कक्षा 7 संस्‍कृत पाठ 10 दिनचर्या (दैनिक कार्यों की संस्कृत में अभिव्यक्ति) का अर्थ | Dincharya class 7 sanskrit

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 7 संस्‍कृत के पाठ 10 ‘दिनचर्या (दैनिक कार्यों की संस्कृत में अभिव्यक्ति)(Dincharya class 7 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Dincharya class 7 sanskrit

दशमः पाठः
दिनचर्या
(दैनिक कार्यों की संस्कृत में अभिव्यक्ति)

पाठ – परिचय – प्रस्तुत पाठ ‘दिनचर्या’ में दैनिक कार्यों के विषय में बताया गया है कि नियमपूर्वक कार्य करनेवाले सुखी तथा स्वस्थ रहते हैं । हमारे शास्त्रकारों ने दैनिक कार्यक्रम को योजनाबद्ध तरीकों से करने की सलाह दी है। नियमानुसार कार्य करने से हर काम समय पर पूरा होता है जिस कारण मन शांत तथा प्रसन्न रहता है । जो व्यक्ति नियमबद्ध काम नहीं करते हैं उनका मन सदा अशांत रहता है । आहार-विहार अनियमित होने के कारण ऐसे व्यक्ति सदा दुःखी रहते हैं । इसलिए हर व्यक्ति को, विशेषतया छात्रों को अपनी दिनचर्या का पालन नियमपूर्वक करना चाहिए ।

अस्माकं जीवने आहार : विहारश्च मुख्यौ पक्षौ स्तः । आहारः भोजनम् इति वर्तते । विहार: अन्यः सर्वः क्रियाकलापः । उभयोः नियमाः सन्ति । तेषां पालनेन मानवजीवनं सुखमयं भवति । अनेन मानवस्य दिनचर्या निर्धारिता भवति ।

सामान्यतः प्रातःकाले सूर्योदयात् पूर्वमेव जागरणम् उचितम् । प्रकृतेः सर्वे प्राणिनः तथा कुर्वन्ति। पण्डिताः कथयन्ति यत् सूर्योदयात् पूर्वं ब्राह्ममुहूर्ते बुद्धिः अतीव प्रकाशते । अतः

बुद्धिकार्याणि तदा बहुमूल्यानि भवन्ति । प्रातः एव स्नानादि नित्यकर्म कर्तव्यम् । तेन सम्पूर्णं दिनं शक्ति: स्फूर्तिश्च भवतः । दिवसे यथाकालं स्वकीयं निर्धारितं कार्यं करणीयम् । छात्राः अध्ययनं कुर्वन्ति, गृहस्थाः गृहकार्यं कुर्वन्ति, कार्यालयेषु सर्वे स्व-स्व कार्यम् आचरन्ति । एवं दिवसस्य उपयोगः भवति । सायंकाले भ्रमणम् उद्यानगमनं वा शोभनं भवति । अनेन शरीरं मनश्च स्वस्थे जायेते । रात्रौ यथासमयं शयनम् उचितम |

अर्थ — हमारे जीवन में भोजन एवं भोजनेतर दोनों काम मुख्य पहलू हैं। आहार को भोजन कहते हैं । विहार के अन्तर्गत अन्य गतिविधियाँ आती हैं। दोनों जीवन के नियम हैं । इन नियमों का पालन करने से मानव का जीवन सुखमय रहता है। इससे मानव का दैनिक कार्यक्रम नियमबद्ध होता है ।

सामान्यतः सुबह में सूर्योदय से पहले ही उठना उचित है। प्रकृति के सभी प्राणी वैसा ही करते हैं। विद्वानों का कहना है कि सूर्योदय से पूर्व के समय ब्राह्म मुहूर्त में उठने से बुद्धि बढ़ती है । इसलिए बुद्धि द्वारा किए जाने वाले कार्य बहुमूल्य होते हैं। सुबह में ही स्नानादि नित्यकर्म करना उचित है। उससे दिनभर ताजगी बनी रहती है। दिन में समय पर अपना नियमित कार्य करना चाहिए। छात्र पढ़ाई-लिखाई करते हैं, गृहस्थ घरेलू कार्य करते हैं, कार्यालयों में सभी अपने-अपने कार्य में लग जाते हैं। इस प्रकार दिन का उपयोग होता है । सन्ध्या समय भ्रमण अथवा बागों में जाना लाभदायक होता है। इससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है तथा मन प्रसन्न रहता है। रात में समय पर सोना चाहिए ।

प्रात:काले जलपानम् अल्पाहारः वा आवश्यकः । तस्मिन् फलानि, पेयानि तथा स्वच्छानि द्रव्याणि आवश्यकानि सन्ति । मध्याहने क्षुधानुसारेण अन्नं व्यञ्जनं च ग्रहणीयम् । अल्पभोजनं स्वास्थ्यकरं भवतिं । बहुभोजनं हानिकारकं जायते । सायंकाले दुग्धपानं फलाहारो वा करणीयः । रात्रौ च सुलभम् अल्पं भोजनं हितकरं भवति । शयनात् पूर्वं दन्तानां शोधनं, पादप्रक्षालनं, ईशवन्दनं च हितं भवति ।

अर्थ — सुबह में जलपान या अल्पाहार करना आवश्यक है । उसमें फल, पेय पदार्थ अथवा ताजा पदार्थ अवश्य होना चाहिए। दोपहार में क्षुधा (भूख) के अनुसार चावल अथवा रोटी, सब्जी लेना चाहिए। थोड़ा भोजन करना स्वास्थ्यकर होता है। अधिक भोजन करना हानिकारक होता है । सन्ध्या समय दूध तथा फलों को लेना चाहिए और रात में सुपाच्य एवं कम खाना लाभदायक होता है। सोने से पूर्व दाँतों को साफ करना, पैर धोना और ईश्वर की वंदना कल्याणकारी होता है ।

आयुर्वेद: कथयति युक्ताहारविहाराभ्यां नियतं दीर्घजीवनम् मिथ्याहारविहाराभ्यामस्वास्थ्यं चाल्पजीवनम्

अर्थ — आयुर्वेदशास्त्र में बताया गया है— नियमपूर्वक उपयुक्त आहार लेने तथा अन्य कर्मों को करने से व्यक्ति दीर्घजीवी होता है, किंतु अस्वाथ्यकर भोजन करने तथा अनियमित विहार से व्यक्ति अल्पजीवी होता है।

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