BSEB Social Science Geography कक्षा 9 पाठ 4. जलवायु | Jalvayu Class 9th Solutions

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 भूगोल के पाठ 4. जलवायु (Jalvayu Class 9th Solutions)’ के महत्‍वपूर्ण टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगें।

4. जलवायु

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
निर्देश : नीचे दिए गए प्रश्नों में चार संकेत चिह्न हैं, जिनमें एक सही या सबसे उपयुक्त है। प्रश्नों का उत्तर देने के लिए प्रश्न- संख्या के सामने वह संकेत चिह्न (क, ख, ग, घ) लिखें, जो सही अथवा सबसे उपयुक्त हो ।

(i) जाड़े में तमिलनाडु के तटीय भागों में वर्षा का क्या कारण है ?
(क) दक्षिण-पश्चिमी मानसून
(ग) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात
(ख) उत्तर-पूर्वी मानसून
(घ) स्थानीय वायु परिसंचरण

(ii) दक्षिण भारत के संदर्भ में कौन-सा तथ्य गलत है ?
(क) दैनिक तापांतर कम होता है ।
(ख) वार्षिक तापांतर कम होता हैं ।
(ग) तापांतर भर वर्ष अधिक रहता है ।
(घ) विषम जलवायु पायी जाती है।

(iii) जब सूर्य कर्क रेखा पर सीधा चमकता है, तो उसका प्रभाव होता है ?
(क) उत्तरी-पश्चिमी भारत में उच्च वायुदाब रहता है
(ख) उत्तरी-पश्चिमी भारत में निम्नवायुदाब रहता है ।
(ग) उत्तरी-पश्चिमी भारत में तापमान एवं वायुदाब में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
(घ) उत्तर-पश्चिमी भारत से मानसून लौटने लगता है ।

(iv) विश्व में सबसे अधिक वर्षा किस स्थान पर होती है ?
(क) सिलचर
(ख) चेरापूँजी
(ग) मौसिमराम
(घ) गुवाहाटी

(v) मई महीने में पश्चिम बंगाल में चलनेवाली धूल भरी आँधी को क्या कहते हैं
(क) लू
(ख) व्यापारिक पवन
(ग) काल वैशाखी
(घ) इनमें से कोई नहीं

(vi) भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन कब से होता है
(क) 1 मई से
(ख) 1 जून से
(ग) 1 जुलाई से
(घ) 1 अगस्त से

(vii) जाड़े में सबसे ज़्यादा ठंढा कहाँ पड़ता है ?
(क) गुलमर्ग
(ख) पहलगाँव
(ग) खिलनमर्ग
(घ) जम्मू

(viii) उत्तर पश्चिमी भारत में शीतकालीन वर्षा का क्या कारण है ?
(क) उत्तर-पूर्वी मॉनसून
(ख) दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून
(ग) पश्चिमी विक्षोभ
(घ) उष्णकटिबंधीय चक्रवात

(ix) ग्रीष्म ऋतु का कौन स्थानीय तूफान है जो कहवा की खेती के लिए उपयोग होती है ?
(क) आम्र वर्षा
(ख) फूलों वाली बौछार
(ग) काल वैशाखी
(घ) लू

उत्तर— (i) → (ख), (ii) → (ख), (iii) → (ख), (iv)→ (ग), (v)→ (ग), (vi) → (ख) (vii) → (ग), (viii) → (ग), (ix) → (क) ।

कोष्ठक में से सही शब्द चुनकर रिक्त स्थानों को भरें :
(क) जनवरी में चेन्नई का तापमान कोलकाता से ……………. रहता है ।                               (कम/अधिक)
(ख) उत्तर भारत में वर्षा पूरब की अपेक्षा पश्चिम की ओर से उत्तर …………… होती है ।        (अधिक/कम)
(ग) मानसून शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ………….. के नाविकों ने किया था ।                         (अरब /भारत)
(घ) पश्चिम घाट पहाड़ के पश्चिमी भाग में ……………. वर्षा होती है ।                                   (कम/अधिक)
(ङ) पर्वत का ……………. भाग वृष्टिछाया का प्रदेश होता है ।                                            (पवन विमुख / पवन अभिमुख)

उत्तर (क) कम, (ख) कम, (ग) अरब, (घ) अधिक, (ङ) पवन – विमुख ।

निम्नलिखित के भौगोलिक कारण बतलाइए :

प्रश्न (क) पश्चिमी राजस्थान एक मरुस्थल है ।
उत्तर – मानसून हवाएँ दो शाखाओं में बँट जाती हैं। पहली अरब सागर की शाखा और दूसरी बंगाल की खाड़ी की शाखा । बंगाल की खाड़ी शाखा उत्तर की ओर बढ़ती हुई असम- मेघालय में पहुँचकर पूर्वांचल तथा गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ों से टकराकर मेघालय तथा असम की घाटी में भारी वर्षा करती है । इसके बाद ये हवाएँ देश के उत्तर- पश्चिम भाग स्थित निम्न दाब क्षेत्र की ओर बढ़ने लगती है । ये जैसे-जैसे पश्चिम की ओर बढ़ती हैं, वैसे-वैसे वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। जून से सितम्बर तक कोलकाता में 118 सेमी, पटना में 100 सेमी, इलाहाबाद में 90 सेमी, दिल्ली में 55 सेमी और वैसे ही क्रमशः पश्चिम की ओर कम होते-होते राजस्थान में मात्र 10 सेमी ही वर्षा हो पाती है । यही कारण है कि राजस्थान के पश्चिम भाग एक मरुस्थल में विकसित हो गया हैं ।

प्रश्न (ख) तमिलनाडु में जाड़े में वर्षा होती है ।
उत्तर लौटते मानसून के समय अक्टूबर में यह बंगाल की खाड़ी के उत्तर में स्थित हो जाता है । नवम्बर में यह तमिलनाडु तक ही पहुँच पाने में सक्षम हो पाता है । फलतः सम्पूर्ण तमिलनाडु के साथ कर्नाटक में भी वर्षा हो जाती है। यही कारण है कि तमिलनाडु में जाड़े में भी वर्षा होती है ।

प्रश्न (ग) भारतीय कृषि मानसून के साथ जुआ का खेल खेलती है ।
उत्तरयह आवश्यक नहीं कि प्रति वर्ष मानसून आ ही जाए। कभी-कभी यह नहीं भी आता है या आता भी है तो कभी समय से काफी पहले या काफी देर से । किसी वर्ष पर्याप्त वर्षा देता है और कभी थोड़ा ही पानी देकर मुँह मोड़ लेता है। भारतीय किसानों के पास मानसूनी वर्षा के पानी के अलावा सिंचाई के अन्य साधनों का काफी अभाव है । यदि सिंचाई की सुविधा प्राप्त है तो कुछ ही को प्राप्त है । अधिकांश के पास नहीं । इस प्रकार हम देखते हैं कि जिस वर्ष मानसून समय पर आ गया और पर्याप्त पानी दे गया उस वर्ष तो कृषि अच्छी होती है, बरना कृषि नहीं हो पाती । इसी कारण कहा जाता है कि “भारतीय कृषि मानसून के साथ जुआ का खेल खेलती है ।

प्रश्न (घ) मौसिमराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है ।
उत्तरमौसिमराम का पहाड़ मानसूनी हवा की राह के अभिमुख भाग में पड़ता है । यही कारण है कि मानसूनी हवाओं से, जो बंगाल की खाड़ी से होकर जाने के कारण नमी से लदी होती है, पहाड़ से टकराती है । फलतः मौसिमराम में अधिक वर्षा हो जाती है। इतना अधिक कि विश्व के किसी भी भाग में इतना अधिक वर्षा नहीं होती। इसी कारण कहा जाता है कि मौसिमराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती

प्रश्न (ङ) उटी में सालोभर तापमान काफी नीचे रहता हैं।
उत्तर जैसे-जैसे समुद्रतल से धरातल की ऊँचाई बढ़ती जाती है वैसे-वैसे हवा विरल होती जाती है। परिणाम होता है कि वहाँ तापमान घटता जाता है, जिससे वह स्थान गर्मी में भी ठंडा ही बना रहता है । ‘उटी’ के साथ भी यही बात है । ‘उटी’ निम्न अक्षांश में तो स्थित है ही, वहाँ धरातल की ऊँचाई भी समुद्रतल से अधिक है । यही कारण है कि ऊटी में सालो भर तापमान काफी नीचे रहता है । (ऊटी को ही ‘ऊटकमंड’ भी कहा जाता है ।)

लघु उत्तरीय प्रश्न :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें :

प्रश्न (क) जाड़े के दिनों में भारत में कहाँ-कहाँ वर्षा होती है ?
उत्तरजाड़े के दिनों में भारत में तमिलनाडु तथा कर्नाटक राज्यों में वर्षा होती है

प्रश्न (ख) फेरल का क्या नियम है ?
उत्तर उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न दाब क्षेत्र की ओर आकर्षित होकर हवाएँ जब विषुवत रेखा को पार करती हैं तब अपनी दाहिनी ओर मुड़ जाती हैं। इसी को ‘फेरल का नियम कहा जाता है । दक्षिणी गोलार्द्ध में यह क्रिया उलट जाती है अर्थात हवाएँ अपनी बाई – ओर मुड़ती हैं।

प्रश्न (ग) जेट स्ट्रीम क्या है ?
उत्तरलगभग 27° उत्तरी अक्षांश से 30° उत्तरी अक्षांश के बीच ऊपरी वा परिसंचरण जब तेज गति पकड़ लेती है तो भारी तूफान आता है और वर्षा होती है इससे जान-माल की हानि तक हो जाती है । इन्हीं धाराओं को ‘जेट स्ट्रीम’ या ‘जेट धारा कहते हैं ।

प्रश्न (घ) भारतीय मॉनसून की कोई तीन विशेषताएँ बताइए ।
उत्तरभारतीय मानसून की तीन विशेषताएँ हैं कि यह (i) भारत में उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक वर्षा का कारक बनाता है, जिससे कृषि में सहायता मिल है। (ii) यह देश में खान-पान से लेकर वस्त्र और आवास तक को प्रभावित करता- (iii) मानसून देश को सूखा तथा अकाल से बचाता है ।

प्रश्न (ङ) ‘लू’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तरग्रीष्म ऋतु में भारत में चलनेवाली गर्म पछुआ हवा को ‘लू’ कहते हैं स्थानानुसार इसका नाम बदलते रहता है। उत्तर प्रदेश और बिहार में जिसे ‘लू’ कह हैं उसी को पश्चिम बंगाल में ‘काल वैशाखी’ कहते हैं !

प्रश्न (च) मानसून का विस्फोट क्या है ?
उत्तरभारत में 15 जून के बाद मौसम में अचानक परिवतर्नन होने लगता दक्षिण-पश्चिम दिशाओं से हवा का तेजी से चलना आरंभ हो जाता है। आसमान काल काले बादलों से आच्छादित हो जाता है । बादल गरजने लगते हैं और बिजली चमक लगती है। इस गर्जन-तर्जन के साथ ही भारी वर्षा आरम्भ हो जाती है। इसी प्रक्रि को ‘मानसून का विस्फोट’ या ‘मानसून का फटना’ कहते हैं ।

प्रश्न (छ) भारत के अत्यधिक गर्म एवं अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों के नाम बताइए ।
उत्तर :
भारत के अत्यधिक गर्म क्षेत्र हैं : उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल ।
भारत के अत्यधिक ठंडे क्षेत्र हैं: जम्मू-कश्मीर, उत्तरांचल तथा हिमाचल प्रदेश ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न (क) भारत की मानसूनी जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को सोदाहरण समझाइए ।
उत्तरभारत की मानसूनी जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नता में केवल मानसूनी हवाओं का ही हाथ नहीं है। इसमें सूर्य की तीरछी-सीधी किरणों का भी प्रभाव पड़ता है। जब कर्क रेखा के आसपास सूर्य लम्बवत चमकता है तब भारत का उत्तर-पश्चिमी भाग अत्यधिक गर्म हो जाता है। इसका फल होता है कि उस क्षेत्र में वृहत् न्यूनदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। लेकिन मकर रेखा के पास सूर्य की तिरछी किरणों के कारण तुलनात्मक रूप से उच्चदाब का क्षेत्र ही बना रहता है । यहाँ की हवा निम्न दाब की ओर चल देती है और जब विषुवत रेखा को पार करती है, तब फेरेल को नियम का अनुसरण करते हुए दाहिनी ओर मुड़ जाती है तथा उत्तर-पूर्व दिशा में चलती हुई केरल तट पर पहुँचती है। इसी हवा को दक्षिण-पश्चिम मानसून कहा जाता है । ये हवाएँ हजारों किमी समुद्री मार्ग से आने के कारण अपने साथ प्रचुर मात्रा में जलवाष्प लाती हैं । यह केरल में लगभग 1 जून को पहुँचती है और शीघ्र ही 13 से 15 जून तक मुंबई और कोलकाता होते हुए मध्य जुलाई तक सम्पूर्ण भारत में फैल जाती हैं। मानसूनी हवाओं के मार्ग में यदि कोई पहाड़ रास्ते में रुकावट खड़ा करता है तो ये हवाएँ ऊपर उठ जाती हैं और घनीभूत होकर वर्षा कर देती हैं। इसको पहला अवरोध तो केरल में पश्चिम घाट पहाड़ का ही झेलना पड़ता है- और भारत में पहली वर्षा केरल में ही पश्चिमी घाट के पश्चिमी क्षेत्र में हो जाती है । इसकी ऊँचाई अधिक नहीं होने के कारण इसे पार कर ये हवाएँ आगे बढ़ जाती हैं और हिमालय के अभिमुख ढाल तक पहुँच जाती है। हिमालय के दक्षिणी ढाल पर अधिक वर्षा का यही कारण है। लेकिन पर्वत के विमुख ढाल वृष्टिछाया में पड़ने के कारण सूखा ही रह जाते हैं या वहाँ वर्षा होती भी है तो बहुत कम । नवम्बर-दिसम्बर माह में सूर्य मकररेखा पर सीधी चमकने लगता है । फलतः वहाँ निम्न दाब का क्षेत्र बनने लगता है । यह वह समय रहता है जब उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी पड़ती है जिससे वह भाग उच्च दाब के अधीन रहता है। अब जून माह के विपरीत स्थिति बन जाती है और दक्षिण-पश्चिम के स्थान पर अब उत्तर-पूर्वी मानसून का प्रभाव जमने लगता है । उत्तर-पूर्वी मानसून का समय नवम्बर से मध्य मार्च तक प्रभावित रहता है । इससे भारत के दक्षिण तटीय भाग तमिलनाडु, कर्नाटक आदि राज्यों में वर्षा होती है । इस समय पछुआ हवा की पेटी के दक्षिण की ओर खिसक जाने के कारण विक्षोभ उत्पन्न होता है, जिस कारण भारत के उत्तरी मैदान में भी वर्षा होती है, जिससे रब्बी फसलों को लाभ होता हैं ।
पुनः दक्षिण-पश्चिम मानसून का पश्चिम की ओर बढ़ना धीरे-धीरे कम होने लगता है। परिणामस्वरूप 1 सितम्बर को यह थार मरुस्थल तक नहीं पहुँच पाता । 15 दिसम्बर तक यह चंडीगढ़, दिल्ली तथा श्रीनगर तक पहुँचकर रुक जाता है। 1 अक्टूबर तक यह मुंबई, भोपाल, लखनऊ आदि को छोड़ देता है । 10 अक्टूबर तक यह पूरा उत्तरी भारत को छोड़ देता है और 15 नवम्बर को पूरे भारत से नदारद हो जाता है। भारत की मानसूनी जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नताओं के ये ही सब कारण हैं ।

प्रश्न (ख) भारत में कितनी ऋतुएँ पाई जाती हैं? किसी एक का भौगोलिक विवरण दीजिए ।
उत्तर – भारत में कुल छः ऋतुएँ पाई जाती हैं जो विश्व के किसी भी देश हैं। ये हैं: वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत एवं शिशिर । हिन्दी महीनों के आधार पर चैत्र-वैशाख के महीने वसंत ऋतु के हैं, ज्येष्ठ-आषाढ़ के महीने ग्रीष्म ऋतु के हैं, सावन- भादों के महीने वर्षा ऋतु के हैं, आसिन-कार्तिक के महीने शरत ऋतु के हैं, अगहन – पौप के महीने हेमंत ऋतु एवं माघ – फाल्गुन के महीने शिशिर ऋतु के हैं । वैसे मुख्यतः निम्नलिखित चार ऋतुओं को ही प्रभावी माना जाता है । वे निम्नलिखित हैं :
(1) शीत ऋतु – मध्य नवम्बर से मध्य मार्च ।
(2) ग्रीष्म ऋतु – मध्य मार्च से मध्य जून तक ।
(3) वर्षा ऋतु – मध्य – जून से मध्य सितम्बर तक ।
(4) लौटती मानसून ऋतु मध्य सितम्बर से मध्य नवम्बर तक ।
इन चारों में हम वर्षा ऋतु को ही महत्व देंगे कारण की यही ऋतु भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभावी रहती है तथा भारतीय किसान इस ऋतु की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं।

वर्षा ऋतु जून महीने में गर्मी चरम पर रहती है, लेकिन 15 जून के बाद मौसम में एकाएक बदलाव आता है । दक्षिण-पश्चिम हवाएँ बहने लगती हैं। इन्हीं हवाओं को मानसूनी हवा कहते हैं । इन हवाओं का परिणाम होता है कि आसमान काले-काले बादलों से आच्छादित रहने लगता है । बादल गरजने लगते हैं, बिजली चमकने लगती है । इसके साथ ही पानी का बरसना शुरू हो जाता है। जुलाई के पहले सप्ताह तक मानसूनी हवाएँ पूरे भारत को अपने गिरफ्त में ले लेती हैं तथा सभी जगह कुछ-न-कुछ और कभी-न- कभी पानी बरसने लगता है । कहीं-कहीं तो मूसलधार वर्षा होती है । गर्मी गायब हो जाती है । किसान अपने हल बैलों के साथ खेत में पहुँचने लगते हैं और खरीफ फसल की ‘तैयारी में लग जाते हैं ।
मॉनसूनी हवाएँ भारत में पहुँचते ही दो शाखाओं में बँट जाती हैं । पहली शाखा अरब सागर शाखा तथा दूसरी बंगाल की खाड़ी शाखा के नाम से जानी जाती है । उत्तर भारत में पश्चिम बंगाल की खाड़ी शाखा से वर्षा होती है तथा दक्षिण-पश्चिम भारत में अरब सागर शाखा से । वर्षा का वितरण और उसकी मात्रा भारतीय स्थलाकृति एवं उच्चावच से प्रभावित होती है ।
अरब सागर शाखा पश्चिमी घाट पहाड़ से टकराकर ऊपर उठती है और उसके पश्चिमी भाग में भारी वर्षा करती है । पूर्वी भाग वृष्टि छाया में पड़ने के कारण वर्षा से वंचित रह जाता या वहाँ कम वर्षा होती है ।
बंगाल की खाड़ी शाखा की मानसूनी हवाएँ उत्तर की ओर बढ़ती हुई असम-मेघालय में पहुँचकर पूर्वांचल तथा गारो, खासी व जयंतिया पहाड़ों से टकड़ाकर मेघालय तथा असम घाटी में भारी वर्षा करती है
ये हवाएँ अब देश के उत्तर-पश्चिम स्थित निम्न दाब क्षेत्र की ओर बढ़ना तथा बरसना आरम्भ कर देती हैं। ये जैसे-जैसे पश्चिम की ओर बढ़ती जाती है वैसे-वैसे वर्षा की मात्रा कम होती जाती है । असम के बाद सर्वप्रथम पश्चिम बंगाल में 118 से 120 सेमी, बिहार में लगभग 100 सेमी, उत्तर प्रदेश में 100 तथा 90 सेमी के बीच, दिल्ली में 55 सेमी और क्रमशः हरियाणा, पंजाब में कम वर्षा देती हुई राजस्थान के पूर्वी भाग में मांत्र 10 सेमी वर्षा दे पाती हैं और इसका पश्चिमी भाग सूखा रह जाता है, जिस कारण वहाँ मरुस्थल विकसित हो गया है।

प्रश्न (ग) भारत की जलवायु के मुख्य कारकों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तरभारत की जलवायु के मुख्य कारण हैं: (i) अक्षांश, (ii) समुद्रतल से ऊँचाई, (iii) वायु दाब, (iv) हवाओं की दिशा और (v) जल एवं स्थल का वितरण ।

(i) अक्षांश – भारत की जलवायु को अक्षांश रेखाएँ भी प्रभावित करती हैं। अक्षांश रेखाएँ देश की अवस्थिति को बताती हैं। कर्क रेखा (23.5°3′) भारत के मध्य से गुजरती हैं। इस रेखा के उत्तर में उपोष्ण जलवायु पाई जाती है तथा दक्षिण में उष्ण कटिबंधीय जलवायु पाई जाती है । इसका परिणाम होता है कि दक्षिण भारत गर्म एवं उत्तर भारत अपेक्षाकृत ठंडा रहता है। इस प्रकार अक्षांशों की स्थिति को हम जलवायु के मुख्य कारकों में एक मुख्य कारक मान सकते हैं ।

(ii) समुद्रतल से ऊँचाई – जो स्थान समुद्रतल से जितना ऊँचा रहता है, वह स्थान उतना ही ठंडा रहता है तथा जो स्थान जितना भी कम ऊँचा रहता है वह उतना ही गर्म रहता है । महान हिमालय की औसत ऊँचाई 6000 मीटर है, इस कारण यहाँ सालो भर वर्फ जमा रहा है। मैदानी क्षेत्र औसतन 150 मीटर के लगभग ऊँचे हैं तथा तटीय क्षेत्र औसतन 30 मीटर । इसी का परिणाम होता है कि मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा तटीय क्षेत्र गर्म रहते हैं ।

(iii) वायुदाब – वायुदाब भारत की जलवायु को विशिष्टता प्रदान करता है । वायुदाब का ही परिणाम होता है कि विषुवत रेखा क्षेत्र की ओर हवाओं का आना जारी रहता है। हवाएँ उपोष्ण कटिबंधीय उच्चदाब पेटी से उष्ण कटिबंधीय निम्न दापपेटी अर्थात स्थल की ओर से समुद्र की ओर चलने लगती हैं । फलतः ये तापमान को बढ़ा देती हैं और गर्मी महसूस होती है और वर्षा भी नहीं होती ।

(iv) हवाओं की दिशा – हवाओं की दिशा से भी भारतीय जलवायु प्रभावित होती है । थार की ओर से आनेवाली पछुआ हवा से देश में गर्मी बढ़ती है और कितने लोग गर्म हवा के शिकार होकर बीमार तक पड़ जाते हैं। वहीं समुद्र की ओर से चलनेवाली पुरवा हवा से गर्मी से राहत मिलती है । समुद्र की ओर से आनेवाली हवाओं से वर्षा भी होती है, जो जलवायु को प्रभावित करती है ।

(v) जल एवं स्थल का वितरण – भारतीय जलवायु यहाँ के जल तथा स्थल के वितरण से भी प्रभावित होती है । समुद्र तटीय क्षेत्र में वर्ष भर न अधिक जाड़ा पड़ता है और न ही अधिक गर्मी पड़ती है । जल भाग देर से गर्म होता है और देर से ही ठंढा होता है। फलतः वार्षिक तापांतर बहुत कम होता है या होता ही नहीं । दूसरी ओर समुद्र से दूर स्थल भाग में गर्मी में अधिक गर्मी तथा जाड़े में अधिक जाड़ा पड़ता है । तात्पर्य की वार्षिक तापांतर अधिक रहता है

प्रश्न (घ) जेट घोराऐं क्या हैं तथा भारतीय जलवायु पर उनका क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर- जेट धाराएँ ऊपरी वायु परिसंचरण का एक अंश होती हैं । चूँकि ऊपरी वायु परिसंचरण भारत में पश्चिमी प्रवाह से प्रभावित रहता है, इसका फल होता है कि ये हवाएँ 27° से 30° उत्तरी अक्षांशों के बीच वायु मंडल के ऊपरी भाग में चलती हैं। अतः इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराओं का नाम दिया जाता है। ये जाड़े के दिनों में सितम्बर से मार्च तक हिमालय के दक्षिणी ढाल की ओर चला करती हैं। इससे भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ उत्पन्न हो जाता है। इस विक्षोभ का परिणाम होता है कि वर्षा की झड़ी लग जाती है। गर्मी के दिनों में सूर्य कर्क रेखा के ऊपर चमकते रहता है। इससे पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तरी छोर की ओर खिसक जाती है। इसी समय एक अन्य पूर्वी जेट धारा जो उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट धारा कहलाती है। गर्मी में (अप्रैल से अगस्त तक) दक्षिण भारत के ऊपर लगभग 14° उत्तरी अक्षांश के आस-पास बहती है तथा बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश आदि के तटीय भाग में कभी-कभी तूफानी हवा के साथ वर्षा करती है। इस स्थिति के निर्माण में वायु दाब में अंतर तथा पवन की दिशा मुख्य कारक कान कान करते हैं ।
कुल मिला-जुलाकर हम देखते हैं कि जेट धाराएँ चाहे जहाँ भी चलें भारी वर्षा का कारण बनती हैं तथा क्षेत्र विशेष में मौसम पर अपना प्रभाव डालती हैं।

प्रश्न (ङ) भारत में होनेवाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर सम्पूर्ण भारत में मानसून का अर्ध वर्षा ही समझा जाता है। देश में अच्छा मानसून का अर्ध अच्छी वर्षा समझा जाता है। भारत में मानसूनी हवाओं की दिशा 6 नाह दक्षिण-पश्चिन और 6 नाह तक उत्तर-पूर्व की ओर रहता है।
जून के महीने में सूर्य जब कर्क रेखा के आसपास लम्बत किरणें फैलाता है तब भारत का उत्तर-पश्चिम भाग अत्यन्त गर्न हो जाता है। इसका फल होता है कि इस पूरे क्षेत्र में एक वृहत् तथा गहन न्यून वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। इसके विपरीत मकर रेखा के आसपास सूर्य की तिरछी किरणों के कारण तापीय प्रभाव कम रहता है। परिणामस्वरूप तुलनात्मक दृष्टि से इस पूरे क्षेत्र में उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है। यहाँ की वायु राशि भारत में विकसित निम्न दाब क्षेत्र की ओर बढ़ना आरंभ कर देती है। यह वायु राशि जब विषुवत् रेखा को पार करती है, तब फेरेल के नियम का पालन करते हुए अपनी दाहिनी ओर मुड़ जाती है। यह मुड़कर उत्तर-पूर्व दिशा में चलती हुई भारत के केरल तट पर पहुँचती है। यह वायु दक्षिण-पश्चिम मानसून के नाम से जानी जाती है। वास्तव में ये दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी हवाओं का ही विस्तार होता है। ये हजारों किलोमीटर समुद्री मार्ग तय कर आने के कारण अपने साथ प्रचुर मात्रा में जलवाप्य लाती हैं। सर्वप्रथम यह 1 जून को केरल तट तक पहुँचता है और शीघ्र ही 13 से 15 जून तक मुंबई, कोलकाता होते हुए नव्य जुलाई तक सम्पूर्ण भारत में फैल जाता है। मानसूनी हवाओं के मार्ग में पहाड़ जैसी रुकावट बनता है ये ऊपर उठकर घनीभूत हो जाती हैं और भारी वर्षाकाठी हैं। पश्चिमी घाट का पश्चिमी बाल तथा हिमालय के दक्षिणी ब्लान पर अधिक वर्षा का यही कारण है। पहाड़ के अभिमुख ढाल पर भारी वर्षा होती है, जबकि इसका विमुख भाग सूखा ही रह जाता है, क्योंकि यह वृष्टि छाया में पड़ जाता है। पश्चिमी घाट पहाड़ के पूर्वी भाग में कम वर्षा का यही कारण है।
दक्षिण- मानसून जिन क्षेत्रों को खाली करता है वहाँ उत्तर-पूर्वी मानसून अपना प्रभाव जमा लेता है । यह समय लगभग मध्य नवम्बर से मध्य मार्च का रहता है। इससे दक्षिण तटीय प्रदेशों में भारी वर्षा होती है, जैसे खासकर तमिलनाडु और कर्नाटक में । इस अवधि में कभी-कभी पछुआ पवन की पेटी कुछ दक्षिण की ओर खिसक जाती है, जिससे विक्षोभ उत्पन्न होता है तथा उत्तर भारत में वर्षा होती है जो रब्बी के लिए लाभदायक होती है ।

प्रश्न (च) एल निनो एवं ला निनो में अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- एल निनो गर्म जलधारा है जबकि ला निनो ठंडी धारा है। ये गर्म या ठंडी धाराएँ जब चलती हैं तब तटीय क्षेत्रों पर प्रभाव डालती हैं । ‘एल निनो’ की गर्म धाराएँ कभी-कभी ही उत्पन्न होती हैं । यह गर्म धारा दक्षिण अमेरिका के पेरू एवं एक्वाडोर देशों के प्रशांत तटीय भाग में उत्पन्न होती है । फलतः अचानक उस क्षेत्र में तापमान 5° से 10° तक बढ़ जाती है । जब यह धारा पूर्वी द्वीप समूह क्षेत्र में पहुँचती है तो वहाँ निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है । इस कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाएँ इस निम्न दाब की ओर बढ़ जाती हैं । फलतः उत्तर भारत में सामान्य से कम ही वर्षा होती है और सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके विपरीत ला निनो, जो ठंडी धारा है, की उत्पति कभी-कभी पेरू तट पर ही होती है । पूर्वी द्वीप समूह में पहुँचकर ठंडा होने के कारण वायु दाब को बढ़ा देती हैं अर्थात उस क्षेत्र में उच्च दाब का प्रभाव बढ़ जाता है। उच्च दाब के कारण उस क्षेत्र से चारों ओर हवाएँ फैलने लगती हैं, जिसका कुछ भाग भारत में पहुँचकर दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवा में जल की मात्रा को बढ़ा देती है । इस कारण भारत में उस वर्ष भारी वर्षा होती है और बाढ़ तक की स्थिति आ जाती है । इसके प्रभाव से आस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा चीन में भी भारी वर्षा होती है।
इस प्रकार यदि संक्षेप में कहना पड़े तो हम कहेंगे कि ‘एल निनो’ गर्म समुद्री धारा हैं जबकि ‘ला निनो’ ठंडी समुद्री धारा हैं। दोनों ही दक्षिण अमेरिका में ही उत्पन्न होती हैं और भारतीय मानसून में दखल दे बैठती हैं । ‘एल निनो’ के प्रभाव से भारत में कम वर्षा होती है जबकि ‘ला नीनो’ के प्रभाव से भारत में भारी वर्षा होती है ।
मौसम वैज्ञानिकों का यह मानना है कि ‘एल निनो’ तथा ‘ला निनो’ के अध्ययन से भारत में मानसून की भविष्यवाणी करना आसान होता है ।

मानचित्र कार्य :

प्रश्न : पूर्ण पृष्ठ पर भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को दर्शाइए :
(क) 400 सेमी से अधिक वर्षा का क्षेत्र ।.
(ख) 20 सेमी से कम वर्षा का क्षेत्र ।
(ग) भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की दिशा ।
(घ) शीतकालीन वर्षा वाले क्षेत्र ।
(ङ) चेरापूँजी, मौसिमराम, जोधपुर, मंगलोर, उटी, नैनीताल ।
उत्तर –

परियोजना कार्य :
आप एक तालिका बनाइए जिसमें मौसम अथवा ऋतु के अनुसार गीत एवं नृत्य, भोजन के विशेष सामान तथा वस्तुओं को सूचीबद्ध कीजिए ।
उत्तर- संकेत : यह परियोजना कार्य है, अतः छात्र इसे स्वयं करें।

कुछ अन्य प्रमुख प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. मुख्यत: किन तत्वों ने भारतीय जलवायु को प्रभावित किया है ?
उत्तरभारत का लगभग आधा भू-भाग कर्क रेखा के दक्षिण में है, जो उष्णकटिबंध में है तथा आधा भाग उत्तर में है, जो नार की दृष्टि से उपोष्ण कटिबंध में है। उत्तरी सीमा पर महान हिमालय तथा दक्षिण-पूर्व दक्षिण-पश्चिम सीमाओं पर हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी (बंगे। सागर) ने भारत की जलवायु को काफी प्रभावित किया है ।

प्रश्न 2. मौसम तथा जलवायु में क्या अंतर है ?
उत्तरमौसम दिन-प्रतिदिन बदलनेवाला होता है लेकिन जलवायु लगभग स्थाई होती ता है। मौसम एक दिन में कई रूप धारण कर सकता है लेकिन जलवायु में बहुत ड़ा अंतर कभी नहीं आता । उदाहरण के लिए आज दिन में भारी गर्मी थी. लेकिन जल्दी ही हवा बहने लगी, बादल छा गए और वर्षा हो गई जिससे दिन सुहावना हो गया । हालाँकि ऐसा प्रतिदिन नहीं होता ।
एक विस्तृत क्षेत्र में लगभग 30-40 वर्षो के औसत मौसम से जलवायु को निश्चित किया जाता है। इसमें मौसमी तथा वायुमंडलीय विशेषताओं को भी शामिल किया जाता है। इस प्रकार संक्षेप में कहें तो कह सकते हैं कि नित्य प्रति की वायुमंडलीय स्थिति को मौसम तथा एक लम्बी अवधि तक बने रहनेवाले मौसम को जलवायु कहते हैं।

प्रश्न 3. व्युत्पति के आधार पर ‘मानसून’ शब्द का अर्थ बताइए । भारत में इसका क्या महत्व है ?
उत्तर- मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा ‘मौसिम’ से हुई है, जिसका सीधा अर्थ है ‘मौसम’। ‘मौसिम’ शब्द का उपयोग सर्वप्रथम अरब के नाविकों ने उन हवाओं के लिए किया जो ऋतु के बदलते ही अपनी दिशा भी बदल लेती थीं। कालक्रम से ‘मौसिम’ से ‘मौसम’ तथा बाद में ‘मानसून’ शब्द का उपयोग होने लगा ।
भारत में मानसून का महत्व इस कारण है, क्योंकि इसी की हवाओं से भारत में वर्षा होती है, जो खेती के लिए वरदान स्वरूप है ।

प्रश्न 4. कहा जाता है कि भारत में एकता के बीच विविधता पाई जाती है । तापमान के सम्बंध में आप क्या कहेंगे? वस्त्र और भोजन के विषय में भी बताइए ।
उत्तर – तापमान के विषय में भी हम यही कहेंगे । कारण कि भारत एक भौगोलिक इकाई है, इस कारण यह एक है या इसमें एकता है। वहीं तापमान में भिन्नता पाई जाती है। उत्तर में जिस समय कारगिल का तापमान – 40°C रहता है, वहीं दक्षिण तिरुवनन्तपुरम तथा चेन्नई में 25° से 30°C के बीच रहता है तथा राजस्थान के बाड़मेर में 50°C तक पहुँच जाता है। इस प्रकार भारत भौगोलिक दृष्टि से तो भारत एक है, लेकिन तापमान की दृष्टि से इसमें काफी विविधता है। तापमान में विविधता रहने से वस्त्र एवं भोजन में भी विविधता आ जाती है ।

प्रश्न 5. गर्म एवं ठंडी धारा से आप क्या समझते हैं? इसके प्रभाव को भी रेखांकित करें ।
उत्तर – गर्म एवं ठंडी धाराएँ समुद्र में चला करती है। इसका प्रभाव यह पड़ता है कि गर्म धारा जिस तट से होकर गुजरती है वहाँ का तापमान बढ़ जाता है तथा ठंडी धारा जिस तट से होकर गुजरती है वहाँ के तापमान को कमकर देती है। गर्म एवं ठंढी धाराओं के मिलन स्थान पर कुहासा छा जाता है, जिससे जहाजों को चलने में कठिनाई होती है ।

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