Bihar Board Class 7 Social Science History Ch 7 सामाजिक-सांस्‍कृतिक विकास | Samajik Sanskritik Vikas Class 7th Solutions

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान इतिहास के पाठ 7. सामाजिक-सांस्‍कृतिक विकास (Samajik Sanskritik Vikas Class 7th Solutions)के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे। 

 

Samajik Sanskritik Vikas Class 7th Solutions

7. सामाजिक-सांस्‍कृतिक विकास

अध्याय में अंतर्निहित प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न : आप बता सकते हैं कि इस्लाम धर्म अपने साथ खाने-पीने और पहनने की कौन-कौन सी चीजें साथ लेकर आया ? ( पृष्ठ 116)
उत्तर—इस्लाम धर्म अपने साथ पहनने के लिये कुर्ता-पायजामा, सलवार – समीज, लुंगी, कमीज अचकन आदि लाये, जिन्हें हिन्दुओं ने भी अपना लिया । इस्लाम खाने की चीजों में हलवा, समोसा, पोलाव, बिरयानी आदि लाये, जिसे हिन्दू भी खाते हैं ।

प्रश्न : विभिन्न धर्मों के समानताओं एवं असमानतों को चार्ट के माध्यम से बताएँ । ( पृष्ठ 113 )
उत्तर :

इन छोटी-मोटी समानता या असमानता किसी तरह मेल-जोल में बाधक नहीं बनतीं । सभी मिल-जुलकर रहते हैं ।

प्रश्न: आप अपने शिक्षक या माता-पिता की सहायता से पाँच-पाँच हिन्दू देवी-देवताओं, सूफी एवं भक्ति संतों से जुड़े स्थलों की सूची बनाइए ।
उत्तर :

अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर

आइए याद करें :

1. सिंध विजय किसने की ?
(क) मुहम्मद-बिन-तुगलक                (ख) मुहम्मद बिन कासिम
(ग) जलालुद्दीन अकबर                    (घ) फिरोशाह तुगलक

2. महमूद गजनी के साथ कौन-सा विद्वान भारत आया ?
(क) अल-बहार                   (ख) अल जवाहिरी
(ग) अल-बेरूनी                  (घ) मिनहाज उस सिराज

3. भारत में कुर्ता-पायजामा का प्रचलन किनके आगमन से शुरू हुआ ?
(क) ईसाई                (ख) मुसलमान        (ग) पारसी               (घ) यहूदी

4. अलवार और नयनार कहाँ के भक्त संत थे ?
(क) उत्तर भारत              (ख) पूर्वी भारत
(घ) महाराष्ट्र                    (घ) दक्षिण भारत

5. मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है ?
(क) दिल्ली             (ख) ढाका                 (ग) अजमेर               (घ) आगरा

उत्तर : 1. (ख), 2. (ग), 3. (ख),

प्रश्न 2. इन्हें सुमेलित करें :
(क) निजामुद्दीन औलिया               (1) बिहार
(ख) शंकर देव                             (2) दिल्ली
(ग) नानकदेव                              (3) असम
(घ) एकनाथ                                (4) राजस्थान
(ङ) मीराबाई                               (5) महाराष्ट्र
(च) संत दरिया साहब                  (6) पंजाब

उत्तर : (क) (2), (ख) (3), (ग) 4. (घ), 5. (ग) (6), (घ) → (5), (ङ) (4), (च) (1).

आइए समझकर विचार करें :

(200 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1. भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास कैसे हुआ ? प्रकाश डालें ।
उत्तर—1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर हिन्दू और मुसलमानों का सम्पर्क बना। इसके पूर्व जहाँ भारत के लोग तुर्क – अफगानों को एक लुटेरा और मूर्ति भंजक समझते थे, अब शासक के रूप में स्वीकारने लगे । इस भावना को फैलाने में उन भारतीयों की याददाश्त भी थीं, जिन्हें मालूम था कि कभी अफगानिस्तान पर भारत का शासन था । अतः यहाँ के लोग अफगानों को गैर नहीं मानते थे। खासकर बिहार में, क्योंकि अशोक बिहार का ही था। अलबरूनी, जो महमूद गजनी: के साथ भारत आया था, यहाँ रहकर संस्कृत की शिक्षा ली और हिन्दू धर्मग्रंथों और विज्ञान का अध्ययन किया। उसने यहाँ के सामाजिक जीवन को भी निकट से देखा । खूब सोच-समझकर उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी । दूसरी ओर अनेक सूफी संत और धर्म प्रचारक भारत के विभिन्न नगरों में बसने लगे। इससे इन दोनों धर्मों को मानने वालों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान और समन्वय का वातावरण बना ।

मुस्लिम शासकों, खासकर मुगलों द्वारा स्थापित राजनीतिक एकता का सबसे बड़ा प्रभाव हिन्दू भक्त संतों एवं सूफी संतों के मेल मिलाप बढ़ने पर दोनों ने इस भावना का प्रचार किया कि भगवान एक है। ईश्वर और अल्लाह में कोई फर्क नहीं । सभी धर्म के लोगों की चरम अभिलाषा खुदा तक पहुँचने की होती है। तुम खुद में खुदा को देखो ।

आगे चलकर एक के पहनावे और खानपान को दूसरे ने अपनाया । राज काज हिस्सा लेने वाले हिन्दू भी फ़ारसी पढ़ने लगे और पायजामा और अचकन का व्यवहार करने लगे। इसी प्रकार भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ ।

प्रश्न 2. निर्गुण भक्त संतों की भारत में एक समृद्ध परम्परा रही है । कैसे ?
उत्तर – रामानन्द के अनुयायियों का एक अन्य वर्ग उदारवादी अथवा निर्गुण सम्प्रदाय कहलाता है । इन निर्गुण भक्त संतों ने ईश्वर को तो माना लेकिन उसके किसी रूप को मानने से इंकार कर दिया । ये निसकार ईश्वर में विश्वास करते थे । निर्गुण भक्त संतों ने, जाति-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच, मूर्ति-पूजा का घोर विरोध किया। ये कर्मकांडों में भी विश्वास नहीं करते थे । निर्गुण भक्त संतों में कबीर को सर्वाधिक प्रमुख संत माना जाता है। ये एक मुखर कवि के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। कबीर इस्लाम और हिन्दू – दोनों धर्म के माहिर जानकार थे । इन्होंने दोनों धर्मों के ढकोसलेबाजी की घोर भर्त्सना की । इनके विचार ‘साखी’ और ‘सबद’ नामक ग्रंथ में संकलित हैं । इन दोनों को मिलाकर जो ग्रंथ बना है उसे ‘बीजक’ कहते हैं ।

कबीर के उपदेशों में ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म, दोनों के आडम्बरपूर्ण पूजा-पाठ और आचार-व्यवहार पर कठोर कुठारापात किया गया । यद्यपि इन्होंने सरल भाषा का उपयोग किया किन्तु कहीं-कहीं रहस्यमयी भाषा का भी उपयोग किया है। ये राम को तो मानते थे लेकिन इनके राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र नहीं थे । इन्होंने अपने राम के रूप का इन शब्दों में बताया है :

” दशरथ के गृह ब्रह्म न जनमें, ईछल माया किन्हा । ‘
इन्होंने दशरथ के पुत्र राम को विष्णु का अवतार मानने से भी इंकार किया :
चारि भुजा के भजन में भूल पड़ा संसार ।
कबिरा सुमिरे ताहि को जाकि भुजा अपार ।।
गुरु नानक देव तथा दरिया साहेब निर्गुण भक्त संतों की परम्परा में ही थे ।

प्रश्न 3. बिहार के संत दरिया साहेब के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखें ।
उत्तर—दरिया साहब का कार्य क्षेत्र तत्कालीन शाहाबाद जिला था, जिसके अब चार जिले-भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर हो गये हैं ।

विचार से दरिया साहेब एकेश्वरवादी थे। इनका मानना था कि ईश्वर सर्वव्यापी है तथा वेद और पुराण दोनों में ही उसी का प्रकाश है। ईश्वर को दरिया साहब ने निर्गुण और निराकार माना। इन्होंने अवतार और पूजा-पाठ को मानने से इंकार कर दिया। इन्होंने मात्र प्रेम, भक्ति और ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना । इनके अनुसार प्रेम के बिना भक्ति असंभव है और भक्ति के बिना ज्ञान भी अधूरा है। इनका कहना था कि ईश्वर के प्रति प्रेम पाप से बचाता है और ईश्वर की अनुभूति में सहायक बनता है । ये मानते थे कि ज्ञान पुस्तकों में नहीं है, बल्कि चेतना में निहित है, जबकि विश्वास ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण मात्र है। दरिया साहब ने जाति-प्रथा, छुआछूत का विरोध किया । इनके विचारों पर इस्लाम का एवं व्यावहारिक पहलुओं पर निर्गुण भक्ति का प्रभाव दिखाई देता है। इनको मानने वालों में दलित वर्ग की संख्या अधिक थी ।

दरिया साहब के विचारों को मानने वालों की संख्या आज के भोजपुर, बक्सर, रोहतास और भभुआ जिलों में अधिक थी। उन्होंने वहाँ मठ की भी स्थापना की। इनके मानने वालों की संख्या वाराणसी में भी कम नहीं थी ।

दरिया साहब के क्या उपदेश थे, उसे निम्नांकित अंशों से मिल सकते हैं
“एक ब्रह्म सकल घटवासी, वेदा कितेबा दुनों परणासी । “
“ब्रह्म, विसुन, महेश्वर देवा, सभी मिली करहिन ज्योति सेवा । “
“तीन लोक से बाहरे सो सद्गुरु का देश | “
“तीर्थ, वरत, भक्ति बिनु फीका तथा पड़ही पाखण्ड पथल का पूजा ।”
दरिया साहब को बहुत हद तक कबीर का अनुगामी कहा जा सकता है

प्रश्न 4. मनेरी साहब बिहार के महान सूफी संत थे । कैसे?
उत्तर – मनेरी साहब का पूरा नाम था ‘हजरत मखदुम शरफुद्दीन याहिया मनेरी ।” बिहार में फिरदौसी परम्परा के संतों में मनेरी साहब का विशेष महत्व है। भारत में मिली- जुली संस्कृति की जो पवित्र धारा सूफी संतों ने बहायी, उस संस्कृति को बिहार में मजबूत करने का काम मनेरी साहब ने ही किया । इन्होंने संकीर्ण विचारधारा का न केवल विरोध किया, बल्कि जाति-पाति एवं धार्मिक कट्टरता का भी विरोध किया । इन्होंने समन्वयवादी संस्कृति के निर्माण का सक्रिय प्रयास किया । इनके प्रयास से फिरदौसी परम्परा को बिहार में काफ़ी लोकप्रियता मिली । मनेरी साहब ने मनेर से सुनारगाँव, जो अभी बांग्लादेश में पड़ता है, तक की यात्रा की और ज्ञानार्जन किया। इसके बाद ये राजगीर तथा बिहारशरीफ में तपस्या करते हुए धर्म प्रचार में भी लीन रहे । फारसी भाषा में उनके पत्रों के दो संकलन मकतुबाते सदी एवं मकतुबात दो ग्रंथ प्रमुख हैं ।

मनेरी साहब ने हिन्दी में भी बहुत लिखा है, जिसमें इन्होंने ईश्वर को अपने सूफियाना ढंग से व्यक्त किया है । इन्होंने इस लेख में अपने को प्रेयसी तथा ईश्वर या अल्ला को प्रेमी माना है ।

मनेरी साहब का मजार मनेर में न होकर बिहार शरीफ में है। इनकी मजार बगल में ही उनकी माँ बीबी रजिया का भी मजार है । बीबी रजिया सूफी संत पीर जगजोत की बेटी थीं ।

प्रश्न 5. महाराष्ट्र के भक्त संतों की क्या विशेषता थी?
उत्तर—महाराष्ट्र के भक्त संतों की विशेषता को जानने के लिये हमें 13वीं सदी से 17वी सदी तक ध्यान देना होगा। भक्त संतों की परम्परा के जन्मदाता रामानुज थे जो दक्षिण भारत के थे । उन्हीं के उपदेशों को भक्त संतों ने दक्षिण भारत से लेकर महाराष्ट्र तक फैलाया। महाराष्ट्र में 13वीं सदी में नामदेव ने भक्ति धारा को प्रवाहित किया, 17वीं सदी में तुकाराम ने आगे बढ़ाया। इस बीच हम भक्त संतों की एक समृद्ध परम्परा को देखते हैं । इन भक्त संतों ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति एवं प्रेम के सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया। इन संतों ने धार्मिक आडम्बर, मूर्ति पूजा, तीर्थ, व्रत, उपासना और कर्मकाण्डों का घोर विरोध किया और कहा कि यह सब कुछ नहीं, केवल दिखावा मात्र है । इन्होंने आर्यों की वर्ण व्यवस्था को भी मानने से इंकार कर दिया और जाति-पाति, ऊँच-नीच के भेदभाव का घोर विरोध किया । इनके अनुयायियों ने सभी जाति के लोगों, महिलाओं और मुसलमानों को भी शामिल किया ।

महाराष्ट्र के इन संतों ने भक्ति की यह परम्परा पंढरपुर में विट्ठल स्वामी को जन- जन के ईश्वर और आराध्य के रूप में स्थापित किया । ये विट्ठल स्वामी विष्णु के हीएक रूप श्रीकृष्ण थे । महाराष्ट्रीय भक्त संतों की रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया गया । इन्होंने सभी वर्णों, जातियों, यहाँ तक कि अंत्यज कहे जाने वाले दलितों को भी समान दृष्टि से देखा । इन भक्त संतों ने अपने अभंग द्वारा सामाजिक व्यवस्था पर ही प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया ।

संत तुकाराम ने अपने अभंग में लिखा :
जो दीन-दुखियों, पीड़ितों को
अपना समझता है वही संत है क्योंकि ईश्वर उसके साथ है ।
ऐसे ही विचार अन्य भक्ति संतों ने अपने अभंग में लिखा ।

विचारणीय मुद्दे :

प्रश्न 1. मध्यकालीन भक्त संतों में कुछ अपवादों को छोड़कर एक समान विशेषताएँ थीं। कैसे ?
उत्तर—मध्यकालीन भारत में भक्त आंदोलन के उद्भव और विकास में कई परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं। वैदिक पंडा-पुरोहित कर्मकांडों को आधार बनाकर जनता का शोषण करते थे । जो कर्मकांडों के व्यय को वहन करने योग्य नहीं थे, उन्हें नीच करार दिया गया। इस कारण समाज में दलितों की संख्या बढ़ गई । इन्हीं बुराइयों को दूर करने में भक्त संत लगे रहे । यद्यपि आगे चलकर इनमें भी दो मतावलम्बी हो गये, लेकिन धर्म सुधार की जिस मकसद से ये संत बने थे उसमें कोई अन्तर नहीं आया । इसलिये कहा गया है कि कुछ अपवादों को छोड़कर भक्त संतों की एक समान विशेषताएँ थीं ।

प्रश्न 2. शंकराचार्य ने भारत को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बाँधा । कैसे ?
उत्तर- शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठों का निर्माण कर भारत को सांस्कृतिक रूप में एक सूत्र में बाँधने का काम किया। वे चारों मठ थे :

उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी, पूरब में पुरी तथा पश्चिम में द्वारिका । इस प्रकार हर भारतीय जीवन में एक बार इन मठों में जाकर पूजा अर्चना करना अपना एक कृत्य मानने लगा। इससे सम्पूर्ण भारत धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बँध गया। उस शंकराचार्य को आदि शंकराचार्य कहते हैं । अभी हर मठ के अलग- अलग शंकराचार्य होते हैं, ताकि परम्परा कायम रहे। एक शंकराचार्य की मृत्यु के बाद दूसरे शंकराचार्य नियुक्त हो जाते हैं ।

प्रश्न 3. क्या आपके गाँव के पुजारी मध्यकालीन संतों की तरह कर्मकांड, जात-पात, आडम्बर आदि का विरोध करते हैं? अगर नहीं तो क्यों ?
उत्तर— ग्रामीण क्षेत्रों में अभी बहुत बदलाव नहीं आया है। अभी भी यहाँ के पुजारी कर्मकांड, जातपात, आडम्बर आदि का विरोध नहीं करते। कारण कि यदि वे ऐसा करें.. तो उनकी रोजी ही समाप्त हो जाय। दूसरी बात है कि गाँव के ऊँची जातियाँ उनका समर्थन भी करती हैं। इसलिये कानून की परवाह किये बिना वे लगातार लकीर के फकीर बने हुए | आर्य समाज का जबतक बोलबाला था तब तक इसमें कुछ कमी आई थी। लेकिन अब वे निरंकुश हो गये हैं। सरकार भी कुछ नहीं कर पाती ।

प्रश्न 4. क्या आपने हिन्दू और मुसलमानों को साथ रहते हुए देखा है? उनमें क्या-क्या समानताएँ हैं?  
उत्तर—मैं तो जन्म से ही हिन्दू और मुसलमानों को साथ-साथ रहते हुए देखा है। हमने देखा ही नहीं है, बल्कि साथ-साथ रहे भी हैं और आज भी साथ-साथ रह रहे हैं अभी का आर्थिक जीवन इतना पेचिदा हो गया है कि बिना एक-दूसरे का सहयोग लिये हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। हम सभी साथ-साथ है। कभी-कभी कुछ राजनीतिक कारणों से विभेद-सा लगता है, लेकिन अन्दर से सभी साथ-साथ हैं । कुछ राजनीतिक दल तो ऐसे हैं जो एक होने ही नहीं देना चाहते हैं ? सदैव लड़ाते रहना चाहते हैं। वे यही दिखाने में मशगूल रहते हैं कि कौन पार्टी कितना मुसलमानों की हितैषी है। लेकिन इस धूर्तता को मुसलमान भी समझ गये हैं । इसका उदाहरण अभी बिहार और गुजरात है। अब राजनीतिक आधार पर वोट पड़ने लगे हैं । धर्म और जाति के आधार पर नहीं ।

प्रश्न 5. सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये आप क्या-क्या करना चाहेंगे, जिससे सौहार्दपूर्ण माहौल बने ?
उत्तर – सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये हम सभी मिलजुलकर संस्कृत उत्सव मनाएँगे । उनके शादी-विवाह आदि खुशी के मौके पर उनको अपने यहाँ बुलाएँगे और उनके बुलावे पर उनके यहाँ जाएँगे। ऐसा करना क्या है, सदियों से ऐसा होता भी आया है और अभी भी हो रहा है। यदि राजनीतिक नेता चुप रहें तो कहीं कोई कड़बड़ी नहीं होगी ।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. बसवन्ना ईश्वर को कौन-सा मंदिर अर्पित कर रहा है?
उत्तर – बसवन्ना ईश्वर को अपने शरीररूपी सोने के मंदिर को अर्पित कर रहा है। उसके अनुसार चूँकि शरीर के अन्दर आत्मारूपी परमात्मा का वास है और परमात्मा अविनाशी है, अतः यह मंदिर कभी गिरनेवाला नहीं । ईंट-पत्थर के मंदिर एक दिन समाप्त हो जाएँगे, लेकिन यह मंदिर सदा खड़ा रहेगा ।

प्रश्न 2. शंकर या राजानुज के विचारों के बारे में कुछ और पता लगाने का प्रयत्न करें ।
उत्तर—शंकर ने मात्र पाँच वर्ष की आयु में सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था तथा उसी समय से उनमें वैराग्य की भावना जागृति हो गई थी । वे संन्यासी बन गए । भारत लिए शंकर की सर्वश्रेष्ठ देन उनके द्वारा स्थापित चार मठ हैं जो भारत के चार छोरों पर अवस्थित हैं। भारत को एक सूत्र में बाँधे रखने के विचार से उन्होंने ऐसा किया होगा ।’

रामानुज वैष्णव सम्प्रदाय से संबंधित थे। इनकी परम्परा में इनके शिष्य रामानन्द हुए जो राम के अनन्य भक्त थे। कबीर रामानन्द को ही अपना गुरु मानते थे ।

प्रश्न 3. नाथपंथियों, सिद्धों और योगियों के विश्वासों और आचार- व्यवहारों का वर्णन करें ।
उत्तर – नाथपंथियों, सिद्धों और योगियों ने लगभग समान बातों पर ही जोर दिया। उनके विचार से केवल एक निराकार प्रभु का चिंतन-मनन करना चाहिए। वे रुढ़िवादी कर्मकांडों का विरोध करते थे । उन्होंने मोक्ष के लिए योगासन, प्राणायाम जैसी क्रियाओं के द्वारा मन को एकाग्र रखने की बात कही । ये तीनों उत्तर भारत में, खास तौर से तथाकथित निम्न जातियों में विशेष मान्य हुए । इन्होंने रुढ़िवादी धर्म की आलोचना की, भक्ति मार्ग. के लिए आधार तैयार किया, जो आगे चलकर काफी लोकप्रिय हुआ ।

प्रश्न 4. कबीर द्वारा अभिव्यक्त प्रमुख विचार क्या-क्या थे? उन्होंने इन विचारों को कैसे अभिव्यक्त किया ?,
उत्तर — कबीर धार्मिक परम्पराओं और बाह्माडंबरों के प्रबल विरोधी थे । उन्होंने हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों के दिखावा का मजाक उड़ाया । उनकी कविता की भाषा ठेठ स्थानीय है, जिसे किसी हद तक हिन्दी भी माना जा सकता है। वैसे उसमें भोजपुरी शब्दों की भरमार है। उनकी कविताओं को समझना आसान तो था, लेकिन कुछ गूढ़ कथनों को समझना विद्वानों के लिए भी कठिन होता है। वे निराकार परमेश्वर में विश्वास रखते थे । उन्होंने अल्लाह और ईश्वर में कोई भेद नहीं माना। इसको पाने के लिए उन्होंने मंदिर और मस्जिद में जाने के बजाय अपने दिल में ढूँढने की सलाह दी ।

प्रश्न 5. सूफियों के प्रमुख आचार-व्यवहार क्या थे?
उत्तर – सूफी संत अपने खानकाहों में मिलजुलकर बैठते थे, जहाँ शाही घरानों के अलावा अभिजातवर्ग के लोग भी शामिल होते थे। सूफी गवैये खास तौर पर कौव्वाली गाते थे, जिसमें खुदा की वन्दना को विशेष ध्यान रखा जाता था। ये गाते-गाते इतना भाव-विभोर हो जाते थे कि इनकी आँखों से आँसू निकल आते थे। औलियाओं के दरगाह सूफियों के मुख्य केन्द्र माने जाने लगे। इनमें अजमेर स्थित ख्वाजा मुइउद्दीन चिश्ती का मजार विशेष प्रसिद्ध हो गया। आगे चलकर ये चमत्कारिक शक्तियों का प्रदर्शन भी करने लगे, जो इनकी प्रारंभिक मुख्य धारा के विपरीत था । ये एक अल्लाह में विश्वास तो करते थे, लेकिन पीर और औलिया भी इनकी परम्परा में सम्मिलित हो गए ।

प्रश्न 6. आपके विचार से बहुत-से गुरुओं ने उस समय प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं को अस्वीकार क्यों किया?
उत्तर—पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दियों में अनेक गुरु और संत हुए। इन्होंने पहले से चली आ रही धार्मिक पाखंडपूर्ण विश्वासों तथा प्रथाओं को इसलिए अस्वीकार किया कि इससे समाज में भेदभाव बढ़ने का डर था, जिससे समाज टूट भी सकता था। तुलसीदा ने हिन्दुओं में फैले सम्प्रदायवाद का विरोध किया, तथा वैष्णव, शैव और शाक्तों के झगड़ों को शांत किया। उन्होंने बताया कि ये तीनों एक ही शक्ति के अलग-अलग रूप हैं और इन बातों को लेकर समाज में मत भिन्नता की बात बेमानी है। सूरदास, कबीरदास, मीराबाई, गुरु नानक देव आदि सभी ने रूढ़िवादी परम्पराओं का विरोध किया । मीराबाई और सूरदास कृष्ण को अपना आराध्य मानते थे ।

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