7.Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8 | कक्षा 8 प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः (प्राचीन विद्यालय)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ सात ‘प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः’ (Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

.Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

7. सप्तमः पाठः
प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः
(प्राचीन विद्यालय)

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः’ में भारतीय – प्राचीन सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक धरोहरों के रूप में स्थित तक्षशिला, नालंदा एवं विक्रमशिला नामक विश्वविद्यालयों के स्वर्णिम युगों का स्मरण किया गया है, जहाँ दूर-दूर से देशीविदेशी छात्र अपनी ज्ञान-पिपासा की भूख सुयोग्य शिक्षकों के सान्निध्य में शांत करते थे। इन विश्वविद्यालयों के संचालन के लिए राजाओं ने अनेक ग्रामों की आमदनी दात्रपत्र द्वारा निर्धारित कर दी थी। जिस समय इन विश्वविद्यालयों का स्वर्णिम युग था। उस समय विदेशों में एकाध स्थान पर ही ऐसे विश्वविद्यालय हो। इन्हीं विश्वविद्यालयों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत पाठ में दिया गया है। Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

बहूनां शास्त्राणां ज्ञानविषयाणां च यत्र शिक्षा दीयते तस्यैव अभिधानं विश्वविद्यालय इति । तत्र सुयोग्याः अध्यापकाः निष्पक्षभावेन छात्रान् पाठयन्ति । छात्राश्च परीक्षानन्तरमेव तत्र प्रवेशं लभन्ते । विश्वविद्यालयाः ज्ञानकेन्द्राणि भवन्ति ज्ञानस्य विकासोऽपि तत्र निरन्तरं जायते ।

प्राचीने भारते तक्षशिलायां प्रसिद्धः विश्वविद्यालयः षष्ठशतके ईस्वीपूर्वमेव अवर्तत । बौद्धसाहित्ये तक्षशिलायाः भूयो भूयः उल्लेखो वर्तते । अयं विश्वविद्यालयः गान्धारदेशे आसीत्। तस्य देशस्य तक्षशिलायां राजधानी बभूव । सम्प्रति तक्षशिलाया: भग्नावशेषाः पाकिस्तानदेशे रावलपिण्डीसमीपे सन्ति। अत्र धनुर्वेदस्य, आयुर्वेदस्य तथा अन्यासां विद्यानामपि शिक्षणम् आसीत् । अत्र बुद्धकालिकः वैद्यः जीवकः, वैयाकरण: पाणिनिः, मौर्यराज्यस्य संस्थापकः चन्द्रगुप्तः, कूटनीतिज्ञः चाणक्यः इत्यादयः प्रसिद्धः छात्राः अधीतवन्तः।

अर्थअनेक प्रकार के शास्त्रों और ज्ञान विषयों की शिक्षा जहाँ दी जाती है, उसे विश्वविद्यालय कहते हैं। वहाँ सुयोग्य शिक्षक निष्पक्ष भाव से छात्रों को पढ़ाते हैं और छात्र प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद वहाँ नामांकन कराते हैं। विश्वविद्यालय ज्ञान का केन्द्र होता है। वहाँ हमेशा ज्ञान का विकास होता है। Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

प्राचीन भारत में छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में तक्षशिला में विश्वविख्यात विश्वविद्यालय था। बौद्ध साहित्य में तक्षशिला का बार-बार उल्लेख किया गया है। यह विश्वविद्यालय गांधार देश में था। उस देश की राजधानी तक्षशिला में बनी (हुई थी)। इस समय तक्षशिला का खण्डहर पाकिस्तान में रावलपिण्डी के समीप है। यहाँ धनुर्विद्या, आयुर्वेद तथा अनेक प्रकार की विद्याओं की शिक्षा दी जाती थी। यहाँ बौद्धकालीन वैद्दा जीवक, व्याकरण के विद्वान पाणिनि, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त, कूटनीति के महान् ज्ञाता चाणक्य इत्यादि छात्र यहीं पढ़ते थे।

नालन्दा विश्वविद्यालयः बिहारे एव आसीत् । अस्य भग्नावशेषाः विशालक्षेत्रे अवस्थिताः सन्ति । कुमारगुप्तेन पञ्चमशतके ख्रीष्टाब्दे अस्य स्थापना कृता । प्रायः सप्तशतानि वर्षाणि अयम् अवस्थितः । बर्बराणाम् आक्रमणेन अस्य विध्वंसी जातः। अत्रानेके चीनयात्रिका: बहूनि वर्षाणि अधीतवन्तः । तेषु हुएनसांगः प्रधानः । तेन विश्वविद्यालयस्य विस्तृतं विवरणं दत्तम् । अत्र दशसहस्राणि छात्रा: एकसहस्रमध्यापकाः निवसन्ति । स्म । यद्यपि बौद्धधर्म अस्य अभिनिवेशः आसीत् किन्तु बहूनां शास्त्राणामपि वर्णनं स करोति । तानि अत्र पाठ्यन्ते स्म । अस्य विश्वविद्यालयस्य त्रयः महान्तः पुस्तकालयाः सप्तसु तलेषु अविद्यन्त । भग्नावशेषेण विश्वविद्यालयस्य विशालता ज्ञायते।

अर्थ-नालदा विश्वविद्यालय बिहार में ही था। इसका खंडहर विस्तृत भूभाग पर अवस्थित हैं। इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाँचवीं शताब्दी में कुमारगुप्त द्वारा की गई थी। यह प्रायः सात सौ वर्षों तक अवस्थित रहा। आक्रमणकारियों के बर्बर आक्रमण से इसका विनाश हुआ। यहाँ अनेक तीर्थयात्रियों ने कई वर्षों तक अध्ययन किया था। इनमें हएनसांग मुख्य थे। उनके द्वारा विश्वविद्यालय का विस्तृत विवरण दिया गया है। यहाँ दस हजार छात्र और एक हजार अध्यापक रहते थे। यद्यपि बौद्ध धर्म के प्रति लगाव था, लेकिन बहुत-से शास्त्रों का वर्णन उन्होंने किया, जो यहाँ पढ़ाये जाते थे। इस विश्वविद्यालयों के विशाल तीन पुस्तकालय, सात महलों (तलों) में मौजूद थे। खण्डहर से ही विश्वविद्यालय की विशालता का पता चलता है। Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

बिहारराज्ये एव पालवंशीयेन राज्ञा धर्मपालेन अष्टम-शतके संस्थापितः विक्रमशिला- विश्वविद्यालयः अपि अनेक शास्त्राणां शिक्षणाय प्रसिद्धः आसीत् । अत्रापि नालन्दायामिव चीनतिब्बतादि-देशेभ्यः आगताः छात्राः अधीयते स्म । केचन अध्यापका अपि उभाभ्यां विद्यापीठाभ्यां तिब्बते चीने वा निमन्त्रिता: गच्छन्ति स्म । अस्यापि विक्रमशिलाविश्वविद्यालयस्य विनाश: नालन्दया सार्धं बबरैः कृतः धनलुण्ठनाशया । उभौ विश्वविद्यालयौ बिहारस्य गौरवभूतौ स्तः ।

अर्थ-बिहार राज्य में ही पालवंशीय राजा धर्मपाल द्वारा आठवीं शताब्दी में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी अनेक शास्त्रों की शिक्षा देने के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ भी नालंदा की भाँति चीन-तिब्बत से आए हुए छात्र पढ़ते थे। कुछ अध्यापक भी दोनों विद्यापीठों से चीन एवं तिब्बत की यात्रा पर जाते थे। इस विक्रमशिला विश्वविद्यालय का विनाश भी नालंदा के साथ बर्बरों ने धन लूटने की आशा में किया। दोनों विश्वविद्यालय बिहार के गौरव थे।

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