्त को मानेगी या नहीं, इस पर संदेह है। दाशराज के इस संदेह पर देवव्रत ने सुर्य, चन्द्र, देवता, पृथ्वी, अग्नि तथा दसों दिक्पालों को साक्षी रखते हुए कहा-आप सब कान खोल कर सुन लें कि देवव्रत आजीवन ब्रह्मचारी रहेगा। इनकी इस प्रतिज्ञा से निषादराज अवाक् रह जाते हैं, आकाश से फूल की वर्षा होने लगती है तथा आकाश वाणी होती है-‘‘भीष्म, भीष्म-देवव्रत ऐसी प्रतिज्ञा करने वाला न पैदा हुआ है और न होगा-इसलिए आज से तुम्हारा नाम ‘भीष्म‘ हुआ । भीष्म सत्यवती को रथ पर चढ़ा कर विदा होते हैं और पर्दा गिर आता है।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. शान्तनु कहाँ के महाराजा थे?

उत्तर- शान्तनु हस्तिनापुर के महाराजा थे।

प्रश्न 2. निषादराज ने राजा से अपनी कन्या के विववह के लिए क्या शर्त रखें?

उत्तर- निषादराज ने अपनी कन्या के विवाह के लिए सत्यवती की संतान को ही राजगद्दी पर बैठाने की शर्त रखी।

प्रश्न 3. राजा को निषादराज की शर्त मानने में क्या कठिनाई थी ?

उत्तर- राजा को निषादराज की शर्त मानने में देवव्रत को युवराज पद से वंचित करने की कठिनाई थी। देवव्रत वीरों में श्रेष्ठ, अस्त्र विद्या में पारंगत तथा प्रजाप्रिय थे। ऐसी देव-तुल्य पुत्र के साथ ऐसा अन्याय करना राजा के लिए संभव नहीं था।

प्रश्न 4. देवव्रत ने हस्तिनापुर की गद्दी पर नहीं बैठने की प्रतिज्ञा क्यों की?

उत्तर- देवव्रत ने हस्तिनापुर की गद्दी पर नहीं बैठने की प्रतिज्ञा पिता की प्रसन्नता के लिए की। यदि वह ऐसा नहीं करते तो राजा सत्यवती को पाने से वंचित हो जाते। उनकी पितृभक्ति पर प्रश्नचिह्न लग जाता। इसलिए उन्होेंने ऐसी प्रतिज्ञा की।

प्रश्न 5. देवव्रत का नाम भीष्म क्यों पड़ा?

उत्तर- देवव्रत का नाम भीष्म इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचारी (अविवाहित) रहने की प्रतिज्ञा की थी। ऐसी कठिन प्रतिज्ञा करने वाला न अब तक हुआ था और न होगा। इसी भीष्म प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा।

प्रश्न 6. देवव्रत ने दाशराज की शर्त्त क्यों मान ली? सही कथन के आगे सही का निशान लगाइए।

(क) वह राजा नहीं होना चाहते थे।

(ख) उन्हें निषादराज को प्रसन्न करना था।

(ग) वह ब्रह्मचारी बनकर यश कमाना चाहता थे।

(घ) वह अपने पिता को सुखी देखना चाहते थे।

उत्तर-(घ) वह अपने पिता को सुखी देखना चाहते थे।

प्रश्न-7. मिलान करें:

स्तम्भ ‘     स्तम्भ

शान्तनु             निषादों के राजा

भीष्म             दाशराज की पुत्री

दाशराज       हस्तिनापुर के सम्राट

सत्यवती       हस्तिनापुर के युवराज

उत्तर: शान्तनु       हस्तिनापुर के सम्राट

भीष्म        हस्तिनापुर के युवराज

दाशराज      निषादों के राजा

सत्यवती      दाशराज की पुत्री

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. अगर आप भीष्म की जगह होते तो क्या करते  हैं?

उत्तर- अगर मैं भीष्म की जगह होते तो वही करता जैसा भीष्म ने किया, क्योंकि एक पितृभक्त का प्रथम कर्तव्य अपने पिता को प्रसन्न रखना होता है। पिता की इच्छा की पूर्ति करने वाला पुत्र संसार में पुज्य हो जाता है। वह अति भाग्यवान तथा पुण्यवान कहलाता है। पुत्र के लिए पिता ही भगवान के समान होता है (पितृदेवो भव)

प्रश्न 2. इस एकांकी का कौन-सा पात्र आपको अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर- इस एकांकी का पात्र भीष्म मुझे सबसे अच्छा लगा, क्योंकि इन्होंने अपने पिता की प्रसन्नता के लिए आजीवन ब्रह्मचारी (अविवाहि) रहने का संकल्प लिया। इन्होंने पिता की खुशी के लिए जैसा महान त्याग किया वह युग-युग तक पुत्रों को पिता की खुशी के लिए त्याग करने की प्रेरणा देता रहेगा।

प्रश्न 3. हस्तिनापुर को वर्तमान में क्या कहा जाता है ?

उत्तर- हस्तिनापुर को वर्तमान में दिल्ली कहा जाता है।

प्रश्न 4. दाशराज की शर्त्त उचित थी तो क्यों? अथवा अनुचित थी तो क्यों ?

उत्तर- दाशराज की शर्त्त उचित थी, क्यो कि हस्तिनापुर सम्राट शान्तनु बूढ़ा हो गए थे। शान्तनुपुत्र देवव्रत महान पराक्रमी , प्रजाप्रिय तथा स्वभाविक युवराज थे। ऐसी स्थित में कोई पिता अपनी पुत्री के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता। इसी जोखिम के भय से निषादराज ने सम्राट के समक्ष ऐसी शर्त्त रखी। अतः दाशराज की शर्त्त निर्विवाद उचित थी। अनुचित किसी भी अर्थ में नहीं थी।

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