BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 2 सरलपदपरिचयः

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 द्वितीयः पाठः
सरलपदपरिचयः
(आसान शब्दों का ज्ञान )

पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ में छात्रों को संस्कृत के कुछ उपयोगी शब्दों की जानकारी दी गई हैं। बच्चें इस पाठ के माध्यम से घर में उपयोग होनेवाली वस्तुएँ पशु पक्षी ’फूल फल तथा शरीर के अंगो के नामों से परिचित होंगे। इससे बच्चों को यह जानने में मदद मिलेगी कि उक्तवस्तु को संस्कृत में क्या कहा जाता है। (क) गृहोपकरणानि (घरेलू वस्तुएँ

शब्‍दार्थ                                                               अर्थ

1‐ एषा खट्वा अस्ति।                    एषा (स्त्री॰)= यह। खट्वा=खटिया। अस्ति= है।           यह खटिया हैा

2‐ कम्बलम् उष्णं भवति।           कंबलम्=कंबल। उष्णं= गर्म। भवति= होता              कंबल गर्म होता है।

3‐ घटः पूर्णः अस्ति।                   घटः घडा। पूर्णः= भरा हुआ। अस्ति= हैं।                  घडा भरा हुआ हैं।

4‐ पर्यक्डः विस्तृतः अस्ति।       पर्यक्डः= पलंग। विस्तृतः= बडा। अस्ति= हैं।             पलंग बडा हैं।

5‐ अयं दर्पणः अस्ति।              अयम् (पुं॰)= यह। दर्पणः= आइना।                          यह आइना हैा

6‐ वर्तिका प्रज्वलिता अस्ति।      पर्यक्डः= पलंग। विस्तृतः= बडा। अस्ति= हैं।          मोमबती जल रही हैं।

 

(ख) पशवः (पशुओं के नाम) :

शब्‍दार्थ                                                अर्थ

1‐ अश्वः धावति।                  अश्वः=घोडा। धावति= दौडता हैं।             घोडा दौडता हैं।

2‐ अजा चरति।                   अजा= बकरी। चरति= चरती हैं।             बकरी चरती हैं।

3‐ गजः विशालः भवति।       गजः= हाथी। विशालः= बडा।                 हाथी बडा होता हैं।

4‐  उष्ट्रः मरूस्थलस्य          उष्ट्रः= ऊॅट। मरूस्थलस्य0=                    ऊॅट मरूभूमि की सवारी होता हैं।

यानम् भवति।                      मरूभूमि का

5‐ कच्छपः मन्दं चलति।       कच्छपः= कछुआ। मन्दं= धीरे।                कछुआ धीरे चलता हैं।

चलति=चलता हैं।

6‐ कुक्करः बुक्कति।            कुक्करः= कुत्ता। बुक्कति= भौंकता हैं।      कुत्ता भौंकता

 

(ग) पक्षिणः (पक्षियों के नाम):

शब्‍दार्थ                                                  अर्थ

1‐ मयूरः नृत्यति।                   मयूरः= मोर। नृत्यति= नाचता हैं।               मोर नाचता हैं।

2‐ कोकिलः कूजति।            कोकिलः= कोयल। कूजति= कूकती हैं।      कोयल कूकती हैं।

3‐ कपोतः तिष्ठति।                कपोतः= कबूतर। तिष्ठति= बैठता हैं।         कबूतर बैठता हैं।

4‐ कुक्कटः अन्नं खादति।       कुक्कटः= मुर्गा। अन्नं= दाना ’                  मुर्गा अनाज खाता हैं।

अनाज। खादति =खाता हैा

5‐ हंसः तडागे तरति।         हंसः= हंस। तडागे= तालाब में।                 हंस तालाब में तैरता हैं।

तरति =तालाब

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

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द्वादशः पाठः
नीतिश्लोकाः
(नीति संबंधी श्लोक)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ’नीतिश्लोकाः’ पाठ में महापुरुषों के अनुभवा के द्वारा छात्रों को जीवन संबंधी प्रेरणा दी गई है। जीवन के आरंभ से ही बच्चों को यह सीखना आवश्यक हो जाता है कि वह लोगों के साथ कैसा आचरण करे। क्योंकि जीवन की सफलता-असफलता आचरण पर ही निर्भर करती है। अच्छे आचरण वाले आदर के पात्र बनते हैं तथा बुरे आचरण वाले सदा अपमानित होते हैं।

1. प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।

तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।

अन्वय- सर्वे जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति, तस्मात् ।

तद् एव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।

शब्दार्थ- प्रियवाक्यप्रदानेन = प्रिय वचन बोलने से। सर्वे = सभी । तुष्यन्ति = खुश होते हैं। जन्तवः = सभी प्राणी। तत् एव = वैसा ही। वक्तव्यं = बोलें, बोलना चाहिए। वचने = बात में। का = कैसी। दरिद्रता = कंजूसी।

 अर्थ- सभी प्राणी मधुर वचन सुनकर खुश हो जाते हैं, इसलिए हमेशा वैसा ही प्रियवचन बोलना चाहिए । बोलने में कैसी कंजूसी। तात्पर्य यह कि संसार में हर कोई.

प्रियवचन सुनकर ही आकर्षित (प्रसन्न) होते हैं, इसलिए नीतिकार की सलाह है कि सदा मधुर वचन बोलना चाहिए। इसमें कंजूसी करना कोई चतुराई नहीं है। .

2. यस्मिन्देशे न सम्मानो न प्रीतिर्न च बान्धवाः।

न च विद्यागमः कश्चिन्न तत्र दिवसं वसेत् ।।

अन्वय- यस्मिन् (यत्र) कश्चित् न सम्मानः न प्रीतिः न बान्धवाः न विद्यागमः (भवेत) तत्र न दिवसं वसेत् ।

शब्दार्थ-यस्मिन् = जिसमें, जहाँ । देशे = देश में, स्थान पर । सम्मान – आदर। प्रीतिः = प्रसन्नता, प्रेम । बान्धवाः = भाईचारे का भाव, बंधुत्व । विद्यागमः = शिक्षा की , व्यवस्था। कश्चित् = कोई, किसी में । तत्र = वहाँ । दिवसं = एक दिन। वसेत = रहना . चाहिए।

अर्थ- जिस जगह न आदर (सम्मान) मिलता हो, न प्रेम या प्रसन्नता हो. न भाईचारे (बन्धुत्व) की भावना हो और न शिक्षा की व्यवस्था हो, वहाँ किसी को एक दिन भी नहीं रचना चाहिए। क्योंकि ऐसी जगह पर सदा अनहोनी की आशंका बनी रहती है यानी जीवन पर खतरे की आशंका बनी रहती है। इसलिए नीतिकार ने ऐसे स्थान (जगह) . की उपेक्षा करने की सलाह दी है। )

3. काव्यशास्त्रविनोदेन, कालो गच्छति धीमताम् ।

  व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।

अन्वय- धीमताम् कालः काव्यशास्त्रविनोदेन गच्छति (परञ्च) मूर्खाणां तु (कालः) व्यसनेन कलहेन निद्रया कलहेन वा (गच्छति)।

शब्दार्थ- काव्यशास्त्रविनोदेन = काव्य और शास्त्र की चर्चा, पठन-पाठन में । काल = समय। गच्छति = बीतता है। धीमताम् = बुद्धिमानों का । व्यसनेन = बुरे कार्य में । तु = तो । मूर्खाणां = मूल् का। निद्रया = सोकर । कलहेन = लड़ाई-झगड़े में ।

अर्थ- बुद्धिमानों का समय शास्त्रचिन्तन या पठन-पाठन में व्यतीत होता है तो मूर्खाे का समय बुरे कार्यों में, सोकर तथा लड़ाई-झगड़े में बीतता है। तात्पर्य यह कि बुद्धिमान अपना समय व्यर्थ में व्यतीत नहीं करते। हर क्षण को महत्त्व देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि बीता हआ क्षण वापस नहीं लौटता, लेकिन मूर्ख समय के महत्त्व को नहीं समझता जिस कारण अपना समय व्यर्थ के कार्यों में व्यतीत कर देता है।

4. अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।

  अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ।।

अन्वय:  कुतः अलसस्य विद्या, कुतः अविद्यस्य धनम् (संभवतः अस्ति)।

कतः अधनस्य मित्रम् (अतएव) कुतः अमित्रस्य सखम (अस्ति) ।।

अर्थ-आलसी व्यक्ति को विद्या की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?मूर्खा को धन कहाँ से मिल सकता है ? जो निर्धन है, उसे मित्रसुख का आनन्द कैसे मिल सकता है तो बिना मित्र के सुख और प्रसन्नता की कल्पना कैसे की जा सकती है? अर्थात् बिना किसी गुण के व्यक्ति को जीवन में आनन्द रस का प्राप्त होना सर्वथा असंभव है।

5. हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम्।

श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम् ।।

अन्वयः  हस्तस्य भूषणं दानं (भवति), कण्ठस्य भूषणम् सत्यं (सत्यवचनम्) (भवति)। श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं (भवति)। (अतएव) भूषणैः किं प्रयोजनम् ।

शब्दार्थ- हस्तस्य = हाथ का । भूषणं = आभूषण । दानं = दान । कण्ठस्य = कंठ का। श्रोत्रस्य = कान का । शास्त्रं = सत्य कथन । किं = क्या । प्रयोजनम् = जरूरत, आवश्यकता।

अर्थ- हाथ की शोभा किसी को दान देने से बढ़ती है, सत्य वचन बोलने से कंठ (मुँह) पवित्र होता है। सुन्दर ,वचन सुनने से कान की शोभा बढ़ती है, इसलिए ऐसा आचरण करने वालों को अन्य आभूषणों की आवश्यकता नहीं रह जाती है। क्योंकि दान, दया और दमन (अपने-आप पर नियंत्रण) मानव की सबसे बड़ी विशेषता है।

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 11 गङ्गा नदी

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एकादशः पाठः
गङ्गा नदी
(गंगा नदी)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ’गंगा नदी’ में पवित्र नदी गंगा के धार्मिक महत्त्व के विषय में कहा गया है। यह हिमालय के गोमुख नामक स्थान से निकलकर बंगाल की खाड़ी के गंगासागर नामक स्थान पर समुद्र में विलीन हो जाती है। यह हिन्दुओं की धार्मिक निष्ठा की नदी है। हिन्दू अपने धार्मिक कार्य में इसके जल का उपयोग करते है। तट पर अनेक प्रमुख नगर जैसे-हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयाग), बनारस (काशी) तथा पटना आदि अवस्थित हैं। उत्तर भारत की भूमि गङ्गा के मैदान के नाम से जानी जाती है। इस नदी की विशेषता का वर्णन वेदों ने भी किया है। उसी नदी की महत्ता का वर्णन इस पाठ में हुआ है।

1. गङ्गा भारतवर्षस्य पवित्रतमा नदी वर्तते । इयं हिमालयस्य गोमुखस्थानात् प्रभवति । बंगोपसागरे गंगासागरनामिके स्थाने इयं सागरजले मिलति । गङ्गातटे बहूनि नगराणि सन्ति । अस्माकं बिहारस्य राजधानी पाटलिपुत्रमपि गङ्गायाः तटे स्थितम् अस्ति । गङ्गाजलम्अतिपवित्रं भवति । अस्याः जलेन धार्मिकं कार्यम् भवति । हिन्दूधर्मावलम्बिनां सर्वेषु शुभकार्येषु गङ्गाजलस्य आवश्यकता भवति ।

भारतवर्ष की सबसे पवित्र नदी है। यह हिमालय के गोमुख नामक स्थान से निकलती है तथा बङ्गाल की खाड़ी में गङ्गासागर नामक स्थान पर समुद्र में मिलती है।

गड़ा के किनारे अनेक नगर अवस्थित हैं। हमारे बिहार राज्य की राजधानी पटना भी गङ्गा के तट पर ही स्थित है। गङ्गा का जल अति पवित्र होता है। इसके जल का उपयोग धार्मिक कार्य में होता है। हिन्दू धर्म को मानने वालों को हर शुभ कार्यों में गङ्गाजल की जरूरत होती है।

2.  गडाग्‍याम्: अनेकाः नद्यः मिलन्ति । तासु यमुना-सरयू गंडकी-कौशिकी प्रभृतयः सन्ति । गङ्गायाः तटे हरिद्वार-प्रयाग-काशी-प्रभृतीनि प्रसिद्धतीर्थस्थानानि सन्ति । गङ्गाजलेन कृपिभूमेः सेचनं भवति ।

अधुना जनाः गङ्गाजलं प्रदूपितं कुर्वन्ति । गङ्गातटे स्थितानां नगराणां सर्वाणि लजलानि गङ्गायां पातयन्ति । केचन मनुष्याणां पशूनाञ्च मृतशरीराणि नद्यां बान्त । इदं न साधु कार्यम् अस्ति । नदीजले मलानां क्षेपणं वैज्ञानिक विचारेण धार्मिकविचारेण च न शोभनम्।

अर्थ-  गङ्गा में अनेक नदियाँ मिलती हैं। उनमें यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि प्रमुख हैं। गङ्गा के तट पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी आदि तीर्थस्थान बसे हुए हैं। गङ्गा के जल से खेतों की सिंचाई भी होती हैं। सम्पूर्ण लोग गङ्गाजल को गंदा कर रहे हैं। गङ्गा के तट पर स्थित नगरों का गंदा पानी गङ्गा में ही गिराया जाता है। कुछ लोग मनुष्य एवं पशुओं के मृत शरीर (लाश) को नदी में बहा देते हैं। यह अच्छा काम नहीं है। नदी में गंदगी फेंकना वैज्ञानिक एवं धार्मिक दृष्टि से निन्दनीय कार्य है।

पाठ-सारांश गङ्गा भारतवर्ष की सबसे पवित्र नदी है। यह हिमालय के गोमुख शान से निकलती है और गंगासागर नामक स्थान पर बङ्गाल की खाड़ी में मिल जाती। गड़ा नदी के किनारे अनेक नगर बसे हुए हैं। हमारे बिहार की राजधानी पटन अवस्थित है। गङ्गा का जल अति पवित्र होता है। इस जल से धार्मिक कार्य होता है। हिन्दू धर्म को मानने वाले प्रत्येक शुभ कार्य में इस जल का उपयोग करते हैं। गंगा में

अनेक नदियाँ मिलती हैं। उन नदियों में यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि है। गङ्गा नदी के किनारे हरिद्वार, प्रयाग, काशी आदि तीर्थस्थान हैं। गड़ा के जल से खेतों की

सिंचाई की जाती है। सम्प्रति लोग इस जल को गंदा कर रहे हैं । गङ्गा के किनारे बसे हुए नगरों की सारी गंदगी इसी में डाले जाते हैं। कछ लोग मनुष्य एवं पशु के मतृशरीर (लाश) को गङ्गा नदी में बहा देते हैं। यह अति निंदनीय कार्य है। नदी के जल में गंदगी डालना वैज्ञानिक एवं धार्मिक दोनों दृष्टि से अति निकृष्ट है।

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं  समत्वम्

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दशमः  पाठः
सामाजिकं  समत्वम्
(सामाजिक समानता)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ’सामाजिकं समत्वम्’ में सामाजिक समानता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। समता किसी भी समाज या देश का मूल मंत्र होती है। जिस समाज में समानता की भावन होती है, उसमें भेदभाव का नाम नहीं होता। सभी मिलजुल कर काम करते हैं और अपने को समाज की एक इकाई मानकर अपने दायित्व् का निर्वाह पूर्ण ईमानदारी से करते हैं। समाज विभिन्न इकाई के समूह को कहते हैं। भिन्न-भिन्न जाति या धर्म के होते हुए भी सभी समान उद्देश्य से काम करते हैं।

1. मनुष्यः सामाजिकः प्राणी वर्तते। समाजं विना मनुष्याणां जीवनं कठिनं भवति। एकं भवनं जनानां सहयोगेन निर्मितं भवति। केचन जनाः इष्टकानां निर्माणम् अकुर्वन्। केचन अस्य भवनस्य कपाट-गवाक्षयोः निर्माणम् अकुर्वन। एवमेव सामाजिक-सहयोगन एव अनेकानि वस्तूनि निर्मितानि भवन्ति।

अस्माकं देशे विविधाः जनाः वसन्ति। विविधान् धर्मान् ते आचरन्ति। किन्तु सर्वे भ्रातृभावेन निवसन्ति। वयं परस्परं सौहार्देन निवसामः। ईद-होलिका-क्रिसमस-प्रभृतीनाम् उत्सवानाम् अवसरेषु परस्परं सहयोगं कुर्मः।

अर्थ- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना लोगों का जीना कठिन (असंभव) होता है। एक घर का निर्माण कई लोगों के सहयोग से होता है। जैसे-किसी ने ईट का निर्माण किया तो कोई इस भवन के दरवाजे तथा खिड़कियों का निर्माण किया। इस प्रकार सामाजिक सहयोग से ही अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

हमारे देश में अनेक जाति के लोग रहते हैं। वे भिन्न-भिन्न धर्मा को मानते हैं। लेकिन सभी भाईचारे के साथ मिलकर रहते हैं। हमलोग आपस में प्रेमपूर्वक रहते हैं। ईद, होली, क्रिसमस आदि अवसरों पर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।

2. केचन जनाः धर्मकारणात् विवादं कुर्वन्ति। ते स्वधर्म श्रेष्ठं वदन्ति। परधर्म हीनं गणयन्ति। वस्तुतः सर्वे धर्मा: समानाः सन्ति।

एवमेव समाजे केचन संपन्नः केचन निर्धनाः सन्ति। सर्वे समाजस्य सदस्याः एव सन्ति। तेषु परस्परं समता भवेत्। यन्त्रस्य एकैकः खण्डः अनिवार्यः अस्ति। तथैव समाजस्य सर्वे जनाः अनिवार्याः सन्ति। यदा भारतीयाः परस्परं सौहार्देन निवसेचुः तदा भारतवर्ष विश्वस्य प्रबलं राष्ट्रं भवेत्।

अर्थ- कुछ लोग धार्मिक कारणों से लड़ते-झगड़ते हैं। वे अपने धर्म को श्रेष्ठ तथा दूसरों के धर्म को तुच्छ मानते हैं। (जबकि) सभी धर्म एक समान होते हैं। इसी प्रकार समाज में कुछ लोग अमीर हैं तो कुछ गरीब हैं। (लेकिन) सभी समाज की इकाई हैं। उन्हें आपस में समानता की भावना होनी चाहिए। जिस प्रकार मशीन को सुचारू रूप से काम करने के लिए एक-एक पूर्जे का होना आवश्यक होता हैं। उसी प्रकार स्वस्थ समाज के लिए समाज के सारे सदस्यों (इकाईयों) का होना अनिवार्य होता है। यदि भारतीय आपस में भाई-चारे के साथ रहें तो भारत संसार का शक्तिशाली राष्ट्र बन सकता है।

संधि-विच्छेद- पस्परं = परः + परं। एवमेव = एवम् + एव। संपन्नाः = सम् + पन्नाः। निर्धना = निः + धनाः। तथैव = तथा + एव।

पाठ-सारांश- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना वह नहीं रह सकता। समाज के सहयोग से ही कोई काम संभव होता है। यथा-किसी मकान का निर्माण बिना समाज के सहयोग से नहीं हो सकता, क्योंकि, ईंट का निर्माण कोई करता है तो दरवाजे एवं खिड़कियों का निर्माण कोई और करता है। तात्पर्य यह कि किसी काम के लिए समाज के विभिन्न सदस्यों की अवश्यकता होती है। हमारे देश में अनेक जाति तथा अनेक धर्म के लोग रहते हैं। सभी एक-दूसरे के साथ भाई-भाई की तरह रहते हैं। ईद, होली क्रिसमस आदि-आदि अवसरों पर सभी एक-दूसरे की मदद करते हैं। लेकिन कुछ लोग धार्मिक कारणों से लड़ाई-झगड़ा करते हैं। वे अपने धर्म को श्रेष्ठ तथा दूसरों के धर्म को तुच्छ मानकर उपहास करते है, जबकि सभी धर्म समान हैं। हर धर्म उद्देस्य एक है। इसी प्रकार समाज में कोई धनी है तो कोई निर्धन है। लेकिन सब के सब इसी समाज के सदस्य हैं। उनमें आपसी मेल हो। क्योंकि यह समाज एक मशीन के समान है। जिस प्रकार मशीन का हर पुर्जा दुरूस्त रहने पर ही मशीन काम करती है, उसी प्रकार स्वस्थ समाज के लिए हर सदस्य का साथ होना आवश्यक होता है। इसलिए हम सारे भेदभावों को भूल,मिल-जुलकर रहें, ताकि हमारा देश भारत संसार में महान् राष्ट्र बने।

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 9 खेलक्षेत्रम्

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नवमः पाठः
खेलक्षेत्रम्
(खेल का मैदान)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ’खेलक्षेत्रम्’ में खेल के मैदान की विशोषता पर प्रकाश डाला गया है। खेल का मैदान ऐसा महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ बच्चे मनोरंजन के साथ-साथ अनेक प्रकार के खेलो का आनंद लेते हैं। बड़े-बढ़े खुली हवा में भ्रमण करते हैं। नगरों में खेल के मैदान का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यहाँ खुले मैदान का अभाव होता है। इसलिए लोग इस मैदान में शारीरिक व्यायाम आदि करते हैं।

रमेशः – मित्र रहीम! इदानीं सन्ध्याकालः वर्तत। चल, खेलक्षेत्रे गच्छाव। रहीमः –

खेलक्षेत्रम् अस्माकं मनोरत्र्जनस्य व्यायामस्य च स्थलं भवति। अवश्यं गमिष्यामि।

(मार्ग शीला मिलति)।

शीलाः – युवां कुत्र गच्छथ ?

रहीमः – आवां खेलक्षेत्रं गच्छावः। किं तवापि इच्छा खेलक्षेत्रस्य भ्रमणाय अस्ति ? यदि वर्तते तदा त्वमपि चल।

(सर्वे खेलक्षेत्रं प्रविशन्ति)

अर्थः  रमेश – मित्र रहीम! अभी शाम का समय है। चलो, खेल के मैदान में जाते हैं।

रहीम – खेल का मैदान हमारे मनोरंजन तथा व्यायाम का स्थान होता है। अवश्य जाऊँगा। (राह में शीला मिलती है)

शीला – तुम दोनों कहाँ जाते हो ?

रहीम – हम दोनों खेल के मैदान को जाते हैं। क्या तुम्हारी भी खेल के मैदान में घूमने की इच्छा है ? यदि ऐसी इच्छा है तो तुम भी चलो। (सभी खेल के मैदान में प्रवेश करते हैं)।

रमेशः – अत्र अनेके बालकाः बालिकाश्च सन्ति।

केचित् कन्दुकेन खेलन्ति। अपरे कन्दुकक्रीडां पश्यन्ति।

शीला – आम् आम्! कन्दुकं लक्ष्यं प्रविशति तदा महान् कोलाहलो भवति। पुनः केन्द्रस्थाने कन्दुकं नयन्ति बालकाः। तदा नवीना क्रीडा भवति।

सीमा – शीले! त्वमत्र कन्दुकक्रीडां पश्यसि। चल, तत्र बालिकाः बैडमिन्टनखेलं खेलन्ति। अन्याः तं खेलं पश्यन्ति।

शीला – चल, आवां खेलदर्शनाय तत्र गच्छाव। इदं खेलक्षेत्रं विशालम्। अनेकाः क्रीडाः अत्र भवन्ति।  खेलक्षेत्रस्य दर्शनेन महान् उत्साहः आनन्दश्च भवति। अतः वयं खेलक्षेत्रं सन्ध्याकाले प्रतिदिनं गच्छामः।

(खेलक्षेत्रस्य दर्शनात् परं सर्वे स्वं स्वं गृहं गच्छन्ति।)

अर्थः  रमेश – यहाँ अनेक लड़के और लड़कियाँ हैं। कोई गेंद से खेलते हैं तो दूसरे गेंद का खेल देखते हैं।

शीला – हाँ, हाँ। (जब) गेंद गोल में घूसता (प्रवेश करता) है तब बहुत शोरगुल होता है। फिर लड़के गेंद को मैदान के मध्य में रखते हैं। फिर नया खेल शुरू होता है।

सीमा – शीले! तुम यहाँ गेंद का खेल देखती हो। चलो, वहाँ लड़कियाँ बैडमिन्टन खेलती हैं। दूसरे लोग उस खेल को देखते हैं।

शीला – चलो, हम दोनों खेल देखने वहाँ जाते हैं। यह खेल का मैदान विस्तृत है। यहाँ अनेक तरह के खेल होते हैं। खेल का मैदान देखकर काफी उत्साह और आनन्द मिलता है। इसलिए हमलोग खेल के मैदान में शाम के समय नित्य जाते हैं।

(खेल देखने के बाद सभी अपने-अपने घर जाते हैं।)

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 8 जलमेव जीवनम्

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अष्टमः पाठः
जलमेव जीवनम्
(जल ही जीवन हैं)

पाठ- परिचय-प्रस्तुत पाठ ’जलमेव जीवनम्’ (जल ही जीवन है) में जल के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। संसार में जल को सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसलिए माना गया है, क्योंकि बिना जल के पेड़-पौधे सूख जाएँगे, धरती बंजर हो जाएगी तथा जीव-जन्तु मर जाएँगे। धरती, जल, आग, आकाश तथा हवा इन पाँचों तत्वों में जल को श्रेष्ठ माना गया है। इसका मुख्य कारण है कि जल पर ही खेती निर्भर करती है। प्रस्तुत पाठ में इसी विशेषता का वर्णन किया गया है।

1. अस्माकं जीवनस्य सुखाय प्रकृतिः नाना पदार्थान् धारयति। तेषु वनस्पतयः पशुपक्षिणः मेघः, सूर्यः, भूमिः, पर्वतः, पवनः, जलम् इत्येते सन्ति। सर्वेषु च जलस्य प्रधानता वर्तते। जलं विना मानवो न जीवति, वनस्पतयः शुष्यन्ति, मेघाः न भवन्ति, अन्नं न जायते। भूमिः अपि शुष्यति। अतो जलं सर्वस्य जीवनम् अस्ति।

अर्थ- हमारे सुखमय जीवन के लिए प्रकृति अनेक वस्तुओं को धारण करती है। उनमें वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी, बादल, धूप, जमीन, पहाड़, हवा, जल ये सब हैं। और (इन) सबों में जल प्रधान है। जल के बिना मानव जीवित नहीं रह सकता है, वनस्पतियाँ सूख जाती हैं, वर्षा नहीं होती है तथा न ही अनाज पैदा होता है। जमीन भी बंजर हो जाती है। इसलिए जल को सबका जीवन कहा गया है।

2. भूमौ जलस्य नाना स्थानानि सन्ति। क्वचित् नदी, क्वचित् सरोवरः विशालः सागरश्च अस्ति। सागरे तु जलं क्षारम् अस्ति। मेघः क्षारं जलं पीत्वा मधुरं जलं ददाति। नद्यां सरोवरे च जलं मधुरं भवति। जनाः कुपान् खनित्वा जलं निष्कासन्ति। क्वचित् कूपे मधुरं पेयं जलं भवति। क्वचित् क्षारम् अपेयं जलं भवति।

अधुना भूमिगतं जलमपि यन्त्रेण निष्कासन्ति। क्षेत्राषां सेचने सर्वस्य जलस्य प्रयोगः भवति। सेचनात् क्षेत्रेषु अन्नं भवति। वनस्पतयः वर्षाजलेन जीवन्ति। अतः सर्वेषां जीवनां वनस्पतीनां भूमेश्च जीवनं जलमेव अस्ति।

अर्थ- धरती पर जल के अनेक स्थान (स्रोत) हैं। कहीं कल-कल करती नदी बहती है तो कहीं तालाब हैं और कहीं विस्तृत सागर हैं। (किंतु) सागर का जल खारा (नमकीन) होता है। बादल खारा जल को पीकर मीठे जल की वर्षा करता है। नदियों तथा तालाबों का जल मीठा (स्वादिष्ट) होता है।, लोग कुआँ खोदकर जल प्राप्त करते हैं। कहीं के कुएँ का जल मीठा (पीने योग्य) होता है तो कहीं का नमकीन (न पीन योग्य होता है।   अब (इस समय) जमीन के अन्दर के जल को मशीन द्वारा निकाला जाता है। खेतों (फसलों) की सिंचाई में इस जल का प्रयोग होता है। सिंचाई से खेतों में अनाज पैदा होते हैं। वनस्पतियों का जीवन जल पर निर्भर करता है। इसलिए सारे जीवों, वनस्पतियों और धरती (जमीन) का जीवन जल ही है।

संधि-विच्छेद- पवनः = पो + अनः। इत्येते = इति + एते। सागरश्च = सागरः + च। जलमपि = जलम् + अपि। भूमेश्च = भूमें: + च। जलमेव = जलम् + एव।

पाठ-सारांश- हमारे सुखमय जीवन के लिए प्रकृति अनेक वस्तुओं को धारण करती हैं। उन सब वस्तुओं में वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी, बादल, सूर्य (धूप), जमीन, पहाड़, हवा तथा जल ये सभी हैं। इन सबों में जल प्रधान है। जल के बिना कोई जीव जीवित नहीं रह सकता है, वनस्पतियाँ सूख जाती हैं वर्षा नहीं होती, अनाज पैदा नहीं होते। जमीन भी बंजर (मरूभूमि) हो जाती है। अतएव जल सबका जीवन (प्रण) है।

धरती पर जल के अनेक स्थान (स्रोत) हैं। कहीं नदियाँ बहती हैं तो कहीं तालाब हैं और कहीं विस्तृत सागर लहरा रहे हैं। सागर का जल खारा (नमकीमन) होता है। बादल खारे जल का शोषण करके मीठे जल की वर्षा करता है। नदी एवं तालाब के जल स्वादिष्ट होते हैं। लोग कुआँ खोदकर जल निकालते हैं। कहीं के कुएँ का जल मीठा अर्थात् पीने योग्य होता है तो कहीं का खारा (न पीने योग्य भी) होता है।

आजकल भूमिगत जल का मशीन द्वारा निकाला जाता है। खेतों की सिंचाई में इस जल का उपयोग होता है। सिंचाई करने से खेतों में अच्छी पैदावार होती है। पेड़-पौधे की हरियाली वर्षाजल पर ही आश्रित होती है। इस प्रकार सारे जीव, वनस्पतियाँ तथा भूमि का प्राण (जीवन) जल है।

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 7 शश-सिंहकथा

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सप्तमः पाठः
शश-सिंहकथा
(खरहा और सिंह की कहानी)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ’शश-सिंहकथा’ पशु आधारित जीवनोपयोगी कथा है। इस कथा के माध्यम से बुद्वि की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है। पंचतंत्र के हितोपदेश तंत्र में कथाकार ने पशु-पक्षियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि संसार में वही पूज्य रहा है जिसने बुद्विमानी से काम लिया है। शारीरिक बल की अपेक्षा बुद्वि श्रेष्ठ होती है। आज एक से एक अस्त्र-शस्त्र बुद्वि की ही देन हैं। इस पाठ में भी बुद्वि के महत्व को दर्शाया गया हैं।

1. एकस्मिन् वने एकः भयंकरः सिंहः वसति स्म। स वने इच्छानुसारेण पशून् भोजनाय मारयति स्म। अतः सर्व पशवः भीताः अभवन्। ते मिलित्वा विचारम् अकुर्वन्-प्रतिदिनम् एकैकः पशुः सिंहस्य भोजनाय स्वयं गच्छतु। स्वविचारं ते सिंहस्य समीपं अस्थापयन्। तदा सिंहः,आम, इति अवदत्।

एवम् एकैकः पशुः सिंहस्य भोजनकाले प्रतिदिनम् अगच्छत्। वनें पशवः निश्चिन्ताः अभवन्। किन्तु एवं पशुनां संख्या क्रमशः क्षीणा अभवत्।

अर्थ- किसी एक वन में एक भयानक सिंह रहता था। वह वन में अपनी इच्छा के अनुसार भोजन के लिए पशुओं को मारता था। इसलिए वन के सारे पशु भयभीत हो गए (रहने लगे)। उन सबने मिलकर विचार किया (कि) प्रतिदिन एक-एक पशु सिंह के भोजन के लिए स्वयं जाय। उन्होंने अपना निर्णय सिंह के समक्ष रखा। तब सिंह ने ’हाँ’ (कहकर) बोला।

इस प्रकार एक-एक पशु सिंह के पास नित्य भोजन के समय जाने लगा। वन में सारे पशु भयरहित रहने लगे। लेकिन इस प्रकार (जाने से) पशुओं की संख्या कम हो गई (या होने लगी)।

2. एकस्मिन् दिवसे एकस्य शशस्य वारः आसीत्। सः विलम्बेन सिंहसमीपम् अगच्छत्। तस्य अल्पशरीरेण, विलम्बेन आगमने च सिंहः कुपितः अभवत्। सः अवदत्-रे दुष्ट! कथं त्वम् एकाकी विलम्बेन च आगतः ? बुद्धिमान् शशःअवदत्- राजन्! कोपं न कुरू। एकः अन्यः सिंहः मार्गे मिलितः। स गुहायां तिष्ठति।

सिंहः अवदत्-कुत्र सः? नय मां तत्र। हनिष्यामि तं दुष्टम्। शशः सिंहं कूपसमीपम् अनयत्। तत्र कूपे स्वेच्छायाम् सिंह अपश्यत्। अन्यं सिंह मत्वा कोपेन सः कूपे अकूर्दत्। तत्र स कालेन मृतः एवं शशस्य बुद्धिः सर्वान् पशून् अरक्षत्। अतः कथयन्ति – बु़द्धर्यस्य बलं तस्य।

अर्थ- किसी दिन एक खरहे की बारी थी। वह (खरहा) देर से सिंह के पास पहँुचा। उसके छोटे शरीर तथा देर से पहुँचने के कारण सिंह क्रोधित हो गया। उसने कहा-अरे दुष्ट! तुम अकेले तथा देर से क्यों आए हो? बुद्धिमान् खरहा ने कहा-हे स्वामी! क्रोध मत करें। रास्ते में एक दूसरा सिंह मिला। वह गुफा में रहता है।

सिंह बोला-वह कहाँ है ? वहाँ मुझे ले चलो। उस दुष्ट को मार दूँगा। खरहा सिंह को एक कुआँ के पास ले गया। उसने अपनी परिछाई कुएँ में देखी। उसे दूसरा सिंह समझकर वह कुएँ में कूद गया। वह उसमें उसी क्षण मर गया। इस प्रकार खरहा ने अपनी बुद्धिमानी से सारे पशुओं की रक्षा की। इसिलिए कहा जाता है कि जिसके पास बुद्धि होती है, उसके पास बल (भी) होता है।

संधि-विच्छेद- एकस्मिन = एक + अस्मिन्। इच्छानुसारेण = इच्छा + अनुसारेण। एकैक = एक + एकः। निश्चिन्ताः = निः+चिन्ताः।  स्वच्छायाम् = स्व + छायाम्। बुद्धिर्यस्य = बुद्धिः + यस्य।

पाठ-सारांश- किसी वन में एक भयंकर सिंह रहता था। वह वन में अपनी इच्छा के अनुसार अपने आहार के लिए पशुओं को मारता था। इस कारण वन के सारे पशु भयभीत हो गए। वे सभी (उन सबने) एक जगह बैठकर विचार किया-प्रतिदिन सिंह के पास स्वयं एक-एक पशु उसके भोजन के लिए जाय। और अपना विचार (निर्णय) सिंह के समझ रखा। तभी सिंह ’हाँ’ ऐेसा बोला। इस प्रकार एक पशु सिंह के भोजन के लिए नित्य जाने लगा। इससे वन के पशु निर्भय रहने लगे। लेकिन इस प्रकार पशु के जाने से पशुओं की संख्या काफी कम हो गई।

किसी एक दिन एक खरहे की बारी थी। वह देर से सिंह के पास पहुँचा। उसके छोटे शरीर तथा विलम्ब से पहुँचने के कारण सिंह अति कुपित हो गया। उसने कहा-अरे दुष्ट! तुम अकेले एवं देर से क्यों आए हो ? चतुर खरहा बोला-हे स्वामी! क्रोध मत करे। राह में एक दूसरा सिंह मिला। वह गुफा में रहता है।

सिंह बोला-वह कहाँ है ? मुझे वहाँ ले चलो। उस दुष्ट को मार डालूँगा। खरहा सिंह को एक कुएँ के पास ले गया। वहाँ सिंह ने कुएँ में अपनी परिछाई देखी। उसे दूसरा सिंह मानकर (समझकर) वह कुएँ में कूद गया। उसमे वह तत्क्षण मर गया। इस प्रकार खरहा ने अपनी बुद्धिमानी से वन के सारे पशुओं की रक्षा की। इसलिए कहा जाता है-जिसके पास बुद्धि होती है, उसी के पास बल भी होता हैं।

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

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षष्ठः पाठः
सुभाषितानि
(सुन्दर वचन)

पाठ-परिचय-  प्रस्तुत पाठ ’सुभाषितानि’ में महापुरूषों के अनुभवों को प्रकट किया गया है। ’सुभाषित’ का अर्थ सुन्दर वचन या कथन होता है। यह ’सु’ तथा भाषित दो शब्दों के योग से बना है। ’सु’ का अर्थ ’सुन्दर’ तथा ’सुभाषि’ का अर्थ ’कथन’ या वचन होता हैं। मानव जीवन अज्ञानता से पूर्ण होता है, इसलिए इन सुन्दर वचनों द्धारा व्यक्तियों को जीवन की सच्चाई को समझने की प्रेरणा दी गई हैं।

1. परोपकाराय सतां विभूतयः।

अर्थ- सज्जनों का धन दूसरों के उपकार के लिए होता है। तात्पर्य यह कि महापुरूष दूसरों के कल्याण के लिए धन अर्जित करते हैं। ऐसे लोग सदा दूसरों के कल्याण के लिए बेचैन रहते हैं। वे दूसरों को दुःखी देख करूणार्द्र हो जाते हैं। वे अपने लिए नही अपितु संसार के कल्याण के लिए देह धारण करते हैं।

2. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।

अर्थ- ऊँचे विचारवालों के लिए संसार ही अपने परिवार जैसा होता है। तात्पर्य यह कि महापुरूष किसी के साथ कोई भेदवाभ नहीं करते। अपना-पराया अर्थात् यह मेरा है, वह दूसरे का, ऐसा निम्न विचार वाले लोग सोचते हैं। उदार विचार वाले सम्पूर्ण संसार के कल्याण के लिए व्यग्र रहते हैं। उनका उद्देश्य मानव-जाति का कल्याण होता है। इसीलिए वे सबको अपने भाई-बन्धु जैसा मानते हैं।

3. सुखार्थिनः कुतों विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम्।

अर्थ- सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ तथा विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ मिलता हैं। तात्पर्य यह कि जो सुख का आकांक्षी है, उसे विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती है, क्योकि विद्या की प्राप्ति के लिए दिन-रात परिश्रम करना पड़ता हैं। इसी प्रकार जो विद्या प्राप्ति का आकांक्षी होता है, उसे सुख कहाँ, क्योकि उसे दिन-रात विद्या-प्राप्ति का धुन सवार रहता है।

4. सत्यं बूयात् प्रियं तूयात् न बूयात् सत्यमप्रियम्।

अर्थ- सत्य बोलें, लेकिन प्रिय बोलें, अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए, क्यो कि अप्रिय सत्य बोलने से सुनने वालों को कष्ट पहुँचता है। लोग ऐसे लोगों को पसन्द नहीं करते हैं। इसिलिए सदा प्रिय सत्य ही बोलना चाहिए जो सबको अच्छा लगे।

5. सम्‍पंतौ च विपंतौ च महतामे‍करूपता

अर्थ- महान् लोग सुख-दुःख दोनों में एक समान रहते हैं। ऐसे लोग सुख देख न तो उतावले होते हैं और न दुःख देख अधीर ही होते हैं। जिस प्रकार सूर्य उगते एवं डूबते समय एक समान (लाल) रहता है, उसी प्रकार बडे़ लोगों का विचार या व्यवहार सदैव एक-सा रहता है, सुख में भी और दुःख में भी।

6. स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान सर्वत्र पूज्यते।

अर्थ- राजा अपने देश में ही पूज्य होता है या आदर पाता है, लेकिन विद्वान की पूजा या आदर सभी जगह होता है। तात्पर्य यह कि राजा अपनी प्रभुता या सम्पन्नता, के कारण क्षेत्र विशेष में ही आदरणीय होता है, जबकि विद्वान् अपनी विद्वता (योग्यता) के कारण जहाँ जाता है, वहीं सबका आदरणीय हो जाता है। अर्थात् धन की अपेक्षा गुण (विद्या) का महत्व अधिक होता है।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।

अर्थ- सभी सुखी (प्रसन्न) तथा नीरोग हों। श्लोक के इस अंश में विश्व कल्याण की कामना की गई है कि संसार के सभी लोग सदा प्रसन्न तथा स्वस्थ रहें। इसी स्थिति में संसार में शांति एवं मानवता की स्थापना हो सकती है।

  1. न लोभेन समं दुःखं न सन्तोषात् परं सुखम्।

अर्थ- लोभ से बढ़कर कोई दुःख नहीं है तथा संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है। तात्पर्य यह कि लोभ के कारण व्यक्ति अनादर का पात्र हो जाता है, लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखते हैं, जबकि संतोषी व्यक्ति का जीवन शांतिमय होता है। उसे हर कोई सम्मान की दृष्टि से देखता है, क्योंकि उसका स्वाभिमान कायम रहता है।

9. आत्मनः प्रतिकूलानि न परेषां समाचरेत्।

अर्थ- अपने से विपरीत आचरण दूसरों के लिए न करें। तात्पर्य यह कि जैसा किसी से स्वयं चाहते हैं, वैसा ही आचरण या व्यवहार उसे दूसरों के साथ भी करना चाहिए, क्योंकि ऐसा व्यवहार करने पर स्वयं के साथ-साथ दूसरे को भी शांन्ति मिलती है।

10. बुभुक्षितः किं न करोति पापम्।

अर्थ- भूखा व्यक्ति क्या नहीं कर सकता ? अर्थात् वह सब कुछ कर सकता है। तात्पर्य कि जब कोई व्यक्ति भूखा होता है तो वह भूख की पीड़ा से व्यथित हो उठता है। फलतः अपने जीवन की रक्षा के लिए कोई भी कुकर्म करने को उद्यत हो जाता है। संसार में भूख मिटाने के लिए ही हर कोई परिश्रम करता है।

11. विद्या ददाति विनयम्।

अर्थ- विद्या से विनम्रता आती है। तात्पर्य यह कि जिसमें विद्या रूपी फल लग जाता है, वह फल से लदे डाली की भाँति झुक जाता है अर्थात वह विनम्र हो जाता है। विद्या की विशेषता है कि जो इसे ग्रहण कर लेता है, वह विद्यारूपी गुण के कारण विनयशील हो जाता है।

12. ज्ञानं भारः क्रियां विना।

अर्थ- आचरण के बिना ज्ञान व्यर्थ है। तात्पर्य यह कि कोई भी व्यक्ति किसी से आदर तभी पाता है, जब वह उसके साथ सद्व्यवहार करता है। ज्ञान स्थूल होता है। आचरण रूपी कसौटी पर ही ज्ञान की सच्चाई का पता चलता है।

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 5 मम परिवारः

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पन्न्चमः पाठः
मम परिवारः
(मेरा परिवार)

पाठ-परिचय-  प्रस्तुत पाठ ’मम परिवारः मैं परिवार की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डाला गया हैं। परिवार को प्रथम पाठशाला कहा जाता है। बच्चे परिवार में ही जीवन की प्रथम शिक्षा प्राप्त करते हैं। उठना-बैठना, किसी का आदर करना आदि अनुशासन संबंधी बातें बच्चे अपने परिवार में ही सीखते हैं। आदर्श जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा परिवार में ही मिलती हैं।

1. इदं मम गृहम् अस्ति। अत्र मम परिवारः निवसति। मम परिवारे अनेके जनाः सन्ति। मम पितामहःवृद्वः अस्ति। स द्वारे एव खट्वायां तिष्ठति। मम पिता माता च गृहमध्ये वसतः। पिता बहिः कार्यं करोति। माता गहकार्येषु लग्ना भवति। मम एका स्वसा अपि अस्ति। सा विद्यालये पठति। यदा-कदा गृहकार्यम् अपि करोति। अहमपि गृहस्य कार्येषु सहायतां करोमि। विद्यालयं च पठनाय गच्छामि। मम कोऽपि भ्राता नास्ति।

अर्थ-  यह मेरा घर है। यहाँ मेरा परिवार रहता है। मेरे परिवार में कई लोग हैं। मेरे दादा बूढ़े हैं। वह दरवाजे पर ही खाट पर बैठे रहते हैं। मेरे माता-पिता घर के भीतर रहते हैं। पिताजी बाहर में काम करते हैं। माताजी घर के कामों में व्यस्त रहती हैं। मुझे एक बहन भी हैं। वह विद्यालय में पढ़ती हैं। कभी-कभी घर का भी काम करती हैं। मैं भी घर के कामों में सहयोग करता हूँ। और विद्यालय पढ़ने के लिए जाता हूँ। मुझे कोई भाई नहीं है।

2. परिवारे पितृव्यः अपि अस्ति। पितृव्यस्य एका पुत्री अस्ति। सा प्राङणे क्रीडति। सा परिवारस्य प्रिया कन्या अस्ति। मम पिता पितृव्यस्य ज्येष्ठः भ्राता अस्ति। तौ पितामहस्य सेवा कुरूतः। यदा-कदा मम मातुलः अपि आगच्छति। सः कथाः कथयति, अस्माकं मनोरन्न्जनं च करोति। वयं सर्वे परिवारे सुखेन निवसामः।

अर्थ  परिवार में चाचा भी हैं। चाचा की एक बेटी है। वह आँगन में खेलती हैं। वह परिवार की प्यारी लड़की हैं। मेरे पिता चाचा के बड़े भाई हैं। वे दानो दादाजी की सेवा करते है। कभ कभी मेरे मामा भी आते हैं। वह कहानी कहते/सूनाते हैं और हमारा मनोरंजन करते हैं। हम सब परिवार में सुख से (खुशीपूर्वक) रहते हैं।

सन्धि-विच्छेद-विद्यालये = विद्या + आलये। अहमपि = अहम् + अपि। कोऽपि = कः + अपि। प्राङने = प्र+ आँगने।

पाठ-सारांश- यह मेरा घर है। इसमें हमारे परिवार के लोग रहते हैं। मेरे परिवार में कई लोग हैं। मेरे दादा बूढ़े है। वह दरवाजे पर ही खाट पर बैठे रहते हैं। मेरे माता-पिता घर के अन्दर रहते हैं। पिता बाहर का काम करते हैं। माता घर के काम में व्यस्त रहती हैं। मुझे एक बहन भी हैं। वह विद्यालय में पढ़ती हैं। कभी-कभी घर के काम में भी सहयोग करती हैं। मैं भी घर के काम में सहयोग करता हूँ और विद्यालय पढ़ने के लिए जाता हूँ। मेरा कोई भाई नही है।

परिवार में चाचा भी हैं। चाचा की एक बेटी भी है। वह आँगन में खेलती हैं। वह परिवार की प्यारी लड़की हैं। मेरे पिता चाचा के बड़े भाई हैं। वे दोनों (भाई) दादाजी की सेवा करते हैं। कभी-कभी मेरे घर मामाजी भी आते हैं। वह कहानी कहते (सुनाते) हैं। और हमारा मनोरंजन करते हैं। हम लोग परिवार में सुख से (खुशीपूर्वक) रहते हैं।

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BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 4 क्रियापद-परिचयः

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चतुर्थः पाठः
क्रियापद-परिचयः
(क्रिया पदों का ज्ञान)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ में क्रियापदों के विषय में बताया गया है। जिस शब्द से किसी काम का होना या करना जाना जाता है, उसे क्रिया कहते हैं। संस्कृत में धातु (क्रिया) के भी तीन वचन होते हैं तथा हर पुरूष के साथ क्रिया एक दूसरे से भिन्न रूप में आती है। पुरूष तीन है:

प्रथम पुरूष- जिसके बारे में कुछ कहा जाता है। हिन्दी में इसे अन्य पुरूष कहा जाता है-वह,वे।

मध्यम पुरूष- जो सुननेवाला होता है-तुम,तू , आप।

उत्तम पुरूष- जो बोलनेवाला (वक्ता) होता है-मै, हम।

प्रथम पुरूषः                                   शब्दार्थ                                                अर्थ

बालकः धावति।            बालकः= एक लड़का। धावति= दौड़ता है।          एक लड़का दौड़ता हैं।

बालकौ धावतः।           बालकौ = दो लड़के। धावतः =दौड़ते हैं।              दो लड़के दौड़ते हैं।

बालकाः धावन्ति।        बालकाः =कई लड़के। धावन्ति =दौड़ते हैं।           कई लड़के दौड़ते हैं।

मध्यम पुरूषः                            शब्दार्थ                                             अर्थ

त्वम् हससि।                      त्वम् =तुम। हससि =हँसते हो।               तुम हँसते हो।

युवाम् हसथः।                  युवाम् =तुम दोनों। हसथः =हँसते हैं।         तुम दोनो हँसते हो।

यूयम् हसथ।                    यूयम् =तुम सभी। हसथ =हँसते हो।          तुम सभी हँसते हो।

उत्तम पुरूषः                               शब्दार्थ                                              अर्थ

अहम् पठामि।                अहम् =मैं। पठामि =पढ़ता हैं।                          मैं पढ़ता हूँ।

आवाम् पठावः।           आवाम् =हम दोनो। पठावः =पढ़ते है।                हम दोनों पढ़ते हैं।

वयम् पठामः।              वयम् = हमलोग। पठाम्ः =पढ़ते हैं।                   हम सभी पढ़ते हैं।

बालिका लिखति।       बालिका =एक लड़की। लिखति =लिखति हैं।      एक लड़की लिखती हैं।

बालिके धावतः।        बालिके =दो लड़कियाँ। धावतः =दौड़ती हैं।         दो लड़कियाँ दौड़ती हैं।

बालिकाः पठन्ति।       बालिकाः =कई लड़कियाँ। पठन्ति =पढ़ती हैं।      कई लड़कियाँ पढ़ती हैं।

पुष्पम् अस्ति।             पुष्पम् =एक फूल। अस्ति =हैं।                            एक फूल हैं।

पुष्पे स्तः।                  पुष्पे =दो फूलें। स्तः= हैं।                                      दों फूल हैं।

पुष्पाणि सन्ति।           पुष्पाणि =कई फूल। सन्ति = हैं।                          कई फूल हैं।

मोहनः विद्यालयम् गच्छति       विद्यालयम् =विद्यालय को। गच्छति = जाता हैा         मोहन विद्यालय जाता हैं।

बालिके अत्र आगच्छतः।         अत्र = यहाँ। आगच्छतः = आती हैं।                       दो लड़कियाँ यहाँ आती हैं।

वयम् जलम् पिबामः।               वयम् = हमलोग। पिबामः पीते हैं।                           हमलोग जल पीते हैं।

घोटकः धावति।                     घोटकः = एक घोड़ा। धावति = दौड़ता हैं।                एक घोड़ा दौड़ता हैं।

घोटकौ धावतः।                    घोटकौ =दौ घोड़े। धावतः दौड़ते हैं।                         दो घोड़े दौड़ते हैं।

घोटकाः धावन्ति।                  घोटकाः = सभी घोड़े। धावन्ति = दौड़ते हैं।              सभी घोङे़ दौड़ते हैं।

गजः आगच्छति।                 गजः = एक हाथी। आगच्छति = आता हैं।                 एक हाथी आता हैं।

गजौ आच्छतः।                   गजौः दो हाथी। आगच्छतः = आते हैं।                      दो हाथी आते हैं।

गजाः आगच्छन्ति।               गजाः = कई हाथी। आगच्छन्ति = आते हैं।               कई हाथी आते हैं।

एतत् किम्’ अस्ति ?             एतत् = यह। किम् = क्या। अस्ति = हैं।                     यह क्या हैं ?

एतत् फलम् अस्ति।             फलम् = फल।                                                     यह एक फल हैं।

एते के स्तः ?                      एते = ये दो। स्तः = हैं।                                            ये दो क्या हैं ?

एते फले स्तः।                   फले = दो फल।                                                    ये दो फलें हैं।

एतानि कानि सन्ति ?         एतानि = ये सब। कानि = क्या। सन्ति = हैं।           ये सब क्या हैं।

एतानि फलानि सन्ति।       फलानि = फल, फलें या फलों।                            ये सब फल हैं।

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