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कक्षा 12 भूगोल पाठ 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन/ khanij tatha urja sansadhan class 12th Notes

February 4, 2023 by Tabrej Alam Leave a Comment

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ 7 ‘ खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (khanij tatha urja sansadhan class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

khanij tatha urja sansadhan class 12th Notes

अध्याय 7
खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

इस अध्याय में, हम देश में विभिन्न प्रकार के खनिजों एवं ऊर्जा के संसाधनों की उपलब्धता के बारे में चर्चा करेंगे।

खनिज संसाधनों के प्रकार

रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मा के आधार पर खनिजों को दो प्रमुख श्रेणियों-धात्विक (धातु) और अधात्विक (अधातु)

भारत में खनिजों का वितरण

भारत में अधिकांश धात्विक खनिज प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र की प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों में पाए जाते हैं। कोयले का लगभग 97 प्रतिशत भाग दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी नदियों की घाटियों में पाया जाता है। पेट्रोलियम के आरक्षित भंडार असम, गुजरात तथा मुंबई हाई अर्थात् अरब सागर के अपतटीय क्षेत्र में पाए जाते हैं। भारत में खनिज मुख्यतः तीन विस्तृत पट्टियों में सांद्रित हैं। ये पट्टियाँ हैं-

उत्तर–पूर्वी पठारी प्रदेश

इस पट्टी के अंतर्गत छोटानागपुर (झारखंड), ओडिशा के पठार, पं. बंगाल तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भाग आते हैं। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के खनिज जैसे कि लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, बॉक्साइट व अभ्रक आदि।

khanij tatha urja sansadhan class 12th Notes

दक्षिण–पश्चिमी पठार प्रदेश

यह पट्टी कर्नाटक, गोआ तथा संस्पर्शी तमिलनाडु उच्च भूमि और केरल पर विस्तृत है। यह पट्टी लौह धातुओं तथा बॉक्साइट में समृद्ध है। इसमें उच्च कोटि का लौह अयस्य, मैंगनीज तथा चूना-पत्थर भी पाया जाता है।

उत्तर–पश्चिमी प्रदेश

यह पट्टी राजस्थान में अरावली और गुजरात के कुछ भाग पर विस्तृत है ताँबा, जिंक आदि प्रमुख है। राजस्थान बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट, संगमरमर, जिप्सम जैसे भवन निर्माण के पत्थरों में समृद्ध हैं

डोलोमाइट तथा चुना-पत्थर सीमेंट उद्योग के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं।

हिमालयी पट्टी एक अन्य खनिज पट्टी है जहाँ ताँबा, सीसा, जस्ता, कोबाल्ट तथा रंगरत्न पाया जाता है। असम घाटी में खनिज तेलों के निक्षेप हैं।

लौह खजिन

लौह अयस्क, मैंगनीज तथा क्रोमाइट आदि जैसे लौह खनिज धातु आधारित उद्योगों के विकास के लिए एक सुदृढ़ आधार प्रदान करते हैं।

लौह अयस्क

भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन हैं। यहाँ एशिया के विशालतम लौह अयस्क आरक्षित हैं। हमारे देश में इस अयस्क के दो प्रमुख प्रकार- हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट पाए जाते हैं।

लौह अयस्क के कुल आरक्षित भंडारों का लगभग 95 प्रतिशत भाग ओडिशा, झारखंड, कर्नाटक, गोआ, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं। ओडिशा में लौह अयस्क सुंदरगढ़, मयूरभंज, झार स्थित पहाड़ी श्रृंखलाओं में पाया जाता है।

कर्नाटक में, लौह अयस्क के निक्षेप बल्लारि जिले के संदूर-होसपेटे क्षेत्र में तथा चिकमगलूरू जिले की बाबा बूदन पहाड़ियों और कुद्रेमुख तथा शिवमोगा, चित्रदुर्ग और तुमकुरू जिलों के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर भंडारा और रत्नागिरि जिले, तेलंगाना के करीम नगर, वारांगल जिले, आंध्र प्रदेश के कुरूनूल, कडप्पा तथा अनंतपुर जिले और तमिलनाडु राज्य के सेलम तथा नीलगिरी जिले लौह अयस्क खनन के अन्य प्रदेश हैं।

मैंगनीज

लौह अयस्क के प्रगलन के लिए मैंगनीज एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है और इसका उपयोग लौह-मिश्रातु, विनिर्माण में भी किया जाता है।

ओडिशा मैंगनीज का अग्रणी उत्पादनक है। ओडिशा की मुख्य खदानें भारत की लौह अयस्क पट्टी के मध्य भाग में विशेष रूप से बोनाई, केन्दुझर, सुंदरगढ़, गंगपुर, कोरापुट, कालाहांडी तथा बोलनगीर स्थित हैं। कर्नाटक एक अन्य प्रमुख उत्पादक है महाराष्ट्र भी मैंगनीज का एक महत्वपूर्ण उत्पादक हैं।

अलौह–खनिज

बॉक्साइट

बॉक्साइट एक अयस्क है जिसका प्रयोग एल्युमिनियम के विनिर्माण में किया जाता है। ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है। कालाहांडी तथा संभलपुर अग्रणी उत्पादक हैं। छत्तीसगढ़ में बॉक्साइट निक्षेप अमरकंटक के पठार में पाए जाते हैं

ताँबा

बिजली की मोटरें, ट्रांसफार्मर तथा जेनेरेटर्स आदि बनाने तथा विधुत उद्योग के लिए ताँबा एक अपरिहार्य धातु है। यह एक आभूषणों को सुदृढ़ता प्रदान करने के इसे स्वर्ण के साथ भी मिलाया जाता है। ताँबा निक्षेप मुख्यतः झारखंड के सिंहभूमि जिले में, मध्य प्रदेश के बालाघाट तथा राजस्थान के झुंझुनु एवं अलवर जिलों में पाए जाते हैं

khanij tatha urja sansadhan class 12th Notes

अधात्विक खनिज

अभ्रक

अभ्रक का उपयोग मुख्यतः विधुत एवं इलेक्ट्रोनिक्स उद्योगों में किया जाता है। भारत में अभ्रक मुख्यतः झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व राजस्थान में पाया जाता है। आंध्र प्रदेश में, नेल्लोर जिले में सर्वोत्तम प्रकार के अभ्रक का उत्पादन किया जाता है।

ऊर्जा संसाधन

ऊर्जा उत्पादन के लिए खनिज ईधन अनिवार्य हैं ऊर्जा की आवश्यकता कृषि, उद्योग, परिवहन तथा अर्थव्यवस्था के अन्य खंडों में होती है। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे खनिज ईधन (जो जीवाश्म ईधन के रूप में जाने जाते हैं), परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं।

khanij tatha urja sansadhan class 12th Notes

कोयला

कोयला महत्वपूर्ण खनिजों में से एक है जिसका मुख्य प्रयोग ताप विधुत उत्पादन तथा लौह अयस्क के प्रगलन के लिए किया जाता है। कोयला मुख्य रूप से दो भूगर्भिक कालों की शैल क्रमों में पाया जाता है जिनके नाम हैं गोंडवाना और टर्शियरी निक्षेप।

भारत में कोयला निक्षेपों का लगभग 80 प्रतिशत भाग बिटुमिनियस प्रकार का तथा गैर कोककारी श्रेणी का है। गोंडवाना कोयले के प्रमुख संसाधन पं. बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में अवस्थित कोयला क्षेत्रों में है। भारत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण गोंडवाना कोयला क्षेत्र दामोदर घाटी में स्थित है। ये झारखंड-बंगाल कोयला पट्टी में स्थित हैं और इस प्रदेश के महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र रानीगंज, झरिया, बोकारो गिरीडीह तथा करनपुरा (झारखंड) हैं। झरिया सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है जिसके बाद रानीगंज आता है।

टर्शियरी कोयला असम, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय तथा नागालैंड में पाया जाता है।

पैट्रोलियम

कच्चा पेट्रोलियम द्रव और गैसीय अवस्था के हाइड्रोकार्बन से युक्त होता है यह मोटर-वाहनां, रेलवे तथा वायुयानों के अंतर-दहन ईधन के लिए ऊर्जा का एक अनिवार्य स्रोत है। इसके अनेक सह-उत्पाद पेट्रो-रसायन उद्योगों, जैसे कि उर्वरक, कृत्रिम रबर, कृत्रिम रेशे, दवाइयाँ, वैसलीन, स्नेहकों, मोम, साबुन तथा अन्य सौंदर्य सामग्री में प्रक्रमित किए जाते हैं।

असम में डिगबोई, नहारकटिया तथा मोरान महत्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं। गुजरात में प्रमुख तेल क्षेत्र अंकलेश्वर, कालोल, मेहसाणा, नवागाम, कोसांबा तथा लुनेज हैं। मुंबई हाई, जो मुंबई नगर से 160 कि. मी. दूर अपतटीय क्षेत्र में पड़ता है, को 1973 में खोजा गया था और वहाँ 1976 में उत्पादन प्रारंभ हो गया।

कूपों से निकाला गया तेल अपरिष्कृत तथा अनेक अशुद्धियों से परिपूर्ण होता है। इसे सीधे प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। भारत में दो प्रकार के तेल शोधन कारखाने हैंः (क) क्षेत्र आधारित (ख) बाजार आधारित। डिगबोई तेल शोधन कारखाना क्षेत्र आधारित तथा बरौनी बाजार आधारित तेल शोधन कारखाने के उदाहरण हैं।

प्राकृतिक गैस

गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की स्थापना 1984 में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम के रूप में प्राकृतिक गैस के परिवहन एवं विपणन के लिए की गई थी। गैस को सभी तेल क्षेत्रों में तेल के साथ प्राप्त किया जाता है।

अपरंपरागत ऊर्जा स्रोत

जैसे- सौर, पवन, जल भूतापीय ऊर्जा तथा जैवभार (बायोमास)। यह ऊर्जा स्रोत अधिक समान रूप से वितरित तथा पर्यावरण-अनुकूल हैं। अपरंपरागत स्रोत अधिक आरंभिक लागत के बावजूद अधिक टिकाऊ, पारिस्थितिक-अनुकूल तथा सस्ती ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।

khanij tatha urja sansadhan class 12th Notes

नाभिकीय ऊर्जा

नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण खनिज यूरेनियम और थोरियम हैं। भौगोलिक रूप से यूरेनियम अयस्क सिंहभूम ताँबा पट्टी के साथ अनेक स्थानों पर मिलते हैं। यह राजस्थान के उदयपुर, अलवर, झुंझुनू जिलों में भी पाया जाता है। थोरियम मुख्यतः केरल के तटीय क्षेत्र की पुलिन बीच की बालू में मोनाजाइट एवं इल्मेनाइट से प्राप्त किया जाता है।

परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना 1948 में की गई थी और इस दिशा में प्रगति 1954 में ट्रांबे परमाणु ऊर्जा संस्थान की स्थापना के बाद हुई जिसे बाद में, 1967 में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के रूप में पुनः नामित किया गया। महत्वपूर्ण नाभिकीय ऊर्जा परियोजनाएँ- तारापुर (महाराष्ट्र), कोटा के पास रावतभाटा (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरोरा (उत्तर प्रदेश), कैगा (कर्नाटक) तथा काकरापाड़ा (गुजरात) हैं।

सौर ऊर्जा

फोटोवोल्टाइक सेलों में विपाशित सूर्य की किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है जिसे सौर ऊर्जा के नाम से जाना जाता है।

यह सामान्यतः हीटरों, फसल शुष्ककों कुकर्स आदि जैसे उपकरणों में अधिक प्रयोग की जाती है।

पवन ऊर्जा

पवन ऊर्जा पूर्णरूपेण प्रदूषण मुक्त और ऊर्जा का असमाप्य स्रोत है। पवन की गतिज ऊर्जा को टरबाइन के माध्यम से विधुत-ऊर्जा में बदला जाता है। पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान हैं।

ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा

महासागरीय धाराएँ ऊर्जा का अपरिमित भंडार-गृह है। भारत के पश्चिमी तट पर वृहत ज्वारीय तरंगे उत्पन्न होती हैं। यद्यपि भारत के पास तटों के साथ ज्वारीय ऊर्जा विकसित करने की व्यापक संभावनाएँ है, परंतु अभी तक इनका उपयोग नहीं किया गया है।

भूतापीय ऊर्जा

जब पृथ्वी के गर्भ से मैग्मा निकलता है तो अत्यधिक ऊष्मा निर्मुक्त होती हैं इस ताप ऊर्जा को सफलतापूर्वक काम में लाया जा सकता है और इसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके अलावा, गीजर कूपों से निकलते गर्म पानी से ताप ऊर्जा पैदा की जा सकती है। इसे लोकप्रिय रूप में भूतापी ऊर्जा के नाम से जानते हैं।

भारत में, भूतापीय ऊर्जा संयंत्र हिमाचल प्रदेश के मनीकरण में अधिकृत किया जा चुका हैं भूमिगत ताप के उपयोग का पहला सफल प्रयास (1890 में) बोयजे शहर, इडाहो (यू. एस. ए.) में हुआ था जहाँ आसपास के भवनों को ताप देने के लिए गरम जल के पाइपों का जाल तंत्र (नेटवर्क) बनाया गया था। यह संयंत्र अभी भी काम कर रहा है।

जैव–ऊर्जा

जैव-ऊर्जा उस ऊर्जा को कहा जाता है जिसे जैविक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है जिसमें कृषि अवशेष, नगरपालिका औद्योगिक तथा अन्य अपशिष्ट शामिल होते हैं। जैव-ऊर्जा, ऊर्जा परिवर्तन का एक संभावित स्रोत है। इसे विद्युत-ऊर्जा, ताप-ऊर्जा अथवा खाना पकाने के लिए गैस में परिवर्तित किया जा सकता है। नगरपालिका कचरे को ऊर्जा में बदलने वाली ऐसी ही एक परियोजना नई दिल्ली के ओखला में स्थित है।

खनिज संसाधनों का संरक्षण

सतत पोषणीय विकास की चुनौती के लिए आर्थिक विकास की चाह का पर्यावरणीय मुद्दों से समन्वय आवश्यक है। संसाधन उपयोग के परंपरागत तरीकों के परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में अपशिष्ट के साथ-साथ अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ भी पैदा होती हैं। अतएव, सतत पोषणीय विकास भावी पीढ़ीयों के लिए संसाधनों के संरक्षण का आह्वान करता है। संसाधनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों, जैसे-सौर ऊर्जा, पवन, तरंग, भूतापीय आदि ऊर्जा के असमाप्य स्रोत हैं।

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