द्वादशः पाठः वीर कुँवर सिंहः | Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 12 वीर कुँवर सिंहः (Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

द्वादशः पाठः
वीर कुँवर सिंहः

पाठ-परिचय-1857 ई. के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध काला अग्रदूत जगदीशपुर (भोजपुर) के सामन्त बाबू कुंवर सिंह का नाम गर्व से लिया जाता है। वे अपनी वीरता, साहस एवं पराक्रम के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्होने अपना जीवन देशी आजादी के लिए मातृभूमि को बलिवेदी पर अर्पित कर दिया। प्रस्तुत पाठ में इस महान योद्धा एवं देशभक्त कुंवर सिंह का संक्षिप्त जीवन वर्णित है।
शौर्यस्य पराक्रमस्य धैर्यस्य च समन्वयरूपो वीरकुँवरसिंहः देशस्य स्वतन्त्रातार्थम् आन्दोलनस्य  अनुपमः सेनानीः आसीत्। बिहारराज्यस्य भोजपुरमंडलस्य जगदीशपुरग्रामे{स्य जन्माभवत्। जनको{स्य  साहेबजादासिंहः अतीव प्रभावशाली पुरुषः। देवीभक्तः कुँवरसिंहः आखेटकुशलः आसीत्।
तारुण्ये एतस्य विवाहः गयाप्रमण्डले स्थितस्य सूर्यतीर्थस्य ‘देव’ नामकस्य भूस्वामिनः  पफतेहनारायणसिंहस्य कन्यया जातः। कुँवरसिंहे सिंहासनमारूढे सति जगदीशपुरे अनेके जनकल्याणस्य  कार्यक्रमाः स×चालिताः। अनेन उदारहृदयेन न्यायव्यवस्थायां सर्वेषां वर्गाणां प्रतिनिध्त्विं नियोजितम्। सर्वत्रा  शान्तिः समृ(श्च संस्थापिते।
अर्थ-वीरता, पराक्रम तथा धैर्य का समन्वित रूप वीर कुंवर सिंह देश की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन के अद्वितीय सेनापति थे। बिहार राजग के भोजपुर जिलान्तर्गत जगदीशपुर गांव में इनका जन्म हुआ। इनके पिता साहेबजादा सिंह अति प्रभावशाली पुरुष थे। देवीभक्त कुंवर सिंह शिकार करने में निपुण थे।
जवानी में इनका विवाह गया जिलान्तर्गत सूर्यतीर्थ देव नाम के जमींदार फतेहनारायण सिंह को पत्री से हुआ। कुवर सिह ने सिहासन पर बठत हा जगदीशपुर में अनेक जनकल्याण का कार्यक्रम आरंभ किया। इनके द्वारा उदारतापूर्वक न्याय व्यवस्था में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई। इन्होंने सर्वत्र शांति तथा समृद्धि की स्थापना की।

Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit
1845 तमे खीष्टवर्षे भारते प्रखररूपेण आंग्लशासनविरोध्स्य ज्वाला प्रज्वलिता। तदानीम्  आंग्लशासकेषु भयं व्याप्तम्। आंग्लानां विरोधे प्रचलितेषु आन्दोलनेषु कुँवरसिंहस्य सक्रिया भूमिका बभूव।  1857 तमे खीष्टवर्षे भारतस्य प्रथमः स्वतंत्रातासंग्रामो{भवत्। कुँवरसिंहः स्वसेनायां वीरयुवकान् गृहीतवान्।  आंग्लाध्किरिणः आन्दोलनं विपफलीकर्तुं तथा आन्दोलनकारिणः अवरोद्धु निग्रहीतुं, ताडयितुं च अनेकान्  उपायान् अकुर्वन्। 1857 तमे खीष्टवर्षे जूनमासस्य 19 तमे दिना्यड्ढे. पाटलिपुत्रो स्वतंत्रातासेनानिनः त्रिरघ्गं  ध्वजं समुत्तोलितवन्तः। तत्रा टेलरस्य दमनचक्रेण अनेके वीरपुत्राः निगृहीताः मृत्युदण्डं च प्राप्ताः।
अर्थ-1845 ई. में भारत में अंग्रेजों के विरोध की आग ने उग्र रूप धारण कर लिया। उस समय अंग्रेज शासकों में भय छा गया। अंग्रेजों के विरुद्ध चल रहे आंदोलन में कुँवर सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई। 1857 ई. में भारत का प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम आरंभ हुआ। कुँवर सिंह अपनी सेना में वीर युवकों को बहाल किया। अंग्रेज अधिकारी आंदोलन को विफल करने तथा आंदोलनकारियों को रोकने के लिए, गिरफ्तार करने तथा उन्हें दण्ड देने हेतु अनेक उपाय किए। 1857 ई. के 19 जून को पटना में, स्वतंत्रता सेनानियों ने तिरंगा झंडा फहराया। वहाँ टेलर के दमनचक्र के फलस्वरूप अनेक वीरपुत्र कैद हुए तथा उन्होंने फाँसी की सजा पाई।
तद्वर्षे जुलाईमासस्य 26 तमे दिनांके दानापुर-शिबिरस्य विद्रोहिणः सैनिकाः आरां प्रति प्रस्थातुम्  आरब्ध्वन्तः कुँवरसिंहस्य नेतृत्वे आत्मनः उत्सर्गाय प्रस्तुताः। जुलाईमासस्य 29/30 दिना्यड्ढे. 500 सेनिकैः  सह डनवरनामकः आंग्लसैन्याध्किरी वीरकुँवरसिंहेन पराजितो{भवत्। अनया घटनया 
क्रांतिकारिषु उत्साहः वधि्र्तः। तदा सम्पूर्णे प्राचीनशाहाबादमंडले कुँवरसिंहस्य अध्किरः स×जातः। कुँवरसिंहः  क्षेत्रात् क्षेत्रान्तरं गत्वा विद्रोहम् उदघोषयत् जनान् च संघटितान् अकरोत्। अस्मिन् क्रमे तेन रामगढस्यमिर्जापुरस्य, विजयगढस्य च यात्रा कृता। नवम्बरस्य सप्तमे दिना्यड्ढे. ग्वालियरस्य सेना कुँवरसिंहस्य सेनायां  समाविष्टा। कुँवरसिंहस्य विजयाभियानम् आजमगढे, गाजीपुरे, सिकन्दरपुरे च सपफलतया सम्पन्नम्।
अर्थ-उसी वर्ष जुलाई मास के 26 तारीख को दानापुर छावनी के विद्रोही सैनिकों ने आरा की ओर प्रस्थान करना आरंभ किया। वे कुंवर सिंह की अगुवाई में अपने आपको -उत्सर्ग के लिए तैयार हो गये। जुलाई मास की उनतीस एवं तीस तारीख को सैनिकों के साथ डरवन नामक अंग्रेज अधिकारी वीर कुंवर सिंह से पराजित हो गया। इस घटना से क्रांतिकारियों का उत्साह बढ़ा। तब सम्पूर्ण पुराने शाहाबाद जिले पर कुँवर सिंह का अधिकार । हो गया। कुंवर सिंह ने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र जाकर विद्रोह की घोषणा की तथा लोगों को संगठित किया। इस क्रम में उनके द्वारा रामगढ़, मिर्जापुर, विजयगढ़ की यात्रा की गई। नवम्बर के सात तारीख को ग्वालियर की सेना कुंवर सिंह में मिल गई। कुँवर सिंह का विजय अभियान आजमगढ़, गाजीपुर, सिकन्दरपुर में सफलता के साथ सम्पन्न हुआ।

Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit
1858 तमे खीष्‍टाब्‍दे अपै्रल मासस्य 22 तमे दिना्यड्ढे. वीरकुँवरसिंहस्य स्वसैनिकैः सह गङ्गापारंगच्छतः आंग्लानां भुशुण्डीगोलिकाप्रहारेण दक्षिणहस्तो विकृतो जातः। सः स्वयमेव हस्तं खड्गेन  खण्डयित्वा गघ्गायै समर्पितवान्। ततो द्वितीये दिने 23 तमे दिना्यड्ढे. ‘ले गै्रण्ड’ नामकम् आंग्लसेनापतिं स  पराजितवान्। अनेन सर्वत्रा वीरकुँवरसिंहस्य जयघोषः समारब्ध्ः। अपै्रलमासस्य अयमेव 23 तमो दिनांक विजयदिवसः इति समुद्घोषितः।
युद्धे सततं संघर्षरतस्य वीरकुँवरस्य शरीरावयवाः विकृताः व्रणान्विताश्च जाताः। पफलतः अपै्रलमासस्य  26 तमो दिना्यड्ढे. भारतमातुः वीरपुत्रो{यं दिवंगतः । सत्यमेव भणितम्µ ‘कीतिर्यस्य स जीवति।’
अर्थ-1858 ई. के 22 अप्रैल को वीर कुंवर सिंह का अपने सैनिको के साथ गंगा पार करते समय अंग्रेजों की बन्दूक की गोली लगने से दाहिना हाथ बेकार हो गया। उन्होंने अपने हाथ को तलवार से काटकर गंगा को अर्पित कर दिया। तत्व दूसरे दिन 23 अप्रैल को उन्होंने की ‘ले अण्ड’ नाम के अंग्रेज सेनापति को पराजित किया। इससे सर्वत्र वीर कुँवर सिंह का जयघोष होने लगा। अप्रैल माह 23 तारीख को विजय दिवस घोषित किया गया।
सदा युद्ध लड़ते रहने के कारण वीर कुंवर सिंह के शरीर के सारे अंग बेकार तथा घावों से युक्त हो गये। परिणामतः अप्रैल मास के 26 तारीख को भारत माता के इस वीर पुत्र का निधन हो गया। सत्य ही कहा गया है-‘अच्छे कर्म वाले अमर हो जाते है।

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