कक्षा 10 लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष – Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के लोकतांत्रिक राजनीति के पाठ तीन लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष (Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh) के सभी महत्‍वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।

Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh
Loktantra Mein Pratispardha Evam Sangharsh

Bihar Board Class 10 Political Science पाठ तीन लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष

जनसंघर्ष के माध्यम से ही लोकतंत्र का विकास हुआ है। जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहनेवालों के बीच संघर्ष होता है तो उसे लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा कहते हैं। कभी-कभी लोग बिना संगठन बनाए ही माँगों के लिए एकजुट होने का निर्णय करते हैं। ऐसे समुहों को जनसंघर्ष या आंदोलन कहा जाता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दल, दबाव-समूह और आंदोलनकारी समूह सरकार पर दबाव बनाते हैं।

लोकतंत्र में जनसंघर्ष की भूमिका

लोकतंत्र को मजबूत बनाने एवं उसे सुदृढ़ करने में जनसंघर्ष की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है। अंग्रेजों से भारत को मुक्‍त कराने के लिए भारतीयों ने जनसंघर्ष किया था। 19वीं शताब्‍दी के सातवें दशक में अनेक सामाजिक जनसंघर्ष की उत्‍पति हुई जिसने लोकतंत्र के मार्ग को प्रशस्‍त किया।

1971 में सत्ता का दूरूपयोग करके संविधान के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन का प्रयास किया। 1975 में आपातकाल लागू कर दिया गया जिसके विरोध में जनसंघर्ष तेज हुए जिसके कारण लोकतंत्र विरोधी सरकार को हटा कर 1977 में जनता पार्टी की सरकार की स्थापना हुई। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि लोकतंत्र में जनसंघर्ष की महत्वपूर्ण भूमिका हेती है।

जनसंघर्ष सरकार को तानाशाह होने एवं मनमाना निर्णय से रोकते हैं क्योंकि लोकतंत्र में संघर्ष होना आम बात होती है। यदि सरकार फैसले लेने में जनसाधारण के विचारों को अनदेखी करती है तो ऐसे फैसले के खिलाफ जनसंर्घष होता है।

बिहार में छात्र आंदोलन

1971 में सत्तारूढ़ काँग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ‘ का नारा देकर लोकसभा में बहुतम हासिल कर सत्ता में आया, लेकिन देश में सामाजिक-आर्थिक दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी जिससे देश में असंतोष का माहौल फैल गया। 1974 में बिहार में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के कारण यहाँ की छात्रों ने सरकार के विरूद्ध आंदोलन छेड़ दिया जिसे छात्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है। जिसका नेतृत्व लोकनायक ‘जयप्रकाश नारायण‘ ने किया। जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि इंदिरा गाँधी अब सांसद नहीं रही। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गाँधी के इस्तिफे के लिए दबाव डालना प्रारंभ किया। उन्होंने अपने आह्वान में सेना और पुलिस तथा सरकारी कर्मचारीयों को भी सरकार का आदेश नहीं मानने का निवेदन किया। इंदिरा गाँधी ने अपने विरूद्ध षड्यंत्र मानते हुए देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लागू करते हुए जयप्रकाश नारायण सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जेल में डाल दिया।

18 महीने के आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुआ जिसमें जनता पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। इस प्रकार काँग्रेस हार गई। 1980 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई और फिर से 1980 में कांग्रेस की सरकार बनी।

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सूचना के अधिकार का आंदोलन

सूचना के अधिकार आंदोलन की शुरूआत झारखंड के एक छोटे से गाँव से शुरू हुआ था। जिससे सरकार को 2005 में ‘सूचना के अधिकार‘ अधिनियम लाया गया जो जन आंदोलन की सफलता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

नेपाल में लोकतांत्रिक आंदोलन

नेपाल में लोकतंत्र 1990 के दशक में कायम हुआ। वहाँ के राजा को औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बनाया गया लेकिन वास्तविक रूप से जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा ही शासन किया जाता था। 2005 में नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ कर दिया तथा जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को भंग कर दिया जिससे नेपाल में अप्रैल 2006 में आंदोलन खड़ा हुआ, जिसका एक मात्र उद्देश्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर जनता के हाथ में सौंपना था।

जिसके फलस्वरूप 24 अप्रैल 2006 को राजा ज्ञानेन्द्र ने सर्वदलीय सरकार और एक नयी संविधान सभा के गठन की बात स्वीकार कर ली और पुनः संसद बहाल हुई।

इस तरह से, नेपाल के लोगों द्वारा लोकतंत्र बहाली के लिए किए गए संघर्ष पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा के स्त्रोत है।

राजनीतिक दल का अर्थ- राजनीतिक दल का अर्थ ऐसे व्यक्तियों के किसी भी समूह से है जो एक समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करता है। व्यक्तियों का समूह जब राजनीतिक दल के रूप में संगठित होता है तो उनका उद्देश्य सिर्फ ‘सत्ता प्राप्त करना‘ या ‘सत्ता को प्रभावित करना‘ होता है। भारत में दलीय व्यवस्था की शुरूआत 1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना से मानी जाती है। विश्व में सबसे पहले राजनीतिक दलों की उत्पत्ति ब्रिटेन से हुई।

राजनीतिक दलों का कार्य

लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल जीवन के एक अंग बन चुके हैं। इसीलिए उन्हें ‘लोकतंत्र का प्राण‘ कहा जाता है।

  1. नीतियाँ एवं कार्यक्रम तय करना- राजनीतिक दल जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए नीतियाँ एवं कार्यक्रम तैयार करते हैं।
  2. शासन का संचालन- राजनीतिक दल चुनाव में बहुमत पाकर सरकार का निर्माण करते हैं।
  3. चुनवों का संचालन- राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ जनता के पास रखते हैं और अपने उम्मीदवारों को खड़ा करने और हर तरीके से उन्हें चुनाव जीताने का प्रयास करते हैं। इसीलिए, राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार्य चुनवों का संचालन भी है।
  4. सरकार एवं जनता के बीच मध्यस्थ का कार्य- राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता का काम करती है। राजनीतिक दल ही जनता की समस्याओं और आवश्कताओं को सरकार के सामने रखते हैं।

भारत में प्रमुख राजनीतिक दलों का परिचय

भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दल के दो स्वरूप हैं- राष्ट्रीय राजनीतिक दल और राज्य स्तरीय या क्षेत्रीय राजनीतिक दल

वैसे राजनीतिक दल जिसकी नीतियाँ राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, उसे राष्ट्रीय राजनीतिक दल कहते हैं।

वैसे राजनीतिक दल जिसकी नीतियाँ राज्य स्तरीय या क्षेत्रीय होती है। इसे क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय राजनीतिक दल कहते हैं।

राष्ट्रीय राजनीतिक दल और राज्य स्तरीय राजनीतिक दल का निर्धारण निर्वाचन आयोग करता है।

राष्ट्रीय राजनीतिक दल की शर्त- लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में 4 या अधिक राज्यों द्वारा कुल डाले गए वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करने के साथ लोकसभा में कम-से-कम 4 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है या लोकसभा में कम से कम दो प्रतिशत अर्थात् 11 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है जो कम से कम तीन राज्यों से होना चाहिए।

राज्य स्तरीय दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए उस दल को लोकसभा या विधान सभा के चुनावों में डाले गए वैध मतों का कम-से-कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करने के साथ-साथ राज्य विधानसभा की कम-से-कम 3 प्रतिशत सीटें या 3 सीटें जीतना आवश्यक है।

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भारत में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दल

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 1885 में हुई। यह एक धर्म निरपेक्ष पार्टी है। यह विश्व के पुराने राजनीतिक दलों में से एक है। यह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई वर्षों तक देश पर शासन किया।

भारतीय जनता पार्टी- 1980 में भारतीय जनसंघ के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। भारतीय जनता पार्टी का प्रथम अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी थे। इस पार्टी का मुख्य लक्ष्य भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्यों से प्रेरणा लेकर आधुनिक भारत का निर्माण करना है। यह पार्टी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है तथा समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्षधर है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी०पी०आई०)- भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1925 में एम०एस० डांगे ने की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र में आस्था रखती है और साम्प्रदायिकता का विरोध करती है। इस पार्टी का जनाधार केरल, पश्चिम बंगाल और बिहार आदि राज्यों में है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सी०पी०आई०)- 1964 में साम्यवादी दल का विभाजन हो गया और एक नए दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। यह दल लेनिन के विचारों में आस्था रखते हुए समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतंत्र का समर्थन करता है। इस दल के नेता किसानों और मजदूरों की तानाशाही कायम करना चाहते हैं।

बहुजन समाज पार्टी ( बसपा )- बसपा की स्थापना 1984 में श्री काशीराम ने किया। इस पार्टी का मुख्य विचारधारा दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को एकजुट कर सत्ता प्राप्त करना है।

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