Europe Me Rashtravad Ke Uday – यूरोप में राष्‍ट्रवाद के उदय कक्षा 10 इतिहास

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के इतिहास (History ) के पाठ 1 ( Europe Me Rashtravad Ke Uday ) “यूरोप में राष्‍ट्रवाद के उदय” के बारे में जानेंगे । इस पाठ में फ्रांस, इटली, जर्मनी, यूनान, हंगरी, पोलैंड आदि देशो के राष्‍ट्रीय आंदोलनों के बारे में बताया गया है ।

Europe Me Rashtravad Ke UdayEurope Me Rashtravad Ke Uday

1. यूरोप में राष्‍ट्रवाद के उदय ( Europe Me Rashtravad Ke Uday )

राष्ट्रवाद- राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसी विषेश भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता का वाहक बनती है।

अर्थात्

राष्ट्रवाद लोगों के किसी समूह की उस आस्था का नाम है जिसके तहत वे ख़ुद को साझा इतिहास, परम्परा, भाषा, जातीयता या जातिवाद और संस्कृति के आधार पर एकजुट मानते हैं।

राष्ट्रवाद का अर्थ- राष्ट्र के प्रति निष्ठा या दृढ़ निश्चय या राष्ट्रीय चेतना का उदय,  उसकी प्रगति और उसके प्रति सभी नियम आदर्शों को बनाए रखने का सिद्धांत।

अर्थात्

अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना को राष्ट्रवाद कहते हैं।

यूरोप में राष्‍ट्रवाद के उदय ( Europe Me Rashtravad Ke Uday )

बीजारोपण- राष्ट्रवाद की भावना का बीजारोपण यूरोप में पुनर्जागरण के काल ( 14वीं और 17वीं शताब्दी के बीच ) से ही हो चुका था। परन्तु 1789 ई॰ की फ्रांसीसी क्रांति से यह उन्नत रूप में प्रकट हुई।

यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास फ्रांस की राज्यक्रांति और उसके बाद नेपोलियन के आक्रमनों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

फ्रांसीसी क्रांति ने राजनिति को अभिजात्य वर्गीय ( ऐसे उच्चतम लोगों का वर्ग, जिनमें जमींदार, नवाब, महाजन और रईस लोग होते हैं। ) परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया।

वियना कांगेस क्या है ?

यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था जो सितम्बर 18 से 14 जून 1815 को आस्ट्रिया की राजधानी वियना में आयोजित किया गया था।

nepoleon bonapart

नेपोलियन कौन था ?

  • नेपोलियन एक महान सम्राट था जिसने अपने व्यक्तित्व एवं कार्यों से पूरे यूरोप के इतिहास को प्रभावित किया।
  • अपनी योग्यता के बल पर 24 वर्ष की आयु में ही सेनापति बन गया।
  • उसने कई युद्धों में फ्रांसीसी सेना को जीत दिलाई और अपार लोकप्रियता हासिल कर ली फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और फ्रांस का शासक बन गया।

उदारवादी से क्या समझते हैं ?

  • उदारवादी लातिनी भाषा के मूल्य पर आधारित है जिसका अर्थ है ‘ आजाद ‘
  • उदारवाद तेज बदलाव और विकास को प्राथमिकता देता है।

रूढ़ीवादी से क्या समझते हैं ?

  • ऐसा राजनितिक दर्शन परंपरा, स्‍थापित संस्थाओं और रिवाजों पर जोर देता है और धीरे-धीरे विकास को प्राथमिकता देता है।

वियना सम्मेलन- नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप की विजयी शक्तियाँ ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 1815 ई॰ में एकत्र हुई, जिसे वियना सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य फिर से पुरातन व्यवस्था को स्थापित करना था। इस सम्मेलन का मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने किया।

मेटरनिख युग- वियना सम्मेलन के माध्यम से एक तरफ नेपोलियन युग का अंत तथा दूसरी तरफ मेटननिख युग की शुरुआत हुई। इसने इटली पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए उसे कई राज्यों में विभाजित कर दिया। जर्मनी में 39 रियासतों का संघ कायम रहा। फ्रांस में भी पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना की।

विचारधारा- एक खास प्रकार की सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण इंगित करने वाले विचारों का समुह विचारधारा कहलाता है।

यूरोप में राष्ट्रवादी चेतना की शुरुआत फ्रांस से होती है।

नेपोलियन का शासनकाल

जब नेपोलियन फ्रांस पर अपना शासन चलाना शुरू किया तो उन्होंने प्रजातंत्र को हटाकर राजतंत्र स्थापित कर दिया। उसने 1804 में नागरिक संहिता स्‍थापित किया, जिसे नेपोलियन की संहिता भी कहते हैं।

नगरिक संहिता या नेपोलियन की संहिता 1804

1. कानून के समक्ष सबको बराबर रखा गया।

2. संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित रखा गया।

3. भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्क से मुक्ति दिलाई।

जागीरदारी- इसके तहत किसानों, जमींदारों और उद्योगपतियों द्वारा तैयार समान का कुछ हिस्सा कर के रूप में सरकार को देना पड़ता था।

यूरोपीय समाज की संरचना- 16वीं शताब्दी से पहले यूरोपीय समाज दो वर्गों में विभाजित था।

1. उच्च वर्ग कुलीन वर्ग

2. निम्न वर्ग कृषक वर्ग 

बीच में एक और वर्ग जुड़ गया। जिसे मध्यम वर्ग कहा गया।

फ्रांस में राष्‍ट्रवाद का उदय

  • फ्रांस में वियना व्यवस्था के तहत क्रांति के पूर्व की व्यवस्था स्थापित करने के लिए बूर्वों राजवंश को पुनर्स्थापित किया गया तथा लुई 18 वाँ फ्रांस का राजा बना।
  • इसका मुख्य उद्देश्य फिर से पुरातन व्यवस्था को स्थापित करना था।
  • इस सम्मेलन का मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने किया।
  • मेटरनिख ने इटली, जर्मनी के अलावा फ्रांस में भी पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना की।
  • लेकिन यह व्यवस्था स्थायी साबित नहीं हुई और जल्द ही यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ जिससे सभी देश प्रभावित हुए।
  • लुई 18 वाँ ने फ्रांस की बदली हुई परिस्थितियों को समझा और फ्रांसीसी जनता पर पुरातनपंथी व्यवस्था स्‍थापित करने का प्रयास नहीं किया।
  • उसने प्रतिक्रियावादी और सुधारवादी शक्तियां के बीच सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से 2 जून 1814 को संवैधानिक घोषणापत्र जारी किए जो 1848 ई० तक फ्रांस में चलते रहे।
  • चार्ल्स- X के शासनकाल में कुछ परिवर्तन किए गए परन्तु इसका परिणाम 1830 की क्रांति के रूप में सामने आया।

जुलाई 1830 की क्रांतिः चार्ल्स-X एक निरंकुश और प्रतिक्रियावादी शासक था। उसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता की भावना को दबाने का कार्य किया। उसके द्वारा पोलिग्नेक को प्रधानमंत्री बनाया गया। पोलिग्नेक ने समान नागरिक संहिता के स्थान के पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना तथा उसे विशेषाधिकारों से विभूषित करने का प्रयास किया। प्रतिनिधि सदन और दूसरे उदारवादियों ने पोलिग्नेक के विरूद्ध गहरा असंतोष प्रकट किया। चार्ल्स-X ने इस विराध के प्रतिक्रिया स्वरूप 25 जुलाई 1830 ई॰ को चार अध्यादेशों के द्वारा उदार तत्वों का गला घोंटने का प्रयास किया। इन अध्यादेशों के विरोध में पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई और फ्रांस में 28 जून 1830 ई॰ को गृहयुद्ध आरम्भ हो गया इसे ही जुलाई 1830 की क्रांति कहते हैं।

परिणाम- चार्ल्स-X राजगद्दी छोड़कर इंग्लैंड पलायन कर गया और इस प्रकार फ्रांस में बूर्वो वंश के शासन का अंत हो गया।

1830 की क्रांति का प्रभाव

  • इस क्रांति ने फ्रांस के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया तथा वियना काँग्रेस के उद्देश्यों को निर्मूल सिद्ध किया।
  • इसका प्रभाव सम्पूर्ण यूरोप पर पड़ा और राष्ट्रीयता तथा देशभक्ति की भावना का प्रस्फुटन जिस प्रकार हुआ उसने सभी यूरोपीय राष्ट्रों के राजनैतिक एकीकरण, संवैधानिक सूधारों तथा राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
  • इस क्रांति से इटली, जर्मनी, यूनान, पोलैंड एवं हंगरी में तत्कालीन व्यवस्था के प्रति राष्ट्रीयता के प्रभाव के कारण आन्दोलन उठ खड़े हुए।
  • आगे चलकर फ्रांस में लुई फिलिप के खिलाफ आवाज उठने लगी जिससे फ्रांस में 1848 की क्रांति हुई।

1848 की क्रांति

  • लुई फिलिप एक उदारवादी शासक था, उसने गीजो को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जो कट्टर प्रतिक्रियावादी था।
  • प्रधानमंत्री गीजो किसी भी तरह के वैधानिक, सामाजिक और आर्थिक सुधारों के विरुद्ध था।
  • लुई फिलिप ने पुँजीपति वर्ग के लोगों को साथ रखना पसंद किया, जो अल्पमत में थे।
  • उसके पास किसी भी तरह के सुधारात्मक कार्यक्रम नहीं था और नहीं उसे विदेश निति में कोई सफलता मिल रही थी।
  • उसके शासन काल में देश में भुखमरी एवं बेरोजगारी व्याप्त होने लगी, जिससे गीजो की आलोचना होने लगी।
  • सुधारवादियों ने 22 फरवरी 1848 ई० को पेरिस में थियर्स के नेतृत्व में एक विशाल भोज का आयोजन किया।
  • जगह-जगह अवरोध लगाए गए और लुई फिलिप को गद्दी छोड़ने पर मजबुर किया गया।
  • 24 फरवरी को लुई फिलिप ने गद्दी त्याग किया और इंगलैंड चला गया।
  • उसके बाद नेशनल एसेम्बली ने गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष से ऊपर के सभी व्यस्कों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी।

1848 की क्रांति का प्रभाव

इस क्रांति ने न सिर्फ पुरातन व्यवस्था का अंत किया बल्कि इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हालैंड, स्वीट्जरलैंड, डेनमार्क, स्पेन, पोलैंड, आयरलैंड तथा इंगलैंड प्रभावित हुए।

 

इटली का एकीकरण

  • इटली के एक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने में भौगोलिक समस्या के अलावे कई अन्य समस्याएँ थीं। जैसे- इटली में ऑस्ट्रीया और फ्रांस जैसे विदेशी राष्ट्रों का हस्तक्षेप था।
  • इसलिए एकीकरण में इनका विरोध अवश्यम्भावी था।
  • पोप की इच्छा थी कि इटली का एकीकरण स्वयं उसके नेतृत्व में धार्मिक दृष्टिकोण से हो ना कि शासकों के नेनृत्व में।
  • इसके अलावा आर्थिक और प्रशासनिक विसंगतियाँ भी मौजूद थीं।
  • नेपोलियन ने इसे तीन गणराज्यों में गठित किया जैसे- सीसपाइन, गणराज्य, लीगुलीयन तथा ट्रांसपेडेन।
  • नेपोलियन ने यातायात व्यवस्था को भी चुस्त-दुरूस्त किया तथा सम्पूर्ण क्षेत्र को एक शासन के अधीन लाया।
  • इटली के एक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने में भौगोलिक समस्या के अलावे कई अन्य समस्याएँ थीं। जैसे- इटली में ऑस्ट्रीया और फ्रांस जैसे विदेशी राष्ट्रों का हस्तक्षेप था।
  • इसलिए एकीकरण में इनका विरोध अवश्यम्भावी था।
  • पोप की इच्छा थी कि इटली का एकीकरण स्वयं उसके नेतृत्व में धार्मिक दृष्टिकोण से हो ना कि शासकों के नेनृत्व में।
  • इसके अलावा आर्थिक और प्रशासनिक विसंगतियाँ भी मौजूद थीं।
  • नेपोलियन ने इसे तीन गणराज्यों में गठित किया जैसे- सीसपाइन, गणराज्य, लीगुलीयन तथा ट्रांसपेडेन।
  • नेपोलियन ने यातायात व्यवस्था को भी चुस्त-दुरूस्त किया तथा सम्पूर्ण क्षेत्र को एक शासन के अधीन लाया।
  • नेपोलियन के पतन ( 1814 ) के पश्चात वियना काँग्रेस ( 1815 ) द्वारा इटली को पुराने रूप में लाने के उद्देश्य से इटलीके दो राज्यों पिडमाउण्ट और सार्डिनिया का एकीकरण कर दिया।
  • इस प्रकार इटली के एकीकरण की दिशा तय होने लगी।
  • इटली में 1820 ई० से ही कुछ राज्यों में संवैधानिक सुधारों के लिए नागरिक आंदोलन होने लगे।
  • एक गुप्त दल ‘कार्ब्रोनारी‘ का गठन राष्ट्रवादियों द्वारा किया गया, जिसका उद्देश्य छापामार युद्ध के द्वारा राजतंत्र को नष्ट कर गणराज्य की स्‍थापना करना था।
  • प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता जोसेफ मेजिनी का संबंध भी इसी दल से था।
  • 1830 की क्रांति के प्रभाव से इटली भी अछूता नहीं रह सका और यहाँ भी नागरिक आन्दोलन शुरू हो गए।
  • मेजिनी ने भी नागरिक आन्दोलनों का उपयोग करते हुए उत्तरी और मध्य इटली में एकीकृत गणराज्य स्थापित करने का प्रयास किया।
  • लेकिन ऑस्ट्रीया के चांसलर मेटरनिख द्वारा इन राष्ट्रवादी नागरिक आन्दोलनों को दबा दिया गया और मेजिनी को इटली से पलायन करना पड़ा।

इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान

मेजिनी :

  • मेजिनी साहित्यकार, गणतांत्रिक विचारों के समर्थक और योग्य सेनापति था।
  • मेजिनी में आदर्शवादी गुण अधिक और व्यावहारिक गुण कम थे।
  • 1831 में उसने ‘यंग इटली‘ की स्थापना की, जिसने नवीन इटली के निमार्ण में महत्वपूर्ण भाग लिया।
  • इसका उद्देश्य इटली प्रायद्वीप से विदेशी हस्तक्षेप समाप्त करना तथा संयुक्त गणराज्य स्थापित करना था।
  • 1834 में ‘यंग यूरोप‘ नामक संस्था का गठन कर मेजिनी ने यूरोप में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को भी प्रोत्साहित किया।
  • 1848 में जब फ्रांस सहित पूरे यूरोप में क्रांति का दौर आया तो मेटरनिख को ऑस्ट्रीया छोड़कर जाना पड़ा।
  • इसके बाद इटली की राजनीति में पुनः मेजिनी का आगमन हुआ।
  • मेजिनी सम्पूर्ण इटली का एकीकरण कर उसे एक गणराज्य बनाना चाहता था जबकि सार्डिनिया-पिडमाउंट का शासक चार्ल्स एलबर्ट अपने नेतृत्व में सभी प्रांतो का विलय चाहता था।
  • पोप भी इटली को धर्मराज्य बनाने का पक्षधर था।
  • इस तरह विचारों के टकराव के कारण इटली के एकीकरण का मार्ग अवरुद्ध हो गया था।
  • कालांतर में ऑस्ट्रीया द्वारा इटली के कुछ भागों पर आक्रमण किये जाने लगे जिसमें सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एलबर्ट की पराजय हो गई।
  • ऑस्ट्रीया के हस्तक्षेप से इटली में जनवादी आंदोलन को कुचल दिया गया।
  • इस प्रकार मेजिनी की पुनः हार हुई और वह पलायन कर गया।

इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण

विक्टर इमैनुएल :

  • 1848 तक इटली में एकीकरण के लिए किए गए प्रयास असफल ही रहे।
  • इटली में सार्डिनिया-पिडमाउण्ट का नया शासक ‘विक्टर इमैनुएल‘ राष्ट्रवादी विचारधारा का था और उसके प्रयास से इटली के एकीकरण का कार्य जारी रहा।
  • अपनी नीतियां के कार्यान्वयन के लिए विक्टर ने ‘काउंट कावूर‘ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

काउंट कावूर :

  • कावूर एक सफल कुटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी था। वह इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा ऑस्ट्रीया को मानता था।
  • इसलिए उसने ऑस्ट्रीया को पराजित करने के लिए फ्रांस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
  • 1853-54 के क्रिमिया के युद्ध में कावूर ने फ्रांस की ओर से युद्ध में सम्मिलित होने के घोषणा कर दी जबकि फ्रांस इसके लिए किसी प्रकार का आग्रह भी नहीं किया था।
  • इसका प्रत्यक्ष लाभ कावूर को प्राप्त हुआ।
  • युद्ध समाप्ती के बाद पेरिस के शांति सम्मेलन में कावूर ने इटली में ऑस्ट्रीया के हस्तक्षेप को गैरकानूनी घोषित कर दिया।
  • कावूर ने नेपोलियन प्प्प् से भी एक संधि की जिसके तहत फ्रांस ने ऑस्ट्रीया के खिलाफ पिडमाउन्ट को सैन्य समर्थन देने का वादा किया।
  • बदले में नीस और सेवाय नामक दो रियासतें कावूर ने फ्रांस को देना स्वीकार कर लिया।
  • कावूर की दृष्टि में इटली का एकीकरण संभव नहीं था।
  • इसी बीच 1859-60 में ऑस्ट्रीया और पिडमाउण्ट में सीमा संबंधी विवाद के कारण युद्ध आरंभ हो गया।
  • युद्ध में इटली के समर्थन में फ्रांस ने अपनी सेना उतार दी जिसके कारण ऑस्ट्रीयाई सेना बुरी तरह पराजित होने लगी।
  • ऑस्ट्रीया के एक बड़े राज्य लोम्बार्डी पर पिडमाउण्ट का कब्जा हो गया।
  • एक तरफ तो लड़ाई लम्बी होती जा रही थी और दूसरी तरफ नेपोलियन इटली के राष्ट्रवाद से घबराने लगा था क्योंकि उŸार और मध्य इटली की जनता कावूर के समर्थन में बड़े जन सैलाब के रूप में आंदोलनरत थी।
  • नेपोलियन इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था।
  • अतः वेनेशिया पर विजय प्राप्त होने के तुरंत बाद नेपोलियन ने अपनी सेना वापस बुला ली।
  • युद्ध से हटने के बाद नेपोलियन III ने ऑस्ट्रीया तथा पिडमाउण्ट के बीच मध्यस्थता करने की बात स्वीकारी।
  • इस तरह संधि के अनुसार लोम्बार्डी पर पिडमाउण्ट का अधिकार और वेनेशिया पर ऑस्ट्रिया का अधिकार माना गया। अंततः एक बड़े राज्य के रूप में इटली सामने आया। परन्तु कावूर का ध्यान मध्य तथा उत्तरी इटली के एकीकरण पर था ।
  • अतः उसने नेपोलियन को सेवाय प्रदेश देने का लोभ देकर ऑस्ट्रिया पिडमाउण्ट युद्ध में फ्रांस के निष्क्रिय रहने तथा इटली के राज्यों का पिडमाउण्ट में विलय का विरोध नहीं करने का आश्वासन ले लिया।
  • बदले में नेपोलियन ने यह शर्त रख दी कि जिन राज्यों का विलय होगा वहाँ जनमत संग्रह कराये जायेंगे।
  • चूंकि उन रियासतों की जनता पिडमाउण्ट के साथ थी इसलिए कावूर ने कूटनीति का परिचय देते हुए इसे स्वीकार कर लिया।
  • 1860-61 में कावूर ने सिर्फ रोम को छोड़कर उत्तर तथा मध्य इटली की सभी रियासतों (परमा, मोडेना, टस्कनी आदि) को मिला लिया तथा जनमत संग्रह कर इसे पुष्ट भी कर लिया।
  • ऑस्ट्रिया भी फ्रांस तथा इंग्लैंड द्वारा पिडमाउण्ट को समर्थन के भय से कोई कदम नहीं उठा सका। दूसरी तरफ ऑस्ट्रिया जर्मन एकीकरण की समस्या से भी जूझ रहा था।
  • इस प्रकार 1862 ई० तक दक्षिण इटली रोम तथा वेनेशिया को छोड़कर बाकी रियासतों का विलय रोम में हो गया और सभी ने विक्टर इमैनुएल को शासक माना।

गैरीबाल्डी :

  • इसी बीच महान क्रांतिकारी ’गैरीबाल्डी’ सशस्त्र क्रांति के द्वारा दक्षिणी इटली के रियासतों के एकीकरण तथा गणतंत्र की स्थापना करने का प्रयास कर रहा था।
  • गैरीबाल्डी पेशे से एक नाविक था और मेजिनी के विचारों का समर्थक था परन्तु बाद में कावूर के प्रभाव में आकर संवैधानिक राजतंत्र का पक्षधर बन गया।
  • गैरीबाल्डी ने अपने कर्मचारियों तथा स्वयं सेवकों की सशस्त्र सेना बनायी।
  • उसने अपने सैनिकों को लेकर इटली के प्रांत सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण किये। इन रियासतों की अधिकांश जनता बूर्वों राजवंश के निरंकुश शासन से तंग होकर गैरीबाल्डी की समर्थक बन गयी।
  • गैरीबाल्डी ने यहाँ गणतंत्र की स्थापना की तथा विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ को सत्ता सम्भाली।
  • 1862 ई० में गैरीबाल्डी ने रोम पर आक्रमण की योजना बनाई तब कावूर ने गैरीबाल्डी के इस अभियान का विरोध किया और रोम की रक्षा के लिए पिडमाउण्ट की सेना भेज दी।
  • इसी बीच गैरीबाल्डी को भेंट कावूर से हुई और उसने रोम के अभियान की योजना त्याग दी। दक्षिणी इटली के जीते गए क्षेत्र को बिना किसी संधि के गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया।
  • गैरीबाल्डी को दक्षिणी क्षेत्र में शासक बनने का प्रस्ताव विक्टर इमैनुएल द्वारा दिया भी गया परन्तु उसने इसे अस्वीकार कर दिया।
  • वह अपनी सारी सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित कर साधारण किसान की भाँति जीवन जीने की ओर अग्रसित हआ। त्याग और बलिदान की इस भावना के कारण गैरीबाल्डी के चरित्र को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान खूब प्रचारित किया गया तथा लाला लाजपत राय ने उसकी जीवनी लिखी।
  • 1862 ई० में दुर्भाग्यवश कावूर की मृत्यु हो गई और इस तरह वह भी पूरे इटली का एकीकरण नहीं देख पाया। रोम तथा वेनेशिया के रूप में शेष इटली का एकीकरण विक्टर इमैनुएल ने स्वयं किया।
  • 1870-71 में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध छिड़ गया जिस कारण फ्रांस के लिए पोप को संरक्षण प्रदान करना संभव नहीं था । विक्टर इमैनुएल ने इस परिस्थिति का लाभ उठाया। पोप ने अपने आप को बेटिकन सिटी के किले में बंद कर लिया। इमैनुएल ने पोप के राजमहल को छोड़कर बाकी रोम को इटली में मिला लिया और उसे अपनी राजधानी बनायी।
  • इस नई स्थिति को पोप ने तत्काल स्वीकार नहीं किया। इस समस्या का अंततः मुसोलिनी द्वारा निदान हुआ जब उसने पोप के साथ समझौता कर वेटिकन की स्थिति को स्वीकार कर लिया।
  • इस प्रकार 1871 ई० तक इटली का एकीकरण मेजिनी, कावूर, गैरीबाल्डी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं एवं विक्टर इमैनुएल जैसे शासक के योगदानों के कारण पूर्ण हुआ। इन सभी घटनाओं के पार्श्व में राष्ट्रवादी चेतना सर्वोपरी थी।

जर्मनी का एकीकरण

  • इटली और जर्मनी का एकीकरण साथ-साथ सम्पन्न हुआ।
  • आधुनिक युग में जर्मनी पुरी तरह से विखंडित राज्य था, जिसमें 300 छोटे-बड़े राज्य थे।
  • जर्मनी में राजनितिक, सामाजिक तथा धार्मिक विषमताएँ थी।
  • जर्मन एकीकरण की पृष्ठभूमि निर्माण का श्रेय नेपोलियन बोनापार्ट को दिया जाता है क्योंकि 1806 ई० में जर्मन प्रदेशों को जीत कर राईन राज्य संघ का निर्माण किया था। यहाँ से जर्मन राष्ट्रवाद की भावना धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी।
  • उत्तर जर्मन राज्यों में जहाँ प्रोटेस्टेंट मतावलम्बियों की संख्या ज्यादा थी, वहाँ प्रशा सबसे शक्तिशाली राज्य था एवं अपना प्रभाव बनाए हुए था।
  • दूसरी तरफ दक्षिण जर्मनी के कैथोलिक बहुल राज्यों की प्रतिनिधि सभा-’डायट’ जिन्दा थी, जहाँ सभी मिलते थे। परन्तु उनमें जर्मन राष्ट्रवाद की भावना का अभाव था, जिसके कारण एकीकरण का मुद्दा उनके समक्ष नहीं था।
  • इसी दौरान जर्मनी में बुद्धिजीवियों, किसानों तथा कलाकारों, जैसे-हीगेल काण्ट, हम्बोल्ट, अन्डर्ट, जैकब ग्रीम आदि ने जर्मन राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
  • जर्मनी में राष्ट्रीय आन्दोलन में शिक्षण संस्थानों एवं विद्यार्थियों का भी योगदान था। शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने जर्मनी एकीकरण के उद्देश्य से ’ब्रूशेन शैफ्ट’ नामक सभा स्थापित की। वाइमर राज्य का येना विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आन्दोलन का केन्द्र था।
  • 1834 में जन व्यापारियों ने आर्थिक व्यापारिक समानता के लिए प्रशा के नेतृत्व में जालवेरिन नामक आर्थिक संघ बनाया, जो जर्मन राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
  • फ्रांस की 1830 की क्रांति ने जर्मन राष्ट्रवादी भावनाओं को कुछ हवा जरूर दी।
  • 1848 की फ्रांसीसी क्रांति ने जर्मन राष्ट्रवाद को एक बार फिर भड़का दिया। दूसरी तरफ इस क्राति ने मेटरनिख के युग का अंत भी कर दिया।
  • इसी समय जर्मन राष्ट्रवादियों ने मार्च 1848 में पुराने संसद की सभा को फ्रैंकफर्ट में बलाया।
  • जहाँ यह निर्णय लिया गया कि प्रशा का शासक फ्रेडरिक विलियम जर्मन राष्ट्र का नेतृत्व करेगा और उसी के अधीन समस्त जर्मन राज्यों को एकीकृत किया जायेगा।
  • फ्रेडरिक, जो एक निरंकुश एवं रूढ़िवादी विचार का शासक था, ने उस व्यवस्था को मानने से इंकार कर दिया।
  • प्रशा भी मानता था कि जर्मनी का एकीकरण उसी के नेतृत्व में हो सकता है।
  • इसलिए उसने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी।
  • इसी बीच फ्रेडरिक विलियम का देहान्त हो गया और उसका भाई विलियम प्रशा का शासक बना।
  • विलियम राष्ट्रवादी विचारों का पोषक था।
  • विलियम ने एकीकरण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर महान कूटनितिज्ञ बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया।

जर्मनी का एकीकरण में बिस्मार्क :

  • बिस्मार्क एक सफल कुटनितिज्ञ था, वह हीगेल के विचारों से प्रभावित था।
  • वह जर्मन एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति के महत्व को समझता था।
  • अतः इसके लिए उसने ‘रक्त और लौह की नीति‘ का अवलम्बन किया।
  • बिस्मार्क ने अपनी नीतियों से प्रशा का सुदृढ़ीकरण किया और इस कारण प्रशा, ऑस्ट्रिया से किसी भी मायने में कम नहीं रहा।
  • बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर 1864 ई० में शेल्सविग और होल्सटिन राज्यों के मुद्दे को लेकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। क्योंकि उन पर डेनमार्क का नियंत्रण था।
  • जीत के बाद शेल्सविग प्रशा के अधीन हो गया और होल्सटिन ऑस्ट्रिया को प्राप्त हुआ। चूँकि इन दोनों राज्यों में जर्मनों की संख्या अधिक थी
  • अतः प्रशा ने जर्मन राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़का कर विद्रोह फैला दिया, जिसे कुचलने के लिए ऑस्ट्रिया की सेना को प्रशा के क्षेत्र को पार करते हुए जाना था और प्रशा ने ऑस्ट्रिया को ऐसा करने से रोक दिया।
  • बिस्मार्क ऑस्ट्रिया को आक्रमणकारी साबित करना चाहता था अतः पूर्व में ही उसने फ्रांस से समझौता कर लिया था कि ऑस्ट्रिया-प्रशा युद्ध में फ्रांस तटस्थ रहे। इसके लिए उसने फ्रांस को कुछ क्षेत्र भी देने का वादा किया था।
  • बिस्मार्क ने इटली के शासक विक्टर इमैनुएल से भी संधि कर ली जिसके अनुसार ऑस्ट्रिया-प्रशा युद्ध में इटली को ऑस्ट्रियाई क्षेत्रों पर आक्रमण करना था। अंततः अपने अपमान से क्षुब्ध ऑस्ट्रिया ने 1866 ई० में प्रशा के खिलाफ सेडोवा में युद्ध की घोषणा कर दी।
  • ऑस्ट्रिया दोनों तरफ से युद्ध में फंस कर बुरी तरह पराजित हो गया, इस तरह ऑस्ट्रिया का जर्मन क्षेत्रों पर से प्रभाव समाप्त हो गया और इस तरह जर्मन एकीकरण का दो तिहाई कार्य पुरा हुआ।
  • शेष जर्मनी के एकीकरण के लिए फ्रांस के साथ युद्ध करना आवश्यक था। क्योंकि जर्मनी क दक्षिणी रियासतों के मामले में फ्रांस हस्तक्षेप कर सकता था। इसी समय स्पेन की राजगद्दी का मामला उभर गया, जिस पर प्रशा के राजकुमार की स्वाभाविक दावेदारी थी। परन्तु फ्रांस ने इस दावदारी का खुलकर विरोध किया और प्रशा से इस संदर्भ में एक लिखित वादा मांगा। बिस्मार्क न इस बात को तोड़-मरोड़ कर प्रेस में जारी कर दिया। फलस्वरूप जर्मन राष्ट्रवादियों ने इसका खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया।
  • स्पेन की उतराधिकार को लेकर 19 जून 1870 को फ्रांस के शासक नेपोलियन ने प्रशा के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और सेडॉन की लड़ाई में फ्रांसीसियों की जबदस्त हार हुई। तदुपरांत 10 मई 1871 को फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा दोनों राष्ट्रों के बीच शांति स्थापित हुई। इस प्रकार सेडॉन के युद्ध में ही एक महाशक्ति के पतन पर दूसरी महाशक्ति जर्मनी का उदय हुआ। अंततोगत्वा जर्मनी 1871 तक एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के राजनैतिक मानचित्र में स्थान पाया।

जर्मन राष्ट्रवाद का प्रभाव

  • जर्मन राष्ट्रवाद ने केवल जर्मनी में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण यूरोप के साथ-साथ हंगरी, बोहेमिया तथा यूनान में स्वतंत्रता आन्दोलन शुरू हो गये।
  • इसी के प्रभाव ने ओटोमन साम्राज्य के पतन की कहानी को अंतिम रूप दिया। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद के प्रसार ने स्लाव जाति को संगठित कर सर्बिया को जन्म दिया।

यूनान में राष्ट्रीयता का उदय

  • यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है। जिसके कारण उसे पाश्चात्य का मुख्य स्रोत माना जाता था। यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति, विचार, दर्शन, कला, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्र की उपलब्धियाँ यूनानियों के लिए प्रेरणास्रोत थे।
  • यूनान तुर्की साम्राज्य के अधीन था।
  • फ्रांसीसी क्रांति से यूनानियों में राष्ट्रीयता की भावना की लहर जागी, क्योंकि धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर इनकी पहचान एक थी।
  • हितेरिया फिलाइक नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर की। इसका उद्देश्य तुर्की शासन को युनान से निष्काषित कर उसे स्वतंत्र बनाना था।
  • इंग्लैंड का महान कवि वायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया। इससे यूनान की स्वतंत्रता के लिए सम्पूर्ण यूरोप में सहानुभूति की लहर दौड़ने लगा।
  • रूस भी यूनान की स्वतंत्रता का पक्षधर था।
  • 1821 ई० में अलेक्जेंडर चिपसिलांटी के नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया।
  • 1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ जिसमें इंग्लैंड, फ्रांस तथा रूस ने मिलकर तुर्की के खिलाफ तथा यूनान के समर्थन में संयुक्त कार्यवाही करने का निर्णय लिया।
  • इस प्रकार तीनों देशों की संयुक्त सेना नावारिनो की खाड़ी में तुर्की के खिलाफ एकत्र हुई। तुर्की के समर्थन में सिर्फ मिस्र की सेना ही आयी। युद्ध में मिश्र और तुर्की की सेना बुरी तरह पराजित हुई
  • 1829 ई० में एड्रियानोपल की संधि हुई, जिसके तहत तुर्की की नाममात्र की प्रभुता में यूनान को स्वायत्ता देने की बात तय हुई।
  • परन्तु यूनानी राष्ट्रवादियों ने संधि की बातों को मानने से इंकार कर दिया।
  • 1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ’ओटो’ को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया। इस तरह यूनान पर से रूस का प्रभाव भी जाता रहा।

हंगरी में राष्ट्रीयता का उदय

     आंदोलन का नेतृत्व ’कोसुथ’ तथा ’फ्रांसिस डिक’ नामक क्रांतिकारी के द्वारा किया जा रहा था। फ्रांस में लुई फिलिप का हंगरी के राष्ट्रवादी आन्दोलन पर विशेष प्रभाव पड़ा । कोसूथ ने ऑस्ट्रियाई आधिपत्य का विरोध करना शुरू किया तथा व्यवस्था में बदलाव की मांग करने लगा। इसका प्रभाव हंगरी तथा आस्ट्रिया दोनों देशों की जनता पर पडा। जिसके कारण यहाँ राष्ट्रीयता के पक्ष में आन्दोलन शुरू हो गए। 31 मार्च 1848 ई० को आस्ट्रिया की सरकार ने हंगरी की कई बातें मान ली, जसके अनुसार स्वतंत्र मंत्रिपरिषद की मांग स्वीकार की गई । इस प्रकार इन आन्दोलनों ने हंगरी को राष्ट्रीय अस्मिता प्रदान की।

पोलैंडः

     पोलैंड में भी राष्ट्रवादी भावना के कारण, रूसी शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गए। 1830 ई. की क्रांति का प्रभाव यहाँ के उदारवादियों पर भी व्यापक रूप से पड़ा था परन्तु इन्हें इंग्लैंड तथा फ्रांस की सहायता नहीं मिल सकी। अतः इस समय रूस ने पोलैंड के विद्रोह को कुचल दिया।

बोहेमिया:

     बोहेमिया जो ऑस्ट्रियाई शासन के अंतर्गत था, में भी हंगरी के घटनाक्रम का प्रभाव पड़ा। बोहेमिया की बहुसंख्यक चेक जाति की स्वायत्त शासन की मांग को स्वीकार किया गया परन्तु आन्दोलन ने हिंसात्मक रूप धारण कर लिया। जिसके कारण ऑस्ट्रिया द्वारा क्रांतिकारियों का सख्ती से दमन कर दिया गया। इस प्रकार बोहेमिया में होने वाले क्रांतिकारी आन्दोलन की उपलब्धियाँ स्थायी न रह सकीं।

परिणाम:

  • यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तो फ्रांसीसी क्रांति के गर्भ से ही आरम्भ हुआ, जिसके फलस्वरूप कई बड़े एवं छोटे राज्यों का उदय हुआ।
  • प्रत्येक राष्ट्र की जनता और शासक के लिए उनका राष्ट्र ही सब कुछ हो गया। इसके लिए वे किसी हद तक जाने के लिए तैयार रहने लगे।
  • बड़े यूरोपीय राज्यों यथा, जर्मनी, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड जैसे देशों में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ गई।
  • यूरोप के राष्ट्रवाद के कारण अफ्रिकी एवं एशियाई उपनिवेशों में विदेशी सत्ता के खिलाफ मुक्ति के लिए राष्ट्रीयता की लहर उपजी।
  • भारत में भी यूरोपीय राष्ट्रवाद के संदेश पहुँचने शुरू हो चुके थे। मैसूर का शासक टीपू सुल्तान स्वयं 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से काफी प्रभावित था। इसी प्रभाव में उसने भी जैकोबिन क्लब की स्थापना करवाई तथा स्वयं उसका सदस्य बना।
  • यह भी कहा जाता है कि उसने श्रीरंगपट्टम में ही स्वतंत्रता का प्रतीक ’वृक्ष’ भी लगवाया था।
  • कालांतर में भारत में 1857 की क्रांति से ही राष्ट्रीयता के तत्व नजर आने लगे थे।
  • इस प्रकार यूरोप में जन्मी राष्ट्रीयता की भावना ने प्रथमतः यूरोप को एवं अंततः पूरे विश्व को प्रभावित किया। जिसके फलस्वरूप यूरोप के राजनैतिक मानचित्र में बहु़त बड़े बदलाव के साथ-साथ कई उपनिवेश भी स्वतंत्र हुए।

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