इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्कृत के कहानी पाठ आठ ‘नीतिश्लोकाः’ (Niti sloka class 8 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।
8. अष्टमः पाठः
नीतिश्लोकाः
पाठ-परिचय–प्रस्तुत पाठ ‘नीतिश्लोकाः’ में जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए नीतिविशारदों ने अपना अनुभव बताया है। श्लोकों में यह बताया गया है कि किस स्थिति में व्यक्ति का जीवन सुखमय होता है तथा किस स्थिति में दुःखमय होता है। जब व्यक्ति अपने पूर्वाचार्यों द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करता है तो उसका जीवन सदा सुखमय रहता है। यदि वह इन नियमों की अवहेलना करता है तो वह दुःखमय तो रहता ही है, उसे उपहास का भी पात्र बनना पड़ता है। इसी उद्देश्य से पाठ में कुछ ऐसे श्लोक दिए गए हैं, जिनका अनुपालन करने पर व्यक्ति अपना, समाज तथा देश का गौरव बढ़ाने में सफल होता है। Niti sloka class 8 sanskrit
कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना के न पीडिताः।
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥ (3.1)
अर्थ– संसार में भला कौन ऐसा व्यक्ति है जिसके कुल में दोष नहीं है। इसी प्रकार संसार में कौन ऐसा प्राणी होगा, जो किसी रोग से पीड़ित न हुआ हो। इस धरती पर कौन ऐसा व्यक्ति है जिस पर विपत्ति न आई हो और ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे हमेशा सुख-ही-सुख मिला हो।
आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम्॥ (3.2)
अर्थ-किसी अन्छे-बुरे वंश (खानदान) का पता उस परिवार के सदस्य के आचरण चलन से चलता है। भाषा या बोलचाल से देश का पता चलता है। किसी के
पता स्नेही जन के प्रति उसके आदर-भाव से चलता है तो किसी के शरीर ने उसके खान-पान (भोजन) का चलता है।
अधमा धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः ।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम् ॥ (8.1)
अर्थ-नीच लोग सिर्फ धन के पीछे दौड़ते हैं। मध्यम श्रेणी के लोग धन और सम्मान दोनों के अभिलाषी होते हैं, किन्तु श्रेष्ठ जनों के लिए सबसे बड़ा मान-सम्मान ही होता है क्योंकि सम्मान से बढ़ कर कुछ भी नहीं होता।
विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान सर्वत्र गौरवम ।
विद्यया लभते सर्व विद्या सर्वत्र पूज्यते ॥ (8.20)
अर्थ—विद्वान संसार में प्रशंसित होता है। सर्वत्र आदर पाता है। अर्थात विटा सब कुछ प्राप्त होता है। विद्या सब जगह पूजी जाती है। तात्पर्य यह कि विद्या से निजी व्यक्ति हर जगह आदर की दृष्टि से देखा जाता है। Niti sloka class 8 sanskrit
दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं पिबेजलम् ।
शास्त्रपूतं वदेद्वाक्यं मनः पूतं समाचरेत् ॥ (10.2)
अर्थ-देखकर पैर रखना चाहिए। कपड़े से छानकर जल पीना चाहिए। शास्त्र सम्मत वचन बोलना चाहिए तथा मन से सोच-विचारकर आचरण करना चाहिए।
अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः।
नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः ॥ (12.12)
अर्थ-मनुष्य का शरीर, धन-संपत्ति सभी चीजें नाशवान् हैं। धर्म ही एक चीज है जो अजर-अमर है। इसलिए हर व्यक्ति को धर्म-संग्रह में प्रवृत्त रहना चाहिए।
जलबिन्द्रनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेलेः सर्वविद्यानांस्य च धनस्य च ॥ (12.22)
अर्थ –जिस प्रकार जल की बूंदों के गिरने से घड़ा धीरे-धीरे भर जाता है. उसी प्रकार सभी विद्याएँ धन और धर्म धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं।
यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम् ।
तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति ॥ (13.15) Niti sloka class 8 sanskrit
अर्थ- जैसे हजारों गायों में बछड़ा अपनी माँ को पहचान कर उसके पास चला जाता है वैसे ही किया कर्म (उस) कर्म करने वाले के पास चला जाता है।
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