BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 3 संख्याज्ञानम्

Class 6th Sanskrit Text Book Solutions

तृतीयःपाठः
संख्याज्ञानम्
(संख्या संबंधी जानकारी)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ में छात्रों को संख्या संबंधी जानकारी दी गई हैं। संख्या का ज्ञान सबके लिए आवश्यक हैं। संस्कृत में एक से चार तक की संख्याएँ तीनों लिंगों में अलग-अलग होती हैं। जैसे-पुंलिंग में एकः स्त्रीलिंग में एका तथा नपुंसकलिंग में एकम् होता हैं। लेकिन चार के बाद सभी लिंगो में संख्याएँ एक समान होती हैं।

 नोटः एक से चार तक तीनों लिंगों तथा तीनों वचनों में

   पुंल्लिंग                                               स्त्रीलिंग                                       नपुंसकलिंग

(1) एकः बालकः पठति।              (1) एका बाला पठति।                             (1) एकं पुष्पं विकसति।

(2) द्वौ अश्वौ धावतः।                   (2)द्वे महिले गायतः।                                (2) द्वे चक्रे  भ्रमतः।

(3) त्रयः खगाः कूजन्ति।               (3) तिस्रः बालिकाः क्रीडन्ति।                    (3) त्रीणि पत्रांणि पतन्ति।

(4) खट्वायाः चत्वारः                (4) चतस्रः महिलाः भ्रमन्ति।                      (4) अत्र चत्वारि पुष्पाणि सन्ति।

शब्दार्थः

                 पुंल्लिंग                              स्त्रीलिंग                                  नपुंसकलिंग

अर्थः

(1.) एक लड़का पढ़ता हैं।               (1) एक लड़की पढ़ती हैं।               (1)एक फूल खिलता हैं।

(2) दो घोड़े दौड़ते हैं।                     (2) दो महिलाएँ गाती हैं।                (2) दो पहिए घुमते हैं।

(3) तीन पक्षी कूकते हैं।                  (3) तीन लड़कियाँ  खेलती हैं।         (3) तीन पते गिरते हैं।

(4) खटिया में चार पैर हैं।               (4) चार महिलाए घूमती हैं।              (4) यहाँ चार फूल हैं।

पाँच से बीस तक के वाक्य तीनों लिंगों में :

पन्न्च पाण्डवाः गन्छन्ति। भ्रमरस्य षट् पादाः सन्ति। सप्त तारकाः गगने भान्ति। अत्र अष्टौ फलानि सन्ति। नव पतंगाः। दश मोटरयानानि गच्छन्ति। एकादश फलानि गुच्छे सन्ति। अत्र द्वादश कन्दुकानि सन्ति। तत्र त्रयोदश पुस्तकानि तिष्ठन्ति। चतुर्दश छात्राः नृत्यन्ति। जले पन्न्चदश मीनाः तरन्ति। पुरा भारते षोडश जनपदाः आसन्। इमानि सप्तदश चक्राणि चलन्ति। पुराणानि अष्टादश सन्ति। ऊनविंशतिः भ्रमराः भ्रमन्ति। विंशतिः चटकाः विहरन्ति।

अर्थ- पाँचों पाण्डव जाते हैं। भौंरे के छः पैर होते हैं। आकाश में सात तारे चमकते हैं। यहाँ आठ फल हैं। नौ (नव) फतिंगे हैं। दस मोटर-गाडीयाँ जाती हैं। गुच्छा में ग्यारह फल हैं। यहाँ बारह गेंदे हैं। वहाँ तेरह पुस्तकें रखी हैं। चौदह लडकियाँ नाचती हैं। पानी में पन्द्रह मछलियाँ हैं। पहले भारत में सोलह जनपद थे। ये सतरह/सत्रह चक्के चलते हैं। पुराण अठारह हैं। उन्नीस भौरे चक्कर लगाते हैं। बीस चिडियाँ विहार करती हैं।

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