10. Nayan chhagh class 9th sanskrit | कक्षा 9 नायं छागः (प्रहसनम्)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 संस्‍कृत पीयुषम् द्रुतपाठाय भाग दो के पाठ दस‘नायं छागः (प्रहसनम्)’ (Nayan chhagh class 9th sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

10. नायं छागः (प्रहसनम्)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘नायं छाग:’ एक मनोरंजक प्रहसन् है। इसके माध्यम से मनोरंजन के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है। मानव जीवन समस्याओं का जाल है। समस्याओं से घिरे मानव को मानसिक तनाव से कुछ क्षण मुक्ति पाने के लिए किसी मनोरंजन की आवश्यकता महसूस होती है। यह प्रहसन उसी की बानगी है।

(ततः प्रविशति स्कन्धे छागं वहन् देवदत्तः)

देवदत्तः अहो ! स्वस्थः शोभनोऽयं छागः । ग्रामं नीत्वा सपरिवारोऽहं दिनत्रयं यावद् एतस्य
सुललितं मांसं भक्षयामि । (इत्येकतो निष्क्रान्तः) (तत: एकस्मिन् कोणे स्थितास्त्रयो
धूर्ता एतद् दृष्ट्वा परस्परं मन्त्रयन्ति ।)
प्रथम् (मन्दस्वरेण) मित्र । चिरात् छागमांसं न प्राप्तम् । अद्यायं वराको दृश्यते ।
एतस्माच्छागग्रहणाय कश्चिद् उपायः करणीयः ।
द्वितीयः – उपाय: परमः सरलोऽस्ति ।
तृतीयः – कीदृशः? कीदृशः ?
द्वितीयः (उभयो :कर्णे किमपि कथयति ।)
प्रथमः  – (विहसन्) युवाम् अग्रे वेगेन गच्छतम् । अहमत्र तेन सह आलपामि ।

अर्थ- (तब कंधे पर बकरे ले जाता हुआ देवदत्त प्रवेश करता है। Nayan chhagh class 9th sanskrit
देवदत्त-अरे । यह बकरा अच्छा तथा स्वस्थ है। गाँव ले जाकर परिवार के साथ तीन दिनों तक इसके स्वादिष्ट मांस को खाऊँगा । (ऐसा कहकर निकल गया) (तभी एक कोने में स्थित. तीनों धूर्त इसे देखकर आपस में विचार करते हैं।)
पहला –(धीमे स्वर में) । मित्र, बहुत दिनों से बकरे का मांस नहीं खाया हूँ । आज यह बेचारा दिखाई पड़ा है। इसलिए बकरे प्राप्त करने का कोई उपाय करना चाहिए।
दूसरा –उपाय अति आसान है। तीसरा-कैसे? कैसे?
दूसरा – (दोनों के कानों में कुछ कहता है।)
पहला – (हँसते हुए) तुम दोनों तेजी से आगे जाओ। मैं इससे बात करता हूँ।

(द्वितीयतृतीयौ गच्छतः)
(ततः प्रविशति स्कन्धे छागं वहन् देवदत्तः)
देवदत्तः (छागं प्रति) अयि भोः ! अधुना त्वं मम स्कन्धे तिष्ठसि, श्वः मम उदरे
स्थास्यसि ।
प्रथमः – भो ब्राह्मण ! धिक् त्वाम् । कथं कुक्कुरमेनं स्कन्धे वहसि ?
देवदत्तः – (तं साशंकं पश्यन्) नायं कुक्कुरः, छागोऽयं छागः ।
प्रथमः – (विहसन्) पश्यन्तु भोः ! अयं मूर्खः कुक्कुरमेव छागं मनुते ।
देवदत्तः – त्वमेव मूर्खाऽसि । अयं में छागोऽस्ति ।
प्रथमः – गच्छ मूर्ख ! कुक्कुरमेव खादिष्यसि, चाण्डालो भविष्यसि । सावधानेन पश्य,
कुक्कुरोऽयमिति ।
देवदत्तः- गच्छ, गच्छ । मां वञ्चयसि । नाहं तव शृणोमि ।
(उभौ निष्क्रान्तौ)
(ततः प्रविशति द्वितीयः)
द्वितीयः – (आगच्छन्तं देवदत्तं विलोक्य साश्चर्यं विलोकयन्) पश्चन्तु भोः ! अयं ब्राह्मणः
कुक्कुरं वहति । भोः? निक्षिप एनम् । धिक् त्वाम् ।
देवदत्तः – नायं कुक्कुरः, छागोऽयम् ।
द्वितीयः – तव दृष्टिदोषोऽयम् चत् कुक्करं छागं भणसि ।
देवदत्तः – (स्वगतम्) अहो पूर्वमाप तनक्तम्, अधुना पुनरप्ययं कथयति । पश्यामि तावत् ।
(छागं स्कन्वादत्रता निपुणं निरीक्ष्य) नहि नहि । नायं कुक्कुरः, छाग एवायम् ।
द्वितीयः – धिग् विक । परित्यज कुक्कुरम् ।
देवदत्तः – अरे मूर्ख ! के प्रलपसि ? नायं कुक्कुरः छागोऽयं मे छागः । छागं स्कन्धे नीत्वा
अग्रे सरनि ।
द्वितीयः – गच्छ, गच्छ । कुक्कुरं खादिष्यसि । Nayan chhagh class 9th sanskrit

अर्थ- (दूसरा-तीसरा दोनों जाता है) (तब देवदत्त कंधे पर बकरे को लेकर प्रवेश करता है।)
देवदत्त – (बकरे के प्रति) अरे बकरे! इस समय तुम मेरे कंधे पर हो, कल मेरे पेट में रहोगे।..
पहला – हे ब्राह्मण ! तुमको धिक्कार है। क्यों इस कुत्ते को कंधे पर ढो रहे हो ?
देवदत्त – (संदेहपूर्वक उसे देखते हुए) यह कुत्ता नहीं है, यह बकरा है।
पहला – (हँसते हुए) अरे देखो! यह मूर्ख कुत्ते को ही बकरा मान रहा है।
देवदत्त – तुम ही मूर्ख हो। यह मेरा बकरा है।
पहला – जाओ मूर्ख । कुत्ता ही खाओगे। चाण्डाल होओगे। सावधानीपूर्वक देखा। यह कुत्ता ही है।
देवदत्त – जाओ, जाओ । मुझे ठग रहे हो । मैं तुम्हारी बात नहीं सुनूँगा । (दोनों जाते हैं)
(इसके बाद दूसरा प्रवेश करता है)
दूसरा –(देवदत्त को आते हुए देखकर आश्चर्य के साथ देखते हुए) अरे देखो। यह ब्राह्मण कुत्ते को ले जा रहा है। अरे! इसे फेंक दो। तुमको धिक्कार है।
देवदत्त – यह कुत्ता नहीं, बकरा है।
दूसरा – यह तुम्हारा दृष्टिदोष है कि कुत्ते को बकरा कहते हो।
देवदत्त (अपने-आप) अरे पहले भी उसने कहा था, इस समय फिर यह कहता है। तब मैं देखता हूँ। (बकरे को कंध से उतारकर अच्छी तरह देखता है) नहीं, नहीं। यह कुत्ता नहीं, बकरा ही है।
दूसरा – धिक्कार है, धिक्कार है। त्याग करो कुत्ते को।
देवदत्त – अरे मूर्ख! क्या बकते हो। यह कुत्ता नहीं, मेरा बकरा है। बकरे को कंधे पर लेकर आगे बढ़ता है।
दूसरा – जाओ, जाओ। कुत्ते को खाओगे।

(इति निष्कान्तः)
(देवदत्तः किञ्चिद् दूरं गच्छति । ततः प्रविशति तृतीयः)
तृतीयः (उच्चैर्विहसन्) पश्यन्तु भोः । ब्राह्मणोऽयं कुक्कुरं नयति ।
देवदत्तः – नायं कुक्कुरः, छागोऽयम् ।
तृतीयः अरे मूर्ख ! केनापि वञ्चितोऽसि । कुक्कुरोऽयं, परित्यज एनम् । तव पितुः शपथं
कृत्वा कथयामि, नायं छागः, कुक्कुरोऽयम् ।
देवदतः – (विस्मितः सन् स्वगतम्) हन्त ! सर्वे कथयन्ति कुक्कुरोऽयमिति । सत्यम्, ममैव
मतिभ्रमोऽस्ति ।
तृतीयः – भो ब्राह्मण ! किं विचारयसि ? शीघ्रं परित्यज एनम् । नद्यां स्नात्वा गंगाजलेन शरीरं
शोधय ।
देवदतः – सत्यम् भ्रातः । मम मतिभ्रमो जातः परित्यजामि एनम् । (इति छागं परित्यज्य
घृणापूर्वकं निष्क्रान्तः ।)
(ततः प्रथमः द्वितीय श्च प्रविशतः)
तृतीयः – (सानन्दं छागं गृहीत्वा) सुदिनमद्य । शोभनोऽयं छागो लब्धः ।
प्रथमः – अस्माकं मन्त्रणा सफला जाता ।
द्वितीयः – तत्र कः सन्देह :, क्षिप्रं निस्सरामः ।
(इति निष्क्रान्ता:सर्वे)

अर्थ- (इस प्रकार निकल जाता है) (देवदत्त कुछ दूर जाता है तब तीसरा प्रवेश करता है)
तीसरा – (जोर से हँसते हुए) अरे देखो। यह ब्राह्मण कुत्ते को ले जा रहा है
देवदत्त – यह कुत्ता नहीं, बकरा है।
तीसरा – रे मूर्ख । किसने तुम्हें ठग लिया है। यह कुत्ता है, इसका त्याग करो तुम्हारे पिता की कसम कहता हूँ, यह बकरा नहीं हैं, यह कुत्ता है।
देवदत्त – (आश्चर्यचकित-सा मन-ही-मन) मारा गया। सभी इसे कुत्ता कहते हैं। वास्तव में, मुझे ही भ्रम हो गया है।
तीसरा – हे ब्राह्मण! क्या सोचते हो? जल्दी इसे छोड़ दो। नदी में स्नान करके गङ्गाजल से शरीर को शुद्ध करो।
देवदत्त – ठीक है भाई! मुझे मतिभ्रम हो गया, इसे छोड़ता हूँ। (इस प्रकार बकरे को छोड़कर घृणापूर्वक चला जाता है)
(तब पहला और दूसरा प्रवेश करता है।)
तीसरा- (खुशीपूर्वक बकरे को लेकर) आज अच्छा दिन है। यह सुन्दर बकर प्राप्त हुआ।
पहला – हमारी योजना सफल रही।
दूसरे – इसमें क्या संदेह हे, जल्दी (हम) चलें।
(इस प्रकार सभी चले जाते हैं)

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