यूनान में राष्ट्रीयता का उदय
यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है। जिसके कारण उसे पाश्चात्य का मुख्य स्रोत माना जाता था। यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति, विचार, दर्शन, कला, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्र की उपलब्धियाँ यूनानियों के लिए प्रेरणास्रोत थे। यूनान तुर्की साम्राज्य के अधीन था।
फ्रांसीसी क्रांति से यूनानियों में राष्ट्रीयता की भावना की लहर जागी, क्योंकि धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर इनकी पहचान एक थी।
हितेरिया फिलाइक नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर की। इसका उद्देश्य तुर्की शासन को युनान से निष्काषित कर उसे स्वतंत्र बनाना था।
इंग्लैंड का महान कवि वायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया। इससे यूनान की स्वतंत्रता के लिए सम्पूर्ण यूरोप में सहानुभूति की लहर दौड़ने लगा।
रूस भी यूनान की स्वतंत्रता का पक्षधर था।
1821 ई० में अलेक्जेंडर चिपसिलांटी के नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया।
1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ जिसमें इंग्लैंड, फ्रांस तथा रूस ने मिलकर तुर्की के खिलाफ तथा यूनान के समर्थन में संयुक्त कार्यवाही करने का निर्णय लिया।
इस प्रकार तीनों देशों की संयुक्त सेना नावारिनो की खाड़ी में तुर्की के खिलाफ एकत्र हुई। तुर्की के समर्थन में सिर्फ मिस्र की सेना ही आयी। युद्ध में मिश्र और तुर्की की सेना बुरी तरह पराजित हुई
1829 ई० में एड्रियानोपल की संधि हुई, जिसके तहत तुर्की की नाममात्र की प्रभुता में यूनान को स्वायत्ता देने की बात तय हुई।
परन्तु यूनानी राष्ट्रवादियों ने संधि की बातों को मानने से इंकार कर दिया।
1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ‘ओटो’ को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया। इस तरह यूनान पर से रूस का प्रभाव भी जाता रहा।