कक्षा 12 भूगोल पाठ 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ | Bhaugolilk paripekshya ke chayanit kuchh mudde evam samasyaye class 12 Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ बारह ‘भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ (Bhaugolilk paripekshya ke chayanit kuchh mudde evam samasyaye class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Bhaugolik paripekshya me chayanik kuchh mudde evam samasyaye

अध्याय 12
भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

पर्यावरण प्रदूषण

प्रदूषकों के परिवहित एवं विसरित होने के माध्यम के आधार पर प्रदूषण को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है- (1) जल प्रदूषण, (2) वायु प्रदूषण, (3) भू-प्रदूषण, (4) ध्वनि प्रदूषण।

जल प्रदूषण

नदियों, नहरों, झीलों तथा तालाबों आदि में उपलब्ध जल शुद्ध नहीं रह गया है। इसमें अल्प मात्रा में निलंबित कण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ समाहित होते हैं। जब जल में इन पदार्थों की सांद्रता बढ़ जाती है तो जल प्रदूषित हो जाता है

जल प्रदूषण प्राकृतिक स्रोतों (अपरदन, भू-स्खलन और पेड़-पौधों तथा मृत पशु के सड़ने-गलने आदि) से प्राप्त प्रदूषकों से भी होता है, तथापि मानव क्रियाकलापों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषक चिंता के वास्तविक कारण हैं। मानव, जल को उद्योगों, कृषि एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से प्रदूषित करता है।

सर्वाधिक जल प्रदूषक उद्योग-चमड़ा, लुगदी व कागज, वस्त्र तथा रसायन हैं। आधुनिक कृषि में विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग होता है जैसे कि अकार्बनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार नाशक आदि भी प्रदूषण उत्पादन करने वाले घटक हैं। भारत में तीर्थ यात्राओं, धार्मिक मेले व पर्यटन आदि जैसी सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी जल प्रदूषण का कारण हैं।

संदूषित जल के उपयोग के कारण प्रायः दस्त (डायरिया), आँतों के कृमि, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत में लगभग एक-चौथाई संचारी रोग जल-जनित होते हैं।

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण को धूल, धुआँ, गैसें, कुहासा, दुर्गंध और वाष्प जैसे संदूषकों की वायु में अभिवृद्धि व उस अवधि के रूप में लिया जाता है जो मनुष्यों, जंतुओं और संपि के लिए हानिकारक होते हैं।

जीवाश्म ईंधन का दहन, खनन और उद्योग वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। ये प्रक्रियाएँ वायु में सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, सीसा तथा एस्बेस्टास को निर्मुक्त करते हैं।

वायु प्रदूषण के कारण श्वसन तंत्रीय, तंत्रिका तंत्रीय तथा रक्त संचारतंत्र संबंधी विभिन्न बीमारियाँ होती हैं। नगरों के ऊपर कुहरा जिसे शहरी धूम्र कुहरा कहा जाता है, वस्तुतः वायुमंडलीय प्रदूषण के कारण होता है। वायु प्रदूषण के कारण अम्ल वर्षा भी हो सकती है।

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ध्वनि प्रदूषण

विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न ध्वनि का मानव की सहनीय सीमा से अधिक तथा असहज होना ही ध्वनि प्रदूषण है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत विविध उद्योग, मशीनीकृत निर्माण तथा तोड़-फोड़ कार्य, तीव्रचालित मोटर-वाहन और वायुयान इत्यादि हैं। इनमें सायरन, लाउडस्पीकर, फेरी वाले तथा सामुदायिक गतिविधियों से जुड़े विभिन्न उत्सव संबंधी कार्यों से होने वाली आवधिक किंतु प्रदूषण करने वाले शोर को भी जोड़ा जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण के सभी स्रोतों में से यातायात द्वारा पैदा किया गया शोर सबसे बड़ा क्लेश है।

नगरीय अपशिष्ट निपटान

नगरीय क्षेत्रों, को प्रायः अति संकुल, भीड़-भाड़ तथा तीव्र बढ़ती जनसंख्या के लिए अपर्याप्त सुविधाएँ और उसके परिणामस्वरूप साफ-सफाई की खराब स्थिति एवं प्रदूषित वायु के रूप में पहचाना जाता हैं

ठोस कचरे की अंतर्गत विभिन्न प्रकार के पुराने एवं प्रयुक्त सामग्रियाँ शामिल की जाती हैं जैसे कि जंग लगी पिनें, टूटे काँच के समान, प्लास्टिक के डिब्बे, पोलीथिन की थैलियाँ, रद्दी कागज, राख, फ्लॉपियाँ, सी डी आदि का भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगाया जाता है। ठोस अपशिष्ट से अप्रिय

बदबू, मक्खियों एवं कृतकों (जैसे चूहे) से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम पैदा हो जाते हैं जैसे टाइफाइड (मियादी बुखार),

गलघोटूँ (डिप्थीरिया), दस्त तथा हैजा (कॉलरा) आदि।

भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान एक गंभीर समस्या है मुंबई, कोलकाता, चेन्नई व बेंगलूरू आदि महानगरों में ठोस अपशिष्ट के 90 प्रतिशत को एकत्रित करके उसका निपटान किया जाता है लेकिन देश के अन्य अधिकांश शहरों में, अपशिष्ट का 30 प्रतिशत से 50 प्रतिशत कचरा बिना एकत्र किए छोड़ दिया जाता। जो गलियों में, घरों के पीछे खुली जगहों पर तथा परती जमीनों पर इकट्ठा हो जाता है जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम पैदा हो जाते हैं।

क्या आप जानते हैं?

वर्तमान समय में, विश्व की 6 अरब जनसंख्या में से 47 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रहती है और निकट भविष्य में इसमें और अधिक जुड़ जाएँगे। इस अनुपात का 2008 तक 50 प्रतिशत तक पहुँचने का अनुमान है। 2050 तक, विश्व की अनुमानित दो-तिहाई जनसंख्या नगरों में रह रही होगी

ग्रामीण-शहरी प्रवास

ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर जनसंख्या प्रवाह अनेक कारकों से प्रभावित होता है जैसे कि नगरीय क्षेत्रों में मजदूरों की अधिक माँग, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के निम्न अवसर तथा नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विकास का असंतुलित प्रारूप आदि हैं। 

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