BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 17. फसलों के त्योहार

Class 6th Hindi Text Book Solutions

17. फसलों के त्योहार (संकलित)

पाठ का सारांश – प्रस्तुत निबंध ‘फसलों के त्योहार‘ में कृषि से संबंधित त्योहारों का वर्णन किया गया है। भारत अनेकता में एकता का देश है। इस अनेकता में ही इसकी विशेषता है। यहाँ विभिन्न जाति एवं सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। ये अपने-अपने क्षेत्रानुसार पर्व-त्योहार मनाते हैं तथा वेष-भूषा धारण करते हैं, लेकिन राष्ट्रीयता की भावना सबसे एकसमान है।

ऐसे तो हमारे देश में हर महीने कोई-न-कोई त्योहार आता ही रहता है, किंतु जनवरी में जो त्योहार मनाया जाता है, उसे मकर संक्रांति या तिला संक्रांति कहते हैं। इस अवसर पर ओग तिल स्नान एवं तिलदान तथा तिल से बनी मिठाई खाते हैं। इस दिन खिचड़ी खाने की भी प्रथा है। ऐसे ही पर्व से संबंधित विषयों के बारे में लेखक ने बताया है कि सम्पूर्ण देश में यह पर्व भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। जनवरी जाड़े का महीना कहलाता है। इसी कारण लेखक ने इस समय के मौसम का वर्णन करते हुए कहा है कि सारा दिन बोरसी के आगे बैठकर आग तापते गुजर जाता है। पूरे दस दिन हो गए सूरज भगवान दिखाई नहीं दिए। सुबह रजाई से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बाहर देखने से तो समय का पता ही नहीं चल रहा था, लेकिल घर में चहल-पहल एवं चापाकल चलने की आवाज तथा किसी की हाँफने की आवाज सुनाई पड़ रही थी-‘‘जा भाग के देख, केरा के पत्ता आइल की ना ?‘‘

नहा- धोकर सभी एक कमरे में इकट्ठा हुए। दादा और चाचा चकाचक सफेद धोती एवं कुर्ता पहने हुए थे। ‘खिचड़ी में अइसन जाड़ हम पहिले कब्बो ना देखनी, देह कनकाना देता।‘‘ पापा को कुछ ज्यादे ठंड लग रही थी। दादी सफेद साड़ी पहने मचिया पर बैठी हुई थी। दादी के सामने केले के पत्ते पर तिल, गुड़, चावल आदि के छोटे-छोटे ढेर रखे थे। परिवार के सारे लोग बारी-बारी से पत्ते पर रखी चीजों को हाथ से छूने के बाद प्रणाम करते थे। इसके बाद इन सारी चीजों को इकट्ठा करके दान दे दिया गया।

इस दिन लोग चूड़ा-दही खाते हैं, लेकिन अप्पी दीदी को चूड़ा-दही पसंद नहीं है, फिर भी आज तो यही खाना है। घर में खिचड़ी बनने की बात सुनकर मुझे स्कूल के दिनों की याद आ गई। जब हम नाव पर बैठकर गंगा की सैर करने जाते थे और रेत में उस पार पतंग उड़ाने का आनंद लेते थे, जब गूरूजी एवं अन्य छात्र दोस्त वहाँ खिचड़ी बनाते थे। कोई मटर और प्याज छीलने का काम करता था तो कोई ईंट का चूल्हा बनाता था और फिर खिचड़ी बनती थी। वैसी खिचड़ी फिर दुबारा खाने को नहीं मिली।

जनवरी माह के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रांतों में यह पर्व भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में मकर संक्रांति या तिल संक्रांति कहते हैं तो असम में बीहू, केरल में ओण्म, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड में सरहुल, गुजरात में पतंग का पर्व के नाम से प्रसिद्ध है। झारखंड में यह पर्व ‘सरहुल‘ के नाम से चार दिनों तक मनाया जाता है। अलग-अलग जनजातियों के लोग इसे अलग-अलग समय में मनाते हैं। जैसे-संथाल लोग फरवरी मार्च में तो ओरांव इसे मार्च-अप्रैल में मनाते हैं। आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं। सरहुल के दिन विशेष रूप से ‘साल‘ के पेड़ की पूजा की जाती है। इस अवसर पर गाँव-घर की सफाई तथा घर की लिपाई-पुताई की जाती है। स्त्री-पुरूष नृत्य करते हैं। गीतों की ध्वनि से सारी घाटी गूँज उठती है। यह सिलसिला रात भर चलता है और अगले दिन लोग घर-घर जाकर चाँदा माँगते हैं। फिर सहभोज का दौरा चलता है। तीसरे दिन पूजा के बाद ‘सरई‘ के फूल कानों पर लगाकर आशीर्वाद लेते तथा देते हैं, धान की पूजा की जाती है तथा इसी धान को अगले वर्ष बोया जाता है।

तमिलनाडु में यह पर्व ‘पोंगल‘ रूप में मनाया जाता है। इस दिन खरीफ की फसलें चावल, मसूर आदि कटकर घरों में आती हैं। लोग नए धान को कूटकर चावल निकालते हैं तथा मिट्टी के नये मटके में चावल, दूध, गुड़ आदि डालकर उसे धूप में पकाते हैं और साबुत हल्दी को मटके के मुँह के चारों ओर बाँध देते हैं, क्योंकि हल्दी शुभ माना जाता है। जैसे ही धूप की गर्मी से दूध-चावल मटके में उबलने लगता है और मटके से बाहर गिरने लगता है तो लोग खुशी से पोंगल-पोंगल बोल उठते हैं। नैसर्गिक ताप से पकी इस मीठी खीर को लोग शुभ फल देने वाला मालते हैं।

इसी प्रकार गुजरात में मकर संक्रांति का पतंगबाजी का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक गुजराती विभिन्न रंग तथा आकार के पतंग उड़ाते हैं। सारा आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से ढंक जाता है। लगता है उस उत्सव के द्वारा ये बदलती प्रकृति का स्वागत कर रहे हो। उड़ती पतंगें इनके हृदय की उमंग तथा प्रसन्नता को व्यक्त करती हैं।

कुमाऊँ में मकर संक्रांति को घुघुतिया कहते हैं। इस दिन आटे तथा गुड़ को गूंध कर डमरू, तलवार, दाड़िम (अनार) के फूल आदि के आकार के पकवान बनाए जाते हैं। पकवान को तलने के बाद माला बनाई जाती है, जिसमें संतरे के फांके तथा गन्ने की गंडेरी पिरोई जाती है। यह काम बच्चे रूचि तथा उत्साह के साथ करते हैं। सवेरे यह माला बच्चों को दे दी जाती है। बच्चे इसे लेकर पहाड़ों पर चले जाते हैं और माला के पकवान तोड़-तोड़कर पक्षियों को खिलाते हैं और ‘‘कौआ आओ, घुघूत आओ। ले कौआ बड़ौ, म कै दे जा सोने का घड़ौ‘‘ आदि गाकर अपनी कामना प्रकट करते हैं।

इस प्रकार पूरे देश की मकर संक्रांति की झाँकी इस पाठ में चित्रित है। कड़ाके की ठंड केे बावजूद इस पर्व के अवसर पर लोग नदी, तालाब आदि में डुबकी लगाते हैं। तिल दान करते हैं, आग में तिल डालते हैं तथा तिल के विशेष पकवान का स्वाद लेते हैं यह क्रिया सभी स्थानों में किसी-न-किसी रूप में अवश्य सम्पन्न होती है।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. ‘‘अप्पी दिदिया बुरी फँसी।‘‘ कैसे ?

उत्तर- अप्पी दिदिया इसलिए बुरी फँसी क्योंकि उन्हें न तो चूड़ा-दही पसंद था और न ही खिचड़ी। आज फरमाइशी नाश्ता नहीं चलेगा। क्योंकि आज खिचड़ी का पर्व है। इसलिए उन्हें दोनांे ही चीजें चूड़ा-दही तथा खिचड़ी खानी ही होगी।

प्रश्न 2. संथाल लोग सरहुल कब और कैसे मनाते हैं?

उत्तर- संथाल लोग सरहुल फरवरी-मार्च में मनाते हैं। इस दिन विशेष रूप से ‘साल‘ के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि इसी समय साल के पेड़ों में फुल आने लगते हैं जिससे मौसम अति खुशनुमा हो जाता है। पुरूष एवं महिलाएँ दोनों ही ढोल-मँजीरे लेकर रात भर नाचते-गाते हैं दुसरे दिन घर-घर जाकर फूल के पौधे लगाते हैं तथा घर-घर से चंदा में मुर्गा, चावल, मिश्री आदि मांगते हैं और मिलकर खाना खाते हैं और खेलते हैं। तीसरे दिन पूजा होती है। पूजा के बाद लोग कानों में सरई का फूल पहनते हैं।

प्रश्न 3. आपके यहाँ फसलों के त्योहार को किस नाम से जाना जाता है और कैसे मनाया जाता है ?

उत्तर- बिहार में इस त्योहार को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग स्वेरे स्नान करते हैं। इसके बाद घर के बुजुर्ग तिल-गुड़ आदि बाँटते हैं। तिल दान होता है। चूड़ा-दही, तिलकुट आदि इस दिन का मुख्य भोजन है। कहीं-कहीं खिचड़ी की भी प्रथा है। लोग इस त्योहार द्वारा फसल तैयार हाने की खुशी प्रकट करते हैं। मिथिला में ब्राह्यणों को भोजन कराया जाता है तथा खिचड़ी, वस्त्र आदि दान दिया जाता है।

प्रश्न 4. मकर संक्रांति के दिन तिल को किस रूप में प्रयोग करते हैं ?

उत्तर- मकर संक्रंति के दिन स्नान करते हैं तथा तिल दान और तिल से बने मिठाईयाँ खाते हैं अर्थात् मकर संक्रंति के दिन हम स्नान, दान तथा खाने के रूप में करते हैं।

प्रश्न 5. स्तंभ में त्योहारों के नाम दिये गए हैं, जिन्हें स्तंभ में दिए गए राज्यों के नाम से मिलान कीजिए:

‘              ‘‘                    उत्तर: ‘                   ‘

बीहू              पंजाब                         बीहू                   असम

पोंगल             झारखण्ड                 पोंगल                 तामिलनाडु

ओणम             असम                      ओणम                 केरल

मकर-संक्रांति       केरल                मकर-संक्रंति            बिहार

लोहड़ी             गुजरात                    लोहड़ी                  पंजाब

सरहुल              बिहार                      सरहुल                  झारखण्ड

पतंग पर्व            तमिलनाडु               पतंग पर्व                गुजरात

प्रश्न 6. इन वक्यों के आगे सही (/ ) का चिन्ह या गलत ( x ) का चिन्ह लगाएँ।

(क) तिलकुट गया से आया था।

(ख) भारत में फसलों का त्योहार अप्रैल के मध्य मनाया जाता है।

(ग) सरहूल का जश्न चार दिनों तक चलता है।

(घ) पोंगल पर्व में ‘साल‘ के पेड़ की पूजा की जाती है।

उत्तर- (क), (ख), (ग) सहीं हैं। केवल (घ) गलत है। इस का सही रूप है सरहुल पर्व में ‘साल‘ के पेड़ की पूजा होती है।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. हिन्दी महिनों के नाम लिखिए तथा उस महीने में मनाये जाने वाले पर्वा का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: चैत्र               –     रामनवमी

वैशाख              –     वैशाखी, सतुआनी

ज्येष्ठ                 –      वटसावित्री पर्व

आषाढ़              –      गुरूपूर्णिमा

श्रावण               –     नागपंचमी, रक्षाबंधन

भाद्रपद            –     तीज, गणेश चतुर्थी

आश्विन            –      दुर्गापूजा

कार्तिक          –      दीपावली, छठ

मार्गशीर्ष (अगहन)    –    विवाह पंचमी

पूस              –       मकर संक्रांति

माघ             –     सरस्वती पूजा

फाल्गुन        –     होली।

प्रश्न 2. निम्न पंक्तियाँ भोजपुरी भाषा में लिखी गई हैं। इन पंक्तियों को आप अपनी मातृभाषा में लिखिए।

(क) ‘‘आज ई लोग के उठे के नइखे का ? बोल जल्दी तैयार होखस।‘‘

उत्तर-आज इनलोगों को जल्दी उठना नहीं है क्या ? बोलो कि जल्दी तैयार हो जायँ।

(ख) ‘‘जा भाग के देख , केरा के पत्ता आईल कि ना?‘‘

उत्तर- दौड़ कर जाकर देखो कि केला का पत्ता आया है या नहीं ?

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