इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्दी के कहानी पाठ आठ ‘ Bachpan Ke din ( बचपन के दिन )’ के सारांश को पढ़ेंगे।
बचपन के दिन
पाठ का सारांश-प्रस्तुत संस्मरण ‘बचपन के दिन’ में लेखक ने अपने बचपन को आप-बोतो घटनाओं का वर्णन किया है।लेखक ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम् कस्बे में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिता जैनुलाबदीन ने अधिक विधिवत शिक्षा नहीं पाई थी। लेकिन वे बुद्धिमान एवं अति उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इनकी माता का नाम अक्षयन्ना धा, जो आदर्श विचार को महिला थीं। रामेश्वरम् की मस्जिदवाली गली में इनका खानदानो घर था। Bachpan Ke din class 7 Saransh in Hindi
इनका नामांकन रामेश्वरम् की एक प्राथमिक पाठशाला में कराया गया। रामानंद शास्त्री, अरविंदन तथा शिव प्रकाशन ये तीनों इनके मित्र थे। जब लेखक पाँचवीं कक्षा में था तब कक्षा में एक नए शिक्षक आए, जिन्होंने मुसलमान जानकर इन्हें पीछे वाली बेंच पर बैठने को कहा। क्योंकि नए शिक्षक को जनेऊ वाले लड़के का मुसलमान लड़के के साथ बैठना अच्छा नहीं लगा। शिक्षक के इस व्यवहार से दु:खी रामानंद ने अपने पिता लक्ष्मण शास्त्री, जो रामेश्वरम् मंदिर के प्रधान पुजारी थे, ने शिक्षक के दुर्व्यवहार के विषय में शिकायत की। रामानंद के पिता शास्त्रीजी ने शिक्षक को कहा- “इस प्रकार को सामाजिक असमानता एवं सांप्रदायिकता का विष निर्दोष बच्चों के दिमाग में नहीं घोलना चाहिए।” शास्त्रीजी के कड़े रुख एवं धर्मनिरपेक्षता में उनका विश्वास देखकर शिक्षक ने भी अपने व्यवहार में बदलाव कर लिया।
लेखक ने इसी प्राथमिक पाठशाला के विज्ञान शिक्षक शिव सुब्रह्मण्यम अय्यर की विशेषता का वर्णन करते हुए कहता है कि विज्ञान शिक्षक कट्टर ब्राह्मण होते हुए भी रूढ़िवादी नहीं थे। वह लेखक को एक महान व्यक्ति के रूप में देखने के अभिलाषी थे। वह लेखक को काफी प्यार करते थे। एक बार शिक्षक महोदय ने लेखक को भोजन पर आमंत्रित किया । उनकी पत्नी ने उन्हें रसोईघर के अंदर खिलाने से इनकार कर दिया। लेखक के मनोभाव को भांपते हुए शिक्षक ने पुन: उन्हें रात्रिभोज पर आमंत्रित किया तथा उनसे कहा- “इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं है । एक बार जब तुम व्यवस्था बदल मला कर लेते हो तो ऐसी समस्याएँ आती ही नहीं हैं।’ इस बार शिक्षक ने स्वयं रसोईघर में लेखक को प्रेमपूर्वक भोजन कराया। Bachpan Ke din class 7 Saransh in Hindi
पंद्रह साल की आयु में लेखक का दाखिला श्वार्ट्स हाई स्कूल में हुआ। उस स्कूल शिक्षक आयादरै सोलोमन अति स्नेही एवं खुले दिमाग के व्यक्ति थे। वहा छात्रों को सदैव उत्साहित करते रहते थे। उनका मानना था कि अच्छे परिणाम की प्राप्ति के का छात्रों में इच्छा, आस्था तथा उम्मीदा का होना आवश्यक है, वह छात्रों को उनके भीतर छिपी शक्ति एवं योग्यता का आभास कराते हुए कहते थे कि निष्ठा एवं विश्वास से ही नियति को बदला जा सकता है।
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