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कक्षा 10 विज्ञान भाग 2 पाठ 6 जैव प्रक्रम | Jaiv Prakram class 10th solutions in Hindi

February 22, 2023 by Tabrej Alam Leave a Comment

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 6 ‘ जैव प्रक्रम (Jaiv Prakram class 10th solutions in Hindi )’ को पढ़ेंगे।

Jaiv Prakram class 10th solutions in Hindi

6. जैव प्रक्रम

पाठ के अन्दर आए हुए प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है ?

उत्तर – हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण इस कारण अपर्याप्त हैं क्योंकि बहुकोशिकीय जीवों में सभी कोशिकाएँ वातावरण से सीधे सम्पर्क में नहीं होती हैं। अतः विसरण सभी कोशिकाओं की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है ।

प्रश्न 2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे ?

उत्तर – सजीवों की समस्त संरचनाएँ अणुओं से मिलकर बनी हैं। सजीवों को अपनी संरचनाओं की मरम्मत जरूरी है। इसलिए इनमें हमेशा अणुओं को गतिशील रखने की क्षमता होनी चाहिए। स्पष्ट है कि जीव के जीवित होने का प्रमाण अणु की गति है ।

प्रश्न 3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है ?

उत्तर – किसी जीव द्वारा ऑक्सीजन, जल तथा भोजन जैसी कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है ।
भोजन — जीव द्वारा ऊर्जा एवं पदार्थों के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
ऑक्सीजन – जीवों को भोजन जैसे पदार्थों के विखण्डन से ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके लिए श्वसन करना पड़ता है।
जल—भोजन के पाचन तथा जैविक प्रक्रियाओं के लिए जल पीया जाता है।

प्रश्न 4. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे ?

उत्तर – जीवन के अनुरक्षण के लिए निम्नलिखित प्रक्रम आवश्यक मानेंगे :

(i) पोषण,         (ii) श्वसन,            (iii) वहन तथा         (iv) उत्सर्जन ।

( पृष्ठ : 111 )

प्रश्न 1. प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है ?

उत्तर – प्रकाशसंश्लेषण के लिए पौधे कच्ची सामग्री वातावरण से प्राप्त करते हैं
(i) क्लोरोफिल पादपों की हरी पत्तियों में वर्तमान रहता है ।
(ii) प्रकाश वे सूर्य से प्राप्त करते हैं ।
(iii) पौधे वातावरण से अपनी पत्तियों के रन्धों द्वारा CO2 ग्रहण करते हैं
(iv) पौधे अपनी जड़ों द्वारा मृदा में से जल का अवशोषण करते हैं और इस प्रकार जल का परिवहन जड़ से पत्तियों तक होता है ।

प्रश्न 2. हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है ?.

उत्तर—हमारे आमाशय में उसकी भित्ति होती है । उसमें जठर ग्रंथियाँ उपस्थित है जिससे अम्ल निकलता है। यह अम्ल पेप्सिन एंजाइम की क्रियाशीलता के लिए आवश्यक है । यह भोजन में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट भी करता है ।

प्रश्न 3. पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है ?

उत्तर—हम जटिल पदार्थों को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। पाचक एंजाइम इन जटिल पदार्थों को छोटे-छोटे सरल अणुओं में बदल देते हैं । यह इसलिए आवश्यक होता है कि सरल अणुओं को क्षुद्रांत्र द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं पाचक एंजाइमों का हमारी पाचन क्रिया में महत्त्वपूर्ण स्थान है

प्रश्न 4. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसेअभिकल्पित किया गया है ?

उत्तर – पचे हुए भोजन का अवशोषण क्षुद्रांत्र में होता है । इसकी संरचना अँगुलीनुमा में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर क होती है जिसे दीर्घरोम कहते हैं । ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं । दीर्घरोम प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं । यहाँ इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नए ऊतकों के निर्माण करने और पुराने ऊतकों की मरम्मत करने में होता है ।

( पृष्ठ : 116 )

प्रश्न 1. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है ?

उत्तर- जो जीव जल में रहते हैं वे जल में विलेय O2 का उपयोग करते हैं क्योंकि जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, इसलिए जलीय जीवों की श्वास दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा द्रुत गति से होती है। स्थलीय जीव श्वसन के लिए वायुमंडल के ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। विभिन्न जीवों में यह ऑक्सीजन भिन्न-भिन्न अंगों द्वारा अवशोषित किया जाता है। सभी अंगों में एक रचना होती है जो उसके सतही क्षेत्रफल की बढ़ाती है । स्थलीय जीव ऑक्सीजन बाहुल्य वायुमंडल के सम्पर्क में रहता है ।

प्रश्न 2. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?

उत्तर—पहले चरण में ग्लूकोज के छः कार्बन वाले अणु का तीन कार्बन वाले अणु पायरुवेट में विखण्डन हो जाता है। यह प्रक्रिया कोशिका द्रव्य में होती है। इसके बाद पायरुवेट एथेनॉल तथा ऑक्सीजन में परिवर्तित हो जाता है । इसके बाद पायरुवेट का विखण्डन विभिन्न जीवों में निम्नलिखित तरीकों से होता है ।
(a) अवायवीय श्वसन – यह क्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है । इसे. अवायवीय श्वसन कहते हैं । यह प्रक्रम किण्वन के समय यीस्ट में होता है ।
(b) वायवीय श्वसन—यह क्रिया ऑक्सीजन के उपस्थिति में होती है। इसे वायवीय श्वसन कहते हैं । इसमें पायरुवेट का विखण्डन होता है । यह प्रक्रम माइटोकॉण्ड्रिया में होता है और इसमें ऊर्जा का उत्पादन अवायवीय की तुलना में अधिक होता है ।
(c) ऑक्सीजन की कमी— कभी-कभी जब हमारी पेशी कोशिकओं में अत्यधिक व्यायाम के कारण ऑक्सीजन का अभाव हो जाता है, पायरुवेट के विखण्डन के लिए दूसरा पथ अपनाया जाता है। यहाँ पायरुवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में परिवर्तन हो जाता है

प्रश्न 3. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है ?

उत्तर- (i) ऑक्सीजन का परिवहन – हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है जो फेफड़ों में पहुँची हुई वायु में से ऑक्सीजन लेकर उन उतकों तक ले जाते हैं जहाँ पर ऑक्सीजन की कमी होती है ।

(ii) कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन — कार्बन डाइऑक्साइड जल में अधिक विलेय है और इसलिए इसका परिवहन हमारे रुधिर में विलेय अवस्था में होता है। यह नासाद्वारों से होकर बाहर निकल जाता है ।

प्रश्न 4. गैसों के विनिमय के लिए मानव- फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया गया है ?

उत्तर- फेफड़ों के अन्दर का मार्ग छोटी-छोटी नलिकाओं में विभाजित होता है, जिसे श्वसनी कहा जाता है । यह आगे श्वसनिकाओं में विभाजित हो जाती है। श्वसनिकाओं का अन्तिम सिरा गुब्बारे के समान संरचना में मिलता है, जिन्हें कूपिकाएँ कहते है कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का बड़ा जाल होता है । कूपिकाओं की भित्ति बहुत पतली होती है। इनमें बहुत सारे रक्त वाहिकाएँ होती हैं, जिसके द्वारा ऐसा का आदान-प्रदान आसानीपूर्वक होता है ।

(पृष्ठ : 122 )

प्रश्न 1. मानव में वहन तंत्र के घटक कौन-से हैं ? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?

उत्तर—मानव में वहन तंत्र के घटक निम्नलिखित हैं :
(a) हृदय,      (b) रुधिर तथा        (c) रुधिर वाहिकाएँ ।

(a) हृदय के कार्य — हृदय एक पेशीय अंग है जो हमारी मुट्ठी के आकार का होता है । यह शरीर में रुधिर को प्रवाहित करता है । यह विऑक्सीजनित रुधिर को शरीर के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त करता है और दूसरी ओर ऑक्सीजनित रुधिर समस्त शरीर में पम्प करके पहुँचा देता है ।
(b) रुधिर – रुधिर तरल संयोजी अवयव हैं, जिसमें (i) प्लाज्मा, (ii) लाल रक् कणिकाएँ, (iii) श्वेत रक्त कणिकाएँ तथा (iv) प्लेटलेट्स होते हैं ।
(i) प्लाज्मा भोजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन युक्त उत्सर्जन पदार्थों क परिवहन करता है ।
(ii) लालरक्त कणिकाएँ श्वसन गैसों तथा हॉर्मोनों का परिवहन करती हैं। (iii) श्वेत रक्त कणिकाएँ संक्रमणों से शरीर की रक्षा करती हैं ।
(iv) प्लेटलेट्स रक्तस्त्राव के स्थान पर रुधिर का थक्का बनाकर मार्ग अवरुद्ध क देते हैं जिससे रुधिर का बहना बन्द हो जाता है ।
(c) रुधिर वाहिकाएँ—रुधिर वाहिकाएँ रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अ तक ले जाती हैं। इनकी भित्ति मोटी तथा लचीली होती है।

प्रश्न 2. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर अलग करना क्यों आवश्यक है ?

उत्तर—स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अत करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पक्षी तथा स्तनधारी जन्तुओं को उच्च ऊर्जा आवश्यकता है। यह लाभदायक इसलिए भी है क्योंकि इन्हें अपने शरीर के तापम को बनाए रखने के लिए निरंतर ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस कारण इन्हें उर्जा प्राप्त करने के लिए ऑक्सीजन की लगातार आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 3. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं ?

उत्तर – उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के दो घटक (i) जाइलम तथा (ii) फ्लोएम ।
(i) जाइलम – जाइलम ऊतक में जड़ों, तनों तथा पत्तियों की वाहिनिकाएँ तथा वाहिकाएँ आपस में जुड़कर जल संवहन वाहिकाओं का एक सतत जाल बनाती हैं । ये पादप के सभी भागों से जुड़ी होती हैं । जाइलम जल तथा लवणों को मृदा से पत्तियों तक परिवहित करता है ।
(ii) फ्लोएम — फ्लोएम में चालनी तथा सहचर केशिकाएँ होती हैं । ये भोज्य पदार्थों को पत्तियों से पौधों के विभिन्न भागों में परिवहित करने का काम करती हैं।

प्रश्न 4. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है ?

उत्तर—पादप में जल तथा खनिज जाइलम कोशिकाओं द्वारा मृदा से पत्तियों तक स्थानान्तरित होते हैं। जड़ों की कोशिकाएँ मृदा से लवण प्राप्त करती हैं । ये मृदा तथा जड़ के लवणों की सान्द्रता में अन्तर उत्पन्न कर देती हैं । इस कारण जाइलम में जल का लगातार गति होता रहता है । वाष्पोत्सर्जन के कारण जल की लगातार हानि होती रहती है और चूषण होता रहता है, जिससे जल की निरन्तर गति बनी रहती है । इस प्रकार जल तथा खनिजों का वहन होता है ।

प्रश्न 5. पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है ?

उत्तर—प्रकाशसंश्लेषण के विलेय उत्पादों का फ्लोएम के द्वारा वहन होना स्थानांतरण कहलाता है । यह कार्य चालनी कोशिकाओं तथा सहचर कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न होता है । भोजन कणों का परिवहन ऊपर तथा नीचे दोनों दिशाओं में होता है । यह क्रिया एक सतत क्रिया है जो ऊर्जा के उपयोग से पूरा होता है । सुक्रोज जैसे पदार्थ फ्लोएम ऊतक में ए. टी. पी. से प्राप्त ऊर्जा से स्थानांतरित होते हैं । यह ऊतक परासरण दाब बढ़ा देता है, जिससे जल इसमें प्रवेश कर जाता है । यह दाब पदार्थों को फ्लोएम से उस ऊतक तक ले जाता है जहाँ दाब कम होता है । फ्लोएम पादप की आवश्यकता के अनुसार पदार्थों का स्थानांतरण करता है ।

(पृष्ठ : 124)

प्रश्न 1. वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए ।

उत्तर – वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना : वृक्क में बहुत पतली भित्ति वाली रुधिर कोशिकाओं का गुच्छा होता है । इसमें प्रत्येक कोशिका गुच्छ, एक नलिका के आकार के सिरे के अन्दर होता है । यह नलिका छने हुए मूत्र को एकत्र करती है । प्रत्येक वृक्क में ऐसे अनेक निस्यंदन एकक होते हैं जिन्हें नेफ्रॉन कहते हैं । प्रत्येक वृक्क में बनने वाला मूत्र एक लम्बी नलिका, मूत्र वाहिनी में प्रवेश करती है जो वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है ।
वृक्काणु के कार्य — बोमेन संपुट के अन्दर कोशिका गुच्छे की कोशिकाएँ पाई जाती हैं जिसके द्वारा रुधिर छाना जाता है । निस्यन्द वृक्काणु के नलिका से होकर गुजरती है । इसमें ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, यूरिक अम्ल, लवण तथा जल की अधिक मात्रा रह जाती हैं। फिर जैसे-जैसे ग्लूकोज, अमीनो, अम्ल, लवण तथा जल को रुधिर कोशिकाओं द्वारा अवशोषित करता है । वैसे-वैसे शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा तथा विलय वर्ज्य (बेकार) पदार्थ उत्सर्जित करना उसी पर निर्भर करता है। फिर अवशोषण के बाद जो निस्यन्द बचता है उसे पेशाब कहते हैं । पेशाब में घुले हुए नाइट्रोजन युक्त उत्सर्जक यूरिया, यूरिक अम्ल, लवण एवं पानी होते हैं । इस प्रकार यह मूत्रवाहिनी द्वारा शरीर से बाहर निकलते हैं ।

प्रश्न 2. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ।

उत्तर—उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप निम्नलिखित तरीकों का उपयोग करते हैं :
(i) वे अतिरिक्त जल से वाष्पोत्सर्जन द्वारा छुटकारा पा सकते हैं ।
(ii) पादपों में बहुत से ऊतक मृत कोशिकाओं के बने होते हैं। वे पत्तियों का क्षय करके छुटकारा पाते हैं ।
(iii) कुछ उत्सर्जक उत्पाद गोंद के रूप में निष्क्रिय जाइलम में संचित रहते हैं
(iv) उत्सर्जी पदार्थ टेनिन, रेजिन, गोंद छाल में भण्डारित रहते हैं जो छाल के हटने से खत्म हो जाते हैं ।

प्रश्न 3. मूत्र बनाने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है ?

उत्तर — मूत्र की मात्रा, शरीर द्वारा पानी ग्रहण करने के ऊपर निर्भर करता है । नेफ्रॉन नलिका द्वारा पानी की मात्रा का अवशोषण निम्न बातों पर निर्भर करता है :
(a) शरीर में जल की मात्रा कितनी है । कितना जल उत्सर्जन करना है ताकि शरीर के ऊतकों में जल की कमी न हो ।
(b) घुलनशील उत्सर्जक जैसे यूरिया तथा यूरिक अम्ल एवं लवण इत्यादि का शरीर से कितना उत्सर्जन करना है । जब शरीर में अधिक उत्सर्जक होता है तो जल की अर्धिक मात्रा आवश्यक होती है । इस स्थिति में मूत्र ज्यादा बनता है ।

अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है :

(a) पोषण                    (b) श्वसन              (c) उत्सर्जन               (d) परिवहन

उत्तर – (c) उत्सर्जन ।

प्रश्न 2. पादप में जाइलम उत्तरदायी है :

(a) जल का वहन                      (b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन           (d) ऑक्सीजन का वहन

उत्तर- (a) जल का वहन ।

प्रश्न 3. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है :

(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल          (b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश                                    (d) उपर्युक्त सभी

उत्तर – (d) उपर्युक्त सभी ।

प्रश्न 4. पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है :

(a) कोशिकाद्रव्य           (b) माइटोकॉण्ड्रिया            (c) हरित लवक      (d) केंद्रक

उत्तर-(b) माइट्रोकॉण्ड्रिया ।

प्रश्न 5. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रकम कहाँ होता है ?

उत्तर – वसा का पाचन क्षुद्रांत्र में होता है। क्षुद्रांत्र आहारनाल का सबसे लम्बा भाग है। आमाशय से भोजन क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है । यहाँ यकृत तथा अग्न्याशय से ग्रावण प्राप्त करता है । आमाशय से आनेवाला भोजन अम्लीय होता है जो अग्न्याशय एंजाइमों की क्रिया के लिए उसे क्षारीय बनाता है। इस प्रकार वसा का इमल्सीकरण होता है और टूटकर इस प्रकार बड़ा क्षेत्र प्रदान करते हैं, जिस पर एंजाइम क्रिया कर सके । लाइपेज नामक एंजाइम में अग्न्याशय रस होता है । इमल्सीकरण हुए वसा का विखण्डन होता है । क्षुद्रान्त्र की भित्ति पर स्थापित ग्रंथियाँ क्षुद्रांत्र रस स्रावित करती हैं, जिसमें लाइपेज एंजाइम होते हैं जो वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदल देता है । यह प्रक्रम क्षुद्रांत्र में होता है ।

प्रश्न 6. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है ?

उत्तर – लाला ग्रंथि से निकलनेवाले रस को लार कहते हैं । यह भोजन को काफी मुलायम कर देता है । जब हम दाँतों से चबाकर भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल देते हैं तब उसमें लार एंजाइम इसमें मिल जाता है। इससे भोजन को निगलने में आसानी होती है। इसे लार एमिलेस भी कहते हैं । यह भोजन को पाचित भी करता है ।

प्रश्न 7. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं ?

उत्तर – स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ निम्नलिखित है:
(i) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना ।
(ii) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित करना तथा जल अणुओं का H2 तथा O2 में अपघटन करना ।
(iii) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन होता है ।

(क) शर्करा,    (ख) जल तथा      (ग) ऑक्सीजन इसके उपोत्पाद हैं ।

प्रश्न 8. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं ?

उत्तर— नलिकाओं में गुब्बारे जैसी रचना में होती है, जिसमें O2 गैस अंतर्वृत हो जाती है । इसमें एक ऐसी सतह होती है, जिससे गैसों का विनिमय होता है । कूपिकाओं की भित्ति मोटी होती है, जिसमें रुधिर वाहिकाओं का बड़ा-सा जाल होता है । रुधिर शेष शरीर से CO2 कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिकाएँ रुधिर वाहिका का रुधिर वायु से O2  लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है ।

प्रश्न 9. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?

उत्तर – हमारे शरीर में यदि हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होती है तो ऑक्सीजन की वहन क्षमता घट जाती है। इसलिए ऑक्सीजन की कमी से होनेवाले रोग सताने लगते हैं। खासकर हीमोग्लोबिन की कमी के कारण साँस फूलने लगती है ।

प्रश्न 10. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?

उत्तर – हमारे शरीर में यदि हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होती है तो ऑक्सीजन की वहन क्षमता घट जाती है। इसलिए ऑक्सीजन की कमी से होनेवाले रोग सताने लगते हैं। खासकर हीमोग्लोबिन की कमी के कारण साँस फूलने लगती है ।

प्रश्न 11. मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है ?

उत्तर—रुधिर को शरीर में एक बार पहुँचने के लिए मानव हृदय से दो बार गुजरना पड़ता है। इसलिए इसे दोहरा परिसंचरण कहा जाता है। इसके अन्तर्गत दो परिसंचरण आते हैं : (i) सिस्टमिक परिसंचरण तथा ‘ (ii) परमोनरी परिसंचरण ।
(i) सिस्टमिक परिसंचरण – यह बाएँ अलिंद से बाएँ निलय में ऑक्सीजनित रुधिर पहुँचाता है, जहाँ से यह शरीर के विभिन्न भागों में पम्प किया जाता है। विऑक्सीजनित रुधिर शरीर के विभिन्न हिस्सों से शिरा द्वारा इकट्ठा करके महाशिरा में डाला जाता है । अन्त में यह रुधिर दाएँ अलिंद में पहुँचता है और फिर दायें अलिंद से बाएँ निलय में जाता है ।
(ii) परमोनरी परिसंचरण — विऑक्सीजनित रुधिर दाएँ निलय से ऑक्सीजनित होने के लिए फेफड़ों में भेजा जाता है। ऑक्सीजनित रुधिर फिर से मानव हृदय के बाएँ अलिंद में आता है। बाएँ अलिंद से बाएँ निलय में, बाएँ निलय से महाधमनी में और फिर सिस्टॉमिक परिसंचरण द्वारा शरीर के सभी भागों में पहुँचता है।
दोहरा परिसंचरण की आवश्यकता : मानव हृदय का दायाँ तथा बायाँ हिस्सा, ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने नहीं देते हैं। ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित रुधिर के अलग-अलग रहने से शरीर में ऑक्सीजन बहुत प्रभावी तरीके से पहुँचता है। यह शरीर के तापमान को नियन्त्रित करने के लिए ऊर्जा देता रहता है ।

प्रश्न 12. जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है ?

उत्तर— जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में निम्नांकित अंतर है :

जाइलम द्वारा वहन

फ्लोएम द्वारा वहन

(i) जाइलम वृक्ष के धड़, शाखाओं तथा पत्तियों तक जल तथा घुलनशील लवण पहुँचाते हैं।
(ii) जल तथा घुले लवणों का चढ़ना वाष्पीकरण से उत्पन्न खिंचाव के कारण होता है ।
(iii) इसमें ऊर्जा खर्च नहीं होती है ।
(i) फ्लोएम भोजन पदार्थों को घुली अवस्था में पत्तियों से पादप के दूसरे हिस्से में पहुँचते हैं ।
(ii) यह परासरण दाब बढ़ा देता है जो फ्लोएम से पदार्थों को ऊतकों की ओर भेजता है तथा दाब कम जाता है ।
(iii) इसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है । क्योंकि यह सक्रिय प्रक्रम है ।

 

प्रश्न 13. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए ।

उत्तर :

कूपिका

वृक्काणु

(i) कूपिका पतली, महीन, नाजुक सतहवाली होती है। इसमें गुब्बारे के समान संरचना पायी जाती है ।
(ii) कूपिकाएँ केवल फेफड़ों में गैसों के आदान-प्रदान के लिए सतही क्षेत्र बढ़ाती हैं
(iii) इसमें गैसों के आदान-प्रदान के लिए रुधिर कोशिकाओं का लम्बा-चौड़ा जाल होता है ।
(iv) कूपिका इसकी सतही क्षेत्र को बढ़ा देती है, जिससे C का रुधिर से वायु में तथा का वायु से रुधिर में विसरण हो सके ।
(i) यह पतली, कप के समान आकृति जैसी संरचना है ।
(ii) इसमें नलिकाकार हिस्से मूत्र को संग्राहक वाहिनी तक ले जाते हैं ।
(iii) इसका काम छानने का है। इससे लाभप्रद पदार्थों तथा जल का पुनः अवशोषण होता है ।
(iv) रुधिर को छानने के लिए तथा जलका पुनः अवशोषण के लिए इसका भी सतही क्षेत्र बढ़ जाता है। अंतिम उत्पाद के रूप में मूत्र बचता हैं ।

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