इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्कृत के कहानी पाठ दस ‘गुरु-शिष्य संवादः ( गुरु एवं शिष्य का वार्तालाप )’ (Guru sisya sanwad sanskrit class 8)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।
10. दशमः पाठः
गुरु-शिष्य संवादः
( गुरु एवं शिष्य का वार्तालाप )
पाठ परिचय-प्रस्तुत पाठ ‘गुरु-शिष्य संवाद:’ में छात्रों और शिक्षक के बीच के रूप में विद्या के महत्व और जीवन के प्रति किशोरों की मनोवृत्ति पर प्रकाश गया है। जीवन-कौशल को विकसित करने के लिए विद्या एवं जीवन के प्रति स्वस्थ का होना आवश्यक होता है। शिक्षा मनुष्य में समझ प्रदान करती है तो स्वस्थ कोण जीवन-सुख प्रदान करता है। वार्तालाप के माध्यम से शिक्षक छात्रों को जीवनादर्श के महत्व को समझाते हैं।
अष्टमकक्षायाः दृश्यम्, आसनेषु स्थिता: बालकाः बालिकाश्च । पृष्ठभूमौ कृष्णपट्टः समक्षं फलकम्, तस्योपरि मार्जनी पट्टलेखी च । शिक्षकस्य प्रवेशः, सर्वे छात्राः उत्तिष्ठन्ति ।)
छात्राः (समवेतस्वरेण) प्रणमामो वयं सर्वे।
शिक्षक (दक्षिणं हस्तमुत्थाप्य) – तिष्ठन्तु सर्वे । ।
भावना – गुरुवर ! अद्य किं पाठयिष्यति ?
शिक्षकः – अद्य अनेकान् विषयान् कथयिष्यामि । आदौ विद्यायाः ‘महत्त्वम् ।
शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते।।
शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते ।
शिक्षकः तर्हि एवं प्राचीनं श्लोकं स्मरतु :
अर्थ (आठवीं कक्षा का दृश्य, लड़के और लड़कियाँ अपनी जगह पर बैठे हैं। म में-श्यामपट्ट, सामने टेबुल. पर डस्टर और चॉक है। शिक्षक प्रवेश, सभी छात्र
उठ जाते हैं। Guru sisya sanwad sanskrit class 8
सभी छात्र (एक स्वर में) – हम सबों का प्रणाम स्वीकार करें।
शिक्षक– (दायां हाथ उठाकर) – सभी (छात्र) बैठ जाओ।
भावना – गुरूवर आज क्या पढाएंगे
शिक्षक– आज अनेक विषयों पर कहूंगा । प्रारंभ से विधा का महत्व बताउंगा।
शीला – बहुत अच्छा विधा के विषय में जानने की हमारी इच्छा भी है।
शिक्षक– तो इस प्रकार प्राचीन श्लोक को स्मरण करें।
न चौरहार्यं न च राजहार्य, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।..
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम ॥
अर्थ-विद्या धन सभी धनों में प्रधान होता है क्योंकि इस धन को न तो न तो चोर चुरा सकता है न राजा छीन सकता है और न ही भाई बाँट सकता है। यह बोझ जैसा भारी भी नहीं होता। यह खर्च करने पर नित्य बढ़ता ही है।
मोईन:-अयं तु अतीव प्रसिद्धः श्लोकः । धनानां सीमा वर्तते, विद्या तु असीमा । अपि किञ्चिदस्ति विद्याविषयकं सुभाषितम् ?
शिक्षकः-बहूनि सन्ति । यथा-विद्ययाऽमृतमश्नुते, विद्या ददाति विनयम, विद्याविहीनः पशुः इत्यादीनि । अपरमपि अद्य वदिष्यामि ।
पंकज – तत्रापि रोचकं किमपि कथयतु । वयं किशोराः स्मः । अस्माकं जीवनस्य लक्ष्यं वदतु भवान् ।
शिक्षक: यस्मिन् देशे समाजे च वयं निवसामः तं प्रति सर्वेषां किशोराणां कर्त्तव्यमस्ति । अस्याम् अवस्थायां स्वस्थम् आचरणं यदि भवेत् तदा सर्वत्र कल्याणं
शान्तिः सुखं च प्रसरेत् । कुत्रापि विषमताभावं न ध रियेत् । यदपि शारीरिक मानसिकं च परिवर्तनं किशोरावस्थायां भवति, तत् सर्व प्राकृतिकमेव । अतः आश्चर्यं नास्ति । Guru sisya sanwad sanskrit class 8
वसुन्धरा-गुरुवर ! किशोरान् प्रति भवतः कः उपदेशः ?
शिक्षकः – किशोराः अस्मिन् वयसि उद्विग्नाः भवन्ति, सर्वत्र शीघ्रतां कुर्वन्ति । तत् नास्ति उचितम् । सर्वं कार्य कालेन भवति । ईर्ष्या, द्वेषः, लोभः, क्रोधः, अपशब्दानां प्रयोगः, आलस्यम् इत्येते सर्वे दोषाः सन्ति । अतः तेषां परित्यागेन किशोराः किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति । अन्यथा सर्वम् अध्ययनं व्यर्थम् अपि च येन कार्येण वयं उद्विग्नाः भवामः तथा अपरान् प्रति न करणीयम् । उक्तञ्च
अर्थ : मोईन : यह तो अति प्रसिद्ध श्लोक है। धन की सीमा निशिन
है, लेकिन विद्या असीमित होती है। कुछ विद्या से संबंधित
श्लोक भी हैं। शिक्षक : बहत हैं। जैसे विद्या से अमरता प्राप्त होती है, विद्या से विनम्रता
आती है। विद्या से रहित मनुष्य पशुवत् होता है। दूसरा
आज बोलूँगा। पंकज : उनमें से कुछ रोचक (मनोरंजक) श्लोक बोलिए। हमलोग
किशोर हैं। हमारे जीवन के लक्ष्य के बारे में बताएँ।। शिक्षक : जिस देश तथा समाज में रहते हैं उनके प्रति हम किशोरों का
कुछ कर्तव्य होता है। इस अवस्था में यदि स्वस्थ आचरण (चरित्र) रहता है तो हर ओर शांति और सुख फैलता है। कहीं भी भेदभावपूर्ण आचरण नहीं करना चाहिए। शारीरिक और मानसिक विकास इसी अवस्था में होता है। यह सब प्राकृतिक
नियम है। इसलिए आश्चर्य नहीं करना चाहिए। वसुन्धरा : गुरुवर! किशोरों के प्रति आपकी क्या सलाह (उपदेश) है ? शिक्षक : किशोर इस उम्र में उत्तेजित हो जाते हैं, हर काम में जल्दबाजी
करते हैं जो उचित नहीं है। सभी कार्य समय पर होते हैं। ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, क्रोध तथा गालियों का प्रयोग, आलस्य ये सभी दुर्गुण हैं। इसलिए इसका त्याग करने से किशोर तथा किशोरियाँ शिक्षा पाने के योग्य होते हैं। अन्यथा सारी विद्या (शिक्षा) व्यर्थ साबित होती हैं। जिस कार्य से हम उत्तेजित या दुःखी होते हैं, वह कार्य हमें नहीं करना चाहिए। और कहा गया है : Guru sisya sanwad sanskrit class 8
पालनीयं तु सर्वत्र किशोरैरनुशासनम् ।
न क्रोधेन न लोभेन तेषामपि हितं भवेत् ॥
अर्थ-बिना क्रोध तथा लोभ के किशोरों द्वारा अनुशासन का पालन होना चाहिए (ताकि) उनका भी हर जगह कल्याण हो।
त्याज्यं च मादकं द्रव्यं त्यजेदपि कुसंगतिम् ।
पितरौ प्रणमेत् नित्यम् आद्रियेत गुरुनपि ।
अर्थ– छात्रों को मादक पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। बुरे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए । माता-पिता तथा गुरुओं का आदर-सम्मान करना चाहिए।
समाजस्योपकाराय कुर्याद् देशहिताय च ।
एवं कृते किशोराणां कल्याणं सार्वकालिकम् ॥
अर्थ-समाज का उपकार तथा देश-हित का काम करने पर किशोरों का हमेशा के लिए कल्याण होता है। इसलिए समाज तथा देशहित के लिए काम करना चाहिए ।
छात्रा: – अतीव कल्याणकरं वस्तुं दर्शितं भवता।
(छात्राः प्रमुदिताः प्रतीयन्ते । शिक्षकः वर्गात् निर्गच्छति ।)
अर्थ-छात्रगण आपके द्वारा अति कल्याणकारी संदेश दिया गया है।
(छात्रगण प्रसन्नता महसूस करते हैं और शिक्षक वर्ग से चले जाते हैं।) Guru sisya sanwad sanskrit class 8
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