कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 9 सुभाषितानि (षष्ठी विभक्ति के प्रयोग) का अर्थ | Subhashitani class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 9 ‘सुभाषितानि (षष्ठी विभक्ति के प्रयोग)(Subhashitani class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Subhashitani class 7 sanskrit

नवमः पाठः
सुभाषितानि
( षष्ठी विभक्ति के प्रयोग )

पाठ- परिचय — प्रस्तुत पाठ ‘सुभाषितानि’ में जीवनोपयोगी श्लोकों का संकलन विभिन्न संस्कृत ग्रंथों से किया गया है। ये श्लोक नीति, दैनिक व्यवहार, सदाचरण आदि की दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण हैं। ‘सुभाषित’ ‘सु’ तथा ‘भाष’ शब्दों के योग से बना है । ‘सु’ का अर्थ होता है ‘सुन्दर’ तथा ‘भाष्’ का अर्थ होता है— ‘कहना या कथन’ ये सुन्दर वचन या कथन अति उपयोगी अथवा महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं । सुन्दर वचन सुनकर मानव आह्लादित हो जाता है। ऐसे वचन कहने या सुनने से मन में अद्भुत् आनन्द का अनुभव होता है । इसलिए हर मानव को ऐसा वचन बोलना या सुनना चाहिए, जिससे जीवन मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले।

1. विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन् ।
स्वदेशे पूज्यते रजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते 11

अर्थ — विद्वान् और राजा में कभी भी तुलना या समानता नहीं हो सकती है क्योंकि राजा की पूजा अपने देश में ही होती है किंतु विद्वान की पूजा सभी जगह होती है ।

2. उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये ।
पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् ॥

अर्थ – जिस प्रकार दूध पिलाने पर भी सर्पों का विष बढ़ता ही है, घटता नहीं है, उसी प्रकार मूर्ख को उपदेश या सलाह क्रोध बढ़ाने वाला होता है अर्थात् जब मूर्ख को उपदेश दिया जाता है तो उसका क्रोध बढ़ जाता है, शांत नहीं होता ।

3. कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥

अर्थ- शक्ति सम्पन्न (सामर्थ्यवान् ) के लिए भार (बोझ) क्या है ? (कुछ नहीं) व्यापारी के लिए दूरी क्या है ? व्यापारियों के लिए दूर भी समीप जैसा होता है। विद्यावालों (विद्वानों) के लिए विदेश क्या है ? विद्वानों के लिए विदेश भी स्वदेश जैसा ही होता है। प्रिय बोलने वालों के लिए पराया कौन है ? प्रिय बोलने वालों के लिए कोई भी पराया नहीं होता है ।

4. केवलं व्यसनस्योक्तं भेषजं नयपण्डितैः ।
तस्योच्छेद-समारम्भो विषाद-परिवर्जनम् 

अर्थ – नीतिकार द्वारा कहा गया है कि बुरी आदतों का त्याग करना ही असली दवा है । जैसे ही ऐसा प्रयास आरंभ होता है, दुःख मिटने लगता है ।

5. गन्धेन गावः पश्यन्ति शास्त्रैः पश्यन्ति पण्डितः ।
चारैः पश्यन्ति राजानः चक्षुर्म्यामितरे जानाः ।।

अर्थ — गाएँ (पशु) गंध से पहचानती है कि यह हमारा बच्चा है । विद्वान शास्त्र- ज्ञान से जान जाते हैं कि कौन कैसा है ? राजा लोग अपने गुप्तचरों द्वारा पता लगा लेते हैं कि उसके प्रति लोगों का विचार कैसा है जिसे अन्य लोग आँखों से देखकर जान पाते हैं ।

6. आत्मनो मुखदोषेण बध्यन्ते शुकसारिकाः ।
बकास्तत्र न बध्यन्ते मौनं सर्वार्थसाधनम् ।।

अर्थ — तोता और मैना अपने बड़बोलेपन (मुखदोष) के कारण पिंजरबद्ध किया जाता है, वहीं मौन रहने के कारण बगुला को कोई नहीं पकड़ता ( मारता है। इसलिए नीतिकार का सुझाव है कि मौन रहने में ही कल्याण है, क्योंकि मौन रहने पर सारे मनोरथों की पूर्ति हो जाती है ।

7. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

अर्थ- तुच्छ विचारवाले अपना पराया में भेद करते हैं, लेकिन उदार विचार वाले सम्पूर्ण धरती को ही अपने परिवार जैसा समझते हैं । तात्पर्य यह कि नीच विचार के व्यक्ति ही भेदभाव की भावना से ग्रस्त होते हैं। महापुरुष तो सबको अपने भाई-बन्धु जैसा मानते हैं

8. कहलान्तानि हर्म्याणि कुवाक्यान्तं च सौहृदम् ।
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मान्तं यशो नृणाम् ॥

अर्थ — आपसी कलह से परिवार नष्ट हो जाता है, खराब बोली (वचन) से दोस्ती खत्म हो जाती है। मूर्ख राजा राष्ट्र का विनाश कर देते हैं तो कुकर्म से व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है ।

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