BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं  समत्वम्

Class 6th Sanskrit Text Book Solutions

दशमः  पाठः
सामाजिकं  समत्वम्
(सामाजिक समानता)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ’सामाजिकं समत्वम्’ में सामाजिक समानता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। समता किसी भी समाज या देश का मूल मंत्र होती है। जिस समाज में समानता की भावन होती है, उसमें भेदभाव का नाम नहीं होता। सभी मिलजुल कर काम करते हैं और अपने को समाज की एक इकाई मानकर अपने दायित्व् का निर्वाह पूर्ण ईमानदारी से करते हैं। समाज विभिन्न इकाई के समूह को कहते हैं। भिन्न-भिन्न जाति या धर्म के होते हुए भी सभी समान उद्देश्य से काम करते हैं।

1. मनुष्यः सामाजिकः प्राणी वर्तते। समाजं विना मनुष्याणां जीवनं कठिनं भवति। एकं भवनं जनानां सहयोगेन निर्मितं भवति। केचन जनाः इष्टकानां निर्माणम् अकुर्वन्। केचन अस्य भवनस्य कपाट-गवाक्षयोः निर्माणम् अकुर्वन। एवमेव सामाजिक-सहयोगन एव अनेकानि वस्तूनि निर्मितानि भवन्ति।

अस्माकं देशे विविधाः जनाः वसन्ति। विविधान् धर्मान् ते आचरन्ति। किन्तु सर्वे भ्रातृभावेन निवसन्ति। वयं परस्परं सौहार्देन निवसामः। ईद-होलिका-क्रिसमस-प्रभृतीनाम् उत्सवानाम् अवसरेषु परस्परं सहयोगं कुर्मः।

अर्थ- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना लोगों का जीना कठिन (असंभव) होता है। एक घर का निर्माण कई लोगों के सहयोग से होता है। जैसे-किसी ने ईट का निर्माण किया तो कोई इस भवन के दरवाजे तथा खिड़कियों का निर्माण किया। इस प्रकार सामाजिक सहयोग से ही अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

हमारे देश में अनेक जाति के लोग रहते हैं। वे भिन्न-भिन्न धर्मा को मानते हैं। लेकिन सभी भाईचारे के साथ मिलकर रहते हैं। हमलोग आपस में प्रेमपूर्वक रहते हैं। ईद, होली, क्रिसमस आदि अवसरों पर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।

2. केचन जनाः धर्मकारणात् विवादं कुर्वन्ति। ते स्वधर्म श्रेष्ठं वदन्ति। परधर्म हीनं गणयन्ति। वस्तुतः सर्वे धर्मा: समानाः सन्ति।

एवमेव समाजे केचन संपन्नः केचन निर्धनाः सन्ति। सर्वे समाजस्य सदस्याः एव सन्ति। तेषु परस्परं समता भवेत्। यन्त्रस्य एकैकः खण्डः अनिवार्यः अस्ति। तथैव समाजस्य सर्वे जनाः अनिवार्याः सन्ति। यदा भारतीयाः परस्परं सौहार्देन निवसेचुः तदा भारतवर्ष विश्वस्य प्रबलं राष्ट्रं भवेत्।

अर्थ- कुछ लोग धार्मिक कारणों से लड़ते-झगड़ते हैं। वे अपने धर्म को श्रेष्ठ तथा दूसरों के धर्म को तुच्छ मानते हैं। (जबकि) सभी धर्म एक समान होते हैं। इसी प्रकार समाज में कुछ लोग अमीर हैं तो कुछ गरीब हैं। (लेकिन) सभी समाज की इकाई हैं। उन्हें आपस में समानता की भावना होनी चाहिए। जिस प्रकार मशीन को सुचारू रूप से काम करने के लिए एक-एक पूर्जे का होना आवश्यक होता हैं। उसी प्रकार स्वस्थ समाज के लिए समाज के सारे सदस्यों (इकाईयों) का होना अनिवार्य होता है। यदि भारतीय आपस में भाई-चारे के साथ रहें तो भारत संसार का शक्तिशाली राष्ट्र बन सकता है।

संधि-विच्छेद- पस्परं = परः + परं। एवमेव = एवम् + एव। संपन्नाः = सम् + पन्नाः। निर्धना = निः + धनाः। तथैव = तथा + एव।

पाठ-सारांश- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना वह नहीं रह सकता। समाज के सहयोग से ही कोई काम संभव होता है। यथा-किसी मकान का निर्माण बिना समाज के सहयोग से नहीं हो सकता, क्योंकि, ईंट का निर्माण कोई करता है तो दरवाजे एवं खिड़कियों का निर्माण कोई और करता है। तात्पर्य यह कि किसी काम के लिए समाज के विभिन्न सदस्यों की अवश्यकता होती है। हमारे देश में अनेक जाति तथा अनेक धर्म के लोग रहते हैं। सभी एक-दूसरे के साथ भाई-भाई की तरह रहते हैं। ईद, होली क्रिसमस आदि-आदि अवसरों पर सभी एक-दूसरे की मदद करते हैं। लेकिन कुछ लोग धार्मिक कारणों से लड़ाई-झगड़ा करते हैं। वे अपने धर्म को श्रेष्ठ तथा दूसरों के धर्म को तुच्छ मानकर उपहास करते है, जबकि सभी धर्म समान हैं। हर धर्म उद्देस्य एक है। इसी प्रकार समाज में कोई धनी है तो कोई निर्धन है। लेकिन सब के सब इसी समाज के सदस्य हैं। उनमें आपसी मेल हो। क्योंकि यह समाज एक मशीन के समान है। जिस प्रकार मशीन का हर पुर्जा दुरूस्त रहने पर ही मशीन काम करती है, उसी प्रकार स्वस्थ समाज के लिए हर सदस्य का साथ होना आवश्यक होता है। इसलिए हम सारे भेदभावों को भूल,मिल-जुलकर रहें, ताकि हमारा देश भारत संसार में महान् राष्ट्र बने।

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