पंचमः पाठः संस्कृतस्य महिमा | Sanskritasya Mahima Class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 5 संस्कृतस्य महिमा (Sanskritasya Mahima Class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

पंचमः पाठः

संस्कृतस्य महिमा

पाठ-परिचय प्रस्तुत संवादात्मक पाठ ‘संस्कृतस्य महिमा’ में संस्कृत भाषा तथा साहित्य की व्यापकता को लेकर एक संवाद की परिकल्पना की गई है तथा इसके माध्यम से छात्रों में संस्कृत विषय के प्रति रुचि जगाने का प्रयास किया गया है। संस्कृत विश्व की सारी भाषाओं की जननी है। भारतीय संस्कृति का आधार संस्कृत ही है। इसका व्याकरण तथा साहित्य अन्य भाषाओं की अपेक्षा अधिक संतुलित, सुसम्पन्न एवं सुदृढ है। इसी महत्त्व को इस पाठ में उद्घाटित किया गया है।

Sanskritasya Mahima Class 9th Sanskrit
(संस्कृतशिक्षकः कक्षां प्रविशति। छात्राः स्वस्थानादुत्थाय अभिवादनं कुर्वन्ति।)
अर्थ—(संस्कृत शिक्षक वर्ग में प्रवेश करते है। छात्रगण अपनी जगह से उठकर । नमस्कार करते हैं।)
शिक्षकः – उपविशन्तु सर्वे। अद्य संस्कृतस्य महत्त्वं कथयामि।
शिक्षक – सभी बैठ जाएँ। आज संस्कृत का महत्त्व बताता हूँ।
रमेशः – गुरुदेव! अपि संस्कृतस्य अध्ययनं लाभकरम्?
रमेश.- गुरुदेव । (क्या) संस्कृत पढ़ना लाभदायक है?
शिक्षकः – न जानासि वत्स?संस्कृतं विना न संस्कृतिः।
शिक्षक- (क्या) नहीं जानते हो बच्चे? संस्कृत के बिना संस्कृति का कोई महत्त्व नहीं है।
राजीवः – का नाम संस्कृतिः?
राजीव – संस्कृति क्या है?
शिक्षकः – संस्कृते एव आचाराः विचाराः भावनाश्च सन्ति। यत्रोमे भवन्ति, तत्रौव संस्कृतिः।
शिक्षक – संस्कृति से ही आचार-विचार तथा भावना का पता चलता है। जिनमें ये होते हैं, उन्हें ही सुसंस्कृत अर्थात् सभ्य माना जाता है।
पुष्करः – कथयन्ति जनाःयत् इयं मृता भाषा।
पुष्कर -लोग कहते हैं कि यह मृत भाषा है।

Sanskritasya Mahima Class 9th Sanskrit
शिक्षकः – वत्स! ज्ञानहीनास्ते। अस्यामेव भारतीयभाषाणां जीवनम्। अस्या एव भारतीयाः भाषाः निर्गताः।  एतदर्थं सा भाषाणां जननी कथ्यते। नेयं मृता भाषा, अपितु अजरा अमरा चेति। अद्यापि सा  जीवति।
शिक्षक – बच्चो! वे अज्ञानी है। इसमें ही भारतीय भाषाओं का जीवन है। इससे ही भारतीय भाषाएँ उत्पन्न हुई हैं। इसीलिए यह भाषाआ की जननी कही जाती है। यह मृत भाषा नहीं है अपितु अजर-अमर है और आज भी जीवित है।
रमेशः – अस्यामेव भारतीयभाषाणां जीवनम्?
रमेश – (क्या) यही भारतीय भाषाओं की जननी है?
शिक्षकः – अथ किम्? सर्वाः भारतीयभाषाःसंस्कृतभाषायाः ट्टणं धरयन्ति। अत्रौव प्राचीनं वेदादिशास्त्रां  रचितम्।
शिक्षक – हाँ, अवश्य। सारी भारतीय भाषाएँ इसकी ऋणी हैं। इसी भाषा में प्राचीन वेद आदि शास्त्र लिखे गए।
कमालः – शब्दज्ञानाय संस्कृतकोशो{पि वर्तते किम् ?
कमाल – क्या शब्द ज्ञान के लिए संस्कृत शब्दकोश भी है?
शिक्षकः – आम् आम्। प्राचीनाः नवीनाश्च अनेके संस्कृतकोशाः सन्ति। शब्दरचनाविध्रिपि व्याकरणे  वर्तते। तेन लक्षशः शब्दाः निर्मीयन्ते, अन्यासु भाषासु प्रदीयन्ते।

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शिक्षक-हाँ, हाँ । पुराने-नये अनेक संस्कृत शब्दकोश हैं। शब्द रचना विधि के ज्ञान के लिए व्याकरण भी है। उससे लाखों की संख्या में शब्द बनाए जाते हैं तथा अन्य भाषाओं में प्रयोग किये जाते हैं।
पुष्करः – अस्याः व्याकरणम् अपूर्वं तर्हि।
पुष्कर – इसका व्याकरण तो अपूर्व है।
शिक्षकः – अत्रा पाणिनिः श्रेष्ठः वैयाकरणः आसीत्। तत्सदृशः न कुत्रापि वैयाकरणो जातः।
शिक्षक – यहाँ पाणिनि नामक वैयाकरण (व्याकरण शास्त्र का ज्ञाता) थे। उनके समान कोई दूसरा वैयाकरण नहीं हुआ।
लतिकाः – किं पाणिनिसमानः कुत्रापि वैयाकरणो नास्ति?
लतिका – क्या पाणिनि के समान कोई भी वैयाकरण नहीं है?
शिक्षकः – आम्, अस्योत्तरं सर्वत्रा मौनमस्ति।
शिक्षक – हाँ, उनके बाद सभी चुप हैं।
रमाः – गुरुदेव! मम पिता कथयति यत् संगणके ;कंप्यूटरयन्त्रोद्ध अपि संस्कृतं सहायकं भवति।
रमा – गुरुदेव! मेरे पिताजी कहते हैं कि कम्प्यूटरयन्त्र में भी संस्कृत का योगदान है।
शिकक्षः – सत्यं वदति ते पिता। अपि चµ योगशास्त्रो पतंजलिकृतं योगदर्शनमपि अपूर्वम्।
शिक्षक – तुम्हारे पिताजी का कहना बिल्कुल सत्य है। योगशास्त्र में भी पतंजलि द्वारा लिखा गया योगदर्शन अपूर्व है।
कमालः – पूज्यवर। श्रूयते यत् संस्कृते क्रियारूपाणि असंख्यानि सन्ति।
कमाल – पूज्यवर, सुना जाता है कि संस्कृत में असंख्य क्रिया रूप हैं।

Sanskritasya Mahima Class 9th Sanskrit
शिक्षकः – सत्यमेतत्। धतवः एव द्विसहस्राध्किः। तेषां दशलकारेषु नाना रूपाणि भवन्ति। सर्वेषु लकारेषु  नव-नव रूपाणि सन्ति।
शिक्षक – यह सत्य है। धातु ही दो हजार से अधिक हैं। उनके दस लकारों में भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। सभी लकारों में नौ-नौ रूप हैं।
पुष्करः – धतवो{पि त्रिध भवन्ति इति भवान् उक्तवान्।
पुष्कर – धातु भी तीन प्रकार की होती हैं, ऐसा आपने कहा।
शिक्षकः – आम्। केचिद् आत्मनेपदिनः, केचित् परस्मैपदिनः, केचिद् उभयपदिनः। एवं त्रिध ते भवन्ति।
शिक्षक – हाँ, कुछ आत्मनेपद, कुछ परस्मैपदेन तथा कुछ उभयपदी होती हैं। इस प्रकार ये तीन प्रकार की होती है।
रहीमः – तदा तु भाषेयम् अतीव जटिला।
रहीम-तब तो यह भाषा अति कठिन है।
शिक्षकः – न न। सरलापि सा, कठिनापि सा। सामान्यप्रयोगे सरला, गूढविषयनिरूपणे जटिला। यथेच्छं  प्रयोगः क्रियते।
शिक्षक – नहीं, नहीं। यह आसान भी है तथा कठिन भी। सामान्य प्रयोग में आसान (किंतु) गूढ़ विषय के निरूपण में कठिन है। इसे इच्छा के अनुसार प्रयोग किया जाता है।
रमाः – गुरुदेव! किं विज्ञानानि अपि संस्कृते सन्ति?
रमा – गुरुदेव! क्या संस्कृत में विज्ञान संबंधी विषय भी हैं ?
शिक्षकः – किं कथयसि?भूगोल-खगोलविषये आर्यभटीयम्, बृहत्संहिता इत्यादयः ग्रन्थाः प्रसिद्ध ।
शिक्षक – क्या कहती हो? भूगोल तथा खगोल (आकाशीय) के विषय में आर्यभटीयम् का बृहत्संहिता प्रसिद्ध ग्रंथ है।
राजीवः – अतः परं नास्ति किमपि?
राजीव – अतः महान् कुछ भी नहीं है।
शिक्षकः – कथं नास्ति?बीजगणितं चिकित्साशास्त्रां भौतिकविज्ञानं रसायनशास्त्रां वनस्पतिविज्ञानं वास्तुविज्ञानं  विध्शिस्त्रां संगीतशास्त्राम् इत्यादीनि नानाग्रन्थेषु प्रकाशितानि सन्ति। प्राचीनं भारतीयं विज्ञानं  पठितव्यम्।
शिक्षक – क्या नहीं है। अर्थात् सब कुछ है। बीजगणित, चिकित्साशास्त्र, भौतिक विज्ञान, रसायनशास्त्र, वनस्पति विज्ञान, वास्तु विज्ञान, विधिशास्त्र, संगीतशास्त्र आदि-आदि अनेक प्रकार के ग्रन्थ प्रकाशित हैं। प्राचीन भारतीय विज्ञान पढ़ना चाहिए।
रमाः – किं प्रतियोगिपरीक्षासु संस्कृतम् उपयोगि वर्तते?

Sanskritasya Mahima Class 9th Sanskrit
रमा- क्‍या प्रतियोगी परीक्षाओं में संस्‍कृत उपयोगी है ?
शिक्षकः – प्रायः सर्वत्रा प्रशासनिकपरीक्षासु संस्कृतमपि ऐच्छिको विषयः।
शिक्षक- प्राय: सभी जगह प्रशासनिक परीक्षाओं में संस्‍कृत भी ऐच्छिक विषय के रूप होते हैं।
रहीमः – तदा तु इयमतीव उपयोगिनी भाषा।
रहीम- तब तो यह अति उपयोगी भाषा है।
शिक्षकः- अथ किम्।
शिक्षक- अवश्‍य ही।
पुष्करः – तर्हि नूनमेव सर्वैरस्माभिः मनोयोगेन संस्कृतं पठनीयम्। ध्न्येयं भाषा।
पुष्‍कर- तो निश्‍चय ही हम सबों को मन लगाकर संस्‍कृत पढ़ना चाहिए। धन्‍य है यह भाषा।

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