BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 7 शश-सिंहकथा

Class 6th Sanskrit Text Book Solutions 

सप्तमः पाठः
शश-सिंहकथा
(खरहा और सिंह की कहानी)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ’शश-सिंहकथा’ पशु आधारित जीवनोपयोगी कथा है। इस कथा के माध्यम से बुद्वि की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है। पंचतंत्र के हितोपदेश तंत्र में कथाकार ने पशु-पक्षियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि संसार में वही पूज्य रहा है जिसने बुद्विमानी से काम लिया है। शारीरिक बल की अपेक्षा बुद्वि श्रेष्ठ होती है। आज एक से एक अस्त्र-शस्त्र बुद्वि की ही देन हैं। इस पाठ में भी बुद्वि के महत्व को दर्शाया गया हैं।

1. एकस्मिन् वने एकः भयंकरः सिंहः वसति स्म। स वने इच्छानुसारेण पशून् भोजनाय मारयति स्म। अतः सर्व पशवः भीताः अभवन्। ते मिलित्वा विचारम् अकुर्वन्-प्रतिदिनम् एकैकः पशुः सिंहस्य भोजनाय स्वयं गच्छतु। स्वविचारं ते सिंहस्य समीपं अस्थापयन्। तदा सिंहः,आम, इति अवदत्।

एवम् एकैकः पशुः सिंहस्य भोजनकाले प्रतिदिनम् अगच्छत्। वनें पशवः निश्चिन्ताः अभवन्। किन्तु एवं पशुनां संख्या क्रमशः क्षीणा अभवत्।

अर्थ- किसी एक वन में एक भयानक सिंह रहता था। वह वन में अपनी इच्छा के अनुसार भोजन के लिए पशुओं को मारता था। इसलिए वन के सारे पशु भयभीत हो गए (रहने लगे)। उन सबने मिलकर विचार किया (कि) प्रतिदिन एक-एक पशु सिंह के भोजन के लिए स्वयं जाय। उन्होंने अपना निर्णय सिंह के समक्ष रखा। तब सिंह ने ’हाँ’ (कहकर) बोला।

इस प्रकार एक-एक पशु सिंह के पास नित्य भोजन के समय जाने लगा। वन में सारे पशु भयरहित रहने लगे। लेकिन इस प्रकार (जाने से) पशुओं की संख्या कम हो गई (या होने लगी)।

2. एकस्मिन् दिवसे एकस्य शशस्य वारः आसीत्। सः विलम्बेन सिंहसमीपम् अगच्छत्। तस्य अल्पशरीरेण, विलम्बेन आगमने च सिंहः कुपितः अभवत्। सः अवदत्-रे दुष्ट! कथं त्वम् एकाकी विलम्बेन च आगतः ? बुद्धिमान् शशःअवदत्- राजन्! कोपं न कुरू। एकः अन्यः सिंहः मार्गे मिलितः। स गुहायां तिष्ठति।

सिंहः अवदत्-कुत्र सः? नय मां तत्र। हनिष्यामि तं दुष्टम्। शशः सिंहं कूपसमीपम् अनयत्। तत्र कूपे स्वेच्छायाम् सिंह अपश्यत्। अन्यं सिंह मत्वा कोपेन सः कूपे अकूर्दत्। तत्र स कालेन मृतः एवं शशस्य बुद्धिः सर्वान् पशून् अरक्षत्। अतः कथयन्ति – बु़द्धर्यस्य बलं तस्य।

अर्थ- किसी दिन एक खरहे की बारी थी। वह (खरहा) देर से सिंह के पास पहँुचा। उसके छोटे शरीर तथा देर से पहुँचने के कारण सिंह क्रोधित हो गया। उसने कहा-अरे दुष्ट! तुम अकेले तथा देर से क्यों आए हो? बुद्धिमान् खरहा ने कहा-हे स्वामी! क्रोध मत करें। रास्ते में एक दूसरा सिंह मिला। वह गुफा में रहता है।

सिंह बोला-वह कहाँ है ? वहाँ मुझे ले चलो। उस दुष्ट को मार दूँगा। खरहा सिंह को एक कुआँ के पास ले गया। उसने अपनी परिछाई कुएँ में देखी। उसे दूसरा सिंह समझकर वह कुएँ में कूद गया। वह उसमें उसी क्षण मर गया। इस प्रकार खरहा ने अपनी बुद्धिमानी से सारे पशुओं की रक्षा की। इसिलिए कहा जाता है कि जिसके पास बुद्धि होती है, उसके पास बल (भी) होता है।

संधि-विच्छेद- एकस्मिन = एक + अस्मिन्। इच्छानुसारेण = इच्छा + अनुसारेण। एकैक = एक + एकः। निश्चिन्ताः = निः+चिन्ताः।  स्वच्छायाम् = स्व + छायाम्। बुद्धिर्यस्य = बुद्धिः + यस्य।

पाठ-सारांश- किसी वन में एक भयंकर सिंह रहता था। वह वन में अपनी इच्छा के अनुसार अपने आहार के लिए पशुओं को मारता था। इस कारण वन के सारे पशु भयभीत हो गए। वे सभी (उन सबने) एक जगह बैठकर विचार किया-प्रतिदिन सिंह के पास स्वयं एक-एक पशु उसके भोजन के लिए जाय। और अपना विचार (निर्णय) सिंह के समझ रखा। तभी सिंह ’हाँ’ ऐेसा बोला। इस प्रकार एक पशु सिंह के भोजन के लिए नित्य जाने लगा। इससे वन के पशु निर्भय रहने लगे। लेकिन इस प्रकार पशु के जाने से पशुओं की संख्या काफी कम हो गई।

किसी एक दिन एक खरहे की बारी थी। वह देर से सिंह के पास पहुँचा। उसके छोटे शरीर तथा विलम्ब से पहुँचने के कारण सिंह अति कुपित हो गया। उसने कहा-अरे दुष्ट! तुम अकेले एवं देर से क्यों आए हो ? चतुर खरहा बोला-हे स्वामी! क्रोध मत करे। राह में एक दूसरा सिंह मिला। वह गुफा में रहता है।

सिंह बोला-वह कहाँ है ? मुझे वहाँ ले चलो। उस दुष्ट को मार डालूँगा। खरहा सिंह को एक कुएँ के पास ले गया। वहाँ सिंह ने कुएँ में अपनी परिछाई देखी। उसे दूसरा सिंह मानकर (समझकर) वह कुएँ में कूद गया। उसमे वह तत्क्षण मर गया। इस प्रकार खरहा ने अपनी बुद्धिमानी से वन के सारे पशुओं की रक्षा की। इसलिए कहा जाता है-जिसके पास बुद्धि होती है, उसी के पास बल भी होता हैं।

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