चतुर्थः पाठः चत्वारो वेदाः | Chatwaro Vedah Class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 4 चत्वारो वेदाः (Chatwaro Vedah Class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

चतुर्थः पाठः

चत्वारो वेदाः

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘चत्वारो वेदाः’ में प्राचीन भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन है। विश्व के सारे उपलब्ध ग्रंथों में वेद ही सबसे प्राचीनतम हैं। वेदों को ज्ञान का पर्याय माना जाता है। इनमें भारतीय संस्कृति की उच्चता प्रतिपादित है। इसमें प्राचीन भारतीय संस्कृति के आधारग्रंथों के रूप में चारों वेदों की संरचना और स्वरूप का परिचय दिया गया है तथा वैदिक साहित्य की व्यापकता निरूपित है।

Chatwaro Vedah Class 9th Sanskrit

अस्माकं प्राचीना संस्कृतिर्वेदेषु सुरक्षिता वर्तते। संसारस्य च प्राचीनतमं साहित्यं वेदेषूपलभ्यते।  सप्तसिन्ध्ुप्रदेशे निवसन्तः ट्टषयस्तात्कालिकं सर्वं ज्ञानं वेदरूपमधरयन्। विशेषतो यज्ञसंचालनाय एकस्यापि  वेदस्य चत्वारि रूपाणि कृतान्यासन्। अतएव चत्वारो वेदाः इति परम्परा प्रवृत्ता। ते च वेदाः ट्टग्वेदः यजुर्वेदः  सामवेदः अथर्ववेदश्चेति सन्ति।
ट्टग्वेदः प्राचीनतमान् मन्त्रान् धरयति। अतएव इतिहासस्य विद्वांसस्तस्य महत्त्वमतितरां मन्यन्ते। अयं  वेदो दशसु मण्डलेषु विभक्तः। प्रतिमण्डलं च ट्टक्समूहरूपाणि सूक्तानि बहूनि विद्यन्ते। सूत्तफानां देवताः  ट्टषयः छन्दांसि च पृथक् सन्ति। सम्पूर्णे ट्टग्वेदे 1028 सूत्तफानि, 10552 ट्टचः वर्तन्ते। ट्टचः एव मन्त्राः अपि  कथ्यन्ते। ट्टग्वेदे देवानामावाहनार्थं मन्त्रा इति कर्मकाण्डोपयोगः।

अर्थ: हमारी प्राचीन संस्कृति वेदों में सुरक्षित है और संसार का सबसे प्राचीन साहित्य वेदों में पाया जाता है। सप्तसिंधु प्रदेश में रहने वाले तत्कालीन ऋषियों का सारा ज्ञान वेदों में वर्णित है। खासकर यज्ञादिकार्य के लिए भी एक वेद को चार रूपों में विभक्त किया गया। इसलिए चारों वेदों की ऐसी परम्परा प्रचलित हुई और वे सब ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद हैं।

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ऋग्वेद में प्राचीनतम मन्त्रों को निरूपित किया गया है। इसलिए इतिहास के विद्वान (इतिहासज्ञ) उसके महत्त्व को दूसरी तरह से मानते हैं। यह वेद दस समूहों (मंडलों) में बँटा हुआ है। प्रत्येक मण्डल में ऋक् समूह रूप के बहुत सारी सूक्तियाँ पाई जाती हैं। सूक्तियों के देवता, ऋषि तथा छंद अलग-अलग हैं। सम्पूर्ण ऋग्वेद में 1028 सूक्तियाँ, 10552 ऋचा (भजन, प्रार्थना) हैं। ऋचा (भजन, प्रार्थना) ही मंत्र भी कहे जाते हैं। ऋग्वेद में देवताओं के आह्वान (बुलाने) के लिए मंत्र यज्ञ कार्य में गाए जाते हैं।

यजुर्वेदः शुक्ल-कृष्णरूपेण द्विविध्ः। प्रायेण शुक्लयजुर्वेदः एव उत्तरभारते प्रचलितः। तस्मिन्  चत्वारिंशदध्यायाः सन्ति। अध्यायेष्वनेके गद्य-पद्यात्मका मन्त्राः सन्ति। तेषु मुख्यतो विविध्कर्मसम्पादनाय  विध्यो दर्शिताः। यजुर्वेदस्य अर्थ एव वर्तते यज्ञवेदः। प्रचलिते शुक्लयजुर्वेदे 1975 मन्त्राः संकलिताः। यज्ञेष्वस्य  वेदस्य व्यापकः प्रयोगः।

अर्थ- यजुर्वेद दो प्रकार के हैं-शुक्ल यजुर्वेद तथा कृष्ण यजुर्वेद । उत्तर भारत में प्रायः शुक्ल यजुर्वेद ही प्रचलित है। उसमें चालीस अध्याय हैं। अध्यायों में अनेक गद्य एवं पद्य में मन्त्र हैं। उनमें मुख्य रूप से कर्मसपादन के नियम बताए गए हैं। यजुर्वेद का अर्थ ही यज्ञवेद होता है। प्रचलित यजुर्वेद में 1975 मंत्र संकलित है। यज्ञ में इस वेद का व्यापक रूप में उपयोग होता है।

सामवेदः प्रायेण ट्टग्वेदस्य गेयात्मकैर्मन्त्रौः संकलितः। तत्रा यज्ञे समाहूतानां देवानां प्रसादनं लक्ष्यमस्ति।  प्रसादनं च गानेन भवति। अतएव सामवेदस्य गायकाः उद्गातारः कथ्यन्ते। भारतीयं संगीतं सामवेदादेव प्रारभते।  सामवेदे 1875 मन्त्राः सन्ति। सामवेदश्च पूर्वार्चिक-उत्तरार्चिकभागयोः विभत्तफः।

सामवेद में प्रायः ऋग्वेद के गाने योग्य मंत्र संकलित हैं। उस यज्ञ में आवाहित (बुलाए गए) देवताओं को प्रसन्न करना लक्ष्य होता है। गायन के द्वारा ही प्रसन्न करना संभव होता है। अतएव सामवेद के मंत्र गानेवालों को वेदपाठी कहा जाता है। भारतीय संगीत सामवेद से ही उत्‍पन्‍न हुए। सामवेद में 1875 मन्‍त्र हैं। और सामवेद पूर्व आर्थिक तथा उत्तर आर्थिक दो भागों में विभक्‍त है।

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अथर्ववेदो लौकिकं वैज्ञानिकं च विषयं विशेषेण ध्त्ते। अयं विंशतिकाण्डेषु विभत्तफः। प्रतिकाण्डं च  सूत्तफानि वर्तन्ते, सूत्तफेषु च ट्टग्वेदवत् मन्त्राः सन्ति। सम्पूर्णे{थर्ववेदे 730 सूत्तफानि, 5987 मन्त्राश्च विद्यन्ते। अत्रा  द्वादशे काण्डे भूमिसूत्तफं वर्तते यत्रा मातृभूमेः स्तुतिर्विस्तरेण कृता।
एते सर्वे वेदाः मन्त्राणां संकलनत्वेन संहिताः अपि कथ्यन्ते। तदनन्तरं तद्व्याख्यारूपाणि ब्राह्मणानि
बहूनि वर्तन्ते कर्मकाण्डपराणि। दार्शनिकचिन्तनपराणि आरण्यकानि, शु(दर्शनपराः उपनिषदश्च विकसिताः।  सर्वे{प्येते वेदसंहितानां कृते पृथक्-पृथक् सन्ति। अपि च वेदानार्म्यैं.रूपेण शिक्षा, कल्पः, व्याकरणंविनरुत्तफं, छन्दः, ज्योतिषं चेति षड्वेदाग्‍डनि विपुलं साहित्यं प्रस्तुवन्ति। सर्वमिदं मिलित्वा विशालं वैदिकं  साहित्यमिति वर्तते।

अर्थ: अथर्ववेद लौकिक और वैज्ञानिक विषय को विशेष रूप में धारण करता है। यह बीस काण्डों में विभक्त है और प्रत्येक काण्ड में सूक्तियाँ हैं। सूक्तियों में ऋग्वेद के समान मंत्र हैं। सम्पूर्ण अथर्ववेद में 730 सूक्तियाँ एवं 5987 मंत्र हैं। बारहवें काण्ड में भूमिसूक्ति है जिसमें मातृभूमि की विस्तार से प्रार्थना की गई है।

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इन सारे वेद मंत्रों का संग्रह होने के कारण इसे संहिता भी कहते हैं। इसके बाद वह व्याख्या शास्त्र, ब्राह्मण ग्रंथ, कर्मकाण्ड आदि अनेक रूपों में पाए जाते हैं। यथा दार्शनिक चिन्तन, आरण्यक, शुद्ध दर्शनशास्त्र और उपनिषद आदि विकसित हुए हैं। ये सभी वेद संहिता के अलग-अलग रूप हैं। फिर भी वेदांग के रूप में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष छः वेदांग के विशाल साहित्य को प्रस्तुत करते हैं। ये सब मिलकर विशाल वैदिक साहित्य के रूप में विद्यमान है।

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