Mere Bina Tum Prabhu– हिंदी कक्षा 10 मेरे बिना तुम प्रभु

इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 12 (Mere Bina Tum Prabhu) “ मेरे बिना तुम प्रभु” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस पाठ के कवि रेनर मारिया रिल्के‘ है |इनकी शिक्षा-दीक्षा अनेक बाधाओं को पार करते हुए हुई। इन्होंने प्राग और म्यूनिख विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई। संगीत, सिनेमा आदि में इनकी गहरी पैठ थी।

Mere bina tum prabhu

12. मेरे बिना तुम प्रभु (Mere Bina Tum Prabhu)
कवि परिचय
कवि- रेनर मारिया रिल्के
जन्म- 4 दिसम्बर, 1875 ई॰, प्राग, ऑस्ट्रिया (अब जर्मनी)
मृत्यु- 29 दिसम्बर, 1936 ई॰
पिता- जोसेफ रिल्के
माता- सोफिया

इनकी शिक्षा-दीक्षा अनेक बाधाओं को पार करते हुए हुई। इन्होंने प्राग और म्यूनिख विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई। संगीत, सिनेमा आदि में इनकी गहरी पैठ थी।
प्रमुख रचनाएँ- प्रमुख कविता संकलन- ‘लाइफ एंड सोंग्स‘, ‘लॉरेंस सेक्रिफाइस‘, ‘एडवेन्ट‘, आदि। कहानी संग्रह- ‘टेल्स ऑफ आलमाइटी‘, उपन्यास- ‘द नोट बुक ऑफ माल्टे लॉरिड्स ब्रिज‘।

कविता परिचय- प्रस्तुत कविता ‘मेरे बिना तुम प्रभु‘ धर्मवीर भारती के द्वारा हिंदी भाषा में अनुवादित जर्मन कविता है। कवि का मानना है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय है। उनका अस्तित्व भक्त की सŸा पर निर्भर करती है। भक्त और भगवान एक-दूसरे पर निर्भर है।

12. मेरे बिना तुम प्रभु (Mere Bina Tum Prabhu)
जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे ?
जब मैं – तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा ?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहिन हो जाऊँगा ?
मैं तुम्हारा वेश हुँ, तुम्हारी वृति हुँ
मुझे खो कर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?

कवि कहता है कि हे प्रभु ! जब मैं नहीं रहुँगा तो तुम्हारा क्या होगा ? तुम क्या करोगे ? मैं ही तुम्हारा जलपात्र हुँ, जिससे तुम पानी पीते हो। अगर टूट गया तो या जिससे नशा होता है, तो मेरे द्वारा प्राप्त मदिरा सुख जाएगी अथवा स्वादहीन हो जाएगी। वास्तव में, मैं ही तुम्हारा आवरण हूँ वृŸा हूँ। अगर नहीं रहा तो तुम्हारी महता ही समाप्त हो जाएगी।

मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहूलुहान !

मेरे प्रभु, मैं नहीं रहा तो तुम गृहविहीन हो जाओगे। कौन करेगा तुम्हारी पूजा-अर्चना ? वास्तव में, मैं ही तुम्हारी पादुका हुँ जिसके सहारे जहाँ जाता हुँ तुम जाते हो अन्यथा तुम भटकोगे।

तुम्हारा शान्दार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपा दृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था-

कवि कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है। मेरे बिना किस पर कृपा करोगे ? कृपा करने का सुख कौन देगा ? मेरे बिना तुम्हार सुख-साधन विलुप्त हो जाऐंगे, जो मैं तुम्हें देता था।

दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख
प्रभू, प्रभू मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे ?

कवि कहता है कि जब मैं नहीं रहुँगा तो संध्याकालीन अस्त होते सूर्य की सुन्दर लालिमा का वर्णन आखिर कौन करेगा ? क्योंकि उस समय सारा वन प्रांत सूर्य की विखर रही लाल किरणों के संयोग से अद्भुत प्रतीत होता है। इसलिए कवि को आशंका होती है कि मैं नहीं रहा तो तुम क्या करोगे।

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