चतुर्दशः पाठः राष्ट्रबोध्ः | Rashtrabodh Class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 14 राष्ट्रबोध्ः (Rashtrabodh Class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

चतुर्दशः पाठः
राष्ट्रबोध्ः

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘राष्ट्रबोध’ में सच्ची राष्ट्रभक्ाि पर प्रकाश डाला गया। है। सच्ची राष्ट्रभक्ति उसे कहते है जब देश के नागरिक ईमानदारीपूर्वक काम करते है। भ्रष्टाचार का विरोध करते है तथा वैसे लोगों के विरुद्ध आवाज उठाते हैं जो प्रष्ट तरीके से धन कमाते हैं। लोगों की आँखों में धूल झोंक कर पैसे ऐंठते हैं। ऐसे राष्ट्रद्रोहियों को दण्डित कराना ही सच्ची राष्ट्रभक्ति है।
विवेकः ध्नंजयेन सह विद्यालयं गच्छन् आसीत्। तौ यावदेव कि×चद्दूरं गतौ तावदेव जलाप्लावनेन  मग्नं मार्गं दृष्ट्वा चिन्ताकुलौ जातौ। आतपे तिष्ठन्तौ उभौ पिपासया आकुलितावभवताम्। ध्न×जयः आपणात्  रेलनीरं क्रीत्वा स्वयं पीत्वा विवेकं च पाययति। ततो ध्न×जयस्तां जलकूपीं पार्श्वे अमर्दितामेव क्षिप्तवान्।  ध्न×जयस्य एतदनुचितं कार्यं यावद् विवेकः निन्दितुम् आरभते तावत् यायावरः कश्चित् बालकः तत्रागत्य तां  कूपीम् उत्थाप्य स्वस्यूते निगूढवान् आसीत्।
तं तया कुर्वन्तं वीक्ष्य विवेकः स्वनेत्रो रक्ते कुर्वन् तर्जयँश्च पृच्छतिµ फ्अरे दुष्ट! कस्त्वम्! एतत्  समाजविरोधि् कार्यं कथं करोषि?तिष्ठ त्वामहम् आरक्षिणे समर्पयामि। बालकः सभयं कम्पमानः निवेदयतिµ . …. हं हं स्वामिन्! अहं विजयः, मा मां तर्जयतु! निर्ध्नतया इतस्ततः विचरन् एकैकां कूपीं चित्वा चोरविपणौ  विक्रीय अल्पध्न×च प्राप्य यथा-तथा उदरज्वालां शमयामि। क्षम्यताम्! यदि भवान् तर्जयितुम् इच्छति साहसं च  धरयति तर्हि तान् …….. तर्जयतु …….। फ्कान् ….? रे दुष्ट! वद! वद! य् इति पृष्टवान् विवेकः।
अर्थ-विवेक धनंजय के साथ विद्यालय जा रहे थे। वे दोनो जैसे ही कुछ दूर गए. वैसे ही बाढ़ से रास्ते को डूबा देखकर चिन्तित हो उठे। धूप में रहने के कारण दोनों प्यास से व्याकुल हो गए । धनंजय बाजार से रेलजल खरीदकर स्वयं पीफर विवेक को पिलाता है। तब धनंजय ने उस जल के बोतल को बिना तोड़े बगल में फेक दिया । धनंजय के इस अनुचित कार्य की आलोचना करना विवेक आरंभ करता है, तभी इधर-उधर घूमने वाले कोई लड़का वहाँ आकर उस बोतल को अपने थैले में चुपचाप रख लिया।
उसे ऐसा करते देखकर विवेक क्रोधित होकर पूछा-अरे बदमाश! तुम कौन हो? समाज विरोधी ऐसा कार्य क्यों करते हो? रुको, मैं तुमको पुलिस के हवाले करता हूँ। लड़का भय से काँपते हुए निवेदन करता है। मैं विजय हूँ, मुझे मत रोके । गरीबी के कारण इधर-उधर घूमते हुए एक-एक बोतल को चुनकर चोरी के बाजार में बेचकर कुछ पैसे प्राप्त कर येन-केन प्रकार भूख शांत करता हूँ। क्षमा करें। यदि आग बंद कराना चाहते हैं और साहसी हैं ….. तो उनको …. बन्द करावें । किनको ….? रे दुष्ट! बोलो-बोलो! विवेक ने पूछा।

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विजयः निःश्वस्य प्रत्यवदत्µ अहं यत् स्थानं स्यड्ढे.तं च निदर्शयामि तत्रा गत्वा विकृतवस्तु-  निर्माणरतान् तान् देशद्रोहिणः तर्जयतु। बालकस्य विजयस्य वचः श्रुत्वा आश्चर्यचकितौ विवेकः  ध्न×जयश्च तस्य प्रशंसां कुरुतः। तथा च तं पठितुं प्रेरयतः। सो{पि विवेकस्य ध्न×जयस्य मतेन प्रभावितः  पठितुं प्रतिज्ञाय स्वस्यड्ढे.तं प्रदाय ध्न्यवादं च विज्ञाप्य प्रस्थितः। अथ तेन बालकेन निर्दिष्टं स्यड्ढे.तं चादाय इमौ  छात्रौ नौकाम् आरुह्य विद्यालयं गतवन्तौ।
विवेकः ध्नंजयश्च स्वविद्यालयं विलम्बेन प्रविष्टौ। वर्गाध्यापकः विलम्बस्य कारणं ज्ञातुम् ऐच्छत्।  तयोः छात्रायोः कथनं श्रुत्वा वर्गाध्यापकः उद्वेलितः स×जातः।
अथ स तौ नीत्वा प्राचार्यकार्यालयं प्रविष्टः। शिक्षकः विवेकµध्नंजययोः वृत्तान्तं प्राचार्यम्  अश्रावयत्। प्राचार्यः गम्भीरतया विचारयन् आरक्षिस्थानकं सूचितवान्। आरक्षिणः तत्रा कुत्सितकर्मरतानां  राष्ट्रद्रोहिणां स्यड्ढे.तं स्थानं च गुप्तरीत्या परितः संवृत्य सावधनतया एकैकवस्तुनः परीक्षणं कृतवन्तः। तस्मिन्  क्रमे विकृतानाम् औषधनां तैलानां खाद्यानां चोष्याणां पेयानां च पदार्थानां प्रभूतराशिं प्राप्तवन्तः।
तत्रौव आत्यड्ढ.वादिनां पत्रास्यड्ढे.तादिकं विकृतरूप्यकाणि, साहित्यानि च उपलब्धनि। सूक्ष्मनिरीक्षणेन  अस्मिन् षड्यन्त्रो समाजस्य अनेके बहिःसभ्याश्च लिप्ताः प्रतीताः। आरक्षिनिरीक्षकः शीघ्रमेव उच्चाध्किरिणः  सूचयित्वा तेषां निर्देशं च प्राप्य तान् राष्ट्रद्रोहिणः विकृतवस्तुनिर्माणे संलग्नान् निगृह्य कारागारं प्रेषितवान्।  आरक्षिप्रशासनम् अस्य अभियानस्य प्रेरकौ विवेकं ध्न×जयं च पुरस्कृतौ अकरोत्।
अर्थ-विजय साँस छोड़ते हुए बोला कि मैं जिस जगह को बताता हूँ, वहाँ जाकर उन दूषित वस्तु निर्माण करने वाले देशद्रोहियों को रोकें । बालक विजय की बात सुनकर आश्चर्यचकित विवेक और धनंजय उसकी प्रशंसा करते हैं और वे दोनों उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करते है। उसने भी उन दोनों के विचार से प्रभावित होकर पढ़ने की प्रतिज्ञा करके उन्हें धन्यवाद देते हुए प्रस्थान किया। इसके बाद उस बालक द्वारा बताए गए संकेत लेकर वे नाव पर चढ़कर विद्यालय को चल पड़े।
विवेक एवं धनंजय अपने विद्यालय देर से पहुँचे। वर्ग शिक्षक ने देर का कारण जानना चाहा । वर्ग शिक्षक उन दोनों की कहानी सुनकर उद्वेलित हो गए। इसके बाद वह उन दोना। को प्राचार्य के पास ले गए। शिक्षक ने विवेक तथा धनंजय की बातें प्रानार्ग को सुनाई।। प्राचार्य ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए पुलिस थाने को सूचित किया। पुलिस ने। गुप्त रूप से नकली सामान बनाने वाले राष्ट्रद्रोहियों की जगह चारों ओर से घरकर। सावधानीपूर्वक एक-एक वस्तु की जाँच की। उस दौरान नकली दवा, तेल तथा चूसने योग्य खाद्य पदार्थ तथा पेय वस्तुओं को काफी मात्रा में पाया।
वहीं आतंकवादियों के पत्रादि, नकली रुपये तथा साहित्य को पाया। गहन जाँच से उस षड्यंत्र में समाज के बाहर के तथा सभ्य लोगों के लिप्त होने का पता चला। पुलिस निरीक्षक शीघ्र ही अपने उच्च अधिकारियों को सूचित करके तथा उनसे आदेश प्राप्त करके उन राष्ट्रद्रोही. नकली सामान बनाने वालों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया और इस अभियान के प्रेरक विवेक एवं धनंजय को पुरस्कृत किया।

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अथ राजकीये शिक्षकदिवससमारोहे विद्यालयस्य प्राचार्यं वर्गाध्यापकं विवेकं ध्नंजयं विजयं च  सगौरवं सबहुमानं समादृत्य मुख्यमंत्रा समबोधयत्µ फ्देव्यः! सज्जनाश्च! अद्य वयं विवेकस्य ध्नंजयस्य  विजयस्य च समाजबोधेन राष्ट्रबोधेन च आनन्दम् अनुभवामः। अस्माकं छात्राः शिक्षकाश्च यदि सुसंस्कृता  भवन्ति तर्हि सर्वविध्समस्यानां निवारणं सुकरं वर्तते। अद्य छात्रासहयोगेन राष्ट्रद्रोहिणः निगृहीताः सन्ति। एकैकः  नागरिकः एवमेव आचरेत् तर्हि अस्माकं समाजस्य राष्ट्रस्य च उपरि यत् स्यड्ढ.टम् अस्ति तस्य निवारणं भवेत्।  यद्येको{पि जनः मार्गं दूषितं कुर्वन्तं, वृक्षं छिन्दन्तं, देशविरोधिना सह षड्यन्त्रां रचयन्तं राष्ट्रविरोधे च जनंजनसमूहं सघ्घटनं च रोध्यति, यथासम्भवं च आरक्षिभ्यः समर्पयति तर्हि तस्य महती देशभक्तिः स्यात्, तस्य  महान् राष्ट्रबोध्श्च स्यात्। अस्माभिः राष्ट्रभक्तैः भवितव्यम्। एतदर्थं राष्ट्रबोध्ः अपेक्षितः।
अर्थ-इसके बाद राजकीय शिक्षक दिवस के अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य वीशक्षक, विवेक, धनंजय तथा विजय को गौरव के साथ बहुत आदर करके मुख्यमत्रा का सबोधित किया-हे देव और सज्जन बन्धु ! आज मैं विवेक, धनंजय एवं विजय का समाज भक्ति तथा राष्ट्रभक्ति संबंधी ज्ञान से अभिभूत आनंद का अनुभव करता हूँ। याद हमारे छात्र तथा शिक्षक सुसभ्य हो जाते हैं तो सारी समस्याओं का निदान आसानापूर्वक हो जाता है। आप के सहयोग से देशद्रोही कैद हैं। सभी नागरिक यदि ऐसा ही आवरण कर तो हमारे समाज और राष्ट्र के ऊपर कोई खतरा है तो उसका निदान हो जाता है। याद काई भी व्यक्ति गलत काम करता है, पेड़ काटता है, देश के विरोधियों के साथ षड्यन्त्र रचता है, देश के हित करने वालों को संगठित होने से रोकता है तो ऐसे लोगों को पुलिस को सौंपकर अपनी देशभक्ति का परिचय देना चाहिए। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है। हम भी। राष्ट्रभक्त होना चाहिए। इसीलिए राष्ट्रभक्ति आवश्यक है। और कहा गया है
यः समाजस्य देशस्य सर्वकालेषु यत्नतः ।
रक्षां करोति तस्यैव राष्ट्रबोध्ः प्रशस्यते ।।
अर्थ- जो (व्‍यक्ति) हर स्थिति में समाज एवं उद्देश्‍य की सत्‍नपूर्वक रक्षा करता है, उसकी ही राष्‍ट्रभक्ति प्रशंशा पाती है।

Bihar Board Class 10th Social Science
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