BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 5 हार की जीत

Class 6th Hindi Text Book Solutions

5. हार की जीत (सुदर्शन)

सारांश- बाबा भारती को अपने घोड़े से बड़ा प्रेम था। बाबा भारती उसे ‘सुलतान‘ कहकर पुकारते थे। खड्गसिंह उस इलाके का भयंकर डाकू था। उसके कानों में भी ‘सुलतान‘ की प्रसिद्धि पहुँची।

एक दिन दोपहर को खड्गसिंह बाबा भारती के निकट पहुँचा। बाबा भारती के पुछने पर उसने बताया कि सुलतान की चाह ने उसे यहाँ खींच लाया है। बाबा भारती बड़ी उत्साह के साथ अपना घोड़ा दिखाया। घोड़े कि सुन्दरता और चाल ने तो खड्गसिंह के हृदय में ईर्ष्या उत्पन्न कर दी। वहाँ से जाते-जाते उसने कहा कि बाबाजी घोड़ा मैं आपके पास नहीं रहने दुँगा।

खड्गसिंह की बात से बाबा भारती डर गए। इस तरह कई माह बीत गए। बाबा भारती अब असावधान हो गए थे।

एक दिन शाम के समय बाबा भारती सुलतान के पीठ पर सवार होकर घुमने निकले। अचानक एक कराहती आवाज सुनकर उन्होंन घोड़े को रोक दिया। देखा, एक अपाहिज उनसे एक दया की भीख माँग रहा था। उसने निकट के गाँव तक पहुँचा देने की प्रर्थना की। बाबा भारती ने उसे घोड़े पर चढ़ा दिया और स्वयं लगाम पकड़कर चलने लगे। अचानक लगाम उनके हाथ से छूट गई। उन्होंने देखा कि खड्गसिंह उनका घोड़ा दौड़ाए लिए जा रहा है। उन्होंने खड्गसिंह से बस इतना ही कहा कि यह घोड़ा अब तुम्हारा हुआ, लेकिन इस घटना कि चर्चा किसी से मत करना, अन्यथा आज से कोई किसी गरीब की मदद नहीं करेगा। बाबा भारती की बात खड्गसिंह के हृदय को छू गई। उस समय वह वहाँ से चला तो गया, लेकिन रात को चुपचाप बाबा भारती के अस्तबल बाँध गया। रात के अंतिम समय में बाबा भारती जगे। उनके पाँव स्वतः अस्तबल की ओर बढ़ गए। घोड़े ने अपने मालिक के पैरों की आवाज पहचानकर हिनहिनना शुरू कर दिया। वे दौड़ते हुए, अस्तबल में घुसे और घोड़े के गले से लिपटकर रोने लगे। फिर संतोष के साथ उनके मुँह से निकला ‘‘अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।‘‘

                 सप्रसंग व्याख्याएँ

1. सुलतान ऐसे चलता है, जैसे घटघटा को देखकर मोर नाचता हो।

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘हार की जीत‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें बाबा भारती के घोड़े सुलतान की विशेषता का वर्णन किया गया है।

लेखक का कहना है कि बाबा को अपना घोड़ा देखकर वैसा ही आनन्द मिलता था, जैसा आनन्द माँ को अपने बेटे से, किसान को अपने लहलहाते खेत से, गुरू को अपने शिष्य से तथा साहूकार को अपने देनदार को देखकर मिलता है, क्योंकि घोड़े की चाल ऐसी सधी हुई थी कि उसकी चाल देखकर बाबा उसी प्रकार झुम उठते थे, जिस प्रकार बादल की घटा देखकर मोर नाचने लगता है।

2. ‘‘ परन्तु तुम मेरी एक बात सुनते जाओ खड्गसिंह ! मैं एक प्राथना करता हुँ, अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।‘‘

सप्रसंग व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘ हार की जीत‘ शीर्षक पाठ से ली गई है। इसमें कहानीकार ने बाबा भारती की महानता पर प्रकाश डाला है।

जब खड्गसिंह घोड़ा लेकर भाग खड़ा होता है तो बाबा उसके इस व्यवहार से स्तब्ध रह जाते है। इसी स्बधता में उनके मुँह से आवाज निकलती है कि ‘‘खड्गसिंह इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। क्योंकि लोग जब जान जाएँगे कि एक अपाहिज ने ऐसा विश्वास घात किया है तो निर्बल और असहायों पर विश्वास करना छोड़ देंगे।‘‘ फलतः मानवता का लोप हो जाएगा। इसी मानवता की रक्षा के लिए बाबा भारती ने डाकू खड्गसिंह से ऐसी बातें कहीं।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. बाबा भारती कौन थे ?

उत्तर- बाबा भारती एक संत थे, जो घर का त्यागकर गाँव के बाहर मंदिर में रहते थे और भगवान का भजन करते थे।

प्रश्न 2. बाबा भारती अपने घोड़े से किस प्रकार स्नेह करते थे ?

उत्तर- बाबा भारती अपने घोड़े से उसी प्रकार स्नेह करते थे, जिस प्रकार माँ अपने बेटे से, किसान अपने लहलहाते खेत से, गुरू अपने शिष्य से तथा मोर घटघटा से स्नेह करते हैं।

प्रश्न 3. बाबा भारती के घोड़े को देखने के लिए खड्गसिंह अधीर हो उठा ? घोड़ा देखने के बाद खड्गसिंह के दिमाग में क्या उथल-पुथल होने लगी ?

उत्तर- खड्गसिंह ने जब बाबा भारती के घोड़े की प्रसिद्धि सुनि तो वह उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। घोड़े की सुन्दरता एवं चाल देखकर उसके हृदय पर साँप लोटने लगा। उसके दिमाग में घोड़े प्राप्ति की योजना बनने लगी कि किसी भी प्रकार इस घोड़े को प्राप्त किया जाए, क्योंकि साधु को ऐसी चीजों से क्या मतलब।

प्रश्न 4. खड्गसिंह ने बाबा भारती के घोड़े को पाने के लिए किस प्रकार के रूप बदला?

उत्तर- खड्गसिंह जानता था कि बाबा भारती स्वेच्छा से कभी भी सुलतान को नहीं देंगे। इसलिए उसने अपाहिज बनकर घोड़े को प्राप्त करने की योजना बनाई।

प्रश्न 5. पाठ के किन वाक्यों से पता चलता है कि बाबा भारती को अपने घोड़े पर गर्व था ?

उत्तर- ‘बाबा ने घोड़ा दिखाया गर्व से और खड्गसिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से।‘

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. ‘‘लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया तो वे किसी अपाहिज पर विश्वास न करेंगे।‘‘ बाबा भारती के इस वक्तव्य का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- बाबा भारती मानवता का पुजारी तथा छल-कपट रहित व्यक्ति थे। वे गरीबों के प्रति सहानुभूति रखते थे। उनकी इस सज्जनता और मनुष्यता का गलत लाभ खड्गसिंह उठाना चाहता था। उसने असहाय अपाहिज बनकर घोड़ा हथिया लिया। इस पा बाबा भारती ने उससे प्रार्थना कि कि इस घटना की चर्चा वह किसी से न करे अन्यथा कोई किसी असहाय पर अविश्वास के कारण सहायता नहीं करेगा। अर्थात् इन असहायों एवं गरीबों पर से लोगों का विश्वास उठ जाएगा।

प्रश्न 2. खड्गसिंह ने चुपके से रात में सुलतान को वापस अस्तबल में बाँध दिये। ऐसा उसने क्यों किया?

उत्तर- खड्गसिंह को बाबा भारती साक्षात् देवता लगने लगे थे। वह सोचने लगा कि बाबा भारती के सोच कितने ऊँचे है ? उनमें त्याग कि कितनी भावना है ? गरीबों के प्रति कितना स्नेह है ? और इसी प्रभाव के कारण उसने सुलतान को पुनः बाबा भारती के अस्तबल में बाँध गया।

प्रश्न 3. बाबा भारती के किस व्यवहार से खड्गसिंह के सोच में परिवर्तन हुआ ?

उत्तर- बाबा भारती के उच्च विचार तथा गरीबों के प्रति दया भाव ने खड़गसिंह के सोच में परिवर्तन ला दिया। उसने सोचा जो घोड़ा बाबा भारती को प्राणों से बढ़कर प्यारा है, वह इस प्रकार छीन जाने पर भी दुःखी नहीं है। उन्हें चिन्ता है तो मात्र गरीबों के अविश्वास पर। गरीबों के प्रति इस प्रकार के व्यवहार से उसका विचार बदल गया।

प्रश्न 4. आपकी प्रिय वस्तु छिनने का प्रयास करे तो आप क्या करेंगे ?

उत्तर- मेरी प्रिय वस्तु कोई छिनने का प्रयास करेगा तो मैं उसका प्रतिकार करूँगा। मैं अपने प्राण रहते छीनने नहीं दुँगा। क्योंकि हर व्यक्ति को अपनी वस्तु की रक्षा का अधिकार है। इस अधिकार के लिए मैं जान की बाजी लगा दुँगा।

प्रश्न 5. अगर आपको बाबा भारती से घोड़ा लेना होता ता आप क्या करते ?

उत्तर-अगर मुझे बाबा भारती से घोड़ा लेना होता तो मैं उनसे अनुनय-विनय करता कि यह घोड़ा मुझे दे दीजिए। आपके लिए यह उपयोगी नहीं है साधु तो दुसरो के उपकार के लिए शरीर धारण करते है। सामान्य मनुष्य को सांसारिक वस्तुओं के प्रति आकर्षण होता है। इसलिए यह घोड़ा मुझे दे दीजिए।

प्रश्न 6. कहानी का कोई दुसरा शीर्षक क्या हो सकता है ?

उत्तर- डाकू खड्गसिंह का चित परिर्वतन‘ अथवा ‘बाबा भारती का दया भाव’।

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