Nagar– हिंदी कक्षा 10 नगर

इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 4 (Nagar Kahani) “ नगर” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस पाठ के कवि सुजाता है |इंडिया
यह तमिल साहित्य के एक प्रमुख लेखक थे। प्रस्तुत कहानी ‘नगर‘ व्यंग्य प्रधान कहानी है। इसमें कहानीकार ने नगरीय अव्यवस्था पर कटाक्ष किया है किस प्रकार ग्रामीण भोली-भाली जनता के साथ नगर में उपेक्षा एवं बदसलूकी होती है। 

nagar kahani
Nagar Kahani

4. नगर
(Nagar Kahani)

लेखक- सुजाता
वास्तविक नाम- सुजाता रंगराजन
जन्म- तमिलनाडु के चेन्नई में ;3 मई 1935 ई0 द्ध
मृत्यु- 27 फरवरी 2008 ई0
हिन्दी अनुवाद- के0 ए0 जमुना
कहानी का स्त्रोत- नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ
इंडिया
यह तमिल साहित्य के एक प्रमुख लेखक थे।
प्रस्तुत कहानी ‘नगर‘ व्यंग्य प्रधान कहानी है। इसमें कहानीकार ने नगरीय अव्यवस्था पर कटाक्ष किया है किस प्रकार ग्रामीण भोली-भाली जनता के साथ नगर में उपेक्षा एवं बदसलूकी होती है। यह कहानी एक ऐसी लड़की से संबंधित है, जो आज ही मदुरै आई है। उसकी माँ वल्लिअम्माल अपनी पुत्री पाप्पाति के साथ मदुरै स्थित बड़े अस्पताल के बहिरंग रोगी विभाग के बाहर बरामदे पर बैठी प्रतिक्षा कर रही थी। उसकी पुत्री को बुखार था। गाँव के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के डॉक्टर ने उसकी जाँच कर उसे एडमिट करवा देने को कहा। वल्लिअम्माल अनपढ़ थी।
वह इतना भी नहीं जानती थी कि पेसेंट किसे कहते हैं ? फिर भी उसे विभिन्न दफतरों में चिट लेकर जाने को कहा जाता है। डॉक्टर के आदेश की अवहेलना कर उसकी पुत्री को एडमिट नहीं किया जाता है। तंग आकर वह वहाँ से विदा हो जाती है। दुसरे दिन जब बड़े डॉक्टर पाप्पाति को अनुपस्थित देखकर जानकारी लेते हैं तो पता चलता है कि वह वहाँ से विदा हो चुकी है। इससे स्पष्ट होता है कि नगर की व्यवस्था अति अस्त-व्यस्त हो गई है, जहाँ पैसे पर खेल होता है। गरीब एवं ग्रामीण के लिए कोई जगह नहीं है।
मदुरै के एक बड़े अस्पताल में वल्लि अम्माल अपनी लड़की पाप्पति के साथ बहिरंग विभाग के बरामदे में बैठी प्रतिक्षा कर रही थी। पाप्पाति को बुखार था। उसे लेकर गाँव के प्राइमरी हेल्थ सेंटर गई तो डॉक्टर ने कहा- ‘एक्यूट केस ऑफ मेनिनजाइटिस‘ फिर बारी-बारी से दुसरे डॉक्टरों ने देखा। बड़े डॉक्टर ने एडमिट करने को कहा। वल्लिअम्माल ने बड़े डॉक्टर की ओर दखकर पूछा- ‘बाबुजी बच्ची अच्छी हो जाएगी न ?‘
डॉक्टर ने कहा- ‘पहले एडमिट करवा लें। इस केस को मैं स्वयं दंखुँगा।‘ डॉ0 धनशेखरण श्रीनिवासन को सारी बात समझाकर बड़े डॉक्टर के पिछे दौड़े। श्रीनिवासन ने वल्लिअम्माल से कहा- ये ले । इस चिट को लेकर सिधे चली जाओ। सीढ़ियों के ऊपर कुर्सी पर बैठे सज्जन को देना। बच्ची को लेटी रहने दो।
वल्लिअम्माल चिट लेकर सीधे चली गई। कुर्सी खाली पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सज्जन अपने भांजे को भर्ती करा कर लौटे। सब को लाइन लगाने को कहा। आधे घंटे के बाद वल्लिअम्माल से कहा- इस पर डॉक्टर का दस्तखत नहीं है। दस्तखत करवा कर लाओ। फिर वेतन आदि के बारे में पूछकर चिट देकर कहा- इसे लेकर सीधे जाकर बाएँ मुड़ना। तीर का निशान बना होगा। 48 नंबर कमरे में जाना।
वल्लिअम्माल को कुछ समझ में नहीं आया। इधर-उधर घूमकर एक कमरे के पास पहुँची। वहाँ के एक आदमी ने चिट ले ली। कुछ देर बाद पाप्पाति का नाम पढ़कर कहा-
इसे यहाँ क्यों लाई ? ले, इसे लेकर सीधे चली जा। और अपने काम में लग गया। वहाँ बड़ी भीड़ थी। एक आदमी ने चिट रखकर आधे घंटे बाद नाम पुकार कर कहा- इस समय जगह नहीं है। कल सवेरे साढ़े सात बजे आना।
वल्लिअम्माल भागी चक्कर काटकर सीढ़ी के पास पहुँची। बगल का दरवाजा बंद था। इसी में उसकी बेटी स्ट्रेचर पर पड़ी दिखाई दी। पास वाले आदमी से गिड़गिड़ा कर बोली- दरवाजा खोलिए। मेरी बेटी अंदर है। उसने कहा सब बंद हो चुका है, तीन बजे आना। इसी बीच एक आदमी ने कुछ पैसे देकर दरवाजा खुलवाया। वल्लि अम्माल भीतर दौड़ी गई और पाप्पाति को कलेजे से लगाए बाहर आई। फिर बेंच पर बैठकर खुब रोई। इसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगले सुबह तक क्या करें ? फिर सोचा इसे मामुली बुखार ही तो है। वापस चलती हुँं। वैद्य जी को दिखा दुँगी। माथे पर खड़िया मिट्टी का लेप कर दुँगी और अगर पाप्पाति ठिक हो गई तो वैदीश्वरण जी के मंदिर जाकर भगवान को भेंट चढाऊँगी। वल्लिअम्माल का साईकिल रिक्शा बस अड्डे की ओर बढ़ चला। (Nagar)

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