इस पोस्ट में हमलोग जगदीश नारायण चौबे रचित कहानी ‘निबंध(Nibandh class 9 Hindi)’ को पढ़ेंगे। यह कहानी समाजिक कुरितियों के बारे में है।
Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 10 निबंध
जगदीश नारायण चौबे
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘निबंध’ में लेखक ने निबंध-लेखन की कला पर प्रकाश डाला है। लेखक का कहना है कि निबंध-लेखन का सही ज्ञान नहीं होने के कारण छात्र परीक्षा में अच्छे अंक पाने से वंचित रह जाते हैं । लेखक का मानना है कि संसार में जितनी वस्तुएँ हैं, सभी निबंध का विषय बन सकती हैं। लेकिन निबंध-लेखन की सही जानकारी नहीं होने के कारण परीक्षक पाठक ऐसे निबंधों को न तो आद्योपान्त पढ़ पाते हैं और न छात्र लेखकों को अच्छे अंक मिल पाते हैं। इसलिए निबंध-लेखक पाठ को ध्यान में रखकर निबंध लिखना चाहिए । निबंध पाठक एवं लेखक के बीच सेतु का काम करता है। निबंध विचारों की सुनियोजित अभिव्यक्ति है, इसलिए इसमें कसाव होगा, ढीलापन नहीं । निबंध की कोई निर्धारित पृष्ठ संख्या नहीं है। इसका कलेवर बढ़ाने के साथ-साथ नाम भी बदल जाता है, जैसे-प्रबंध, महानिबंध, शोध-प्रबंध, शोध-निबंध आदि।
लेखक का कहना है कि निबंध के लिए निरंतर प्रवाह का होना अनिवार्य है। फ्रैंसिस बेकन तथा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध इसके प्रमाण हैं।
निबंध-लेखन में छात्र लेखकों द्वारा विषय-प्रतिपादन के साथ, विचारों के पल्लवन के साथ तथा भाषा-शैली के साथ अतिक्रमण होने के कारण हिंदी निबंध नीरस, बोझिल और उबाऊ हो जाता है। अतः हिंदी निबंध तो कहीं की ईंट और कहीं के रोड़े से निर्मित होता है और न भानुमती का पिटारा ही है, बल्कि यह एक ऐसी विधा है जिसमें भूगोल, इतिहास, भौतिकी, रसायन हर विषय पर निबंध लिखा जा सकता है।
निबंध में उद्धरण देने के संबंध में लेखक का कहना है कि हिंदीतर भाषाओं का उद्धरण देते समय उसका हिंदी अनुवाद पहले दे दें और टिप्पणी में मूल पंक्तियों का कम-से-कम लेखक के नाम के साथ, हवाला अवश्य दें।’ अन्यथा वह उद्धरण पाण्डित्य का द्योतक न बनकर, बेवकूफी का उद्घोषक बन जाता है। हिंदी निबंध की दुर्दशा के विषय में लेखक का तर्क है कि छात्र रबर समझकर मनमानी खींचतान करते हुए पृष्ठ को भद्दे तरीकों से भर देते हैं, जिससे निबंध का स्वरूप विकृत हो जाता है। इसलिए निबंध कैसा होना चाहिए, के संबंध में लेखक ने अपना विचार प्रकट किया है कि अच्छे निबंधके लिए कल्पनाशक्ति का होना आवश्यक होता है, क्योंकि कल्पना अज्ञातलोक काप्रवेशद्वार हैं। इसका सहारा लेकर एक ही विषय पर विभिन्न प्रकार के निबंध लिखे जासकते हैं, जबकि “परिचय, लाभ-हानि, उपसंहार” वाली पुरानी रीति पर लिखे गए निबंध एक ही तरह के हैं। लेखक ने छात्रों से गाय पर निबंध लिखवाकर अनुभव किया कि गाय तो खूटे में बँधी रह गई तथा लिखने वालों की बुद्धि बथान से बाहर न निकल पाई। इसलिए कल्पनाशक्ति के द्वारा किसी विषय के विभिन्न पक्षों से साक्षात्कार करके, उसके परतों को उकेर कर निबंधों को ऐसा बना दिया जाए कि पाठक आद्योपान्त सरसता के साथ पढ़ें।निबंध-लेखन के लिए व्यक्तिगत अनुभव का होना अति आवश्यक है, क्याकि कल्पना के द्वारा उस विषय से परिचित होकर उस आधार पर अपने अनुभव गढ़ सकते है जो निबंध को आकर्षक बनाएँगे। निबंध को आकर्षक, विश्वासोत्पादक तथा रोचक बनाने के लिए विषय से जुड़ना तथा जुड़कर अपने अनुभवों का तर्कसंगत ढंगसे उल्लेख करना नितांत – आवश्यक है। इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण हैं, डॉ.हजारी प्रसाद द्विवेदी का निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं?’ इसका विषय बिल्कुल अनसुना, लेकिन कल्पना और निजी संपर्क के आधार पर प्रतिपादन इतना विश्वसनीय है कि पाठक विस्मय विमुग्ध हो जाता है । यद्यपि निबंध छोटा है, परन्तु उतने में ही मनुष्य की आदिम व्यवस्था से लेकर आज तक की जययात्रा का समस्त वृत्तांत तथा सभ्यता के बाद भी मनुष्य के भीतरवाले पशु का बढ़ते नाखूनों के रूप में सिर उठाना हमारे विचारों को झकझोर देता है। इस प्रकार श्रेष्ठ निबंध के लिए कल्पना तथा व्यक्तिगत अनुभवों के साथ-साथ विषय से संबंधित आँकड़े, पुस्तकीय ज्ञान, पत्र-पत्रिकाओं की सूचनाएँ तथा विभिन्न लेखों-निबंधों से प्राप्त जानकारियाँ आवश्यक हैं। अतः निबंध को लोकप्रिय बनाने के लिए उसकी प्राचीन शास्त्रीयता को एक हद तक ढीला करके लालित्य तत्त्व से मढ़ दिया गया है। ऐसे ललित निबंध लेखकों में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. विद्यानिवास मिश्र, देवेन्द्रनाथ शर्मा, कुबेरनाथ राम आदि प्रमुख हैं , इनके निबंध वैयक्तिक निबंध होते हुए भी उबाऊ प्रतीत नहीं होते । अतः निबंध का आरंभ इतना रोचक हो कि पाठक पढ़ने के लिए लालायित हो उठे। निष्कर्षतः उत्कृष्ट निबंध-लेखन के लिए कल्पनाशक्ति, वैयक्तिक अनुभव, विषयवस्तु का प्रतिपादन तथा सहज भाषा का प्रयोग अनिवार्य है।