4. Yatnam bina N Ratnam class 9 sanskrit | कक्षा 9 यत्तं विना न रत्नम्

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 संस्‍कृत भाग दो के कविता पाठ चार ‘यत्तं विना न रत्नम्’ (Yatnam bina N Ratnam class 9 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Yatnam bina N Ratnam class 9 sanskrit

4. यत्तं विना न रत्नम्

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘यत्नं विना न रत्नम्’ में प्रयत्न (परिश्रम) के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। लेखक का मानना है कि संसार में वही व्यक्ति महानता के पद पर आसीन होता है जो सदा प्रयत्नशील रहता है। प्रयत्नशील व्यक्ति ही समुद्र लाँध जाता है और पहाड़ की चोटी पर अपनी ध्वजा फाहराने में सफल होता है। इसीलिए प्रयत्न या परिश्रम को सफलता की जननी कहा गया है। अतएव हर बच्चों को तबतक प्रयत्न करते रहना चाहिए, जबतक जीवन-लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।

कस्यचित् कृषकस्य द्वौ पुत्रौ आस्ताम् । तयोः ज्येष्ठः परमोऽलसः प्रमादी चासीत् । कनिष्ठस्तु विद्याव्रती परिश्रमी चासीत् । सुतद्वयं विद्यालये प्रवेशिकायां प्राविशत् । ज्येष्ठतनयः प्रायः क्रीडानिमग्नो दृष्टः । तस्यैवं विद्यां स्थितिमवलोक्य पित्रोक्तम् – “वत्स ! एष ते परीक्षाकालः, अतो नैवमाचरणीयम् । पश्य स्वानुजं, यः सततं अध्ययनरतोऽस्ति, अवसरं प्राप्य कृषिकर्मण्यपि योगदानं करोति । त्वं तु गृहकार्यमपि विहाय केवलं क्रीडामग्न इव दृश्यसे । अतः पुत्र ! कुरुवात्मशक्त्या प्रयत्नम् ।”

अर्थ- किसी किसान के दो पुत्र थे। उन दोनों में बड़ा पुत्र अति आलसी और घमंडी था तो छोटा पुत्र अध्ययनशील तथा परिश्रमी था। दोनों पुत्रों को विद्यालय की प्रवेशिका में नामांकन कराया। बड़ा बेटा हमेशा खेल में मग्न रहता था। पढ़ाई के प्रति उसकी ऐसी अरूचि को देखकर पिता ने पुत्र से कहा—प्रिय! यह तुम्हारा परीक्षा का समय है, इसलिए तुम्हें इस प्रकार का आचरण नहीं करना चाहिए । देखो, तुम्हारा छोटा भाई सदा पढ़ने में तल्लीन रहता है तथा समय मिलने पर कृषि कार्य में भी मदद करता है । तुम तो घर का काम छोड़कर खेलने में मस्त रहते हो। इसलिए, हे पुत्र! अपनी शक्ति के अनुसार प्रयत्न करो। Yatnam bina N Ratnam class 9 sanskrit

“तात ! एष ममानुजो मन्दबुद्धिरस्ति । तस्य स्मरणशक्तिरपि न तीक्ष्णाऽस्ति, तेनैव स वारं-वारं प्रश्नोत्तराणि रटति, क्षणदूर्य व तानि विस्मरति । मया तु तत्सर्वाणि कण्ठस्थीकृतानि ।”

अथ कतिपयदिनान्तरे पक्षाबसरोऽप्यायातः ज्येष्ठेन सुतेन परीक्षाभवने प्रश्नपत्रमालोक्य साहसमपि परित्यक्तम् । कारस्थ कमपि मार्गमदृष्ट्वा सोऽनुकरणवृत्तिधारणं कृतवान् । तस्य अनुजस्तु उत्तीर्णोऽभवत् । अथ त ज्येष्ठसुतं खिन्नवदनं वीक्ष्य तस्य पित्रोक्तम् – “पुत्र ! अवगच्छ तथ्यमिदं यद् यत्नं विना न लभ्यते रत्नं कदापि केनचित् ।”

अर्थ- “हे पित! यह मेरा छोटा भाई मन्दबुद्धि का है। उसकी स्मरण-शक्ति अति कमजोर है, इसलिए वह हमेशा प्रश्नोत्तर रटता रहता है। क्योंकि) कुछ समय बीतने पर (वह) उन उत्तरों को भूल जाता है। मैंने तो सब कुछ याद कर लिया है। इसके कुछ ही दिनों के बाद परीक्षा का समय आ गया। बड़े पुत्र ने परीक्षाभवन में अपना धैर्य (साहस) खो दिया। उत्तीर्ण (पास) होने का कोई उपाय न देखकर नकल करने लगा। उसका छोटा भाई परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ। इसके बाद बड़े पुत्र का चेहरा उदास देखकर पिता ने कहा-प्रिय! इस तथ्य (वास्तविकता) को अब भी समझने का प्रयास करो कि बिना परिश्रम के कोई भी सफलता रूपी रत्न को प्राप्त नहीं कर सकता, अर्थात् परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है। Yatnam bina N Ratnam class 9 sanskrit

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