इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 9 के अंग्रेजी Part-1 के पाठ 7 ‘सन्त रविदास (SAINT RAVIDAS class 9 in Hind) के अर्थ को पढ़ेंगे।
7. SAINT RAVIDAS
(सन्त रविदास)
Caparisoned elephants, uniformed soldiers, members of the royal family, expensive presents and variety of fruits – all went in an impressive procession to Banaras from Chittoor. They were sent by Queen Jhali of Chittoor. They were to meet not a King or an emperor; nor a potentate or a prince, but a pauper who was the saint of saints, the very embodiment of virtue and piety. The procession wended its way to a small hut and stopped at its door. They went there to honour and revere the saint there. This small but was the sacred abode of the godly Ravidas, the saint who preached and practised for over hundred years to reform society, to eradicate caste distinctions, ignorance and prejudices. This was in the later half of the fourteenth and the early part of the fifteenth centuries in north India,
वाक्यार्थ—सजे-धजे हाथी, एक प्रकार की पोशाक में सिपाही शाही परिवार के सदस्य, बहुमूल्य उपहार तथा नाना प्रकार के फल-सभी एक जुलूस के रूप में सजधज कर चित्तौड़ से बनारस की ओर चले। यह सभी चित्तौड़ की महारानी झाली की ओर से भेजा जा रहा था। वे लोग किसी राजा अथवा कोई शासक या कोई राजकुमार से भेंट करने नहीं जा रहे थे बल्कि एक दरिद्र (कंगाल) से जिसे संतों का संत कहा जाता है, जिनमें नैतिकता तथा ईश्वर भक्ति कूट-कूट कर भरी थी। यह जुलूस चलते-चलते एक छोटी झोपड़ी के पास रुका और उसके दरवाजा पर खड़ा हुआ। वे लोग उनके सम्मान में पवित्र दरबार में अन्दर गए। यह छोटी-सी झोपड़ी धर्म का पालन करनेवाले, ईश्वरीय शक्ति वाले संत रविदास की थी, यह संत सौ वर्षों से अधिक तक सामाजिक परिवर्तन के लिए लोगों को उपदेश देते रहे। संत रविदास ने जाति प्रथा, अज्ञानता तथा अंधविश्वास को मिटाने का कार्य किया। यह कार्य उनके द्वारा चौदहवीं शताब्दी के बाद तथा पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भ काल में उत्तरी भारत में हआ।
This was a period of darkness, foreign oppression, humiliation and devastation for India. There was a succession of invaders, the Ghaznis, Ghoris, Slave dynasty and the Khiljis. Local culture, religion and practices were sought to be destroyed. The native citizens had no sense of security and their morale was very low. During this period of gloom, there appeared on the national scene Swami Ramanand and his disciples like Ravidas and Kabir, Guru Nanak and other Sikh Gurus. They revived and revamped the spirits of the people, by their teachings, exhortations and struggles.
वाक्यार्थ—यह काल अंधकार, विदेशी अत्याचार, हीनता तथा भारत का बबादा का काल था। इस काल में गजनी, गोरी, गुलाम वंश और खिलजी जैसे आक्रमणकारिया का आक्रमण भारत पर हुआ । सामाजिक संस्कृति, धर्म तथा अन्य क्रियाकलाप सभा बबाद हा चुक थ । वास्तविक लोग अपनी सुरक्षा खो चके थे तथा उनका आत्म-सम्मान कम हो चुका था। इस विषाद काल में राष्ट्रीय परदे पर स्वामी रामानन्द और उनके शिष्य जैसे रविदास और कबीर, गुरुनानक और दूसरे सिख गुरु का पदार्पण हुआ। उन्हाने लोगों के उत्साह को पुनर्जीवित कर पुनः उनमें अपनी प्रेरणा, शिक्षा, प्रोत्साहन तथा संघर्ष द्वारा उनमें जान फूंका।
Ravidas’s central teaching was that he who worships God becomes a man of God. High and low castes are meaningless and absurd. He brought self-respect and prestige to the humblest, lowliest and the lost – the untouchables and the weak. All are equal and there is only universal man enjoying the fruits of equality, fraternity and spiritual attainments.
He waged a relentless war on caste and casteism. He suffered but did not give up. Till his last days, Ravidas spread the message of equality of men and women and castigated the evils of untouchability. He strove for the uplift of the depressed classes and the backward sections of society through his sermons and preachings.
वाक्यार्थ–रविदास की मूलभूत शिक्षा यह थी कि जिसने ईश्वर की भक्ति की वह ईश्वर का भक्त होता है। ऊँची और नीची जाति अर्थहीन और गलत है। वह गरीबों, कमजोरों तथा अस्पृश्य लोगों के प्रति सम्मान और आदर का भाव रखते थे। उनके अनुसार सभी एक समान हैं तथा उन्होंने सभी को समानता, बन्धुता तथा आत्मीयता का पाठ पढ़ाया।
उन्होंने जाति तथा जातिवाद की लड़ाई जमकर लड़ी। उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा लेकिन उन्होंने इसे छोड़ा नहीं । अन्तिम समय तक रविदास ने महिला तथा पुरुष में समानता तथा अस्पृश्यता का संदेश दिया। उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए लड़ाइयाँ लड़ी जिसका आधार उनका उपदेश, कथा तथा प्रवचन था।
Ravidas’s greatness lies in the fact that he was found worthy enough to have forty of his verses, included in Guru Granth Sahib, the sacred book of the Sikhs.
Even today, after a lapse of about 600 years, saint Ravidas is revered and worshipped, not only by his followers but also by people at large and occupies a prominent place in the religious hierarchy.
Guru Ravidas, his ideology and teachings have greater relevance today than ever before. Saint Ravidas’s war on caste should be our inspiration. Ravidas was a great unifier. He stood for universal brotherhood.
वाक्यार्थ–रविदास की महानता इस बात से झलकती है कि सिखों के धार्मिक ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब के चालीस छंद उसी में से सम्मिलित हैं। आज भी 600 वर्षों के बाद रविदास सम्माननीय हैं । वे केवल उनके माननेवालों में ही प्रिय नहीं थे बल्कि उनके द्वारा भी सम्मानित हैं जो विभिन्न धर्मों में उच्च स्थान रखते हैं।
गुरु रविदास के विचार तथा उपदेश का आज के युग में बहुत महत्त्व है। संत रविदास द्वारा चलाई गई जातिवाद के विरुद्ध लड़ाई हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। विदास एक महान एकबद्ध व्यक्ति थे। वह विश्वबन्धुत्व के लिए जाने जाते हैं।
Today money-power and muscle-power have the upper hand. Ravidas showed utter disregard for money. It is said that Ravidas knew the alchemy given to him by a devotee of his which could change any metal into gold. Ravidas said that his alchemy was, ‘Ram Nam’ and the goodness of man high or low. He never touched it and it was returned to the devotee.
Whatever his disciples and devotees contributed, he spent on sadhus and temples, for the poor and the starving. He lived and died for mankind and it was his mission and it was his mission to make society free from casteism, orthodoxy and ignorance through godliness and passive assertions and preachings.
No wonder even today, Ravidas shines and is adored and worshiped by millions in the country even after over six centuries.
वाक्यार्थ—आज के युग में मुद्रा शक्तिवालों तथा बाहुबलियों का महत्त्व है। विदास ने पूरी तरह रुपये के महत्त्व को नकारा। उनके अनुसार भक्त किसी भी धातु
सोना में बदल सकता है। उनकी विद्या “राम नाम” में थी। उन्होंने पैसों को हाथ तक नहीं लगाया तथा उसे भक्तों को लौटा दिया।
उनके भक्तों तथा शिष्यों द्वारा जो भी उन्हें मिला उसे साधुओं, मंदिरों, गरीबों तथा । भूखों के बीच बँटवा दिया। उनका जीवन भी मानव-कल्याण के लिए था तथा मरण भी।
उनका एक दृढ़संकल्प था कि समाज के जातिवाद, अंधविश्वास, अशिक्षा से दूर रखा जाए-उसे वह अपने उपदेश द्वारा समझाते थे। __ आज भी कोई आश्चर्य नहीं है कि रविदास को छ: सौ वर्षों के बाद भी आज लोग उतना ही मानते और जानते हैं।
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