लालपान की बेगम लेखक फणीश्वरनाथ रेणु | Lal pan ki begam

इस पोस्‍ट में हमलोग फणीश्वरनाथ रेणु रचित कहानी ‘लालपान की बेगम(Lal pan ki begam)’ को पढ़ेंगे। यह कहानी समाजिक कुरितियों के बारे में है।

Lal Pan ki Begam

Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 4 लालपान की बेगम

लेखक फणीश्वरनाथ रेणु

Bihar Board Class 10th Social Science

पाठ का सारांश

प्रस्तुत कहानी ‘लाल पान की बेगम’ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित ग्रामीण जीवन की कहानी है। इसमें कहानीकार ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि गाँव में लोग किस तरह एक-दूसरे के साथ ईर्ष्या-द्वेष, राग-विराग, आशा-निराशा तथा हर्ष-विषाद के गहरे आवर्त में बँधे होते हैं। कहानी की नायिका बिरजू की माँ हैं । इसके अतिरिक्त बिरजू, बिरजू के पिता, चंपिया, मखनी फुआ तथा गाँव की कुछ अन्य स्त्रियाँ हैं । कहानी का ताना-बाना ग्रामीण परिवेश के आधार पर बुना जाता है, जिसे कहानीकार ने बड़े ही सहज एवं स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया है। बिरजू की माँ के परिवार में महीनों पहले से बैलगाड़ी में बैठकर बलरामपुर का नाच देखने की योजना बन रही है। सुबह से ही परिवार में नाच देखने जाने की चहल-पहल तथा उमंग-तरंग है । बिरजू की माँ शकरकंद की रोटी बनाने की तैयारी कर रही है। इधर किसी पड़ोसिन से कहा-सुनी हो जाती है। जंगी की पतोहू बिरजू की माँ से डरती नहीं है। वह उसे लाल पान का बेगम कहती है तथा कमर पर घड़े को संभाल मटककर बोलती हुई ‘चल दिदिया चल’ कहकर चल देती है। बिरजू की माँ अपनी बेटी चंपिया से कहती है कि “सहुआइन जल्दी सौदा नहीं देती की नानी! एक सहुआइन की ही दुकान पर मोती झड़ते हैं, जो जड़ गाड़कर बैठी हुई थी।”

शाम हो गई। दीया-बाती का समय हो चुका है। अभी तक गाड़ी नहीं आई है। बिरजू की माँ के सब्र का बाँध टूट रहा है। आक्रोशवश वह शकरकंद छीलना बंद कर देती है तथा कहती है कि ‘यह मर्द नाच दिखाएगा ? चढ़ चुकी गाड़ी पर, देख चुकी जीभर नाच।’ वह बिरजू एवं चंपिया को ढिबरी बुझा देने का आदेश देती है तथा खप्पची गिराकर चुपचाप सो जाने को कहती है। वह भी सोने का उपक्रम करती है। उसके मन में अपने पति के विरुद्ध क्रोध की ज्वाला धधक रही है। वह मड़ैया के अंदर चटाई पर करवटें ले रही थी कि तभी बिरजू का पिता बैलगाड़ी लेकर आ धमकता है। गाड़ी के आते ही परिवार में खुशी की लहर छा जाती है। शकरकंद की रोटी बनती है। फुआ बुलाई जाती हैं। बैलगाड़ी पर सभी सवार होते हैं । गाड़ी बलरामपुर की ओर चल पड़ती है। गाड़ी पर पड़ोस की कुछ औरतें भी सवार होती हैं। कार्तिक पूर्णिमा की चमचमाती रात में खेतों में पकी धान की बालें देखकर गीत गाने लगती हैं। बिरजू की माँ जंगी की पतोहू के सौन्दर्य में अपना सौन्दर्य देखती है तथा मन-ही-मन स्वीकार करती है कि वह सचमुच लाल पान की बेगम है । उसके मन में अब कोई लालसा नहीं। सभी के साथ वह भी चलती बैलगाड़ी में सो जाती है।

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