BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 8 जलमेव जीवनम्

Class 6th Sanskrit Text Book Solutions

अष्टमः पाठः
जलमेव जीवनम्
(जल ही जीवन हैं)

पाठ- परिचय-प्रस्तुत पाठ ’जलमेव जीवनम्’ (जल ही जीवन है) में जल के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। संसार में जल को सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसलिए माना गया है, क्योंकि बिना जल के पेड़-पौधे सूख जाएँगे, धरती बंजर हो जाएगी तथा जीव-जन्तु मर जाएँगे। धरती, जल, आग, आकाश तथा हवा इन पाँचों तत्वों में जल को श्रेष्ठ माना गया है। इसका मुख्य कारण है कि जल पर ही खेती निर्भर करती है। प्रस्तुत पाठ में इसी विशेषता का वर्णन किया गया है।

1. अस्माकं जीवनस्य सुखाय प्रकृतिः नाना पदार्थान् धारयति। तेषु वनस्पतयः पशुपक्षिणः मेघः, सूर्यः, भूमिः, पर्वतः, पवनः, जलम् इत्येते सन्ति। सर्वेषु च जलस्य प्रधानता वर्तते। जलं विना मानवो न जीवति, वनस्पतयः शुष्यन्ति, मेघाः न भवन्ति, अन्नं न जायते। भूमिः अपि शुष्यति। अतो जलं सर्वस्य जीवनम् अस्ति।

अर्थ- हमारे सुखमय जीवन के लिए प्रकृति अनेक वस्तुओं को धारण करती है। उनमें वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी, बादल, धूप, जमीन, पहाड़, हवा, जल ये सब हैं। और (इन) सबों में जल प्रधान है। जल के बिना मानव जीवित नहीं रह सकता है, वनस्पतियाँ सूख जाती हैं, वर्षा नहीं होती है तथा न ही अनाज पैदा होता है। जमीन भी बंजर हो जाती है। इसलिए जल को सबका जीवन कहा गया है।

2. भूमौ जलस्य नाना स्थानानि सन्ति। क्वचित् नदी, क्वचित् सरोवरः विशालः सागरश्च अस्ति। सागरे तु जलं क्षारम् अस्ति। मेघः क्षारं जलं पीत्वा मधुरं जलं ददाति। नद्यां सरोवरे च जलं मधुरं भवति। जनाः कुपान् खनित्वा जलं निष्कासन्ति। क्वचित् कूपे मधुरं पेयं जलं भवति। क्वचित् क्षारम् अपेयं जलं भवति।

अधुना भूमिगतं जलमपि यन्त्रेण निष्कासन्ति। क्षेत्राषां सेचने सर्वस्य जलस्य प्रयोगः भवति। सेचनात् क्षेत्रेषु अन्नं भवति। वनस्पतयः वर्षाजलेन जीवन्ति। अतः सर्वेषां जीवनां वनस्पतीनां भूमेश्च जीवनं जलमेव अस्ति।

अर्थ- धरती पर जल के अनेक स्थान (स्रोत) हैं। कहीं कल-कल करती नदी बहती है तो कहीं तालाब हैं और कहीं विस्तृत सागर हैं। (किंतु) सागर का जल खारा (नमकीन) होता है। बादल खारा जल को पीकर मीठे जल की वर्षा करता है। नदियों तथा तालाबों का जल मीठा (स्वादिष्ट) होता है।, लोग कुआँ खोदकर जल प्राप्त करते हैं। कहीं के कुएँ का जल मीठा (पीने योग्य) होता है तो कहीं का नमकीन (न पीन योग्य होता है।   अब (इस समय) जमीन के अन्दर के जल को मशीन द्वारा निकाला जाता है। खेतों (फसलों) की सिंचाई में इस जल का प्रयोग होता है। सिंचाई से खेतों में अनाज पैदा होते हैं। वनस्पतियों का जीवन जल पर निर्भर करता है। इसलिए सारे जीवों, वनस्पतियों और धरती (जमीन) का जीवन जल ही है।

संधि-विच्छेद- पवनः = पो + अनः। इत्येते = इति + एते। सागरश्च = सागरः + च। जलमपि = जलम् + अपि। भूमेश्च = भूमें: + च। जलमेव = जलम् + एव।

पाठ-सारांश- हमारे सुखमय जीवन के लिए प्रकृति अनेक वस्तुओं को धारण करती हैं। उन सब वस्तुओं में वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी, बादल, सूर्य (धूप), जमीन, पहाड़, हवा तथा जल ये सभी हैं। इन सबों में जल प्रधान है। जल के बिना कोई जीव जीवित नहीं रह सकता है, वनस्पतियाँ सूख जाती हैं वर्षा नहीं होती, अनाज पैदा नहीं होते। जमीन भी बंजर (मरूभूमि) हो जाती है। अतएव जल सबका जीवन (प्रण) है।

धरती पर जल के अनेक स्थान (स्रोत) हैं। कहीं नदियाँ बहती हैं तो कहीं तालाब हैं और कहीं विस्तृत सागर लहरा रहे हैं। सागर का जल खारा (नमकीमन) होता है। बादल खारे जल का शोषण करके मीठे जल की वर्षा करता है। नदी एवं तालाब के जल स्वादिष्ट होते हैं। लोग कुआँ खोदकर जल निकालते हैं। कहीं के कुएँ का जल मीठा अर्थात् पीने योग्य होता है तो कहीं का खारा (न पीने योग्य भी) होता है।

आजकल भूमिगत जल का मशीन द्वारा निकाला जाता है। खेतों की सिंचाई में इस जल का उपयोग होता है। सिंचाई करने से खेतों में अच्छी पैदावार होती है। पेड़-पौधे की हरियाली वर्षाजल पर ही आश्रित होती है। इस प्रकार सारे जीव, वनस्पतियाँ तथा भूमि का प्राण (जीवन) जल है।

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