3. Prarthana Sanskrit class 9 | कक्षा 9 प्रार्थना

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 संस्‍कृत भाग दो के कविता पाठ तीन ‘प्रार्थना’ (Prarthana Sanskrit class 9)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Prarthana Sanskrit class 9

3.प्रार्थना

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘प्रार्थना’ में परमपिता परमेश्वर से विद्या तथा सद्गुण की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की गई है। कवि अपनी हार्दिक कामना प्रकट करते हुए कहता है कि ईश्वर की कृपा से चित्त निर्मल होता है । सद्गुणों के प्रति खिचाव होता है । सारे राग-द्वेषों से मुक्त हृदय में प्रेम की प्रबल धारा अबाध गति से प्रवाहित होने लगती है। इसीलिए कवि प्रभु से विद्या एवं सद्गुणों के सुदान की कामना करता है।

दयित्वा में हि परमात्मन् !
सुदानं देहि विद्यायाः,
दयित्वा आत्मनि प्रगुणा,
विशुद्धिः नाथ मे कार्या ।

अर्थ- कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हे परमात्मा ! मुझे विद्या का. सुदान देकर मेरे हृदय को सद्गुणों से भर दो, ताकि स्वामी का काम शुद्ध भाव से मेरे द्वारा हो सके। अर्थात् हे परमात्मा ! विद्यारूपी विशिष्ट गुण देकर मुझे स्वामी का काम शुद्ध चित्त से करने की शक्ति प्रदान करो।

मदीयं ध्यानमागच्छ,
प्रभो नेत्रद्वये तिष्ठ,
तमोमय-चित्तमागत्य,
परं ज्योतिः शुभं देयम् । दयित्वा ….

अर्थ- हे प्रभु ! मेरा ध्यान सतत् (आप) पर लगा रहे। मेरी दोनों आँखों में आप सदा विराजमान रहें । आप मेरे अन्धकारपूर्ण हृदय की अज्ञानता को मिटाकर दिव्य प्रकाश से आलोकित कर दें। तात्पर्य यह कि कवि अहर्निश प्रभु चिन्तन में मग्न रहने की कामना (प्रार्थना) व्यक्त करता है।

प्रवाह्य प्रेमगङ्गा च
हृदि त्वं स्नेहसिन्धुं च,
परस्परमेक – भावेन,
प्रभो वस्तुं च शिक्षय माम् । दयित्वा ….

अर्थ- कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसके हृदय में प्रेम की गंगा बहा दो और हृदय में तुम स्नेह रूपी सागर-सा विराजमान हो जाओ, ताकि कवि उदारचित्त होकर सारे संसार को समान भाव से देखे । अर्थात् सारे भेदभावों से ऊपर उठकर सबको समान दृष्टि से देखने का ज्ञान प्रदान करो। Prarthana Sanskrit class 9

स्वधर्मः चास्तु सेवैव,
स्वकर्माप्यस्तु सेवैव,
स्वसत्यं चास्तु सेवैव,
अहं सेवी स कर्नयः । दयित्वा ….

अर्थहे प्रभु ! मुझे ऐसा ज्ञान दो कि मैं अपने धर्म के प्रति निष्ठा रखू और अपने कर्म के प्रति भी निष्ठावान रहूँ तथा अपने सत्य पर सदा आरूढ़ रहूँ। मैं सच्चे सेवक की भाँति अपने कर्तव्य (दायित्व) का पालन करता रहूँ। यानी अपने धर्म, कर्म एवं सत्य के लिए सदैव दृढ़संकल्प रहूँ।

देशाय जीवनं पूर्ण,
स्वमरणं चास्तु देशाय,
स्वप्राणान् देशरक्षायै,
प्रदातुं शिक्षय भगवन् । दयित्वा ….

अर्थ हे भगवन् ! मुझे ऐसा ज्ञान दो कि मैं अपना सारा जीवन देशसेवा में लगा दूँ। देश सेवा में ही मेरी मृत्यु हो तथा देश की रक्षा के लिए अपने प्राण का त्याग करूँ। अर्थात् मुझे ऐसे विशिष्ट गुणों से भर दो कि मैं देश के लिए ही जिऊँ-मरूँ । देशसेवा अथवा उसकी रक्षा ही मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य हो। Prarthana Sanskrit class 9

दयित्वा मे हि परमात्मन्
सुदानं देहि विद्यायाः
दयित्वा आत्मनि प्रगुणा,
विशुद्धिः नाथ में कार्या । दयित्वा ….

अर्थ- हे प्रभु! हे परमात्मा ! मुझे ऐसा ज्ञान दो कि मैं अपने विशिष्ट गुणों से संसार । को संवार सकूँ। यानी, अपने जीवन मार्ग को सदा विकसित करता रहूँ।

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