संस्कृत कक्षा 10 हास्‍य कणिका: (हँसाने वाले कथन) – Hasya Kanika in Hindi

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के संस्कृत द्रुतपाठाय (Second Sanskrit) के पाठ 4 (Hasya Kanika) “हास्‍य कणिका: (हँसाने वाले कथन)” के अर्थ सहित व्‍याख्‍या को जानेंगे।
Hasya Kanika
Hasya Kanika

4. हास्‍य कणिका: (हँसाने वाले कथन)

1. न्यायाधीश:- भोः! किं त्वं जानासि, यदि असत्यं वदिष्यसि तर्हि कुत्र गमिष्यसि?
अपराधी- आम् श्रीमान् ! नरकं गमिष्यामि।
न्यायाधीश:- अथ चेत् सत्यं वदिष्यसि तर्हि ?
अपराधी- कारागारं गमिष्यामि श्रीमान्।

1. न्यायाधीश कहता है- ओ! क्या तुम जानते हो यदि झूठ बोलोगे तो कहाँ जाओगे?
अपराधी— हाँ श्रीमान्! नरक जाऊंगा।
न्यायाधीश– यदि तुम सत्य बोलते हो तो?
अपराधी- जेल जाऊँगा श्रीमान्।

2. गुरुः (छात्रान् प्रति) – यदि अत्र देवः प्रत्यक्षः भवेत् तर्हि भवन्‍त: किं किं प्रार्थयेयुः?
प्रथमः छात्रः- अहं तु धनं प्रार्थयिष्यामि।
द्वितीयः छात्रः- अहं तु गृहं प्रार्थयिष्यामि।
तृतीयः छात्रः- अहं तु प्रभुत्वं प्रार्थयिष्यामि।
गुरु:- भवन्तः सर्वे मूर्खाः सन्ति। अहं तु विद्यां बुद्धिं च प्रार्थयिष्यामि।
छात्रा:- यस्मिन् यत् नास्ति तदेव सः प्रार्थयति, गुरुवर्य!

2. गुरु (छात्रों से) यदि यहाँ भगवान सामने हो जाएँ तो आपलोग क्या-क्या प्रार्थना करेंगे।
प्रथम छात्र- मैं तो धन के लिए प्रार्थना करूँगा।
द्वितीय छात्र- मैं तो घर के लिए प्रार्थना करूंगा।
तृतीय छात्र- मैं तो प्रभुत्व (महान होने की अवस्‍था) के लिए प्रार्थना करूँगा। गुरु- आप सभी मूर्ख हैं मैं तो विद्या और बुद्धि के लिए प्रार्थना करूंगा।
लड़के- हे गुरु श्रेष्ठ। जिसके पास जो चीज नहीं होती है वह उसी वस्तु के लिए प्रार्थना करता है।

3. पतिः (उच्चैः, पत्नीं प्रति) – मम स्नानाय उष्णं जलं शीघ्रम् आन, अन्यथा……..।
पत्नी (सक्रोधम्) – अन्यथा भवान् किं करिष्यति?
पतिः (ससम्भ्रमम्) – किं करिष्यामि? शीतलैः जलैः एव स्नानं करिष्यामि।

पति (ऊँची आवाज में पत्नी को)– मेरे स्नान के लिए गर्म जल जल्‍दी से लाओ अन्यथा……।
पत्नी (गुस्सा में)- अन्यथा आप क्या कर लेंगे?
पति (मुस्कुराते हुए)— क्या करूंगा? ठण्डा पानी से ही स्नान करूंगा।

4. मातुल (श्रीधरः प्रति) – वत्‍स, त्‍वं कथं न स्‍वाध्‍ययनं करोषि? किं त्‍वं जानासि यत् पं० जवाहर लाल नेहरू: यदा तव वयसि आसीत् तदा स: स्‍वकक्षायां प्रथमं स्‍थानं प्राप्‍नोति स्‍म?
श्रीधर: – जानामि मातुल! जानामि, पं. जवाहर लाल नेहरूः यदा भवतः वयसि आसीत् तदा सः भारतदेशस्य प्रधानमंत्री आसीत्।

4. मामा (श्रीधर को)- वत्स! तुम क्यों नहीं स्वाध्याय करते हो? क्या तुम जानते हो कि जवाहरलाल नेहरू जब तुम्हारी उम्र के थे, तो उस समय वे अपने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया करते थे।
श्रीधर- जानता हूँ मामा । जानता हूँ, पं. जवाहरलाल नेहरू जब आपके उम्र के थे, तो उस समय वे भारत देश के प्रधानमंत्री थे।

5. जनकः (अंकपत्रं दृष्ट्वा सक्रोधं पुत्रं प्रति)— घिक् वत्स, किमिदम् ? आङ्गलभाषायां षट्त्रिंशत्, गणितविषये पञ्चत्रिंशत्, विज्ञानविषयेऽपि पञ्चत्रिंशत् हिन्दीभाषायां सप्तत्रिंशत् अङ्काः त्वया लब्धाः । धिक् त्वां धिक् !
माता (पतिं प्रति) – स्वामिन्! इदं पुत्रस्य अङ्कपत्रं नास्ति। इदं तु भवतः अंकपत्रम् अस्ति। इदं मया भवत: पेटिकायां प्राप्तम्।

5. पिता- (अंक-पत्र देखकर) गुस्सा में पुत्र से कहता है। धिक्कार है बेटा, यह क्या? अंग्रेजी में 36, गणित में 35, विज्ञान में भी 35, हिन्दी में 37 अंक तुमने पाये। धिक्कार! तुमको धिक्कार है!
माता (पति से)- स्वामी। यह पुत्र का अंक-पत्र नहीं है। यह तो आपका अंक-पत्र है। यह मैंने आपकी पेटी से निकाला है।

6.  एकदा त्रयः जनाः (अमेरिकादेशीयः, नाइजीरियादेशीयः, अन्यदेशस्य ईर्ष्यालुः च)
भगवतः शिवस्य तपस्याम् अकुर्वन्। तेषां तपसा प्रसन्नो भूत्वा शिवः प्रत्यक्षः अभवत् अकथयत् च- पुत्र, वरं वरय।
प्रथमः- भगवन्, धनं ददातु ।
शिव:- तथास्तु।
द्वितीयः- भगवन्, मह्यं गौरवर्णं ददातु।
शिव:- तथास्तु।
तृतीयः- (प्रथमस्य द्वितीयस्य च धनं रूपं च दृष्ट्वा ईर्ष्यावशात् ) – भगवन्, प्रथमं द्वितीयं च पूर्ववत् करोतु ।

6. एक बार तीन लोग (अमेरिका, नाइजीरिया और अन्य देश के ईर्ष्यालु) भगवान शिव की तपस्‍या करना प्रारम्भ किया। उन सबों की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हो गये और कहे- पुत्र, वरदान मांगो।
प्रथम- भगवन् ! धन दें।
शिव- ऐसा ही हो।
द्वितीय- भगवन् । मुझे गोरा रंग प्रदान करें। शिव-ऐसा ही हो।
तृतीयः- (पहला का धन और दूसरा का रूप देखकर ईर्ष्यावश) भगवन्, पहला और दूसरा को पहले जैसा कर दें।

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